रायपुर: यदि छत्तीसगढ़ के हाल में सम्पन्न हुए नगरीय निकाय चुनाव को राजीनीतिक लोकप्रियता का पैमाना समझा जाय तो देश भर के शहरी मतदाता के बीच एक मजबूत पैठ बनाने का दावा करने वाली भाजपा का यह तमगा भी अब लगता है छिन गया है.
प्रदेश में 24 दिसंबर को सम्पन्न हुए नगरीय निकाय चुनाव के नतीजों ने छत्तीसगढ़ में भाजपा को एक बड़ा झटका लगा है. पिछले तीन पंचवर्षीय चुनावों में इस बार भाजपा प्रदेश के 10 में से मात्र एक नगर निगम में ही बहुमत प्राप्त कर पायी है जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस 4 निगमों में पूर्ण बहुमत और पांच अन्य में सामान्य बहुमत के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और कांग्रेस पार्टी के नेता पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि इन पांचों नगर निगमों में निर्दलीय पार्षद सत्ताधारी दल के मेयर उम्मीदवारों को जिताने में पूरी मदद करेंगे.
बघेल की राजनीति से चित्त न हो जाए भाजपा
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि भाजपा के लिए छत्तीसगढ़ नगरीय निकाय के चुनाव 2019 के नतीजे एक ऐतिहासिक घटना है क्योंकि पार्टी ने स्वयं को हमेशा शहरी मतदाताओं के बीच सबसे लोकप्रिय राजनीतिक संगठन माना है जो कि समय-समय पर होने वाले चुनावों में भी परिलाक्षित होता ही रहा है. मुख्य विपक्षी दल बघेल की इस बात से भी दहशत में है कि कांग्रेस कहीं सभी नगर निगमों में अपना मेयर बैठाने में न कामयाब हो जाय. यदि ऐसा हुआ तो यह भाजपा ले लिए भी काफी शर्मनाक होगा. इस बार बघेल सरकार ने मेयर का चुनाव जनता द्वारा सीधा न कराकर चुने हुए पार्षदों के माध्यम से कराने का निर्णय लिया है.
जहां तक बात नगर पालिका परिषद की है तो 38 परिषदों में कांग्रेस ने 19 में बहुमत हासिल किया है जबकि भाजपा ने 16 परिषद अपने कब्जे में लिया है. वहीं 103 नगर पंचायत में सत्तारूढ़ दल ने 50 जबकि भाजपा ने 41 नगर पंचायतों में बहुमत हासिल किया है. बारह नगर पंचायतों में दोनों पार्टियों को आधी-आधी सीट मिली हैं.
कांग्रेस नेताओं का मानना है की जिन पांच नगर निगमों में पार्टी सबसे बड़ा दल होते हुए भी बहुमत नही है वहां निर्दलीयों को उसके मेयर उम्मीदवरों को समर्थन देने के सिवाय कोई और विकल्प नही.
वहीं एक मात्र कोरबा नगर निगम में बहुमत होते हुए भी भाजपा को भरोसा नही है वह अपना मेयर यहां भी आसानी से बना पाएगी. इसका मुख्य कारण है भूपेश बघेल का चुनाव नतीजों के बाद खुलेआम एलान करना कि उनकी पार्टी 9 नगर निगमों में तो अपना मेयर बनाएगी ही लेकिन 10 वें निगम में भी अपने कब्जा लेने की कोशिश करेगी. यदि ऐसा हुआ तो राज्य बनने के बाद ऐसा पहली बार होगा जब कोई भी पार्टी प्रदेश के नगर निगम चुनाव में क्लीन स्वीप करेगी.
मुख्यमंत्री बघेल ने कहा, ‘भाजपा स्वयं को शहरी क्षेत्र की पार्टी होने का दावा करती थी लेकिन छत्तीसगढ़ के नगरीय निकाय चुनावों के परिणामों ने उसका यह भ्रम दूर कर दिया है.’
वहीं दूसरी ओर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी का मानना है कि इस चुनाव में उनकी पार्टी का प्रदर्शन संतोषजनक रहा है. उसेंडी के अनुसार बैलट पेपर द्वारा कराए गए चुनाव और फिर स्थानीय प्रशासन द्वारा कई स्थानों में पार्टी प्रत्याशियों की मांग के बावजूद भी मतगणना दुबारा न करवाना भी हार का प्रमुख कारण रहा है.
भूपेश हुए और भी मजबूत
पार्टी में ज्यादातर नेताओं का मानना है कि निकाय चुनाव के परिणामों से यह साबित हो गया है कि बघेल के विरोधी उनके खिलाफ कितनी भी मुहिम चला लें लेकिन मुख्यमंत्री को आसनी से हटा पाना मुमकिन नही है. बघेल एक ओर जहां जनता में अपने एक साल के कार्यों से अपनी पैठ बनाने में कामयाब हुए वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री ने संगठन के अंदर अपनी स्थिति और भी मजबूत कर लिया है.
पार्टी में उनके खिलाफ दबी जुबान से समय-समय पर जो नेता आवाज उठाते थे उनको भी बघेल ने फिलहाल चुप करा दिया है क्योकि सत्तारूढ़ पार्टी में इस चुनाव में प्रचार की नींव राज्य सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल के प्रदर्शन पर रखा था. बघेल के विरोधी खेमे के नेता भी मानते हैं की 2019 नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम ने मुख्यमंत्री को इतना मजबूत कर दिया है कि वे भी फिलहाल उनके साथ ही
आलाकमान भी खुश
पार्टी के बड़े नेताओ का मानना है कि नगरीय निकायों के चुनाव परिणाम से भूपेश बघेल सरकार तो मजबूत हुई ही है, संगठन के अंदर मुख्यमंत्री का अपना राजनीतिक कद भी बढ़ा है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सरकार चलाने की खुली छूट दे रखी है. बघेल मंत्रिमंडल में कई मंत्री ऐसे हैं जो अपने विभागों में मुख्यमंत्री के लगातार हस्तक्षेप से दबी जुबान में नाराजगी जाहिर करते रहें हैं लेकिन उनके निर्णयों के खिलाफ कुछ बोलने या विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं.
पार्टी नेताओं में अब यह आम राय बन चुकी है कि सरकार और संगठन में मुख्यमंत्री का कद इतना ऊपर हो गया है की उनके नेतृत्व को अब कांग्रेस के किसी नेता को दे पाना बहुत ही मुश्किल होगा. इस बात में अब कोई शक नही है कि नगरीय निकाय चुनाव के बाद मख्यमंत्री का राजनीतिक कद बहुत ऊंचा हो गया है.
छत्तीसगढ पीसीसी प्रवक्ता राजेश बिस्सा कहते हैं, ‘हमने यह चुनाव बघेल सरकार के एक साल की उपलब्धियों पर लड़ा था और करीब 10 में 9 नगर निगम जहां चुनाव हुए पार्टी ने आपने कब्जे में ले लिया है. नगर निगम चुनाव में इस जबरदस्त जीत का अर्थ है कि भाजपा जो स्वयं को शहरी मतदाताओं के बीच बहुत मजबूत मानती थी ने अपना वर्चस्व वहां भी खो दिया है.’
भाजपा को पंचायत चुनाव से उम्मीद बरकरार
नगरीय निकाय चुनावों में मिली हार के बाद भाजपा नेताओं की उम्मीद अब प्रदेश में जल्द होने जा रहे पंचायत चुनावों से हैं. पार्टी नेताओं का कहना है कि धान खरीदी में हो रही अनियमितता और कई दिनों से ठप पड़ी खरीदी की कार्यवाही से किसानों में आक्रोश पनप रहा है जिसका फायदा पार्टी को पंचायत चुनावों में जरूर मिलेगा. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी का कहना है, ‘सरकार का एक साल का कार्यकाल पूरी तरह से विफल रहा है. किसानों में काफी नाराजगी है. धान खरीदी का कार्य पहले देरी से शुरू हुआ और अब कई केंद्रों में बंद हो गया है.
शिकायतें मिल रही हैं की किसानों को टोकन देकर भी अनाज की खरीदी नहीं की जा रही है और जहां हो रही है वहां भुगतान नही हुआ है. इससे किसानों में काफी नाराजगी है.
उसेंडी का कहना है, ‘बघेल सरकार ने किसानों से बिजली बिल के मुद्दे पर भी धोखा किया है. भाजपा अध्यक्ष ने बताया की किसानों को अनियमित और अधिक दर से दिए जा रहे बिजली बिल से ग्रामीणों में सरकार के खिलाफ काफी नाराजगी है जिसे भाजपा पंचायत चुनावों में मुद्दा बनाएगी.
उसेंडी आगे कहते हैं ‘पंचायतों में हमारा प्रदर्शन कांग्रेस से काफी बेहतर रहेगा.’