नई दिल्ली: जज के घर पर नकदी मामले के दस्तावेज़ को तब तक पब्लिक नहीं किया जाना चाहिए था, जब तक कि जारी “इन-हाउस” जांच पूरी नहीं हो जाती, सीनियर वकील और सांसद कपिल सिब्बल ने कहा कि मामले का नतीजा चाहे जो भी हो, मामले के दस्तावेज़ का खुलासा न्यायपालिका के लिए “जीरो-सम गेम” बनाता है.
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सिब्बल ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “मैं पूरी तरह से गैग ऑर्डर के खिलाफ हूं, लेकिन यह एक आदर्श मामला था, जहां गैग ऑर्डर होना चाहिए था, जिसमें कहा गया था कि जब तक हमारी इन-हाउस जांच पूरी नहीं हो जाती, हम यह सब पब्लिक डोमेन में नहीं होने देंगे, है न? क्योंकि आप एक संस्था के साथ काम कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा, “पब्लिकली कुछ भी जारी नहीं किया जाना चाहिए था…आप कुछ जारी नहीं कर सकते — खासकर जब यह न्यायपालिका की ओर से था क्योंकि लोग तुरंत इस पर यकीन कर लेंगे और फिर इन-हाउस जांच का क्या. पहले इन-हाउस जांच होनी चाहिए और फिर, अगर आप इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि कुछ गलत है, तो उसे जारी किया जाना चाहिए.”
इस साल 24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने अभूतपूर्व कदम उठाते हुए, दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के कई दस्तावेज़, तस्वीरें और एक वीडियो अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड किए. 14 मार्च को उनके परिसर में आग लगने के बाद अधिकारियों ने कथित तौर पर एक स्टोररूम में नकदी पाई, जिसके बाद न्यायपालिका को इस घोटाले की आंच का सामना करना पड़ा.
सिब्बल ने कहा कि चूंकि, मामले के दस्तावेज सार्वजनिक कर दिए गए थे, इसलिए न्यायपालिका को तब भी आंच का सामना करना पड़ेगा, जब जांच में न्यायाधीश की बेगुनाही साबित हो जाएगी. “(मामले का) नतीजा न्यायपालिका के लिए एक ज़ीरो-सम गेम है…अगर सच में कुछ नहीं मिला तो, और वह हमारे बेहतरीन न्यायाधीशों में से एक हैं; स्पष्ट रूप से, हमने उस व्यक्ति के बारे में कभी कुछ भी गलत नहीं सुना है. अगर कुछ नहीं मिला, तो जनता कहेगी कि आपने उन्हें बचाया है; आपने घटना को छुपाया है.”
राज्यसभा सांसद ने कहा, “अगर आप इस मामले को आगे बढ़ाते हैं, तो हर मुकदमाकर्ता, जब वह केस हार जाएगा, तो कहेगा कि जज ने पैसे खाए थे, इसलिए, यह एक ज़ीरो-सम गेम है.”
यह पूछे जाने पर कि जज के घर पर मिली नकदी और मामले की जांच कर रहे सुप्रीम कोर्ट की पृष्ठभूमि में न्यायिक जवाबदेही कैसे तय की जानी चाहिए, सिब्बल ने कहा कि समय की मांग है कि एक “संस्थागत प्रणाली” स्थापित की जाए, न कि “किसी स्थिति के लिए तत्काल प्रतिक्रिया”.
सिब्बल ने कहा, “संस्थागत व्यवस्था का मतलब है कि आपको प्रक्रियाएं स्थापित करनी होंगी. देखिए, जब आप न्यायपालिका की बात करते हैं, तो हम किसी आम व्यक्ति की बात नहीं कर रहे होते, है न? क्योंकि यही एकमात्र संस्था है जो आज हमें बचा सकती है और न्यायपालिका में जिस तरह का संवैधानिक हमला हो रहा है. इसलिए, जब न्यायपालिका के खिलाफ आरोप लगते हैं, सबसे पहले आपको संस्था की तब तक रक्षा करनी चाहिए जब तक कि आपके पास पूर्ण सबूत न हों; आपको न्यायाधीश की निंदा नहीं करनी चाहिए.”
अधिवक्ता ने कहा कि जांच तंत्र बार एसोसिएशन के साथ विचार-विमर्श के बाद तैयार किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, “आपको एक संस्थागत तंत्र बनाना चाहिए, जिसे आपको बार के साथ विचार-विमर्श के बाद लागू करना चाहिए और निरंतर बातचीत होनी चाहिए क्योंकि हम बार को बता सकते हैं कि उसे क्या नहीं पता है और वह हमें ऐसी बातें बता सकता है जो हमें नहीं पता हैं. यह एक सहयोगात्मक प्रैक्टिस होगी क्योंकि हम सच में खराब चीज़ों से निपटना चाहते हैं; क्योंकि खराब चीज़ें संस्था (न्यायपालिका) को बदनाम कर सकती हैं. हम ऐसा नहीं चाहते क्योंकि यह हमारी ज़िंदगी है.”
हालांकि, सिब्बल ने इस बात से इनकार किया कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) न्यायिक जवाबदेही का जवाब है.
2015 में सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक पीठ ने कॉलेजियम प्रणाली को जारी रखने के पक्ष में फैसला सुनाते हुए एनजेएसी को असंवैधानिक घोषित किया.
सिब्बल ने कहा, “मैं मानता हूं कि एनजेएसी कोई समाधान नहीं है. एक सरकार जो हमारे पास मौजूद सभी संस्थानों को नष्ट कर सकती है…वह बची हुई एकमात्र संस्था को भी नष्ट कर देगी.”
न्यायाधीशों के चयन के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “न्यायाधीशों के चयन में सरकार का प्रतिनिधित्व होना चाहिए; लेकिन सरकार का न्यायाधीशों के चयन पर नियंत्रण नहीं होना चाहिए; इसलिए, आपके पास एक व्यापक आधार वाली चयन प्रक्रिया होनी चाहिए.”
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