मुंबई: 2019 तक, अजित पवार के छोटे बेटे जय ने राजनीति से दूरी बनाए रखी और दुबई में फैमिली बिज़नेस चलाया. अब, वह जल्द ही महाराष्ट्र विधानसभा में पवार परिवार के गढ़, बारामती निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि के रूप में अपने पिता का स्थान ले सकते हैं.
1991 से बारामती विधानसभा सीट पर काबिज उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने संकेत दिया है कि वह आगामी चुनावों में खुद इस निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं, और इसके बजाय अपने बेटे जय को मैदान में उतार सकते हैं.
इस बीच, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) अजित के छोटे भाई श्रीनिवास के बेटे युगेंद्र पवार को बारामती से मैदान में उतार सकती है. अगर जय, जो चुनावी राजनीति में सक्रिय रूप से शामिल नहीं रहे हैं, चुनाव लड़ने का फैसला करते हैं, तो यह एक बार फिर पवार बनाम पवार की लड़ाई का कारण बन सकता है. इस साल लोकसभा चुनाव में, सुप्रिया सुले और अजीत की पत्नी सुनेत्रा पवार बारामती में एक-दूसरे के खिलाफ थीं. सुले ने सुनेत्रा को 1.5 लाख वोटों से हराया था.
अजीत ने गुरुवार को मीडियाकर्मियों से कहा, “हम एक लोकतंत्र में रहते हैं और उन्हें (जय) एक मौका देंगे. मुझे अब कोई दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि मैं पहले ही सात-आठ बार चुनाव लड़ चुका हूं. अगर अन्य स्थानीय कार्यकर्ता इच्छुक हैं, तो पार्टी का संसदीय बोर्ड बारामती से उम्मीदवार तय करेगा.”
राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश बाल ने कहा कि इस कदम के पीछे अलग-अलग रणनीति हो सकती है.
बाल ने दिप्रिंट को बताया, “अगर अजीत बारामती से जय पवार को उतारते हैं, और अगर जय हार जाते हैं, तो भी यह अजीत के खुद हारने से बेहतर होगा. अजीत को कुछ इनपुट मिले होंगे कि बारामती से उनका फिर से चुनाव जीतना मुश्किल हो सकता है.”
उन्होंने कहा, “यह, उनके पिछले बयान के साथ कि उन्होंने सुले के खिलाफ अपनी पत्नी सुनेत्रा को मैदान में उतारकर गलती की, बारामती के मतदाताओं की सहानुभूति हासिल करने का एक प्रयास हो सकता है.”
हालांकि, एक अन्य राजनीतिक टिप्पणीकार प्रताप असबे ने दिप्रिंट को बताया कि अजीत विरोधाभासी बयान दे रहे हैं, जिन्हें फिलहाल समझ पाना मुश्किल है. असबे ने कहा, “वह इसे फिर से पवार बनाम पवार की लड़ाई क्यों बनाएंगे? क्या यह लोगों को भ्रमित करने के लिए है? बहुत निश्चित नहीं हूं.”
‘अच्छे शिक्षित, मृदुभाषी’ जय पवार
28 वर्षीय जय, अजीत के छोटे बेटे हैं. 2023 में एनसीपी में विभाजन होने तक, जब उन्होंने अपने पिता के नेतृत्व में पार्टी के मामलों में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया, वह दुबई में परिवार के कारोबार की देखरेख कर रहे थे.
बारामती के एनसीपी पदाधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि पिछले दो-तीन सालों से जय इस क्षेत्र में पार्टी के मामलों की देखभाल कर रहे हैं और उनकी सार्वजनिक भागीदारी में काफी वृद्धि हुई है. इस साल के लोकसभा चुनावों से पहले उन्होंने अपनी मां सुनेत्रा के लिए प्रचार भी किया था.
बारामती में पार्टी के पदाधिकारी और अजीत के करीबी विद्याधर काटे ने कहा, “वह अच्छे शिक्षित और अच्छे व्यवहार वाले हैं.” उन्होंने कहा, “वह (अजीत) दादा की तरह ही हैं. चूंकि दादा के पास अब ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ हैं, इसलिए उनकी सार्वजनिक भागीदारी कम हो गई है, लेकिन यह लड़का (जय) जमीनी मामलों से बहुत ज़्यादा जुड़ा हुआ है.”
काटे ने अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए एक उदाहरण दिया. अपने गांव में एक स्थानीय देवता के मंदिर में, जहां एक निश्चित वार्षिक मेले के दौरान भारी भीड़ उमड़ती है, जय ने पाया कि कुछ भक्तों को मौजूदा व्यवस्थाओं के कारण असुविधा हो रही थी.
उन्होंने टिप्पणी की, “जय दादा ने बड़ी-बड़ी लाइट्स और पानी के टैंकर की व्यवस्था की. अजीत पवार की तरह, जय भी तेज़ी से निर्णय लेते हैं,”
बारामती में अजीत की एनसीपी के एक अन्य पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि युवाओं के बीच जय की अपील बढ़ रही है.
उन्होंने कहा, “वह गांव स्तर पर कुश्ती, कबड्डी आदि प्रतियोगिताएं आयोजित करते हैं. यहां तक कि उन्होंने गांव में एक नौकरी मेले का भी आयोजन किया था.
काटे ने कहा कि जय को राजनीति में हमेशा से दिलचस्पी नहीं थी. उन्होंने कभी नहीं कहा कि उन्हें टिकट मिलना चाहिए या चुनाव लड़ना चाहिए. लेकिन अगर यह उनके कंधों पर आता है, तो मुझे यकीन है कि वह जिम्मेदारियों को पूरा करने में सक्षम होंगे.”
पदाधिकारियों ने कहा कि जय गुरुवार को जनता दरबार लगाते हैं, जहां वे बारामती और उसके आसपास के लोगों से मिलते हैं और उनके मुद्दों को सुलझाने की कोशिश करते हैं. कई बार वे गुरुवार को लोगों से मिलने के लिए गांवों का दौरा भी करते हैं.
जय के बड़े भाई पार्थ ने 2019 में मावल से लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें शिवसेना के मौजूदा सांसद श्रीरंग बारने से हार का सामना करना पड़ा था, जो अब एकनाथ शिंदे गुट के साथ हैं.
बारामती के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा कि हालांकि दोनों बेटे सक्षम हैं, लेकिन मुश्किल परिस्थितियों से निपटने में जय ज़्यादा सटीक है. उन्होंने कहा, “वह एक बिज़नेस बैकग्राउंड से है. उनकी शैली भी कॉर्पोरेट वाली है. लेकिन वह बहुत ही मृदुभाषी और शिष्ट है. पार्थ पवार ज़्यादा भावुक है.”
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