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रविवार, 6 जुलाई, 2025
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भाजपा में चाहिए बड़ी कामयाबी: नेताओं को इन 5 कसौटियों पर खरा उतरना ज़रूरी

भाजपा के पांच नए प्रदेश अध्यक्षों के चयन पर अगर नज़र डालें, तो साफ है कि पार्टी में ऊंचे पद तक पहुंचने के लिए किसी भी नेता को पांच ज़रूरी शर्तें पूरी करनी होती हैं.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में इन दिनों संगठनात्मक चुनाव चल रहे हैं, जो आगे चलकर राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव की राह खोलेंगे. इन चुनावों से यह समझने का मौका मिला है कि भाजपा नेतृत्व किन 5 ज़रूरी बातों को अपने नए नेताओं में सबसे ज़्यादा अहमियत देता है.

भाजपा ने राज्य अध्यक्षों के चुनाव की प्रक्रिया पिछले साल दिसंबर में शुरू की थी.

मंगलवार को महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में नामांकन भरे गए. इसके बाद रविंद्र चव्हाण, एन. रामचंदर राव, पी.वी.एन. माधव, महेंद्र भट्ट और राजीव बिंदल को इन राज्यों के भाजपा अध्यक्ष के रूप में घोषित कर दिया गया. खास बात यह रही कि इन राज्यों में इन नेताओं के खिलाफ किसी और ने नामांकन ही नहीं भरा.

अब तक भाजपा के 26 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में नए अध्यक्ष चुने जा चुके हैं. इन सभी नेताओं के बैकग्राउंड को देखकर साफ है कि भाजपा में पार्टी कार्यकर्ताओं का नेतृत्व करने के लिए 5 अहम बातों पर खरा उतरना बहुत ज़रूरी है.


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आरएसएस फैक्टर

भाजपा में राज्य अध्यक्ष बनने के लिए सबसे पहली और अहम शर्त है — राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ाव.

आरएसएस, भाजपा की वैचारिक शाखा है. अब तक चुने गए 26 भाजपा राज्य अध्यक्षों में से 14 ऐसे हैं जो या तो आरएसएस की शाखाओं से निकले हैं या छात्र जीवन से ही आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े रहे हैं.

तेलंगाना में चुने गए एन. रामचंदर राव इसका उदाहरण हैं. वे वरिष्ठ वकील और पूर्व एमएलसी (स्नातक कोटे से एमएलसी) हैं. वे भी एबीवीपी से जुड़े रहे हैं.

इसी तरह, आंध्र प्रदेश में पार्टी ने पी.वी.एन. माधव को चुना है, जो भाजपा सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री व टीडीपी संस्थापक एन.टी. रामाराव की बेटी दग्गुबती पुरंदेश्वरी की जगह लाए गए हैं.

52-वर्षीय माधव का आरएसएस से गहरा जुड़ाव माना जाता है. उनके पिता पी.वी. चलपति राव भी भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे हैं और उन्होंने उत्तर आंध्र क्षेत्र में भाजपा को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभाई थी. वे अविभाजित आंध्र प्रदेश में भाजपा के पहले राज्य अध्यक्ष भी रहे थे.

उत्तराखंड में महेंद्र भट्ट, हिमाचल प्रदेश में राजीव बिंदल, राजस्थान में फिर से चुने गए मदन राठौड़ और अंडमान व निकोबार में चुने गए अनिल तिवारी — सभी का भी आरएसएस से नाता रहा है.

भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि पहले भी कई राज्य अध्यक्ष आरएसएस पृष्ठभूमि से आते रहे हैं, लेकिन इस बार खास ध्यान रखा गया कि संगठन के साथ समन्वय बेहतर रहे.

हालांकि, 12 ऐसे नेता भी चुने गए हैं जिनका सीधा आरएसएस से जुड़ाव नहीं रहा है. इनमें तमिलनाडु के नैनार नागेन्द्रन, केरल के राजीव चंद्रशेखर और पुडुचेरी के वी.पी. रामलिंगम शामिल हैं.

नागेन्द्रन ने 2017 में अन्नाद्रमुक छोड़कर भाजपा जॉइन की थी. राजीव चंद्रशेखर कारोबारी से राजनेता बने हैं और 2006 में पहली बार निर्दलीय राज्यसभा सांसद बने थे. रामलिंगम ने 2021 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा.

इसके अलावा तीन राज्य प्रमुख मेघालय, नागालैंड और मिजोरम से हैं, जो उत्तर-पूर्वी राज्यों से आते हैं.

भाजपा नेताओं ने दिप्रिंट से कहा कि आरएसएस से जुड़ाव नेता बनने में “बड़ी ताकत” देता है, लेकिन जिन राज्यों में भाजपा की पकड़ कमज़ोर है, वहां पार्टी को गैर-आरएसएस पृष्ठभूमि वाले नेताओं को भी मौका देना पड़ता है.

संगठनात्मक अनुभव

दूसरी अहम शर्त है—संगठनात्मक अनुभव. भाजपा ने जिन नेताओं को राज्य अध्यक्ष बनाया है, उनमें से ज्यादातर का पार्टी संगठन से गहरा जुड़ाव रहा है.

मसलन, बिहार में दिलीप जायसवाल को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. वे तीसरी बार बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं और राज्य सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. पार्टी के भीतर उन्हें एक अनुभवी नेता माना जाता है, जो संगठन की बारीकियों को अच्छी तरह समझते हैं. वे करीब दो दशक तक भाजपा के कोषाध्यक्ष भी रहे हैं. इसके अलावा, पार्टी ने उन्हें सिक्किम इकाई का प्रभारी भी बनाया था.

राजस्थान में भी पार्टी ने 70 वर्षीय मदन राठौड़ पर फिर भरोसा जताया है. वे राज्यसभा सदस्य हैं और वसुंधरा राजे के कार्यकाल में दो बार विधायक भी रह चुके हैं. 2015 से 2018 तक वे विधानसभा में डिप्टी चीफ व्हिप भी रहे.

इसी तरह, हिमाचल प्रदेश में 70-वर्षीय राजीव बिंदल को दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. बिंदल ने झारखंड में आरएसएस से जुड़े वनवासी कल्याण आश्रम में भी काम किया है और 2002 से 2022 तक पांच बार विधायक रहे. उन्होंने सोलन से तीन और नाहन से दो विधानसभा चुनाव जीते. वे भी दिलीप जायसवाल की तरह पार्टी के कोषाध्यक्ष रह चुके हैं.

भाजपा के एक नेता ने दिप्रिंट से कहा, “ऐसे नेताओं का चयन करना ज़रूरी है, जिन्हें संगठन की अच्छी समझ हो और जो पार्टी के ढांचे से अच्छी तरह परिचित हों. इन नेताओं का अनुभव राज्य इकाई को बेहतर चलाने और पार्टी के विस्तार में काम आएगा.”

मध्य प्रदेश में भी भाजपा ने संगठन से जुड़े नेता हेमंत खंडेलवाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. वे तीसरी पीढ़ी के राजनेता हैं. प्रदेश अध्यक्ष बनने से पहले वे मध्य प्रदेश भाजपा के कोषाध्यक्ष थे. उन्होंने 2008 में उपचुनाव जीतकर सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया था. यह उपचुनाव उनके पिता विजय खंडेलवाल के निधन के बाद हुआ था, जो बैतूल से सांसद थे. इसके बाद हेमंत खंडेलवाल 2010 से 2013 तक भाजपा के बैतूल ज़िला अध्यक्ष भी रहे.


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जातीय गणित

भाजपा नेतृत्व के लिए राज्य अध्यक्ष चुनते समय तीसरी अहम कसौटी जातीय संतुलन है. कई मामलों में पार्टी बहुसंख्यक जातियों के नेताओं को चुनती है ताकि उस समुदाय का समर्थन मिल सके, तो कई बार गैर-प्रमुख जातियों के नेताओं को आगे कर “सभी को साथ लेने” की कोशिश भी होती है.

जैसे, बिहार में पार्टी ने दिलीप जायसवाल को चुना, जो खगड़िया ज़िले से हैं और वैश्य समुदाय से आते हैं.

भाजपा के एक नेता ने दिप्रिंट से कहा, “आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए इस समुदाय का समर्थन जुटाने की रणनीति है. वैश्य समुदाय अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) में आता है और राज्य की बड़ी आबादी का हिस्सा है.”

साथ ही, जायसवाल को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का करीबी भी माना जाता है.

उत्तराखंड में भी पार्टी ने महेंद्र भट्ट को अध्यक्ष बनाकर “सही जातीय संतुलन” साधने की कोशिश की है. यहां मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ठाकुर समुदाय से हैं, जबकि भट्ट ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. राज्य की कुल आबादी में ब्राह्मण और ठाकुर मिलाकर लगभग 60% माने जाते हैं.

तमिलनाडु में पार्टी ने के. अन्नामलाई की जगह नैनार नागेन्द्रन को अध्यक्ष बनाया है. अन्नामलाई पश्चिमी तमिलनाडु के प्रभावी ओबीसी गौंडर समुदाय से आते हैं. भाजपा की सहयोगी एआईएडीएमके के महासचिव ई. पलानीस्वामी भी इसी समुदाय और क्षेत्र से हैं. इसलिए भाजपा ने दक्षिण तमिलनाडु के प्रभावशाली मुक्कुलथोर समुदाय (जिसमें कल्लर, मरावर और अगमुदयार जातियां आती हैं) से आने वाले नागेन्द्रन को चुना है. भाजपा इस क्षेत्र को “विस्तार के लिए उपजाऊ ज़मीन” मानती है.

केरल में भाजपा लंबे समय से अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश कर रही है. वहां राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर को अध्यक्ष बनाना नायर समुदाय के वोटों को साधने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि वे इसी समुदाय से आते हैं. इस साल राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव और 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं.

राजस्थान में भी पार्टी ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखते हुए तजुर्बेकार मदन राठौड़ को अध्यक्ष बनाया है. वे तेली-घांची जाति से आते हैं. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ब्राह्मण हैं और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सी.पी. जोशी भी ब्राह्मण थे.

भाजपा के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “अब तक इस जाति से किसी नेता को मंत्री नहीं बनाया गया, न ही केंद्र में इस समुदाय का कोई चेहरा है. ऐसे में पार्टी ने सामाजिक संदेश देने के लिए यह फैसला लिया.”

तटस्थता

भाजपा हाईकमान के लिए राज्य अध्यक्ष चुनते समय चौथी अहम कसौटी है — तटस्थता. खासतौर पर उन राज्यों में जहां पार्टी गुटबाजी से जूझ रही है, वहां यह कसौटी और भी अहम हो जाती है.

तेलंगाना, केरल, राजस्थान और बिहार जैसे राज्यों में भाजपा लंबे समय से गुटबाज़ी से परेशान रही है. कार्यकर्ताओं की शिकायत रही है कि उन्हें सुना नहीं जाता, पार्टी गतिविधियां सही से नहीं चलतीं या फिर नेताओं का एक खास गुट बाकी कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर देता है.

उदाहरण के लिए तेलंगाना में कई दावेदार थे — पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बंदी संजय, 2021 में भाजपा में आए ईटाला राजेंदर और निजामाबाद के सांसद धर्मपुरी अरविंद समेत कई अन्य नेता इस पद के इच्छुक थे.

ऐसे में पार्टी हाईकमान ने ब्राह्मण समुदाय से आने वाले एन. रामचंदर राव को चुना, जो राज्य की आबादी का सिर्फ करीब 3% माने जाते हैं.

वरिष्ठ भाजपा नेता ने दिप्रिंट से कहा, “राव को चुनकर पार्टी ने यह तय कर लिया कि बड़े नेताओं को विरोध या नाराज़गी जताने का ज़्यादा मौका ही न मिले. अगर इनमें से किसी भी दिग्गज को अध्यक्ष बनाते, तो पार्टी में बड़ी खींचतान हो सकती थी. भले ही राव की कोई ज़बरदस्त जनअपील नहीं है, लेकिन वे पार्टी के भीतर सबको साथ लेकर चलने वाले नेता के तौर पर काम करेंगे.”

तमिलनाडु में भी यही तटस्थता कारण रही.

एक पदाधिकारी ने बताया, “अन्नामलाई को हटाने के पीछे एआईएडीएमके के साथ गठजोड़ भी वजह रही, लेकिन उतना ही बड़ा कारण यह था कि नागेन्द्रन अनुभवशील नेता हैं और सबको साथ लेकर चलने की क्षमता रखते हैं, जो अन्नामलाई के समय एक बड़ी दिक्कत बन गई थी.”

केरल में नवंबर 2024 के उपचुनावों के दौरान गुटबाज़ी खुलकर सामने आई. पालक्काड में भाजपा प्रत्याशी की हार के बाद, पार्टी के राष्ट्रीय परिषद सदस्य एन. शिवराजन और पालक्काड नगर निगम की चेयरपर्सन प्रमिला ससीधरन ने सार्वजनिक तौर पर उम्मीदवार सी. कृष्णकुमार पर सवाल उठाए, जो तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन के करीबी माने जाते थे.

इतना ही नहीं, चुनाव से कुछ दिन पहले ही भाजपा नेता संदीप वारियर ने “सुरेंद्रन से मतभेद” के चलते कांग्रेस जॉइन कर ली थी. अब केरल में सुरेंद्रन की जगह राजीव चंद्रशेखर को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है.

विवादों से दूरी

भाजपा द्वारा चुने गए नए प्रदेश अध्यक्षों के ज़रिये पार्टी ने एक और स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की है—विवादों से दूरी बनाए रखने का.

दरअसल, ज़्यादातर नए अध्यक्ष ऐसे नेता हैं, जो बिना शोर-शराबे के काम करने वाले, “मध्यम मार्गी” और साफ़-सुथरी छवि वाले माने जाते हैं.

तेलंगाना में विवादित विधायक टी. राजा सिंह ने इस हफ्ते भाजपा से इस्तीफा दे दिया. उनका आरोप था कि पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद के चुनाव में लड़ने ही नहीं दिया. इसके तुरंत बाद भाजपा ने बयान जारी कर कहा कि पार्टी के लिए “लोकप्रियता से ज़्यादा प्रतिबद्धता और दिखावे से ज़्यादा मूल भावना” अहम है.

गौरतलब है कि हैदराबाद पुलिस के 2022 के बयान के मुताबिक, टी. राजा सिंह के खिलाफ 100 से ज़्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं और वे “हैदराबाद के अलग-अलग थाना क्षेत्रों में सांप्रदायिक मामलों में शामिल रहे हैं.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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