बेंगलुरु/मांड्या/मैसूर: 1975 की फिल्म शोले में डकैत गब्बर ने रहीम चाचा के बेटे की तब हत्या कर दी थी, जब वह अपने गांव रामगढ़ से नौकरी की तलाश में शहर जा रहा था. इस फिल्म के 47 साल बाद, उस जगह पर जहां फिल्म को शूट किया गया था वहां असली जीवन में जो गांव हैं वह गरीबी में रामगढ़ के वास्तविक जीवन की याद दिलाता है. रामगिरि पहाड़ियों की चट्टानों के पास जाइए और आप हेमा मालिनी के कैरेक्टर बसंती को ‘जब तक है जान … मैं नाचूंगी’ गाते हुए लगभग सुन सकते हैं.
यहां के अधिकांश ग्रामीण अनुसूचित जनजाति (ST) के हैं. एक युवक अनिल कुमार का कहना है कि उन्हें कल्याणकारी योजनाओं के रूप में जो कुछ भी मिलता है वह मासिक राशन के रूप में 4 किलो खाद्यान्न है.
गांव में दो लिंगायत परिवार हैं. शकुंतला-शिवस्वामी दंपती को सरकार से कोई शिकायत नहीं है, भले ही उन्हें पानी के टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ता हो. जिस बड़े पानी के टैंक के ऊपर से वीरू (धर्मेंद्र) ने “आत्महत्या” की धमकी दी थी, वह कहीं नहीं दिखता है.
वह खुलकर स्वीकार करते हैं कि वह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वोटर हैं. उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बी.एस. येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया. शकुंतला ने मुस्कुराते हुए दिप्रिंट को बताया, बोम्मई भी लिंगायत हैं.
दंपती के पास सरकार को धन्यवाद देने का एक कारण है – एक छोटी सी सड़क जो उनके घर को मुख्य सड़क से जोड़ती है और एक दीवार जो ऊपर से लटकती चट्टानों से घर को बचाती है.
एसटी परिवारों की ओर इशारा करते हुए, वह कहती हैं कि वे कांग्रेस को वोट देते हैं “केवल वे कारण जानते हैं”.
बेंगलुरू से लगभग 100 किमी पश्चिम में, आदिचुनचनगिरी मठ के प्रवेश द्वार के पास बैठे, पंछी और शर्ट में चार पुरुष बैठे हैं. जब उनसे मांड्या – जहां यह मठ स्थित है – की सांसद व अभिनेत्री सुमलता अंबरीश के बारे में पूछा जाता है तो वे खीझ जाते हैं.
“यह एक गलती थी,” निर्दलीय सांसद चुने जाने के बारे में उनमें से एक ने कहा. सुमलता अंबरीश ने 2019 के आम चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा के पोते और कर्नाटक के पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी के बेटे निखिल कुमारस्वामी को हराया था. जहां भाजपा ने उन्हें समर्थन दिया था, वहीं कांग्रेस के कई नेताओं ने भी परोक्ष रूप से उनकी मदद की थी.
मार्च में, सुमलता ने भाजपा को समर्थन देने का फैसला किया. लेकिन वोक्कालिगा समुदाय के ये चार लोग कुमारस्वामी की सीएम के रूप में वापसी की भविष्यवाणी कर रहे हैं.
वे यह स्वीकार नहीं करेंगे कि वे गौडा को इसलिए वोट देते हैं क्योंकि वे वोक्कालिगा हैं. जब उनसे पूछा गया कि वे उन्हें वोट क्यों देते हैं तो एक ने बताया कि, “वे किसान समर्थक हैं, इसीलिए.”
कर्नाटक में चारों ओर यात्रा करें – कम से कम दक्षिणी भागों में जहां दिप्रिंट ने तीन जिलों का दौरा किया – पता चलता है कि पूरी चुनावी बहस जातियों के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जबकि अन्य मुद्दे अगर कोई हैं भी तो वे बिल्कुल महत्त्वपूर्ण नहीं हैं. हिंदुत्व, गवर्नेंस या इसकी कमी, या भ्रष्टाचार इत्यादि की कोई बात नहीं है.
पिछले चार चुनावों से पता चलता है कि तीन प्रमुख प्लेयर्स – बीजेपी, कांग्रेस और जेडी(एस) ने कमोबेश अपना समर्थन आधार बरकरार रखा है. पिछले चार चुनावों में कांग्रेस का वोट शेयर था: 38 फीसदी (2018), 36 फीसदी (2013), 35 फीसदी (2008) और 35 फीसदी (2004).
इन चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर था: 36 फीसदी (2018), 20 फीसदी (2013, जब बीएस येदियुरप्पा ने बीजेपी छोड़ दी और उनकी पार्टी ने 10 फीसदी वोट छीन लिया), 34 फीसदी (2008) और 28 फीसदी (2004). जेडी(एस) के लिए यह आंकड़ा 18 फीसदी, 20 फीसदी, 19 फीसदी और 21 फीसदी था.
किसी बड़े भावनात्मक मुद्दे के अभाव में और जब तक कि भाजपा के लिंगायत वोट बैंक में कोई सेंध नहीं लगती है, तब तक यही संकेत मिलते हैं कि सभी दलों पर दबाव बना रहेगा. स्वतंत्र सर्वेक्षणों की भविष्यवाणियां एक तरफ, भाजपा और कांग्रेस दोनों के आंतरिक सर्वेक्षण इन दोनों को आशावादी रख रहे हैं. भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, पार्टी के आंतरिक सर्वेक्षण में 224 सदस्यीय विधानसभा में 100 सीटों की भविष्यवाणी की गई है. कांग्रेस के सर्वेक्षण में उसके लिए 110 सीटों की भविष्यवाणी की गई है.
ऐसे में दोनों प्रमुख पार्टियों ने अलग-अलग रणनीति अपनाई है. विपक्ष भाजपा में अंदरूनी कलह और कर्नाटक में उसके ‘विफल’ शासन मॉडल के बारे में जनता की धारणा बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. इस बीच, भाजपा अपनी ठोस संगठनात्मक मशीनरी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रिय अपील के साथ हर एक सीट पर माइक्रो-प्रबंधन पर ध्यान दे रही है.
भाजपा का माइक्रो मैनेजमेंट
मैसूर के सांसद प्रताप सिम्हा अपना अधिकांश समय वरुणा में चुनाव प्रचार में बिता रहे हैं. यह एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र है जो उनकी लोकसभा सीमाओं के बाहर पड़ता है. कांग्रेस के कद्दावर नेता सिद्धारमैया इस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जो चामराजनगर लोकसभा क्षेत्र में आती है.
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लिंगायतों के बाहुल्य वाले निर्वाचन क्षेत्र में सिद्धारमैया से मुकाबला करने के लिए भाजपा ने लिंगायत नेता वी. सोमन्ना को मैदान में उतारा है.
सिम्हा ने दिप्रिंट से कहा, ‘वह (सिद्धारमैया) अल्पसंख्यक तुष्टीकरण करने वाले हैं और उन्हें हारना ही चाहिए.’
रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वरुणा से सटे मैसूरु का दौरा करेंगे. केंद्रीय गृह मंत्री और पार्टी के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह अगले सप्ताह वरुणा में एक रैली करने वाले हैं. सिद्धारमैया ने अभियान चलाने का जिम्मा वरुणा से मौजूदा विधायक अपने बेटे यतींद्र एस. पर छोड़ दिया है. हालांकि, भाजपा उनके निर्वाचन क्षेत्र में माहौल इतना गरम करने की कोशिश कर रही है कि राज्य भर में प्रचार कर रहे एक लोकप्रिय नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को अपने निर्वाचन क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने को मजबूर होना पड़े और वह बाकी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित न कर पाएं.
बेंगलुरु में, जब दिप्रिंट ने बुधवार सुबह बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या से मुलाकात की, तो वे नायडू समुदाय से मिलने के लिए निकल रहे थे. इस बीच, भाजपा नेता और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह दूसरे इलाके में हिंदी भाषी मतदाताओं के साथ एक और बैठक कर रहे थे.
बेंगलुरु में प्रवासियों से मिलने और उन्हें संबोधित करने के लिए भाजपा ने विभिन्न राज्यों के सांसदों और विधायकों सहित लगभग 50 नेताओं को तैनात किया है. बेंगलुरु में बीजेपी के रणनीतिकारों ने दिप्रिंट को बताया कि पूरे राज्य में एक समान निर्वाचन क्षेत्र-विशिष्ट रणनीति का पालन किया जा रहा है.
तेजस्वी सूर्या ने दिप्रिंट को बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी के इस्तीफे के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा है लेकिन वास्तविकता यह है कि उनके पार्टी छोड़ने से कोई नुकसान नहीं होगा.
वे कहते हैं, ”हम काडर आधारित पार्टी हैं, न कि नेता आधारित पार्टी.”
कांग्रेस की परसेप्शन बैटल स्ट्रैटेजी
कांग्रेस नेताओं ने यह भी स्वीकार किया कि पार्टी में शेट्टार और सावदी के प्रवेश से लिंगायत वोटों के प्रभावित होने की बहुत ज्यादा संभावना नहीं है.
“आप सभी जानते हैं कि वे अपने निर्वाचन क्षेत्रों में हार सकते हैं. लेकिन तथ्य यह है कि उनके पार्टी बदलने की वजह से एक आम धारणा बनी है कि बीजेपी प्रमुख लिंगायत नेताओं को खो रही है. जो कि हमारे नैरेटिव में मदद करता है. हम वैसे भी उन सीटों को खो देते. अब हमारे पास कम से कम जीतने का मौका है और यह भी दिखा रहे हैं कि बीजेपी बिखर रही है.’
उनका कहना है कि 2021 में जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी. के. शिवकुमार ने नरेश अरोड़ा द्वारा स्थापित एक चुनाव अभियान प्रबंधन कंपनी DesignBoxed को हायर किया था, तो पार्टी का उद्देश्य बिल्कुल स्पष्ट था – लगातार गतिविधियों के साथ लोगों के दिमाग पर हावी होना और गवर्नेंस में कमियों को उजागर करना.
कांग्रेस नेता ने कहा, “आपने देखा होगा कि कैसे कांग्रेस कोविड, पानी, भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दों पर सक्रिय थी. यह भाजपा की कमियों को दिखाने में कामयाब रहा और भ्रष्टाचार के मामलों व कुशासन को उजागर करके लगातार सरकार पर दबाव बनाए रखा. यह कांग्रेस का ही प्रयास था कि बीजेपी के ऊपर 40 प्रतिशत कमीशन सरकार का टैग लग गया.”
जनता की धारणा के अनुसार, कांग्रेस के रणनीतिकारों का कहना है कि वे यह धारणा बनाने में कामयाब रहे कि भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार बाहर जा रही है. कांग्रेस के एक चुनावी रणनीतिकार ने दिप्रिंट को बताया, “लोग शायद वोट केवल इसलिए नहीं दे देंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि यह 40 प्रतिशत कमीशन वाली सरकार है. “लेकिन यह एक माहौल बनाने में मदद करता है. (यह) शेट्टार और सावदी जैसे भाजपा नेताओं के प्रवेश के बारे में भी ऐसा ही है. हो सकता है कि वे वोट न लाएं, लेकिन उन्होंने यह संदेश देने में मदद की है कि बड़े नेता पार्टी छोड़ रहे हैं. इससे हमारे कार्यकर्ताओं को उत्साहित रखने में मदद मिलती.”
रणनीतिकार कहते हैं, कांग्रेस “भाजपा की तरह काडर बेस्ड पार्टी” नहीं है.
वे कहते हैं, ”इसलिए ऐसा माहौल बनाना जरूरी है, जहां कांग्रेस कार्यकर्ता और मतदाता अपने घरों से बाहर निकलें.”
2019 में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के गठन के बाद से ही बीजेपी परसेप्शन प्रॉब्लम से लड़ रही है – हाई कमान बनाम येदियुरप्पा नैरेटिव, लिंगायत मजबूत नेता को साइडलाइन करना, पार्टी के भीतर झगड़े, भ्रष्टाचार के आरोप, कुशासन और नेताओं का पार्टी छोड़ना. लेकिन उसे उम्मीद है कि 10 मई को होने वाले मतदान से पहले अगले 10 दिनों में कहानी बदल जाएगी.
“कांग्रेस पहले ही चरम पर है. यह अब नीचे आने वाली है. पीएम मोदी अगले 10 दिनों में सब कुछ बदल देंगे.’
पार्टी ने अगले 10 दिनों में कर्नाटक में मोदी द्वारा लगभग 20 जनसभाएं और चार रोड शो करने का कार्यक्रम रखा है. लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकारों का तर्क है कि भाजपा के लिए खोई जमीन दोबारा पाने के लिए लिए काफी देर हो चुकी है.
दोनों पक्ष अपनी रणनीतियों की सफलता का दावा करते हैं लेकिन थोड़ी दबी आवाज़ में.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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