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Saturday, 2 November, 2024
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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव: दंतेवाड़ा में सात चुनावी उम्मीदवार, आपस में सब रिश्तेदार

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छत्तीसगढ़ में महेंद्र कर्मा के बेटे छबिंद्र कर्मा को कांग्रेस से टिकट नहीं मिला तो अपनी मां देवती कर्मा के खिलाफ ही निर्दलीय नामांकन भर दिया, हालांकि बाद में वे मान गए.

नई दिल्ली: भारत में ऐसी पार्टियों की भरमार है जिनमें एक ही परिवार और रिश्तेदारी के तमाम लोग भरे हैं, लेकिन भारतीय राजनीति में ऐसे भी अनोखे परिवार हैं जिनके तमाम सदस्य अगल-अलग पार्टियों में सुशोभित हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ की दंतेवाड़ा विधानसभा सीट का मामला ज़्यादा रोचक है. यहां पर अलग-अलग पार्टियों के सात उम्मीदवार एक ही परिवार से तो नहीं हैं लेकिन आपस में एक-दूसरे के रिश्तेदार हैं.

इस सीट से भाजपा से भीमा मंडावी, कांग्रेस से देवती कर्मा, सीपीआई से नंदाराम सोरी, आम आदमी पार्टी से बल्लू भवानी, बसपा से केशव नेताम चुनाव लड़ रहे हैं. इसके अलावा सीपीआई के बागी नेता सुदरू कुंजाम और जोगी कांग्रेस की बागी जया कश्यप निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. ये सभी एक ही जनजातीय समुदाय से हैं इसलिए आपस में सब रिश्तेदार हैं.

भाजपा के उम्मीदवार भीमा मंडावी कांग्रेस उम्मीदवार देवती कर्मा, नंदाराम सोरी के बहनोई हैं. सीपीआई उम्मीदवार नंदाराम सोरी देवती कर्मा के भाई हैं. इसके सुदरू कुंजाम और केशव नेताम का बल्लू भवानी से मामा-भांजा का रिश्ता बैठता है. जोगी कांग्रेस से बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़ रहीं जया कश्यप और आप उम्मीदवार देवती कर्मा के भतीजे-भतीजी हैं.

हालांकि, दंतेवाड़ा के स्थानीय पत्रकार पुष्पेंद्र ने बताया, ‘रिश्तेदार इसलिए हैं कि सभी जनजातीय समाज से हैं. उनका आपस में करीबी रिश्ता नहीं, दूर का रिश्ता है. एक ही समाज के लोगों को आपसी कुछ न कुछ रिश्ता होता है, कोई भाई है, कोई चाचा है, कोई मामा है, कोई साला है, कोई बहनोई है. वे सब एक ​परिवार के नहीं, बल्कि एक समाज के हैं इसलिए आपस में रिश्तेदार हैं.’

पहले दंतेवाड़ा सीट से महेंद्र कर्मा कांग्रेस से चुनाव लड़ते थे. उन्हीं की अगुवाई में नक्सलियों के खिलाफ सलवा जुडूम नाम से एक ​आंदोलन चला था. इस आंदोलन के तहत आदिवासी ग्रामीणों को हथियार थमाकर नक्सलियों से मुकाबला करने के तैयार किया जाता था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे अवैध बताने के बाद यह बंद हो गया.

महेंद्र कर्मा 25 मई 2013 में दर्भा घाटी में हुए नक्सली हमले में विद्याचरण शुक्ल, नंद कुमार पटेल समेत कई कांग्रेस नेताओं के साथ मारे गए थे. महेंद्र कर्मा की पत्नी देवती कर्मा दंंतेवाड़ा से कांग्रेस की उम्मीदवार हैं.

महेंद्र और देवती कर्मा के बेटे छबिंद्र कर्मा भी कांग्रेस से टिकट के लिए प्रयास कर रहे थे. जब उन्हें टिकट नहीं मिला तो वे अपनी मां के खिलाफ ही बगावत पर उतर आए और निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर डाली, हालांकि, स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राहुल गांधी ने फोन करके उन्हें चुनाव न लड़ने के लिए मना लिया. इसके बाद छबिंद्र कर्मा ने अपना नामांकन वापस ले लिया.

इसके अलावा नंदलाल मुड़ामी भाजपा से दंतेवाड़ा ज़िला पंचायत सदस्य हैं. चुनाव लड़ रहे उक्त सातों उम्मीदवार उनके भी रिश्तेदार हैं. बीते रविवार को उनपर हमला हुआ तो उक्त सभी नेता वहां पहुंच गए और आपस में बातें करते भी नज़र आए. ये सभी लोग अलग-अलग पार्टियों से एक दूसरे के खिलाफ़ चुनाव तो लड़ते हैं, लेकिन आपस में सभी अपनी रिश्तेदारी भी निभाते हैं.

जब महेंद्र कर्मा दंतेवाड़ा से चुनाव लड़ते थे तो उनके खिलाफ़ भी उनके कई रिश्तेदार चुनावी मैदान में होते थे. यहां पर एक ही समुदाय के तमाम उम्मीदवार होने और उनके आपस में रिश्तेदार होने की वजह से रोचक चुनावी मुकाबला होता रहा है और जीत-हार का अंतर ​बहुत कम रहता है. इस विधानसभा सीट पर कुल एक लाख सत्तासी हज़ार वोटर हैं.

यह सीट कभी कांग्रेस तो कभी सीपीआई जीतती रही है. लेकिन 2008 में यहां भाजपा को जीत मिली थी. लेकिन 2013 में कांग्रेस प्रत्याशी देवती कर्मा फिर से जीत गईं. कांग्रेस ने इस बार फिर यहां से देवती को ही टिकट दिया है. दंतेवाड़ा में इस बार जोगी कांग्रेस ने सीपीआई को अपना समर्थन दे दिया है जिसके चलते मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है.

पुष्पेंद्र का कहना है कि गठबंधन की वजह से सीपीआई यहां काफी मज़बूत हो गई है. देवती कर्मा सौम्य महिला हैं, उनके खिलाफ नाराज़गी तो नहीं है, लेकिन यहां पर मुकाबला काफी कड़ा है.

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