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Tuesday, 19 November, 2024
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भाजपा के चुनावी पोस्टर हिमाचल के सेब उत्पादकों को मोदी के अधूरे वादों को याद दिलाते हैं

हिमाचल के सेब उत्पादक किसानों ने 22 अप्रैल को विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा की है. उन्हें डर है कि कांग्रेस और भाजपा के चुनाव अभियानों में राष्ट्रीय मुद्दों के हावी होने के कारण उनकी समस्याओं को भुला दिया जाएगा.

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जुब्बल-कोटखाई (हि.प्र.): हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध सेब बागानों से लगे 80 किलोमीटर लंबे ठियोग-हाटकोटी मार्ग पर लगे भारतीय जनता पार्टी के बड़े-बड़े होर्डिंगों पर नारा है -‘फिर एक बार, मोदी सरकार’.

स्थानीय सेब उत्पादकों को ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 के उन वादों की याद दिलाता हैं जो कि अधूरे ही रहे हैं. – उनके अनुसार, यदि वे वादे पूरे किए गए होते तो उन्हें मौजूदा खस्ताहालत का सामना नहीं करना पड़ता.

आगामी 19 मई को मतदान करने वाले सेब उत्पादन से जुड़े हिमाचल के 1.7 लाख परिवारों की मुख्य चिंता इस सेक्टर में कम होती संभावनाओं को लेकर है. पर राज्य के दोनों मुख्य राजनीतिक किरदारों, कांग्रेस और भाजपा, में से किसी ने भी सेब बागानों के संकट को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया है. किसानों को चिंता है कि मतदान की तिथि करीब आते-आते उनकी चिंताओं की किसी को परवाह नहीं रह जाएगी क्योंकि चुनावी विमर्श पर राष्ट्रीय मुद्दे हावी हो चुके हैं.


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किसान संघर्ष समिति के अनुसार राज्य भर में फैले सेब उत्पादकों में से कइयों के कुल 100 करोड़ रुपये से ऊपर खरीदारों और बिचौलियों के यहां दो वर्षों से अटके पड़े हैं. फल उत्पादकों के हितों के लिए काम करने वाली शिमला स्थित यह समिति बकाया राशि उगाहने के अभियान की अगुवाई कर रही है.

अधिकतर मामले यों तो वीरभद्र सिंह की अगुआई वाली पिछली कांग्रेस सरकार के काल के हैं, जो कि 2017 के अंत में सत्ता से बाहर हो गई थी, पर किसान मोदी के 2014 के वादे को भी याद करते हैं जब उन्होंने अपनी सरकार बनने पर सेबों के भंडारण के लिए पर्याप्त संख्या में कोल्ड स्टोरेज बनवाने का भरोसा दिलाया था. किसानों का कहना है कि भंडारण सुविधाओं के अभाव में उन्हें अच्छी कीमत का वादा करने वाले संदेहास्पद खरीदारों के हाथों अपने उत्पाद बेचने पर बाध्य होना पड़ा.

बागानी खेती से जुड़े प्रकाश ठाकुर ने बताया, ‘राज्य में एसी स्टोरेज की सुविधा नहीं है. ऐसे में उत्पादक बागान में ही अपने उत्पाद बेचने को मजबूर हो जाते हैं या आकर्षक कीमतें दिलाने का वादा करने वाले धूर्त खरीदारों के चंगुल में फंस जाते हैं. बाद में उनके पल्ले कुछ नहीं आता है.’

ठगे गए

सरकारी आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में सेब उत्पादन से जुड़ी अर्थव्यवस्था करीब 3,500 करोड़ रुपये के बराबर है. राज्य में फलों के उत्पादन में सेब का हिस्सा 49 प्रतिशत है.

राज्य के चार लोकसभा क्षेत्रों में से तीन – शिमला, मंडी और कांगड़ा (चौथा क्षेत्र हमीरपुर है) – में सेब उत्पादकों की खासी संख्या है. 2014 के चुनाव में राज्य की चारों लोकसभा सीटों पर भाजपा जीती थी.

सेब की पैदावार और कारोबार का मौसम जुलाई से सितंबर तक चलता है, और भंडारण सुविधाओं के अभाव में लगभग सारा उत्पाद तत्काल बेच दिया जाता है. तोड़े जाने के बाद सेबों को सबसे पहले 20 किलो क्षमता के गत्ते के डब्बों में पैक किया जाता है. इसके बाद सेब के इन डब्बों का या तो राज्य या बाहर की थोक मंडियों में भेजा जाता है, या बागानों में ही आने वाले खरीदारों को बेच दिया जाता है.

आढ़तिये कहे जाने वाले बिचौलिये बिक्री में मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं. बिक्री या तो खुली नीलामी के ज़रिए मंडियों में की जाती है, या फिर बड़े खरीदारों के साथ तय कीमत पर सौदा किया जाता है. बिक्री का पैसा आढ़तिये के हाथों से गुजरकर उत्पादकों के पास पहुंचता है.

ठियोग से विधायक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राकेश सिंघा स्वयं प्रभावित किसानों में शामिल हैं. बकाया राशि पाने के लिए चलाए जा रहे आंदोलन में भी वह आगे हैं. वह अपने जैसे सेब उत्पादकों के बुरे हाल के लिए नोटबंदी को भी एक प्रमुख कारक बताते हैं.

सिंघा के अनुसार आढ़तिये हिमाचल की सेब से जुड़ी अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग रहे हैं, और पैदावर के मौसम से पहले वे किसानों को अग्रिम भुगतान के रूप में पूंजी उपलब्ध कराया करते थे. पर 8 नवंबर 2016 को नोटबंदी लागू किए जाने के बाद आढ़तियों के पास पर्याप्त नकदी नहीं रह गई और उन्होंने सीधे बागानों से खरीदारी करना बंद कर दिया. और, सिंघा के अनुसार इस तरह बने शून्य ने खरीदार-सह-बिचौलिये की एक फौज के लिए मौके बना दिए.

सिंघा ने कहा, ‘स्थानीय बाज़ारों पर अब उनका ही नियंत्रण है.’ उनके काम करने के तरीके के बारे में उन्होंने बताया कि बिचौलिये किसानों से मिलकर उनके बागानों में या आसपास के इलाकों में ऊंची कीमतों का लालच देते हैं. अपने उत्पाद दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता या अहमदाबाद जैसे दूरदराज के बाज़ारों में ले जाने के अनिच्छुक किसान अक्सर उनके चक्कर में आ जाते हैं. कई किसानों का आरोप है बिचौलियों ने सेब तो ले लिए पर कीमत नहीं अदा की.

पैदावार पर बुरा असर डालने वाली विपरीत मौसमी दशाओं के असर से अब भी पूरी तरह उबर नहीं पाए.हिमाचल के सेब उत्पादक किसानों के लिए डूबी पूंजी एक दोहरी मार की तरह है.


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न्याय की उम्मीद

पिछले दो वर्षों के दौरान हिमाचल के प्रमुख सेब उत्पाद क्षेत्रों कोटखाई, ठियोग, रोहड़ू और चौपाल के किसान अपने बकाये की रकम पाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं.

कोटखाई के सेब उत्पादक किसान जयराम मुंबई के एक खरीदार और दो अन्य लोगों पर अपने 42 लाख रुपये बकाया होने का दावा करते हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए उन्होंने शिमला स्थित अपना घर 35 लाख रुपये में बेचकर देनदारों के पैसे चुकाए हैं.

कथित रूप से पैदावार के दो लगातार मौसमों में अपने पैसे वापस नहीं मिलने के कारण वह पूरी तरह नाउम्मीद दिखते हैं. बाकी कर्ज उतारने के लिए वह आगामी पैदावार की बाट जोह रहे हैं.

अभी तक 32 स्थानीय किसान 2017 और 2018 के दौरान बिक्री के कुल 1.62 रुपये की उगाही के लिए कोटखाई पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज करा चुके हैं. साथ ही 101 किसानों ने शिमला स्थित कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) से बिचौलियों की धोखाधड़ी की शिकायत की है. एपीएमसी राज्य में फल और सब्जी उत्पादों के विपणन से जुड़ी सरकारी संस्था है.

इसके अलावा 85 किसानों ने ठियोग स्थित दीवानी अदालत में फर्जी पोस्टडेटेड चेक देने वाले खरीदारों और बिचौलियों के खिलाफ मुकदमे दायर किए हैं.

सेब बिक्री के पैसे नहीं मिलने के दुष्परिणाम बागानों में साफ दिखते हैं. अनेक छोटे और सीमांत किसानों के पास कीटनाशक खरीदने या मजदूर लगाने तक के पैसे नहीं हैं. पुराने कर्ज, जिनमें किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए लिए पैसे भी शामिल हैं, नहीं चुका पाने के कराण नए सिरे से कर्ज पाने के उनके रास्ते बंद हो चुके हैं.

इतना ही नहीं, कई किसान देनदार संस्थाओं द्वारा डिफॉल्टर घोषित होकर अदालतों और चंडीगढ़ स्थिति ऋण वसूली न्यायाधिकरण की कानूनी कार्रवाइयों का सामना करने को विवश हैं. हताश सेब उत्पादकों ने राज्य की जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार और एपीएमसी की नज़रों के सामने जारी ‘खुली लूट और शोषण’ के खिलाफ सोमवार को प्रदर्शन करने की घोषणा की है.

शिमला के पूर्व मेयर और किसान संघर्ष समिति के सचिव संजय चौहान आरोप लगाते हैं कि किसानों के शोषण में कांग्रेस और भाजपा दोनों की मिलीभगत है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘एक की सत्ता से विदाई के बाद, उसकी जगह दूसरी आ जाती है. वे एपीएमसी में अपने लोगों को बिठाते हैं और लूट में लग जाते हैं. आपको इसका गंभीर असर इस बार के चुनाव में देखने को मिलेगा. क्या किसी को भी किसानों की मुश्किलों की परवाह है?’ चौहान कहते हैं, ‘किसानों की परेशानी यहां एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि सेब मुख्य पैदावार और राज्य की अर्थव्यवस्था की बुनियाद हैं.’

दिप्रिंट से बातचीत में हिमाचल के कृषि मंत्री रामलाल मारकंडा ने किसानों की समस्या से इनकार नहीं किया. उन्होंने कहा, ‘सरकारी रिकॉर्ड में भी किसानों को बकाया राशि का भुगतान नहीं किए जाने के 102 मामले दर्ज हैं. ये तो उनकी संख्या है जिन्होंने शिकायत दर्ज कराए हैं. और भी किसान होंगे जिन्होंने मंडियों से बाहर अपने उत्पाद बेचे होंगे, जहां कि हमारा नियंत्रण नहीं है. ये एक बड़ी समस्या है, और पूर्ण विवरण के साथ शिकायत प्राप्त होने पर हम सख्त कार्रवाई करेंगे.’

सब उत्तरदायी

मोदी 1990 के दशक में राज्य के लिए भाजपा प्रभारी रह चुके हैं. जब 2014 के चुनाव अभियान में वे हिमाचल प्रदेश आए, तो उन्होंने स्थानीय सेब उत्पादक किसानों के हित में तमाम वादे किए थे, जिनमें आयात शुल्क 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत किए जाने की बात भी शामिल थी. पर जहां व्यापार विवाद के कारण अमेरिका से आयातित सेब पर शुल्क बढ़ाकर 75 प्रतिशत कर दिया गया, वहीं अन्य देशों के लिए पुरानी दर ही लागू है.

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कुलदीप राठौड़ कहते हैं, ‘निश्चय ही (पिछले चुनाव में) मोदी लहर का असर सबसे बढ़कर था, पर आयात शुल्क को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 100 प्रतिशत करने के मोदी के वादे ने भी भाजपा को फायदा पहुंचाया था.’

राठौर ने कहा, ‘मोदी ने कानून बनाकर सॉफ्टड्रिंक उत्पादकों के लिए 25 प्रतिशत फल का रस इस्तेमाल अनिवार्य करने का भी वादा किया था (वास्तव में मोदी ने 2 प्रतिशत का ज़िक्र किया था).’ उनके अनुसार मोदी के ये खोखले वादे राज्य के सेब उत्पादक क्षेत्रों में कांग्रेस के बड़े चुनावी मुद्दे होंगे. उन्होंने कहा, ‘मोदी अपना रिपोर्ट कार्ड पेश करें, बताएं कि आयात शुल्क बढ़ाने या फल उत्पादक इलाकों में प्रॉसेसिंग उद्योग लगाने के उनके वादे का क्या हुआ.’

राज्य के पूर्व बागवानी मंत्री और जुब्बल-कोटखाई से भाजपा विधायक नरेंद्र बरागटा समस्याओं की जड़ राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में होने की बात करते हैं. उन्होंने कहा, ‘उपलब्ध विपणन सुविधाओं को मज़बूत बनाने की जगह पूर्ववर्ती सरकार ने बागवानी क्षेत्र के लिए कुछ भी नहीं किया. राजनीतिक वजहों के आधार पर सेब के बिचौलियों को लाइसेंस दिए गए. उन्होंने किसानों के साथ धोखा किया.’


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बारगटा ने कहा कि किसानों को छला जाना ‘सरकार और भाजपा के लिए भी गंभीर मुद्दा है.’

भाजपा विधायक ने कहा, ‘मैं तो किसानों को मात्र शिक्षित ही कर सकता हूं और उनसे आग्रह कर सकता हूं कि वे रातोंरात पैदा होने वाले धंधेबाज़ों के झांसे में नहीं आएं. ऐसे लोग सेब की पैदावार के समय अपनी दुकानें सजा लेते हैं और फिर किसानों को भुगतान किए बिना चुपके से गायब हो जाते हैं.’

सेब उत्पादक किसान मानते हैं कि बकाया भुगतान के ज़्यादातर मामले कांग्रेस सरकार के समय के हैं, पर वे मौजूदा प्रशासन को अपना पल्ला झाड़ने देने को तैयार नहीं हैं. उनका मानना है कि तमाम दोषी बिचौलियों और थोक खरीदारों को पकड़कर, उनसे किसानों की बकाया राशि उगलवाने की ज़िम्मेदारी मौजूदा सरकार की है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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