मसूरी: काले रंग की यह टोपी नाव के आकार जैसी है और इसमें एक पट्टी है जो चार अलग-अलग रंगों की है. इस पर उत्तराखंड का राजकीय फूल ब्रह्म कमल बना हुआ है. यह फूल पहाड़ों में खिलता है.
26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के मौके पर जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह उत्तराखंडी टोपी पहनकर जनसमूह की ओर हाथ हिलाया, तभी से इस चुनाव के रंग में रंगे राज्य से भावनात्मक जुड़ाव प्राप्त कर लिया है.
इस दृश्य का असर यहां से 300 किलोमीटर दूर मसूरी में देखने को मिल रहा है. इस टोपी को डिज़ाइन करने वाले समीर शुक्ला काफी व्यस्त हो गए हैं. शुक्ला के पास लगातार फोन कॉल आ रहे हैं. लोग उनसे टोपी के बारे में पूछ रहे हैं. टोपी के लिए ऑर्डर देने वालों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों पार्टियों के लोग शामिल हैं.
दिप्रिंट से हुई बातचीत के दौरान टोपी के डिज़ाइनर शुक्ला ने बताया कि तीन साल में बनी 10,000 टोपियों का स्टॉक खत्म हो चुका है और प्रधानमंत्री के इस टोपी को पहनने के बाद इसकी बिक्री तेजी से बढ़ी है. शुक्ला, मसूरी में सोहम हिमालयन आर्ट एंड हैरीटेज़ सेंटर के नाम से अपना एक म्यूज़ियम चलाते हैं जहां उत्तराखंड की स्थानीय कला से संबंधित चीजें बिकती हैं. प्रधानमंत्री के इस टोपी पहनने के बाद इसकी अचानक बढ़ी मांग से वह भी काफी खुश हैं.
शुक्ला ने कहा, ‘मैंने साल 2017 में 9 नवंबर को उत्तराखंड दिवस पर सार्वजनिक तौर पर यह विचार व्यक्त किया था कि हमें एक ऐसी उत्तराखंडी टोपी बनानी चाहिए जिसमें इस क्षेत्र के सभी इलाकों की झलक मिले और यह सबको पसंद भी आए. टोपी पर चार रंगों वाली एक पट्टी है जो धरती, आसमान, जीवन और प्रकृति का संकेत देती है. यह बताती है कि सभी एक दूसरे से जुड़े हैं.’
उन्होंने आगे कहा कहा कि ‘इस टोपी पर हमने ब्रह्म कमल बनाया है जो राजकीय फूल है. इसे केदारनाथ में भगवान शंकर पर चढ़ाया जाता है. इसे काफी पवित्र माना जाता है.’
शुक्ला का मानना है कि ‘वह सिलाई की पारंपरिक कला को प्रोत्साहन देना चाहते थे. साथ ही, वे यह भी चाहते थे कि नई पीढ़ी पारंपरिक हस्तकला को आगे ले जाए. ये सभी टेलर गांवों से जुड़े हैं और हमारी मंशा उन्हें मजबूत बनाने की है.’
उन्होंने कहा, ‘यह बात प्रधानमंत्री मोदी के ऊपर बिल्कुल सटीक बैठती है, भले ही कोई उन्हें पसंद करे या नापसंद. वे जो भी पहनते हैं वह एक ट्रैंड बन जाता है. मैं समझता हूं कि अगर लोगों को उत्तराखंडी टोपी पहनने से गर्व होता है, क्योंकि उसे प्रधानमंत्री ने पहना था, तो यह बहुत अच्छी बात है.’
टोपी कैसे प्रधानमंत्री मोदी तक पहुंची
यह पूछने पर कि यह टोपी प्रधानमंत्री तक कैसे पहुंची, शुक्ला बताते हैं कि उनके पास गणतंत्र दिवस के कुछ दिन पहले यह सूचना आई कि प्रधानमंत्री इस टोपी को पहनना चाहते हैं.
उन्होंने कहा, ‘उनसे कहा गया था कि वे कुछ रंगों और साइजों की टोपियों के सैंपल उन्हें भेजें. दिल्ली से एक व्यक्ति मेरे पास भेजे गए और हमने उन्हें टोपी दी. प्रधानमंत्री का ध्यान इस टोपी पर कैसे गया, इसका कोई ठोस जवाब मेरे पास नहीं है, लेकिन मैं अपने काम को हमेशा ट्विटर, माई जीओवी और दूसरे प्लेटफार्मों पर डालता रहता हूं.’
शुक्ला के मुताबिक उत्तराखंड में जन्में पूर्व सेना प्रमुख स्वर्गीय बिपिन रावत ने जब सार्वजनिक जगहों पर इस टोपी को पहनी तो लोगों का ध्यान इस पर गया था. उन्होंने मेरी डिज़ाइन की तारीफ करते हुए एक पत्र भी भेजा था और प्रोत्साहन दिया था. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल जो इसी राज्य से आते हैं, उन्होंने भी इस टोपी को पहना था.
कांग्रेस और भाजपा, राज्य की दोनों ही शीर्ष राजनीतिक दलों को टोपी का महत्व पता है. कांग्रेस का कहना है कि वे लोग इस टोपी को प्रधानमंत्री के पहनने के पहले से ही पहन रहे हैं, जबकि भाजपा मानती है कि गणतंत्र दिवस के बाद टोपी की बिक्री में निश्चित तौर पर बढ़ोतरी हुई है.
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चुनाव के पूर्व बढ़ी बिक्री
शुक्ला ने कहा, ‘वे इस टोपी के लिए ट्रेडमार्क हासिल करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. राज्य में 14 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले हर व्यक्ति इस उत्तराखंडी टोपी से जुड़ना चाहता है.’
शुक्ला कहते हैं, ‘टोपी के ज़रिए अपने-आप को उत्तराखंडी के रूप में दिखाने का चलन बन गया है. इसलिए, राजनैतिक कार्यकर्ता, अपने चुनाव अभियानों में, पर्चे के दाखिले के समय और यहां तक कि प्रेस सम्मेलनों में भी इसे पहन रहे हैं. सिर्फ इसके रंगों को लेकर उनमें थोड़ी भिन्नता है. सभी राजनैतिक दल खूब आर्डर दे रहे हैं.“ हालांकि, उन्होंने यह बताने से इनकार कर दिया कि कौन सी पार्टी कितने आर्डर दे रही है.’
उत्तराखंड कांग्रेस के मीडिया प्रभारी राजीव महर्षि ने दिप्रिंट को बताया कि टोपी काफी समय से राज्य के लोगों की सांस्कृतिक और परंपरा की प्रतीक रही है.
उन्होंने कहा, ‘उत्तराखंड के लोग इसे सालों से पहनते आए हैं और हम लोगों ने प्रधानमंत्री के गणतंत्र दिवस के मौके पर पहनने से पहले इसे चुनावी सभाओं में पहना है. अगर मैं यह कहूं कि मोदी जी ने हमारी नकल की है, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी. उन्होंने यह भी कहा कि उनके पार्टी के सदस्य टोपी को पहनते और खरीदते आए हैं और ऐसा प्रधानमंत्री के कारण नहीं हुआ है.’
उत्तराखंड के बीजेपी प्रवक्ता रविंद्र जुगरान ने दावा कि ‘राज्य के बाहर के लोग भी इस टोपी को पहन रहे हैं. यह बात सोलह आने सच है कि प्रधानमंत्री ने जब से इसे पहना है, तब से इसकी मांग में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. पगड़ी और टोपी की कद्र समूचे भारत में की जाती है. प्रधानमंत्री का इस टोपी को पहनना यह दर्शाता है कि उन्हें उत्तराखंड से कितना प्रेम है.’
राज्य के सैनिक कल्याण मंत्री और मसूरी के विधायक गणेश जोशी ने गणतंत्र दिवस के दिन इस टोपी को लेकर एक ट्वीट भी किया था.
आदरणीय @narendramodi जी द्वारा आज धारण की गई पहाड़ी टोपी हमारी मसूरी के समीर जी द्वारा तैयार की गई है। लोकल कारीगरों के लिए समीर जी द्वारा किये जा रहे प्रयास सराहनीय हैं।
आज मोदी जी ने यह संदेश दिया कि उनके लिए #VocalForLocal एक नारा मात्र नहीं है बल्कि उनका संकल्प है। pic.twitter.com/t5WxdNS0XR— Ganesh Joshi (@ganeshjoshibjp) January 26, 2022
शुक्ला का कहना है कि दुकानदार लोग भी टोपी की खरीदी के आर्डर भेज रहे हैं. हमारे आर्डर निश्चित तौर पर दूने हो गए हैं. यह सब इतना जल्दी हो गया कि हम इतनी संख्या में बनाने में असमर्थ हैं और मांग को पूरा नहीं कर पा रहे. अब हम अपना स्टाक बढ़ाने में लगे हैं ताकि मांग की पूर्ति हो सके.
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‘टोपी उत्तराखंड की पहचान’
उत्तराखंड के स्थानीय लोगों ने दिप्रिंट को बताया कि इससे राज्य के लोगों को टोपी पहनने की दिशा में प्रोत्साहन मिलेगा.
मसूरी निवासी पुष्प दीप शर्मा ने कहा कि ‘यह इस बात का संकेत है कि उन्होंने हमें इज्जत और सम्मान दिया है. यह एक खास टोपी है जो उन्होंने पहनी थी. लोगों में इस बात को लेकर काफी उत्साह है और उन्होंने इसे पहनना शुरू कर दिया है.’
देहरादून निवासी रजनी शर्मा का कहना है कि ‘टोपी उत्तराखंड की पहचान है. लेकिन सच्चाई है कि उन्होंने एक खास टोपी पहनी जिससे लोगों की जिज्ञासा बढ़ गई. लोग इस टोपी को खोज रहे हैं और उसे पाने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने इसे गणतंत्र दिवस के दिन पहना और उत्तराखंड को गौरवान्वित किया.’
मसूरी के कॉलेज छात्र रमेश शाही कहते हैं, ‘बहुत से लोग उत्तराखंड की टोपी को गलती से हिमाचल प्रदेश की टोपी मान बैठते हैं. सच्चाई यह है कि प्रधानमंत्री ने जो टोपी पहनी उसमें खास उत्तराखंड के तत्व थे, जिससे लोगों को खासकर युवकों को अपनी पहचान बनाने का मौका मिलेगा. इससे राज्य को एक पहचान मिलेगी और राज्य के बाहर के लोग भी इस टोपी को पहचान सकेंगे.’
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