नई दिल्ली: पिछले हफ्ते अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के बाद, अठ्ठावन वर्षीय चरणजीत सिंह चन्नी ने सोमवार को, पंजाब के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली.
तीन बार के विधायक चन्नी एक दलित सिख नेता हैं. कांग्रेस अपेक्षा कर रही है, कि चन्नी की नियुक्ति के साथ 2022 के विधान सभा चुनावों से पहले, सूबे के दलित क्षेत्रों में उसकी संभावनाओं को बढ़ावा मिलेगा.
अगले साल शुरू में पांच सूबों में विधान सभा चुनावों से पहले, दलित राजनीति के फिर से केंद्रीय मंच पर आने के साथ, दिप्रिंट एक नज़र डालता है भारत के पिछले दलित मुख्यमंत्रियों पर.
भोला पासवान शास्त्री
1968 वो साल था जब बिहार को उसका पहला दलित मुख्यमंत्री मिला. भोला पासवान शास्त्री जो भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे, बिहार के पूर्णिया ज़िले में पैदा हुए थे, और राज्य के जाटव समाज का प्रतिनिधित्व करते थे.
उन्होंने 22 मार्च 1968 को बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, लेकिन उनका कार्यकाल सिर्फ तीन महीने का रहा, क्योंकि कांग्रेस ने बिहार विधान सभा में बहुमत खो दिया था.
उसके बाद सूबे में मध्यावधि असेम्बली चुनाव कराए गए. 1969 में शास्त्री फिर मुख्यमंत्री बने. इस बार उनका कार्यकाल सिर्फ 13 दिन का रहा. 1971 में वो तीसरी मरतबा फिर मुख्यमंत्री बने, और इस बार सात महीने काम किया.
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राम सुंदर दास
दलित नेता राम सुंदर दास जो ज़मीन से उठे नेता थे, और बाद में कांग्रेस में शामिल हुए थे, बिहार के दूसरे दलित सीएम बने.
1977 के बिहार विधान सभा चुनावों के दौरान, जब कांग्रेस जनता दल के हाथों परास्त हुई, तो दास सोनपुर विधान सभा सीट से विजयी रहे. एक दलित नेता, हाजीपुर लोकसभा सीट से दो बार के सांसद, और बाद में बिहार सीएम नीतीश कुमार के नज़दीकी सहयोगी रहे दास का, 2015 में 95 साल की आयु में निधन हुआ.
नीतीश कुमार ने कहा था कि दास की मौत, पार्टी, बिहार, और निजी तौर पर उनके लिए एक बड़ी क्षति थी.
जीतन राम मांझी
मई 2014 में, लोकसभा चुनावों में जेडी(यू) के ख़राब प्रदर्शन के बाद, अपनी पार्टी की हार की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए, नीतीश कुमार ने बिहार सीएम पद से इस्तीफा दे दिया.
लेकिन अपने उत्तराधिकारी के तौर पर, वो एक लो प्रोफाइल चेहरे- जीतन राम मांझी को लेकर आए.
छह-बार विधायक रहे मांझी नीतीश मंत्रिमंडल में एससी-एसटी कल्याण मंत्री थे. बिहार के 23वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने वाले मांझी, मुशहर जाति से ताल्लुक़ रखते हैं, जो राज्य के कुल मतदाताओं का दो प्रतिशत है.
मांझी ने, जो किसी समय एक क्लर्क हुआ करते थे, राज्य की पिछड़े वर्ग की राजनीति में एक अहम रोल अदा किया, जिसके तहत उन्होंने कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, और जेडी(यू) में समय बिताया.
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मायावती
नई दिल्ली में एक मध्यम-वर्गीय दलित परिवार में जन्मी मायावती, जून 1995 में उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री बनीं. लेकिन उनका कार्यकाल चार महीने के भीतर समाप्त हो गया.
एक दशक के भीतर, वो देश की सबसे क़द्दावर दलित नेता बन गईं. बीएसपी सुप्रीमो ने अपनी अगुवाई में, 2007 के यूपी असेम्बली चुनावों में पार्टी को सनसनीख़ेज़ जीत दिलाई, जिसने 403 सदस्यीय असेम्बली में 206 सीटें जीत लीं. अपनी स्थापना के बाद ये पहली बार था, कि बीएसपी ने अपने दम पर बहुमत हासिल किया था.
2007 में, मायावती ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने वाली उत्तरप्रदेश की पहली मुख्यमंत्री बनकर उन्होंने एक इतिहास रच दिया. कोई भी पिछला सीएम अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया था, चाहे वो वीपी सिंह हों, मुलायम सिंह हों, कल्याण सिंह हों, या फिर कमलापति त्रिपाठी.
दामोदरम संजीवैया
1960 के दशक के उत्तरार्ध में कांग्रेस पार्टी ने, दलितों तथा कमज़ोर वर्गों को लुभाने के लिए बहुत सी नीतियां और कल्याण योजनाएं शुरू कीं. एससी तथा ओबीसी वर्गों के बीच अपने समर्थन को मज़बूत करने के लिए, 1960 में दामोदरम संजीवैया को आंध्र प्रदेश का सीएम बनाया गया. संजीवैया राज्य के पहले दलित सीएम थे, लेकिन उनका कार्यकाल दो साल के अंदर ही ख़त्म हो गया.
1962 में उन्हें ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) का पहला दलित अध्यक्ष भी चुना गया. सियासी रणनीति और प्रशासनिक कौशल के लिए मशहूर संजीवैया ने, 1964 से 1966 के बीच लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में, श्रम व रोज़गार मंत्री के तौर पर भी सेवाएं दीं थीं.
सुशील कुमार शिंदे
पूर्व सब-इंस्पेक्टर और एक मोची के बेटे सुशील कुमार शिंदे, 2003 में महाराष्ट्र के 22वें मुख्यमंत्री और पहले दलित सीएम बने. एक साल के बाद, 2004 विधान सभा चुनावों में कांग्रेस-एनसीपी की जीत के बाद, विलासराव देशमुख को सीएम चुन लिया गया.
गांधी परिवार के वफादार शिंदे ने 1978, 1980, 1985 और 1990 में, महाराष्ट्र असेम्बली के चार चुनाव जीते. 2004 में उन्हें आंध्र प्रदेश का गवर्नर भी नियुक्त किया गया.
बाद में, 2006 में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री के तौर पर, वो मनमोहन सिंह कैबिनेट का हिस्सा बने, और 2012 में केंद्रीय गृह मंत्री बन गए.
जगन्नाथ पहाड़िया
राजस्थान के भरतपुर ज़िले में एक दलित परिवार में जन्मे कांग्रेस नेता जगन्नाथ पहाड़िया ने चार बार लोकसभा चुनाव जीते, और 1980, 1985, 1999 तथा 2003 में, उन्हें विधान सभा का सदस्य चुना गया. 1980 में उन्होंने राजस्थान के पहले दलित मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. लेकिन उनका कार्यकाल एक वर्ष में ही ख़त्म हो गया.
इस साल 89 वर्ष की आयु में उनका कोविड से निधन हो गया.
अपने लंबे राजनीतिक जीवन में वो हरियाणा तथा बिहार के राज्यपाल भी रहे.
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