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Wednesday, 20 November, 2024
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नीतीश की ‘जो पिएगा वो मरेगा’ टिप्पणी से और भी जिंदगियों को खतरे में डालेगी शराबबंदी, गहराएगा संकट

बिहार में लगभग 15.8% युवा पुरुष और बमुश्किल 0.4% महिलाएं शराब का सेवन करती हैं, डेटा दर्शाता है कि कम से कम 65 लाख पुरुषों के घटिया शराब के सेवन से अपनी जान जोखिम में डालने का खतरा है.

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नई दिल्ली: बिहार में एक और जहरीली शराब त्रासदी में करीब 82 लोगों की मौत होने की सूचना है. हालांकि, बिहार में 2016 से शराबबंदी लागू है, लेकिन जमीनी हकीकत और आंकड़े दोनों बताते हैं कि राज्य में चोरी-छिपे शराब की बिक्री होती है और यह एक बड़ी समस्या बन चुकी है.

इसके अलावा, राज्य में शराबबंदी के कट्टर समर्थक रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा है कि मरने वालों को कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा. इस मुद्दे पर राज्य विधानसभा में बोलते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि ‘जो पिएगा वो मरेगा ही.’

बिहार में जहरीली शराब से आखिर कितने लोगों को जान का खतरा है? राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) और जनगणना के लिए 2021 के जनसंख्या अनुमानों के आंकड़ों का उपयोग करने से पता चलता है कि बिहार में कम से कम 65 लाख पुरुषों के घटिया शराब के सेवन से अपनी जान जोखिम में डालने का खतरा है.

2019-21 में किए गए एनएफएचएस-5 से पता चलता है कि बिहार के लगभग 15.8 प्रतिशत युवा पुरुष और 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की बमुश्किल 0.4 प्रतिशत महिलाएं शराब का सेवन करती हैं. यह आंकड़ा 2015-16 के सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) के पिछले दौर के 28.9 प्रतिशत की तुलना में गिरा है.


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अन्य राज्यों में कैसी है शराबखोरी की आदतें

हालांकि, प्रमुख भारतीय शराब कंपनियों की प्रतिनिधि इकाई कंफेडरेशन ऑफ इंडियन एल्कोहलिक बेवरेज कंपनीज के महानिदेशक विनोद गिरि ने दिप्रिंट को बताया कि शराब निषेध वाले राज्यों में खपत की आदतों को लेकर अंडर-रिपोर्टिंग होती है.

उन्होंने कहा कि ऐसे मामले हो सकते हैं, जिनमें लोगों के शराब पीने में कमी आई हो. हालांकि, बिहार में शराब का सेवन करने वालों की संख्या पर कोई खास असर नहीं पड़ा है. शराबबंदी के कारण कम लोग अपनी शराब के सेवन की आदतों को स्वीकार करते हैं. कार्रवाई के डर से सर्वे करने वाले को वे सही जानकारी नहीं दे सकते.’

इसके बावजूद शराब का सेवन करने वाले पुरुषों की हिस्सेदारी अभी भी अपने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से ज्यादा है, जहां कोई पाबंदी नहीं है और 15 फीसदी पुरुष शराब का सेवन करते हैं. इसी तरह, राजस्थान में भी शराब बिक्री पर कोई प्रतिबंध नहीं होने के बावजूद पुरुषों में खपत की दर महज 11.6 फीसदी है. जम्मू-कश्मीर में शराब पीने वाले पुरुषों की हिस्सेदारी सबसे कम हैं और महज 8 प्रतिशत ही इसका सेवन करते हैं.

गुजरात में शराबबंदी के बावजूद 6 प्रतिशत पुरुष हार्ड ड्रिंक का सेवन करते हैं, लेकिन यहां अभी भी बिहार के विपरीत लाइसेंस प्राप्त ऑपरेटर्स द्वारा और विशेष आर्थिक क्षेत्रों, गैर-रिहाइशी इलाकों में शराब की बिक्री होती है.

वर्ष 2021 के लिए जनसंख्या अनुमानों से पता चलता है कि बिहार 12.3 करोड़ की आबादी के साथ भारत का तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है, और इस मामले में केवल उत्तर प्रदेश (23.09 करोड़) और महाराष्ट्र (12.44 करोड़) से पीछे है. बिना शराबबंदी के यूपी (15 फीसदी) और महाराष्ट्र (14 फीसदी) दोनों में शराब पीने वालों की हिस्सेदारी बिहार के काफी करीब है, तो इस राज्य में यह इतना बड़ा मुद्दा क्यों है?

शराबबंदी के आर्थिक और राजनीतिक नुकसान क्या हैं

बिहार में शराबबंदी का फैसला कुछ हद तक वोट बैंक से जुड़ा है, इसलिए नीतीश कुमार की इसमें खासी दिलचस्पी है. चुनाव-बाद के अध्ययनों से पता चलता है कि राज्य में बड़ी संख्या में महिलाओं ने नीतीश कुमार के पक्ष में मतदान किया. शराबबंदी के फैसले ने नीतीश को और भी ज्यादा लोकप्रिय बना दिया.

हालांकि, शराबबंदी को लंबे समय तक आगे जारी रखना राजनीतिक और आर्थिक रूप से नुकसानदेह साबित हो सकता है.

पोलिंग एजेंसी सी-वोटर के संस्थापक यशवंत देशमुख ने दिप्रिंट को बताया, ‘नीतीश ने शराबबंदी का फैसला भले ही महिला मतदाताओं को ध्यान में रखकर लिया हो लेकिन उन्हें इस बात का एहसास नहीं हुआ कि अवैध शराब न केवल जानलेवा है, बल्कि महंगी भी है. पहले जो पुरुष शराब खरीदने के लिए अपनी पत्नियों की कमाई छीन लेते थे, अब अधिक महंगी और जान खतरे में डाल देने वाली शराब खरीदने के लिए उनके गहने तक बेच सकते हैं. जब बड़ी संख्या में लोगों की इस तरह से मौत होती है तो परिवार एक लंबे समय तक चलने वाले दर्द के साथ रह जाते हैं, इसलिए लंबे समय तक शराबबंदी लागू रखना फायदेमंद नहीं होगा.’

गिरि कहते हैं, इस तरह के कदमों की वित्तीय कीमत तक चुकानी पड़ती है.

गिरि ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमारे अनुमान बताते हैं कि बिहार को हर साल 8000 से 10000 करोड़ रुपये से अधिक के उत्पाद शुल्क का नुकसान हो रहा है. इससे भी बुरी बात यह है कि शराबबंदी के नाम पर दहशत पैदा की गई है. लगभग 4.5 लाख मामले लंबित हैं, जो न्यायिक व्यवस्था पर भारी बोझ बने हुए हैं. जब निवेशक बिहार आते हैं, तो उन्हें डर का माहौल पसंद नहीं आता और वे इधर-उधर देखने लगते हैं, इसलिए बिना किसी वजह कमाई के अवसर बिहार के हाथ से निकल जाते हैं.’

गिरि ने आगे कहा, ‘गुजरात अभी भी शराबबंदी के प्रतिकूल प्रभावों से निपट सकता है क्योंकि यह एक समृद्ध राज्य है और अन्य उद्योगों से राजस्व कमा सकता है, लेकिन बिहार में ऐसा नहीं है. इसके पास बहुत कम अन्य उद्योग और आय के स्रोत हैं. निजी निवेश की संभावनाएं कम हैं. शराबबंदी के बावजूद लोग अब भी शराब पर पैसे खर्च कर रहे हैं लेकिन सरकार की झोली में कोई राजस्व नहीं आ रहा. हमने इस बारे में कई बार सरकार से आग्रह किया, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. यहां तक कि हमें अपनी बात कहने के लिए बुलाया तक नहीं गया.’

देशमुख यह भी कहते हैं कि कोविड-19 के बाद से केंद्र सरकार गरीब लोगों को मुफ्त अनाज जारी कर रही है, लेकिन अगर यह योजना बंद कर दी जाती है और इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकार पर डाल दी जाती है तो बिहार खुद को गहरे संकट में पाएगा.

देशमुख ने कहा, ‘कल अगर जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डाली जाती है या मुफ्त राशन योजना जारी रहती है तो बिहार सरकार को धन की जरूरत पड़ेगी. जैसे-जैसे अवैध शराब पर अधिक पैसा खर्च होगा, वैसे-वैसे राज्य के निवासियों के भूखों मरने की नौबत आने लगेगी. इसलिए शराबबंदी कोई समाधान नहीं हो सकता.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रावी द्विवेदी)
(संपादन: अलमिना खातून)


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