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Monday, 4 November, 2024
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खून-खराबा, कोयला और दहशत: कैसे धनबाद में अभी भी ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ की झलक मिलती है

कोयला माफिया धनबाद में यूनियनों और परिवहन से लेकर नीलामी तक सब कुछ नियंत्रित करते हैं, इसके अलावा जबरन वसूली, रिश्वतखोरी और खुलेआम चोरी भी करते हैं. उनके पास मिलीभगत से काम करने वाले अधिकारी भी हैं.

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धनबाद: अनुराग कश्यप की 2012 की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर को कई बार झारखंड के धनबाद में दशकों से कोयला खदानों में हो रही हिंसा को देश के बाकी हिस्सों के सामने लाने का श्रेय दिया जाता है.

हालांकि, रील्स की दुनिया रियल (असल) दुनिया से अलग हो सकती है, लेकिन धनबाद में यह रेखा अक्सर धुंधली होती है. यहां सुबह की सैर के दौरान अभी भी कोयले से भरे जूट के खुरदुरे बोरियों को साइकिल, बाइक और स्कूटर पर लादकर ले जाते हुए देखा जा सकता है. लेकिन ये कोयला ढोने वाले काले हीरे के शहर पूरे धनबाद को चलाने वाले कोयला ‘माफिया’ रूपी पहिये के एक छोटे से हिस्से हैं.

1970 के दशक में कोयला खदानों के राष्ट्रीयकरण ने उस समय के ताकतवर लोगों को यूनियन बनाकर और अनुबंधों के लिए हाथ-पैर मारकर कोयला उत्पादन और व्यापार के हर पहलू पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के पर्याप्त अवसर प्रदान किए. भारत कोकिंग कोल लिमिटेड (बीसीसीएल) की स्थापना 1972 में झरिया और रानीगंज कोयला क्षेत्रों में कोयला खदानों को संचालित करने के लिए की गई थी, जिन्हें एक साल पहले सरकार ने खत्म कर दिया था. इसकी वेबसाइट का कहना है कि ऐसा “देश में दुर्लभ कोकिंग कोयला संसाधनों के नियोजित विकास को सुनिश्चित करने के लिए” किया गया था.

Motorcycle riders carrying coal-filled gunny bags | Manisha Mondal | ThePrint
कोयले से भरी बोरियां ले जाते मोटरसाइकिल सवार | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

खदान सुरक्षा महानिदेशालय (डीजीएमएस) – भारत में सभी खनन और खनिज प्रसंस्करण कार्यों के लिए नियामक निकाय – के एक अधिकारी ने समृद्ध प्राकृतिक भंडार वाले लगभग सभी क्षेत्रों में इस “माफिया” संस्कृति के अस्तित्व पर जोर दिया, चाहे वह रेत हो या लौह अयस्क.

इस अधिकारी ने कहा, “वर्षों से, संस्कृति वही बनी हुई है. यह अब धनबाद में सिस्टम का एक हिस्सा बन गया है.”


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द ‘गॉडफादर’

यह कहानी 1970 के दशक की शुरुआत की है, जब देश भर में कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया गया था.

धनबाद के एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “यह अन्य चीजों के अलावा श्रमिकों के वर्चस्व की लड़ाई थी.” गौरतलब है कि इनमें से कुछ निजी कोयला खदानों में मजदूरों के लिए काम करने की खराब स्थितियां उनका राष्ट्रीयकरण करने का एक कारण बनीं.

उत्तर प्रदेश के बलिया से इस में शहर आये सूर्यदेव सिंह ने शुरू में तत्कालीन कोयला माफिया नेता बी.पी. सिन्हा से जुड़ गए, जिनकी 1979 में हत्या कर दी गई थी.

हत्या के एक संदिग्ध सूर्यदेव ने उनकी जगह लेने और धनबाद के ‘डॉन’ के रूप में उभरने में कोई समय बर्बाद नहीं किया. एक ट्रेड यूनियन नेता, सूर्य देव सिंह ने क्षेत्र में कोयला व्यवसाय पर पूरा नियंत्रण स्थापित कर लिया और जनता दल के टिकट पर झरिया – जो तब अविभाजित बिहार में था – से विधायक भी बने, जिससे अक्सर जिक्र किए जाने वाले राजनेताओं और माफिया के बीच के गठजोड़ की शुरुआत हुई.

धनबाद में कोयला खनन की चर्चा अचानक दुनिया भर में होने लगी, लेकिन सभी गलत कारणों से. 1983 के अपने लेख ‘बैडलैंड्स’ में द वॉशिंगटन पोस्ट ने सूर्यदेव सिंह को धनबाद के सिंडिकेट्स का “गॉडफादर” बताने वाले लोगों के बारे में जिक्र किया.

1991 में उनकी मृत्यु के बाद से, कई लोग उनकी जगह लेने के लिए होड़ कर रहे हैं और जबकि इस खेल के खास खिलाड़ी बार-बार बदलते रहे हैं, सिस्टम शायद ही कभी बदलता है.

22 नवंबर 2022 को स्थानीय हिंदी दैनिक प्रभात खबर की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि धनबाद को हर दिन माफिया के कारण 10-15 करोड़ रुपये के कोयले का नुकसान होता है.

A coal mine in Dhanbad | Manisha Mondal | ThePrint
धनबाद में एक कोयला खदान | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

अदरूनी कलह के कारण दो ग्रुप में बंट चुका सिंह का परिवार अब भी शहर पर राज करता है. हालांकि, एक परिवार – महलनुमा घर में रहता है, और दूसरा ‘रघुकुल’ में.

हालांकि, हाल ही में खनन क्षेत्र में वर्चस्व की लड़ाई में धनबाद लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार ढुल्लू महतो का नाम भी सामने आया है.

सिंह की तरह, महतो भी खदानों में कामगार थे और वहां से यूनियन नेता बने. उनके खिलाफ 50 से अधिक एफआईआर दर्ज हैं, जिनमें जबरन वसूली, हत्या के प्रयास, हथियारों और विस्फोटकों के इस्तेमाल से लेकर सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने तक के आरोप शामिल हैं.

उनके खिलाफ पहला मामला मार्च 1997 का है जब उन पर अन्य चीजों के अलावा दंगा और हत्या के प्रयास के आईपीसी प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था. तब से, उनके खिलाफ लगभग हर साल एक एफआईआर दर्ज की गई है.

बीसीसीएल के तहत खदानों को 12 क्षेत्रों में बांटा गया है: बरोरा, कतरास, पीबी, लोदना, ब्लॉक II, सिजुआ, डब्ल्यूजे, ईजे, गोविंदपुर, कुसुंडा, बस्ताकोला और सीवी. और ये वे क्षेत्र हैं जो पिछले कुछ वर्षों में आए और गए विभिन्न माफियाओं के गढ़ बन गए हैं.

धनबाद स्थित एक सामाजिक कार्यकर्ता ने दावा किया, “माफिया आउटसोर्सिंग निविदाओं में हेरफेर के माध्यम से उत्पादन को नियंत्रित करते हैं. वे इन निविदाओं के लिए आवेदन करने वाली अधिकांश कंपनियों को नियंत्रित करते हैं.”

गुंडा टैक्स

सरकारी नियमों के तहत कोयले का खनन आउटसोर्स किया जाता है और बीसीसीएल इसकी ई-नीलामी के लिए नोटिस जारी करता है. हालांकि, बोली जीतने वाली कोई भी कंपनी “गुंडा टैक्स” दिए बिना साइटों पर ट्रकों में कोयला लोड नहीं करा सकती है.

सूत्रों के अनुसार, लोडिंग चार्ज के रूप में वसूली गई यह धनराशि ट्रक में लोड किए गए प्रत्येक टन कोयले के लिए दी जाती है और कुछ क्षेत्रों में प्रत्येक टन के लिए 1,200 रुपये तक है.

ऊपर जिक्र किए गए सामाजित कार्यकर्ता ने कहा, “अगर वे इस गुंडा टैक्स का भुगतान नहीं करते हैं, तो ट्रक साइट पर खाली खड़े रहते हैं.”

इससे कोयला खरीदने वालों को भी जोखिम होता है. कोल इंडिया लिमिटेड की 2022 की ई-नीलामी योजना के अनुसार, जैसा कि इस साल मार्च में अपडेट किया गया था, सड़क मार्ग से कोयले का उठाव पूरा करने की वैधता अवधि बिक्री या वितरण आदेश जारी होने की तारीख से 45 दिन है.

Coal being collected at a mine | Manisha Mondal | ThePrint
एक खदान में कोयला एकत्र किया जा रहा है | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

2013 में, इंडिया टुडे ने एक रिपोर्ट में पुनर्वास महानिदेशक द्वारा प्रायोजित पूर्व सैनिकों की सहकारी समितियों को बीसीसीएल से 30 करोड़ रुपये के वार्षिक कोयला परिवहन अनुबंध की पेशकश करके माफिया को विफल करने के केंद्र सरकार के प्रयास पर प्रकाश डाला था.

हालांकि, धनबाद के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर राम सेवक शर्मा ने पाया कि “ठेकेदारों ने पूर्व सैनिकों के नाम पर खरीददारी की थी”, जिसका अर्थ है कि यह अभी भी माफिया के पास जा रहा था.

माफियाओं की कार्यप्रणाली उत्पादन से लेकर परिवहन तक प्रक्रिया के हर चरण में उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करती है. सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने कहा, “सब कुछ अधिकारियों की जानकारी में होता है.”

एक समानांतर उद्योग

सुबह लगभग 6 बजे, धनबाद के दमकारा बरवा गांव में काली पतलून और सफेद बनियान पहने एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति साइकिल से चल रहा है. साइकिल में इस तरह से बदलाव किया गया है कि इसके पिछले टायर पर एक चौड़ी सीट लगाई जा सकती है ताकि इस पर और ज्यादा बोरियां लादी जा सकें.

वह एक व्यापक अवैध खनन रैकेट का एक बिचौलिया है. पिछले 25 वर्षों से हर सुबह, वह अवैध रूप से निकाले गए कोयले को उठाने और इसे श्रृंखला की अगली कड़ी तक ले जाने के लिए खनिकों के साथ तालमेल बैठाता है, जो फिर इसे एक कारखाने या किसी अन्य बिक्रेता के पास बेचता है.

डीजीएमएस अधिकारी के मुताबिक यह एक समानांतर इंडस्ट्री है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “दशकों पहले, गरीब दूसरे लोगों से चोरी करते थे. अब, वे सीधा इन खदानों से चोरी करते हैं.”

“यह अपराध को सड़कों से दूर रखता है लेकिन इसे सीधे खदानों में पहुंचा देता है.”

A man carrying coal-filled gunny bag on his cycle | Manisha Mondal | ThePrint
एक आदमी अपनी साइकिल पर कोयले से भरी बोरी ले जाता हुआ | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

बंद खदान स्थलों से भी कोयला अक्सर चोरी होता है. यह शहर में एक जानाबूझा तथ्य है जो सबको पता है. शहर के जिला मजिस्ट्रेट-सह-उपायुक्त के साथ अप्रैल 2022 की बैठक के मिनट्स से पता चलता है कि अधिकारी ने “बंद किए गए खदान स्थलों के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की, जो बाद में उचित तरीके से बंद किए जाने और सुरक्षा के अभाव में कोयला चोरी के आसान स्थान बन जाते हैं, जिसकी वजह से राजस्व और राष्ट्रीय संसाधनों की हानि होती है, और इसके अलावा यह जिले के भीतर असामाजिक आपराधिक गतिविधियों में वित्त पोषण के लिए भी जिम्मेदार है.

इस बीच, अवैध कोयला खनन उद्योग लगातार लोगों की जान ले रहा है. उदाहरण के लिए, जून 2023 में ऐसी ही एक खदान के ढहने से कम से कम तीन मजदूरों की मौत हो गई और कई अन्य फंस गए.

‘नजदीकी गठजोड़ है’

2022 में, धनबाद निवासी और वकील बिजय कुमार झा ने अवैध खनन में लगे लोगों की मौत पर समाचार पत्रों की रिपोर्ट का हवाला देते हुए झारखंड उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. उनकी याचिका, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, में दावा किया गया है कि बीसीसीएल हर साल 32 मिलियन टन कोयले का उत्पादन करता है, लेकिन चोरी के कारण 10 मिलियन टन का नुकसान होता है.

यह कार्य व्यक्तियों द्वारा नहीं किया जा रहा था बल्कि एक संगठित गिरोह के माध्यम से किया जा रहा था, जहां माफिया द्वारा साइकिल, मोटरसाइकिल, छोटे वाहन उपलब्ध कराए जा रहे थे ताकि बंद खदानों से कोयला निकालकर एकत्र किया जा सके और रात में पुलिस की मदद से कोयले के ट्रकों को आवश्यकतानुसार अन्य राज्यों/कहीं भी ले जाया जाए.

A man hauling gunny bags filled with coal on his cycle | Manisha Mondal | ThePrint
एक आदमी अपनी साइकिल पर कोयले से भरी बोरियां ले जाता हुआ | मनीषा मंडल | दिप्रिंट

कोल इंडिया के अधिकारियों और माफियाओं के बीच “घनिष्ठ सांठगांठ” का आरोप लगाते हुए, जबकि इन साइटों पर तैनात सीआईएसएफ “कोयले की चोरी होने पर अपनी आंखें बंद कर लेती है”, याचिकाकर्ता अवैध खनन में लगे लोगों की ऐसी मौतों की “एक ईमानदार अधिकारी के नेतृत्व में” एक विशेष जांच दल (एसआईटी) बनाकर जांच की मांग कर रहा है.

बीसीसीएल अधिकारियों पर आरोप लगना कोई नई बात नहीं है. उदाहरण के लिए, 2019 में, केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने धनबाद स्थित एक कंपनी के माध्यम से अवैध भुगतान के जरिए 22.16 करोड़ रुपये की हेराफेरी करने के आरोप में बीसीसीएल के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया था.

याचिका में एसएसपी धनबाद को कोयला चोरी के लिए हर साल दर्ज मामलों की संख्या और इसमें शामिल गिरोहों के विवरण का खुलासा करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है.

याचिका फिलहाल उच्च न्यायालय में लंबित है, जिसने सरकारी अधिकारियों को इस साल 24 अप्रैल को पारित एक आदेश के माध्यम से अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा है.

गैंग्स ऑफ वासेपुर

जबकि वासेपुर धनबाद का सिर्फ एक हिस्सा भर है, गैंग्स ऑफ वासेपुर फिल्म में पूरे शहर की कहानियां शामिल हैं, इसके पात्र वास्तविक जीवन की कहानियों और घटनाओं से काफी प्रेरित लगते हैं.

पहले उद्धृत किए गए सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि प्रिंस खान जैसे गैंगस्टर बाहुबल, धन और बंदूक के बल पर धनबाद में व्यवसायियों को आतंकित करना जारी रखते हैं.

प्रिंस खान वासेपुर के एक अन्य सजायाफ्ता गैंगस्टर फहीम खान का भतीजा है, जिसने अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी द्वारा फिल्म में निभाए गए फैसल खान के चरित्र को प्रेरित किया था.

प्रिंस खान के गिरोह पर शहर के डॉक्टरों और व्यवसायियों को रंगदारी के लिए कॉल करने का आरोप लगा है. पिछले दिसंबर में, एक चिकित्सा पेशेवर को कथित तौर पर प्रिंस खान के गिरोह से फोन आने के बाद शहर के डॉक्टर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए थे.

इस साल अप्रैल में, जिले के मारवाड़ी सम्मेलन के अध्यक्ष कृष्णा अग्रवाल ने भाजपा नेता महतो और प्रिंस खान के खिलाफ उन्हें धमकी देने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की थी. पूर्व भाजपा नेता अग्रवाल ने अपनी शिकायत में दावा किया कि लोकसभा चुनाव में महतो की उम्मीदवारी का विरोध करने के कारण उन्हें धमकियां मिलीं.

यह तब हुआ जब इंटरपोल ने प्रिंस खान के खिलाफ रेड एंड ब्लू नोटिस जारी किए, जिसके बारे में माना जाता है कि वह मध्य पूर्व में रह रहा था.

जबकि नीले नोटिस अधिकारियों से आपराधिक जांच के संबंध में किसी व्यक्ति के बारे में अतिरिक्त जानकारी एकत्र करने के लिए कहते हैं, लाल नोटिस अनंतिम गिरफ्तारी का अनुरोध करते हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता के अनुसार, प्रिंस खान के पास धनबाद में कुछ लोग हैं जो उसकी टोह लेते हैं और वह जबरन वसूली के लिए हमेशा नए ठिकानों की तलाश में रहता है.

वह आगे कहता है., “आप कभी नहीं जानते कि कौन मारा जाएगा और कहां.”

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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