नई दिल्ली: बिहार के गोपालगंज, किशनगंज और पूर्णिया जिलों में मतदाता सूची से नाम हटाने का प्रतिशत सबसे ज़्यादा रहा है. यह आंकड़े चुनाव आयोग (ईसी) द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) अभ्यास के तहत जारी ड्राफ्ट सूची में सामने आए हैं.
ड्राफ्ट मतदाता सूची 1 अगस्त को प्रकाशित की गई, विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले.
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, एसआईआर अभ्यास के आधार पर बनी ड्राफ्ट मतदाता सूची में बिहार के 38 जिलों से 65.6 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम शामिल नहीं हैं. आयोग ने बताया कि इस कुल कमी में से 22 लाख से अधिक मतदाता मृत हो चुके हैं, 36 लाख से अधिक लोग स्थायी रूप से कहीं और चले गए हैं या उनका पता नहीं चल पाया और करीब सात लाख मतदाता कई जगहों पर नामांकित पाए गए हैं.
आंकड़ों के अनुसार, गोपालगंज में 24 जून को अभ्यास शुरू होने से पहले के आंकड़ों की तुलना में मतदाताओं की संख्या में 15.01 प्रतिशत की कमी आई है. पूर्णिया में यह कमी 12.08 प्रतिशत और किशनगंज में 11.82 प्रतिशत रही. इसके बाद मधुबनी (10.44 प्रतिशत) और भागलपुर (10.19 प्रतिशत) का नंबर आता है.
इनमें से पांच जिलों में से दो जिले सीमांचल क्षेत्र में आते हैं, जहां राज्य में मुस्लिम आबादी का प्रतिशत सबसे अधिक है. बिहार के जिलों में किशनगंज में सबसे अधिक मुस्लिम आबादी (68 प्रतिशत) है और पूर्णिया में करीब 38 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है (जनगणना 2001 के अनुसार).
सीमांचल क्षेत्र में अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार शामिल हैं. इसे कोसी-सीमांचल क्षेत्र भी कहा जाता है, जिसमें साहेबगंज, सुपौल और मधेपुरा भी इन चार जिलों के साथ आते हैं.
जिला-वार ड्राफ्ट मतदाता सूची संशोधन के आंकड़ों से पता चलता है कि औसतन प्रति जिला 8.06 प्रतिशत नाम हटाए गए हैं. इन सात जिलों में से चार—किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार (8.27 प्रतिशत) और सहरसा (9.46 प्रतिशत)—में औसत से अधिक नाम हटाए गए. बाकी तीन में औसत से कम नाम हटाए गए: अररिया (7.59 प्रतिशत), सुपौल (7.81 प्रतिशत) और मधेपुरा (6.85 प्रतिशत).
पटना जिले में मतदाताओं की संख्या में सबसे ज़्यादा कमी (3.95 लाख) हुई, लेकिन प्रतिशत के हिसाब से यह कमी औसत से कम (7.84 प्रतिशत) रही.
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि 1 अगस्त से 1 सितंबर के बीच दावे और आपत्तियां दर्ज कर किसी योग्य मतदाता का नाम जोड़ा जा सकता है या किसी अयोग्य मतदाता का नाम हटाया जा सकता है.
आयोग ने 1 अगस्त की प्रेस नोट में कहा, “सभी योग्य मतदाताओं से अपील है कि वे ड्राफ्ट सूची में अपना नाम देखें, और अगर नाम सूची में नहीं है तो फॉर्म-6 और घोषणा पत्र भरकर जमा करें… एसआईआर आदेशों के अनुसार, संबंधित ईआरओ/एईआरओ किसी भी मतदाता को सुनवाई का अवसर दिए बिना और लिखित आदेश पारित किए बिना ड्राफ्ट मतदाता सूची से कोई नाम नहीं हटा सकते हैं. यह आदेश डीएम और सीईओ के पास अपील योग्य है.”
यह मतदाता सूची संशोधन प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट में चुनौती के दायरे में है. कई याचिकाकर्ताओं, जिनमें तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा, भारत जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक योगेंद्र यादव, राजद सांसद मनोज झा और गैर-लाभकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) शामिल हैं, ने याचिका दायर की है.
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि यह प्रक्रिया मनमानी है. उन्होंने इस अभ्यास की समयरेखा और समय पर भी सवाल उठाए हैं, क्योंकि बिहार में चुनाव इसी साल के अंत में होने हैं. उनका कहना है कि इससे लाखों असली मतदाताओं के नाम हट सकते हैं, जिससे वे मतदान के अधिकार से वंचित हो जाएंगे.