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Tuesday, 31 December, 2024
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बंगाल, बांग्ला और ‘बोहिरागोतो’ — पहचान की राजनीति और हिंदी ‘थोपने’ के खिलाफ प्रतिरोध

बंगालियों और गैर-बंगालियों के बीच टकराव के प्रकरणों ने भाषा थोपने की बहस को फिर से शुरू कर दिया है. अंग्रेज़ी माध्यम की शिक्षा की अत्यधिक मांग है और ऐसे में बंगाली भाषा हाशिए पर चली जाती है.

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कोलकाता: इसे भाषाई पहचान कहें, संकीर्णता कहें या हिंदी ‘थोपने’ के खिलाफ प्रतिरोध, पश्चिम बंगाल में बंगाली और गैर-बंगाली भाषियों के बीच एक बार फिर भाषाई ‘युद्ध’ छिड़ गया है. तीन छिटपुट घटनाओं ने बंगाली भाषा या बांग्ला को सुर्खियों में ला दिया है.

नवंबर में यह बिना तारीख वाला वीडियो क्लिप खूब शेयर किया गया, जिसमें कोलकाता मेट्रो में एक गैर-बंगाली भाषी महिला सहयात्री से कहती हैं: “आप बांग्लादेश में नहीं हैं. आप भारत में हैं. पश्चिम बंगाल भारत का हिस्सा है, आपको हिंदी में बात करनी चाहिए. भारत में रहते हुए, आप बंगाली तो जानते हैं, लेकिन हिंदी नहीं?” इस क्लिप ने वर्चुअल और असल दुनिया दोनों में गरमागरम बहस को जन्म दिया. मेट्रो में यह टकराव राज्य विधानसभा तक पहुंच गया, जहां बालागढ़ के विधायक मनोरंजन ब्यापारी ने राज्य में रहने वालों से बंगाली सीखने और उसका सम्मान करने की अपील की.

लोकप्रिय बंगाली गायिका इमान चक्रवर्ती ने इस महीने की शुरुआत में एक कॉर्पोरेट कार्यक्रम में अपने बयान से इस बहस में कूद पड़ीं. इमान ने दर्शकों में से एक व्यक्ति जिसने कार्यक्रम में बंगाली गाने न सुनने का अनुरोध किया था, से कहा, “आप पंजाबी, मराठी, गुजराती या अंग्रेज़ी गाने सुनने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन आपमें यह कहने की हिम्मत कैसे हुई कि आप बंगाली गाने नहीं सुनेंगे? अगर यह कोई और राज्य होता, तो आपको बालों से पकड़कर कैंपस से बाहर निकाल दिया जाता.”

एक यात्री द्वारा रिकॉर्ड की गई एक अन्य क्लिप में दावा किया गया है कि टिकट काउंटर पर मेट्रो अधिकारी ने उन्हें तब फटकार लगाई जब उन्होंने बंगाली में बात नहीं करने को कहा वरना उन्हें बांग्लादेशी मान लिया जाएगा. यात्री ने मेट्रो अधिकारी के खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई है.

यह सभी टकराव ऐसे समय में हुए हैं जब केंद्र ने अक्टूबर में मराठी, पाली, असमिया और प्राकृत भाषाओं के साथ बंगाली को भी शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है.

जनवरी में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बंगाली भाषा के लिए शास्त्रीय दर्जा मांगने के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था. इस टैग के लिए पात्र होने के लिए किसी भाषा का कम से कम 1,500 से 2,000 साल पुराना होना ज़रूरी है.

कोलकाता नगर निगम (केएमसी) को भी नहीं बख्शा गया, जब स्थानीय बाज़ार के साइनबोर्ड पर केवल उर्दू और हिंदी में लिखा पाया गया. बंगाली को नज़रअंदाज़ करने के लिए केएमसी को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. कुछ ही घंटों में बंगाली में नया साइनबोर्ड लगा दिया गया. बढ़ते विवाद को शांत करने के लिए केएमसी ने एक सर्कुलर जारी किया, जिसमें सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को तय समय सीमा के भीतर बंगाली में साइनबोर्ड लगाना अनिवार्य करने का निर्देश दिया गया. केएमसी ने विज्ञप्ति, लेटर पैड, नोटिस और आदेश भी बंगाली में जारी करने का फैसला किया है.

बहस राजनीतिक हो रही है, भाजपा के कद्दावर नेता अर्जुन सिंह ने गैर-बंगाली भाषी आबादी के खिलाफ लड़ाई लड़ने वालों को चुनौती दी है. 23 दिसंबर को एक कार्यक्रम में बैरकपुर के पूर्व सांसद ने कहा, “अगर हिंदी भाषी मतदाता पूर्ववर्ती सीपीआई (एम) सरकार के खिलाफ खड़े नहीं होते, तो आप (टीएमसी) जीत नहीं पाते. हिंदी भाषी निवासियों का सम्मान करें, हमें भड़काएं नहीं, हमें अलग न करें. हम अपनी आखिरी सांस तक लड़ेंगे, आप कौन होते हैं हमें बंगाल से बाहर धकेलने वाले? किसी में हिम्मत नहीं है. 140 सालों से हमारे परिवार पश्चिम बंगाल में बसे हुए हैं. हम इस देश का हिस्सा हैं; हमें किनारे करने की आपकी हिम्मत कैसे हुई.”

लेकिन उसी दिन एक अन्य पार्टी नेता दिलीप घोष, जो भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं, ने आलोचना की कि किस तरह हिंदी भाषी निवासियों पर उंगली उठाने के बजाय बंगालियों द्वारा बंगाली भाषा की उपेक्षा की जा रही है.

घोष ने जोर देकर कहा कि बंगाली दुनिया की बेहतरीन भाषाओं में से एक है. “फिर भी, यह पश्चिम बंगाल से ही लुप्त होती जा रही है. शादियों में हिंदी गाने छाए रहते हैं. यहां तक ​​कि बंगाली टेलीविजन धारावाहिकों में भी अब हिंदी गाने दिखाए जाते हैं. प्रणाम करने की संस्कृति बंगाली भूलते जा रहे हैं. आज की पीढ़ी प्रणाम का मतलब भी नहीं समझती, इसे करना तो दूर की बात है. अगर वह इन मूल्यों को नहीं समझेंगे तो अपने माता-पिता का सम्मान कैसे करेंगे?”

सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने कहा कि बंगाली का किसी अन्य भारतीय भाषा से कोई टकराव नहीं है. टीएमसी के राज्य उपाध्यक्ष जय प्रकाश मजूमदार ने दिप्रिंट से कहा, “हमें अपनी बंगाली भाषा पर बहुत गर्व है और ममता बनर्जी के प्रयासों की वजह से केंद्र सरकार ने भी बंगाली को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता दी है.”

उन्होंने कहा, “हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि पश्चिम बंगाल हमेशा से एक ऐसा स्थान रहा है, जहां कई प्रांतों के लोग आते रहे हैं और बंगाल की संस्कृति से घुलमिल गए हैं, चाहे वह हिंदी-, तमिल-, असमिया — या उड़िया — भाषी हों. बंगाल को अपनी संस्कृति और भाषा पर भी गर्व है. ममता बनर्जी बंगाली भाषा के विकास, रखरखाव और प्रसार के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं, लेकिन इसका किसी अन्य भाषा से कोई टकराव नहीं है.”

ऐसा कहने के बाद, तृणमूल चुनाव दर चुनाव भाजपा के बांग्लादेशी घुसपैठ कार्ड का मुकाबला करने के लिए ‘बोहिरागोतो (बाहरी)’ का नारा बुलंद करती है.

भाषा विशेषज्ञ पवित्र सरकार के अनुसार, देश में बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं के बारे में भाजपा की धारणा अभी भी स्पष्ट नहीं है. “भाजपा के पास इस बारे में स्पष्ट धारणा नहीं है कि भाषा को कहां रखा जाना चाहिए. इसलिए वह अपने कार्यकर्ताओं को ‘कार्यकर्ता’ कहते हैं, लेकिन बंगाली में कार्यकर्ता को ‘कोरमी’ कहा जाता है. यही कारण है कि बंगाली उन्हें पसंद नहीं करते.”

लेकिन सरकार ने जोर देकर कहा कि बड़ी जिम्मेदारी बंगाली समुदाय के भीतर है. “किसी भी द्विभाषी स्थिति में एक भाषा दूसरी को प्रभावित करती है. अधीनस्थ द्विभाषी में एक प्रमुख भाषा होती है और दूसरी प्रमुख भाषा होती है. अंग्रेज़ी के मामले में यह प्रमुख भाषा है और अन्य सभी भारतीय भाषाओं पर प्रभुत्व है. यही कारण है कि आप बंगाली या किसी अन्य भारतीय भाषा को बोलते समय अंग्रेज़ी शब्दों का उपयोग देखते हैं.”

सरकार ने समझाया, भाषा विशेषज्ञ ने जोर देकर कहा कि बंगाली अपनी मातृभाषा की उपेक्षा के लिए भी जिम्मेदार हैं. सरकार ने समझाया, “जो लोग अंग्रेज़ी बोलते हैं, वह बांग्ला बोलते समय अंग्रेज़ी शब्दों का उपयोग करते हैं. वास्तव में, ग्रामीण क्षेत्रों में, बंगाली अंग्रेज़ी शब्दों के बिना बोली जाती है. अंग्रेज़ी मीडियम की शिक्षा की मांग बहुत अधिक है और ऐसे में बंगाली भाषा हाशिए पर चली जाती है. यह देश की अन्य भाषाओं के लिए भी सच हो सकता है.”

राजनीतिज्ञ और लेखक शिबाजी प्रतिम बसु ने कहा कि संविधान में राष्ट्रीय भाषा का कोई उल्लेख नहीं है, लेकिन हिंदी आधिकारिक भाषाओं में से एक है.

बसु ने दिप्रिंट को बताया, “हिंदी ज्यादातर उत्तर भारत में बोली जाती है और यह अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है. इसलिए, हिंदी को थोपा जा रहा है जो अन्य भाषाओं को खतरे में डाल रहा है. यहां, यह कोलकाता और हावड़ा में हो रहा है, जहां बड़ी संख्या में प्रवासी आबादी है और जो प्रकृति में महानगरीय हैं, लेकिन बंगाली भी बंगाली को नज़रअंदाज़ करते हैं. बंगाली प्रकाशनों में भी भारी गिरावट आई है क्योंकि मांग में बहुत गिरावट आई है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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