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Monday, 6 May, 2024
होमचुनावकांग्रेस ने 2018 में 50% से अधिक वोटों के साथ छत्तीसगढ़ की 30/90 सीटें जीतीं थीं. 2023 में इसका क्या असर पड़ेगा

कांग्रेस ने 2018 में 50% से अधिक वोटों के साथ छत्तीसगढ़ की 30/90 सीटें जीतीं थीं. 2023 में इसका क्या असर पड़ेगा

2018 में जिन 30 सीटों पर कांग्रेस ने 50 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था, उनमें से 19 सीटें 2013 में भाजपा ने जीती थीं, जब उन्होंने लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल की थी.

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नई दिल्ली: 2018 में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए आगामी छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. कांग्रेस पार्टी ने न केवल कुल 90 सीटों में से 68 सीटें जीतीं, बल्कि उनमें से 30 पर उसने 50 फीसदी से अधिक वोट शेयर भी हासिल किया. 2013 में कांग्रेस ने इतने बड़े वोट शेयर के साथ सिर्फ सात सीटें जीती थीं.

भाजपा ने उस समय अपना गढ़ माने जाने वाले छत्तीसगढ़ में भी अपनी किस्मत में कुछ बदलाव देखे. इसने 2018 में 50 प्रतिशत से अधिक वोट-शेयर के साथ केवल दो सीटें जीतीं, जो 2013 के मुकाबले 12 कम है, जिससे पता चलता है कि भूपेश बघेल सरकार को हटाकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करना एक कठिन रास्ता हो सकता है.

गौरतलब है कि 2018 में जिन 30 सीटों पर कांग्रेस ने 50 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया था, उनमें से 19 सीटें 2013 में भाजपा ने जीती थीं, जब उन्होंने लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल की थी. इसके अतिरिक्त, 2018 में इन अंतरों से जीते हुए कांग्रेस विधायकों में से 14 विधानसभा में नए आए थे.

2018 में कांग्रेस के स्टार कलाकारों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी शामिल थे, जिन्होंने पहली बार दुर्ग जिले की पाटन सीट 50 प्रतिशत से अधिक वोट-शेयर के साथ जीती थी. जो 2013 में 47.5 प्रतिशत था.

 

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चित्रण: पीयूष मखीजा | दिप्रिंट

उपमुख्यमंत्री टी.एस. देव सिंह, जो उस समय सीएम पद की दौड़ में शामिल थे, उन्होंने भी सरगुजा जिले के अंबिकापुर से 50 प्रतिशत से अधिक वोट-शेयर से जीत हासिल की, दूसरी बार उन्होंने इस सीट से यह उपलब्धि हासिल की.

विशेष रूप से, कांग्रेस ने उत्तरी छत्तीसगढ़ में साथ लगी हुई सरगुजा और रायगढ़ जिलों में क्लीन स्वीप हासिल किया और सभी सात सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक वोटों के साथ जीत हासिल की.

वहीं बीजेपी को सिर्फ दो सीटों पर ऐसे नतीजे मिले. पूर्व सीएम रमन सिंह का निर्वाचन क्षेत्र राजनांदगांव था और दूसरा रायपुर दक्षिण था, जिसका प्रतिनिधित्व बृजमोहन अग्रवाल करते हैं.

उसी निर्वाचन क्षेत्र से फिर से चुनाव लड़ने के लिए तैयार सिंह ने पिछले तीन विधानसभा चुनावों में 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ यह सीट जीती है. 2003 में उन्होंने डोंगरगांव सीट से यही उपलब्धि हासिल की. अग्रवाल ने 2018 में रायपुर दक्षिण में 52.7 प्रतिशत वोट हासिल किए, जो वोट-शेयर के मामले में पिछले चार चुनावों में सबसे कम है.

छत्तीसगढ़ के गुरु घासीदास विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग की प्रमुख, राजनीतिक विशेषज्ञ डॉ. अनुपमा सक्सेना ने दिप्रिंट को बताया कि कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस का उच्च मार्जिन स्थानीय मुद्दों, जैसे क्षेत्रीय मुद्दों और विशिष्ट उम्मीदवारों के लिए मतदाता प्राथमिकताओं का परिणाम हो सकता है.

उन्होंने आगे कहा “पिछले चुनाव में, यह एक असाधारण जीत थी. कांग्रेस भारी अंतर से जीती. स्थानीय कारक भी इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन मुझे नहीं लगता कि कोई राज्य-स्तरीय कारक है जिसके परिणामस्वरूप 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर होता है, कुछ स्थानों पर, लोगों को शायद (भाजपा) उम्मीदवार पसंद नहीं आया और उस व्यक्ति को कम वोट-शेयर मिला.”

सक्सेना ने कहा कि बड़े विजेताओं को पद से हटाना एक मुश्किल काम हो सकता है.

आगे बोले, “निश्चित रूप से, जो पार्टी दूसरे स्थान पर आएगी उसे उन सीटों पर बहुत अधिक मेहनत करनी होगी. अगर वे इस बार उम्मीदवार बदलते हैं, तो इसका मतलब यह होगा कि चीजें पिछले उम्मीदवार के खिलाफ हो सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप बड़ा नुकसान हुआ.”


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सरगुजा-रायगढ़ और दुर्ग संभाग में बड़ी जीत

2018 में, कांग्रेस ने पर्याप्त आदिवासी आबादी वाले क्षेत्रों में बड़ी पैठ बनाई और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के लिए आरक्षित 29 में से 25 सीटों पर जीत हासिल की.

इनमें से, पार्टी ने सरगुजा और रायगढ़ के उत्तरी जिलों की सभी सात सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक वोट जीते, जिनमें से दोनों में एसटी आबादी अधिक है.

2011 की जनगणना के अनुसार, छत्तीसगढ़ की 2.55 करोड़ आबादी में से लगभग 31 प्रतिशत आदिवासी हैं. लेकिन सरगुजा में इनकी संख्या लगभग 55 प्रतिशत और रायगढ़ में 34 प्रतिशत है.

इस क्षेत्र में सबसे प्रमुख कांग्रेस नेता सरगुजा के पूर्व शाही परिवार के वंशज टीएस सिंह देव हैं, जिन्होंने अंबिकापुर विधानसभा क्षेत्र से लगातार तीन चुनाव जीते हैं.

एक अन्य क्षेत्र जहां कांग्रेस ने पिछले चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत की थी, वह पश्चिमी छत्तीसगढ़ का दुर्ग संभाग था, जिसमें उस समय पांच जिले बालोद, बेमेतरा, दुर्ग, कबीरधाम और राजनांदगांव शामिल थे.

इन जिलों की 20 सीटों में से कांग्रेस ने 17 सीटें जीत लीं, जबकि नौ सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक अंतर से जीत हासिल की.

रायपुर जहां राज्य की राजधानी है वहीं दुर्ग संभाग को छत्तीसगढ़ की राजनीति का शक्ति केंद्र कहा जा सकता है. इस संभाग से बघेल और रमन सिंह दोनों ने अपनी सीटें जीतीं.

File photo CM Bhupesh Baghel | ANI
फाइल फोटो सीएम भूपेश बघेल | एएनआई

कांग्रेस नेता ताम्रध्वज साहू, जो उस समय सीएम पद के दावेदार थे और अब राज्य के गृह मंत्री हैं, इस क्षेत्र से एक और लोकप्रिय चेहरा हैं. उन्होंने 51 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल कर दुर्ग ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्र में भाजपा के दो कार्यकाल के सिलसिले को समाप्त कर दिया.

कांग्रेस सरकार के कई वरिष्ठ मंत्री भी इस क्षेत्र से जीते, जिनमें रवींद्र चौबे (साजा), गुरु रुद्र कुमार (अहिवारा), मोहम्मद अकबर (कवर्धा), और अनिला भेंडिया (डोंडी लहारा) शामिल हैं.

चौबे, कुमार और अकबर ने 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर से जीत हासिल की, साथ ही बाद के दो ने अपनी सीटों पर भाजपा के दो-दिवसीय प्रभुत्व को समाप्त कर दिया.

दुर्ग के प्रतिष्ठित राजनीतिक नामों की सूची में मध्य प्रदेश के दिवंगत पूर्व सीएम मोतीलाल वोरा (जिनके बेटे अरुण वोरा अब दुर्ग शहर से कांग्रेस विधायक हैं) और भाजपा की राज्यसभा सांसद सरोज पांडे, दुर्ग नगर निगम की पूर्व मेयर भी शामिल हैं.

दुर्ग संभाग के पांच जिलों, सरगुजा-रायगढ़ बेल्ट के साथ मिलकर, उन 30 सीटों में से 16 सीटें हैं, जिन पर कांग्रेस ने 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ जीत हासिल की.

अन्य उल्लेखनीय जीतों में, रेखचंद जैन ने लगभग 53 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जगदलपुर सीट हासिल की, जो उस सीट पर कांग्रेस की पहली जीत थी. इसी तरह, बिलासपुर में, शैलेश पांडे ने तीन बार के भाजपा विधायक को हराकर 50.5 प्रतिशत वोट शेयर के साथ कांग्रेस के लिए जीत हासिल की.

‘कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं’

छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ कांग्रेस इस साल अपनी 2018 की सफलता को दोहराने और यहां तक कि मार्जिन में सुधार करने को लेकर आश्वस्त दिख रही है.

पार्टी के राज्य संचार विभाग के अध्यक्ष सुशील आनंद शुक्ला ने दावा किया कि मुख्य बात घोषणापत्र के वादों को पूरा करना है.

शुक्ला ने कहा “पिछली बार, हमने घोषणापत्र में ये सभी चीजें करने का वादा किया था. अब हमने इनमें से अधिकांश चीजों को लागू कर दिया है. 2018 में हमें 68 सीटें मिलीं और इस बार हमारा लक्ष्य 75 सीटें हासिल करना है. “हमारा मार्जिन निश्चित रूप से और भी बेहतर होगा.”

पिछले तीन चुनावों में टीएस देव सिंह के खिलाफ दावेदार, भाजपा प्रवक्ता अनुराग सिंह देव ने भी पिछले चुनावों में अपनी असफलता के कारणों में से एक के रूप में कांग्रेस के घोषणापत्र को बताया.

उन्होंने कहा कि, “छत्तीसगढ़ के इतिहास में ऐसा चुनाव कभी नहीं हुआ. भाजपा 15 साल तक सत्ता में रही और उन्होंने (कांग्रेस) घोषणापत्र के लिए अपना होमवर्क किया था. इसने समाज के हर छोटे वर्ग को प्रभावित किया. किसान, स्वयं सहायता समूह, चिटफंड निवेशक, पुलिस आदि. बड़े मार्जिन का भी यही कारण था.”

हालांकि, देव ने दावा किया कि 2018 के मुद्दे अब उतने प्रासंगिक नहीं हो सकते हैं. उन्होंने कहा, ”आपने देखा है कि लोकसभा में चीजें कैसे बदल गईं.”

राजनीतिक वैज्ञानिक सक्सेना का कहना है कि छत्तीसगढ़ राज्य चुनावों में मुख्य रूप से शासन और नीति पर वोट करता है, न कि व्यक्तित्वों पर, जैसा कि 2019 के लोकसभा चुनावों में हुआ था.

सक्सेना के अनुसार, समाज के कई वर्गों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के अलावा, सीएम बघेल के “छत्तीसगढ़ी पहचान” पर जोर ने भी उनके पक्ष में काम किया है.

उन्होंने आगे कहा, “छत्तीसगढ़ में सुशासन और नागरिक केंद्रित योजनाएं चुनावों में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. जाति एक कारक है, लेकिन दोनों पार्टियां जातीय संतुलन बनाए रखती हैं.”

सक्सेना ने कहा कि छत्तीसगढ़ एक ऐसा राज्य है जहां लोग बहुत जल्दी सरकार नहीं बदलना पसंद करते हैं. उन्होंने कहा, ”इस बार कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं दिख रही है.”

(संपादन: आशा शाह)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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