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Saturday, 5 October, 2024
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5 बार बदली पार्टी, BJP में रहे; अशोक तंवर के दोबारा कांग्रेस में आने से हरियाणा की राजनीति में क्या बदलेगा

अशोक तंवर ने पहली बार 2019 में कांग्रेस छोड़ी थी, एक महीने पहले ही उन्हें हरियाणा इकाई प्रमुख के पद से हटाकर कुमारी शैलजा को बैठाया गया था। ऐसा माना जाता है कि उनकी वापसी में उनके पत्नी के चचेरे भाई अजय माकन ने अहम भूमिका निभाई है.

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गुरुग्राम: जब 48 वर्षीय पूर्व सांसद अशोक तंवर ने 2019 में हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को अलविदा कहा, तो उनकी पत्नी अवंतिका माकन तंवर बेहद दुखी और उदास थीं। उन्होंने पहले मीडिया से कहा था कि उन्हें ऐसा लग रहा था कि उनके अंदर कुछ मर सा गया है।

अवंतिका छह साल की थीं, जब उनके घर के बार उनके माता-पिता – शंकर दयाल शर्मा की बेटी गीतांजलि माकन और तत्कालीन कांग्रेस सांसद ललित माकन – को 31 जुलाई 1985 को कीर्ति नगर स्थित उनके घर के बाहर सिख चरमपंथियों द्वारा गोली मार दी गई थी।

माकन के घर पर सबसे पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया गांधी पहुंचे और अवंतिका को सांत्वना दी। तब से अशोक के कांग्रेस छोड़ने तक सोनिया के साथ उनका खास रिश्ता रहा.

Avantika Maken (as a child) with former PM Rajiv Gandhi, former President Shankar Dayal Sharma (her grandfather) and his wife | By special arrangement
अवंतिका माकन (बचपन में) पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा (उनके दादा) और उनकी पत्नी के साथ | विशेष व्यवस्था द्वारा

अगले पांच सालों में अशोक ने पांच बार राजनीतिक पार्टियां बदलीं, जो 1960 के दशक से हरियाणा की राजनीति को परिभाषित करने वाली आया राम, गया राम संस्कृति का परिचायक रही है.

अशोक ने 4 अक्टूबर 2019 को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया को भेजे अपने त्यागपत्र में लिखा, “कांग्रेस अपने राजनीतिक विरोधियों की वजह से नहीं बल्कि गंभीर आंतरिक विरोधाभासों की वजह से आंतरिक संकट से गुजर रही है।” उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस “लोकतंत्र की विरोधी है, जो सामंती रवैये और मध्ययुगीन साजिशों से ग्रस्त है।”

अशोक के कांग्रेस छोड़ने से पहले क्या हुआ था

तंवर के इस्तीफा देने से एक महीने पहले, कांग्रेस ने उनकी जगह हरियाणा इकाई के अध्यक्ष पद पर शैलजा कुमारी को बैठा दिया था, जिस पद पर वे 2014 से थे, और उनके वफादारों को विधानसभा चुनाव के टिकट भी नहीं दिए थे। और इसके दो दिन पहले, वे अपने समर्थकों के साथ नई दिल्ली में 10, जनपथ के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे, खुद को “मानव बम” कह रहे थे, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की आलोचना कर रहे थे और गरज रहे थे, “तंवर को इतनी आसानी से खत्म नहीं किया जा सकता”।

कभी राहुल गांधी के लिए वफादार सिपाही रहे तंवर के लिए कांग्रेस से अलग होने का यही वह बिंदु था.

तंवर ने भारतीय युवा कांग्रेस (आईवाईसी) में राहुल के “लोकतंत्रीकरण” प्रयोग को आगे बढ़ाया, जिसकी अध्यक्षता उन्होंने तब की जब राहुल 2007 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के महासचिव और आईवाईसी और कांग्रेस की छात्र शाखा नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के प्रभारी बने।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में एनएसयूआई के कार्यकर्ता तंवर 2003 से 2005 तक कांग्रेस की छात्र शाखा के अध्यक्ष बने, उसके बाद 2010 तक पांच साल तक आईवाईसी के अध्यक्ष रहे।

Ashok Tanwar with Rahul Gandhi | By special arrangement
राहुल गांधी के साथ अशोक तंवर की फाइल फोटो । स्पेशल अरेंजमेंट के द्वारा

कांग्रेस छोड़ने के बाद कैसी रही राजनीतिक यात्रा

कांग्रेस छोड़ने के बाद, तंवर ने 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनावों में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (JJP) का समर्थन किया, फरवरी 2021 में अपना खुद का सामाजिक-राजनीतिक संगठन, अपना भारत मोर्चा शुरू किया, जिसे उन्होंने “तीसरे राष्ट्रीय विकल्प” के रूप में पेश किया।

बमुश्किल नौ महीने बाद, हरियाणा में “तीसरा विकल्प” बनाने के लिए, नई दिल्ली में एक समारोह में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उनका तृणमूल कांग्रेस में स्वागत किया। अप्रैल 2022 में, वह “केजरीवाल मॉडल ऑफ़ गवर्नेंस” की सराहना करते हुए, और हरियाणा को “भ्रष्टाचार मुक्त” सरकार देने की कसम खाते हुए आम आदमी पार्टी (AAP) में शामिल हो गए। AAP ने उन्हें राज्य में अभियान समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया। लेकिन यह भी तंवर को रोक नहीं सका, और उन्होंने इस साल जनवरी में पार्टी से इस्तीफा देकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को ज्वाइन कर लिया.

कांग्रेस में वापसी

अब जबकि तंवर कांग्रेस में वापस आ गए हैं, पार्टी के नेता इस बात को लेकर उत्सुक हैं कि हुड्डा और शैलजा के साथ उनके कटु संबंधों को देखते हुए पार्टी की आंतरिक कार्यशैली पर इसका क्या असर होगा।

अवंतिका के चचेरे भाई, राज्यसभा सांसद और एआईसीसी कोषाध्यक्ष अजय माकन ने गुरुवार को तंवर की कांग्रेस में वापसी में अहम भूमिका निभाई।

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक अजय माकन एक सप्ताह से अधिक समय से तंवर के संपर्क में थे. तंवर ने इस साल का लोकसभा चुनाव सिरसा से लड़ा था लेकिन कांग्रेस की शैलजा से हार गए थे। अजय माकन ने ही गुरुवार को चुनाव प्रचार के आखिरी दिन महेंद्रगढ़ में राहुल की रैली में तंवर को आमंत्रित किया था।

तंवर के एक करीबी सूत्र ने नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि अजय ने अपनी चचेरी बहन अवंतिका को करीब एक सप्ताह पहले फोन करके पूछा था कि क्या उनके पति कांग्रेस में फिर से शामिल होने के इच्छुक हैं। सूत्र ने यह भी कहा कि तंवर ने 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले हुड्डा के साथ पार्टी टिकट बंटवारे को लेकर मतभेदों के चलते कांग्रेस छोड़ दी थी, हालांकि, उन्होंने फैसला लेने में दो दिन से अधिक का समय लगाया।

सूत्र ने कहा, “जब वह कांग्रेस में फिर से शामिल होने के विकल्प के फायदे और नुकसान पर विचार कर रहे थे, तब भी उन्हें आशंका थी कि भले ही शीर्ष नेतृत्व ने उन्हें पार्टी में स्वीकार कर लिया हो, लेकिन कांग्रेस का राज्य नेतृत्व (हुड्डा और शैलजा) उनके कांग्रेस में प्रवेश से सहज नहीं हो सकता है।”

सूत्र ने कहा, “तंवर बस इतना चाहते थे कि पार्टी राज्य नेतृत्व की सहमति ले ताकि उनके प्रवेश के बाद कोई समस्या न हो। उनके मन में यह बिल्कुल स्पष्ट था कि उनकी कोई महत्वाकांक्षा या अपेक्षा नहीं है, लेकिन वह बस इतना चाहते थे कि पार्टी के भीतर उस तरह की आंतरिक कलह न हो, जिस तरह की तब थी जब वह 2014 से 2019 तक इसमें थे।”

सूत्र ने आगे बताया कि तंवर गुरुवार को जींद जिले के सफीदों में भाजपा उम्मीदवार राम कुमार गौतम के लिए प्रचार कर रहे थे, तभी उन्हें एक संदेश मिला जिसमें उन्हें महेंद्रगढ़ के बवानिया गांव पहुंचने को कहा गया, जहां राहुल एक रैली को संबोधित कर रहे थे।

सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि कांग्रेस के राज्य स्तरीय नेतृत्व को इस घटनाक्रम से अवगत करा दिया गया है। रैली स्थल पर पहुंचने के बाद राहुल ने तंवर का पार्टी में स्वागत किया और हुड्डा से उन्हें पार्टी में शामिल करने के लिए कांग्रेस का दुपट्टा देने को कहा।

नाम न बताने की शर्त पर कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से कहा, “जब उन्होंने 2009 में लोकसभा चुनाव लड़ा था, तब उन्हें राहुल के सबसे करीबी लोगों में से एक माना जाता था। जब 2019 में वे पार्टी छोड़कर चले गए, तब राहुल पार्टी के मामलों को नहीं देख रहे थे। अब देखना यह होगा कि पार्टी उन्हें कितना महत्व देती है। किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके बहनोई अजय आज एआईसीसी में पार्टी के शीर्ष नेताओं में से एक हैं।”

क्या अशोक की वापसी से राज्य नेतृत्व खुश है?

राजनीतिक विश्लेषक महाबीर जगलान ने दिप्रिंट से कहा कि तंवर के पार्टी में शामिल होने के समय मंच पर हुड्डा की बॉडी लैंग्वेज को देखें या शैलजा की ओर से कोई टिप्पणी न करने को देखें, तो यह बहुत स्पष्ट हो जाता है कि इन दोनों नेताओं में से कोई भी अशोक की वापसी से बहुत खुश नहीं है।

जगलान ने कहा, “हुड्डा और शैलजा दोनों के लिए, यह स्थिति राज्य कांग्रेस के भीतर एक आरामदायक स्थिति रही है। अगर हुड्डा विपक्ष के नेता हैं और पार्टी का सबसे प्रमुख चेहरा हैं, तो शैलजा पार्टी के भीतर दलित चेहरा हैं। अगर अशोक के अतीत को देखें, तो उनमें इन दोनों नेताओं की आरामदायक स्थिति को चुनौती देने की क्षमता है। साथ ही, अशोक कांग्रेस की संस्कृति में पले-बढ़े हैं और पार्टी के भीतर अपनी स्थिति को मजबूत करना अच्छी तरह जानते हैं।”

तंवर का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

हरियाणा के झज्जर जिले के चिमनी गांव में एक दलित परिवार में जन्मे तंवर सेना के हवलदार दिलबाग सिंह और गृहिणी कृष्णा राठी के तीन बेटों में सबसे छोटे हैं।

उनके पिता अपने बेटों की शिक्षा के लिए दिल्ली चले गए। दिलबाग के दो बड़े बेटे स्नातक हैं और प्राइवेट नौकरी करते हैं, जबकि अशोक तंवर ने मास्टर डिग्री के लिए जेएनयू सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज में दाखिला लिया।

जल्द ही वे कैंपस की राजनीति में सक्रिय हो गए। छात्र राजनीति ने उन्हें पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा की पोती अवंतिका से भी मिलवाया, जिनसे उन्होंने बाद में 2005 में शादी कर ली।

अवंतिका ने शुक्रवार को दिप्रिंट से कहा, “बचपन में मैं गांधी परिवार की एक सदस्य की तरह थी। मैं प्रियंका (गांधी) जी की शादी में शामिल हुई थी। शुरू में मैं सोनिया जी को सोनिया आंटी कहकर संबोधित करती थी। लेकिन जब मैं बड़ी हुई और एनएसयूआई में शामिल हुई, तो मैंने दो कारणों से उन्हें मैडम कहना शुरू कर दिया।”

उन्होंने आगे कहा: “सबसे पहले, यह सम्मान का प्रतीक था क्योंकि हर कोई सोनिया जी को इसी तरह संबोधित करता था। दूसरा, जब आप अपनी प्रोफेशनल जर्नी शुरू करते हैं, तो सोनिया जी को – जो उस समय पार्टी की बॉस थीं – सोनिया आंटी कहकर संबोधित करने का मतलब होगा कि आप अपने सहकर्मियों सहित दूसरों को अनुचित रूप से प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं।”

Ashok Tanwar’s wife Avantika Maken with Sonia Gandhi | By special arrangement
सोनिया गांधी के साथ अशोक तंवर की पत्नी अवंतिका माकन की फाइल फोटो । स्पेशल अरेंजमेंट के द्वारा

हालांकि, अवंतिका ने कहा कि उन्हें पता है कि उनके पति ने अपनी मर्जी से पार्टी नहीं छोड़ी है, बल्कि परिस्थितियों के कारण ऐसा हुआ है।

अवंतिका ने कहा, “भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सैनी हमारे साथ बहुत अच्छे थे और अशोक जी का बहुत सम्मान करते थे। उनके भाजपा छोड़ने का उस पार्टी के साथ मुद्दों से कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि, कांग्रेस में वापसी हमारे परिवार के लिए घर वापसी है।”

हालांकि, शुक्रवार को दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए तंवर ने कहा, “मैं कुछ समय के लिए भाजपा में शामिल हुआ था, लेकिन वहां देश के संविधान और बाबा साहब (अंबेडकर) के प्रति कोई सम्मान नहीं है। भाजपा लोगों को बांटने का काम करती है, जबकि राहुल गांधी ने उन्हें जोड़ने की यात्रा निकाली है। आज मैं एक बार फिर देश को जोड़ने और संविधान बचाने की लड़ाई में राहुल गांधी के साथ खड़ा हूं।”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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