देहरादून: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी राज्य में प्रस्तावित अगले विधानसभा चुनाव के दौरान अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती से निपटने की तैयारियों में जुटे हैं और ये चुनौती विपक्ष की ओर से मिलने वाली टक्कर नहीं बल्कि यह है कि राज्य के मुख्यमंत्री अपनी सीट बचाने में सफल नहीं रहते.
21 साल पहले गठित राज्य में 2002 में पहली बार हुए विधानसभा चुनावों के बाद से कोई भी निवर्तमान मुख्यमंत्री चुनावों में अपनी सीट बचाने में सफल नहीं रहा, सिवाय उपचुनावों के अलावा. हर बार चुनाव में सत्ता बारी-बारी से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस के बीच बदलती रही है.
इस बार धामी अपने घरेलू मोर्चे को मजबूत करने में पूरी मुस्तैदी से जुटे हैं. वह 2012 से उधम सिंह नगर जिले की खटीमा सीट से विधायक हैं और उनके समर्थकों का कहना है कि मुख्यमंत्रियों की हार का यह ‘मिथक’ फरवरी 2022 में प्रस्तावित आगामी चुनावों में टूट जाएगा.
बीजेपी नेताओं का कहना है कि धामी ने जुलाई में मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद से न सिर्फ खुद को पार्टी के लिए एक भरोसेमंद चेहरे के तौर पर साबित किया है बल्कि खटीमा पर अपनी पकड़ भी मजबूत की है. उन्होंने बार-बार अपने निर्वाचन क्षेत्र का दौरा किया और पिछले डेढ़ महीने के दौरान वहां लगभग 400 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाओं की घोषणा की है.
राज्य के कैबिनेट मंत्री यतीश्वरानंद ने दिप्रिंट से बातचीत के दौरान कहा, ‘मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार तीसरी बार अपनी सीट पर जीत तो हासिल करेंगे ही, उनके नेतृत्व में बीजेपी भी यह मिथक तोड़ने में सफल रहेगी कि कोई भी मौजूदा सरकार लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता में नहीं लौट पाती.’
हालांकि, विपक्षी नेताओं का मानना है कि धामी यह सिलसिला तोड़ने में सफल नहीं रहेंगे. 2017 के विधानसभा चुनाव में कापड़ी से 3,000 से कम वोटों से हारने वाले कांग्रेस उम्मीदवार भुवन कापड़ी ने दिप्रिंट से कहा, ‘उनके (धामी के) पास अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिए कुछ नहीं हैं. मेरा मानना है कि निवर्तमान मुख्यमंत्रियों के सफल न होने का इतिहास 2022 में भी दोहराया जाएगा.
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धामी के लिए क्या हैं संभावनाएं
बीजेपी नेता एक सुर में धामी सरकार के कामकाज की सराहना कर रहे हैं और उन्हें पूरा भरोसा है कि वह हार का सिलसिला तोड़ देंगे.
यतीश्वरानंद ने दिप्रिंट को बताया कि ‘आसानी से आम लोगों के लिए सुलभ’ होने के अलावा धामी ने मतदाताओं से किए वादों को पूरा करने में भी ‘उल्लेखनीय रिकॉर्ड’ बनाया है. उन्होंने कहा, ‘वह बिना किसी देरी सरकारी आदेश जारी कराकर विकास परियोजनाओं पर अपनी घोषणाओं पर जल्द से जल्द अमल सुनिश्चित कराते हैं.’
मंत्री ने कहा कि धामी ने पिछले महीने और अधिक सरकारी नौकरियों का रास्ता खोलने और चार धाम देवस्थानम बोर्ड अधिनियम रद्द करने जैसे फैसलों के जरिये खासी प्रशंसा अर्जित की है. पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा चार धाम देवस्थानम बोर्ड अधिनियम के तहत राज्य में कई मंदिरों के प्रबंधन के लिए एक निकाय स्थापित करने का पुजारियों की तरफ से काफी विरोध किया गया था.
बीजेपी के वरिष्ठ नेता वीरेंद्र सिंह बिष्ट का भी मानना है कि धामी लगातार हार का ‘मिथक’ तोड़ देंगे और कहा, ‘मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने खटीमा के मतदाताओं का विश्वास जीता है और मतदाता जानते हैं कि अगर बीजेपी जीतती है तो वह फिर मुख्यमंत्री बनेंगे.
बिष्ट ने कहा कि जुलाई में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद धामी ने ‘प्रोएक्टिव एप्रोच’ के साथ पार्टी कार्यकर्ताओं को ‘एकजुट’ किया है और उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए लोकलुभावनी योजनाएं शुरू की हैं. बिष्ट ने कहा, ‘उनकी लगातार तीसरी जीत की संभावना पर किसी तरह का संदेह नहीं किया जा सकता है.’
लोकलुभावनी योजनाओं में उत्तराखंड के खटीमा क्षेत्र में केंद्र सरकार प्रायोजित तीन एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में से एक का अनावरण शामिल है. इसके अलावा एक अन्य केंद्रीय विद्यालय, पूर्व सैनिकों के लिए एक कैंटीन सेवा निदेशालय (सीएसडी) कैंटीन, एक औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई), एक हाई-टेक बस स्टैंड, एक क्रिकेट स्टेडियम और एक शहद की फैक्ट्री का भी अनावरण हुआ है. यह सारे काम जुलाई में धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही हुए हैं.
धामी बार-बार यह भी कहते रहे हैं कि 2017 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से उत्तराखंड को विकास परियोजनाओं के जरिए लगभग करीब एक लाख करोड़ रुपये का लाभ हो चुका है.
राज्य में बीजेपी के वरिष्ठ प्रवक्ता मनबीर सिंह का कहना है, ‘मुख्यमंत्री ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए काफी कुछ किया है. स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के लिहाज से उनके निर्वाचन क्षेत्र में अभूतपूर्व विकास हुआ है. हमें पूरा भरोसा है कि 2007 और 2012 में निवर्तमान मुख्यमंत्रियों की हार का सिलसिला 2022 में नहीं दोहराया जाएगा.’
हालांकि, खटीमा में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे और उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष भुवन कापड़ी इस बात से सहमत नहीं हैं.
उन्होंने कहा, ‘बहुत नुकसान हो चुका है. धामी को किसानों के गुस्से का सामना करना पड़ ही रहा है. उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्र में भूमि, खनन और शराब माफिया को संरक्षण देने के लिए भी जाना जाता है. वह छह महीने पहले मुख्यमंत्री बने लेकिन दो बार खटीमा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. वह जो भी काम करने का दावा कर रहे हैं—जैसे एकलव्य स्कूल, स्टेडियम और सड़कें आदि—उन सबकी शुरुआत पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत या त्रिवेंद्र सिंह रावत के समय पर हुई थी.’
कापड़ी ने कहा, ‘खटीमा को जिला बनाने की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करने का धामी के पास अच्छा मौका था, लेकिन वह ऐसा करने में नाकाम रहे.’
उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), ऋषिकेश के एक सेटेलाइट सेंटर का उल्लेख करते हुए कहा कि धामी ये खटीमा को आवंटित कर सकते थे ‘क्योंकि यह नेपाल सीमा से सटा क्षेत्र है और राज्य के कई अन्य निर्वाचन क्षेत्रों धारचूला, दीदीहाट, गंगोलीहाट, पिथौरागढ़, चंपावत, सितारगंज, नानकमट्टा और लोहाघाट के लोगों को भी इसका फायदा मिलता जहां के लोगों को आमतौर पर इलाज के लिए भोजीपुरा, उत्तर प्रदेश जाना पड़ता है.
कापड़ी ने कहा, ‘अगर यह चिकित्सा केंद्र खटीमा में बनता तो न केवल इन क्षेत्रों के लोगों को मदद मिलती बल्कि नेपाल से भी राजस्व मिलता लेकिन मुख्यमंत्री के रूप में धामी ने यह केंद्र किच्छा को आवंटित किया है जो जिला मुख्यालय रुद्रपुर के बहुत करीब है और एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें पहले से ही अच्छी चिकित्सा सुविधाएं मौजूद हैं.’
हार का सिलसिला
उत्तराखंड को 21 साल पहले 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग कर पृथक राज्य बनाया गया था. तबसे लेकर अब तक वहां चार बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं.
जब राज्य का गठन हुआ तो बीजेपी के पास उत्तर प्रदेश विधानसभा में उत्तराखंड के सबसे अधिक विधायक थे, इसलिए 2000 से 2002 तक के लिए इसी पार्टी की अंतरिम सरकार बनी. नित्यानंद स्वामी 2001 से 2002 तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे और फिर भगत सिंह कोश्यारी ने यह पद संभाला.
राज्य में पहली बार 2002 में जब चुनाव हुए तो कोश्यारी तो अपनी सीट बरकरार रखने में सफल रहे—जो ये सफलता हासिल करने वाले एकमात्र मुख्यमंत्री हैं. हालांकि, बीजेपी चुनाव हार गई.
कांग्रेस ने नई सरकार बनाई और नारायण दत्त तिवारी अगले पांच वर्षों के लिए मुख्यमंत्री बने लेकिन 2007 में उन्होंने अगला चुनाव नहीं लड़ा. बीजेपी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन उसका कुल आंकड़ा बहुमत से एक सीट कम ही रह गया.
बीजेपी ने तत्कालीन लोकसभा सांसद बी.सी. खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया लेकिन 2009 में उनकी जगह यह जिम्मेदारी उनके कैबिनेट मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को दे दी गई. लेकिन भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बीच सितंबर 2011 में पोखरियाल ने इस्तीफा दे दिया और फिर चुनाव से बमुश्किल छह महीने पहले ही खंडूरी को फिर से इस पद पर लाया गया.
2012 के चुनावों में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और खंडूरी अपनी कोटद्वार सीट पर हार गए. बहुमत से चार सीटें कम होने के कारण कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और उसने निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई.
विजय बहुगुणा अगले मुख्यमंत्री बने लेकिन जून 2013 की प्रलयंकारी बाढ़ के दौरान राहत एवं बचाव कार्यों के प्रबंधन में नाकामी को लेकर भारी आलोचना के बाद जनवरी 2014 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस ने उनकी जगह हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनाया, जो कि 2017 के चुनावों के दौरान राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री थे.
2017 में रावत दो निर्वाचन क्षेत्रों, कुमाऊं की किच्छा सीट और हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव मैदान में उतरे. उन्हें दोनों ही सीटों पर मौजूदा बीजेपी विधायकों राजेश शुक्ला और यतीश्वरानंद के हाथों हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी इस विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल करने में सफल रही और त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली.
त्रिवेंद सिंह रावत चार साल तक मुख्यमंत्री रहे हैं और फरवरी में चमोली बाढ़ से निपटने में नाकाम रहने को लेकर आलोचनाओं और अपनी ही पार्टी के मंत्रियों और विधायकों के बीच बढ़ते असंतोष के कारण इस साल मार्च में उन्होंने इस्तीफा दे दिया. उनके उत्तराधिकारी तीरथ सिंह रावत ज्यादा समय तक कुर्सी पर नहीं टिक पाए और जुलाई में धामी ने उनकी जगह ले ली.
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