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Thursday, 21 November, 2024
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पर्दे के पीछे का नाटक: चन्नी के नाम पर सहमत होने से पहले कैसे सिद्धू ने जाखड़ और रंधावा का पत्ता काटा

कांग्रेस ने रविवार को चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब के नया मुख्यमंत्री के रूप में नामित किया, लेकिन यह कोई सर्वसम्मत निर्णय नहीं था और पार्टी के भीतर इस वजह से कई चेहरे दुखी नज़र आ रहें हैं.

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चंडीगढ़: पंजाब की राजनीति में यह काफ़ी उथल-पुथल भरा दिन था क्योंकि पंजाब के नए मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला करने के लिए कांग्रेस आलाकमान की बैठक तो हुई, लेकिन यह किसी आम सहमति तक नहीं पहुंच पाई.

अंत में, चरणजीत सिंह चन्नी को नया मुख्यमंत्री नियुक्त करने का पार्टी का फैसला हैरान करने वाला था और इसने कई चेहरों पर दुख की निशानियां छोड़ दी है.

इस व्यापक असंतोष के बीज शनिवार की शाम चंडीगढ़ में हुई कांग्रेस विधायक दल की बैठक के दौरान ही बो दिए गए थे जहां कैप्टन अमरिंदर सिंह के उत्तराधिकारी के बारे में कोई घोषणा करने के बजाय, यह एलान किया गया था कि अगले मुख्यमंत्री के नाम पर कोई भी निर्णय पार्टी सुप्रीमो सोनिया गांधी द्वारा ही लिया जाएगा.


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जोरदार पैरवी का दौर

दिप्रिंट के साथ बात करते हुए कांग्रेस के कई नेताओं ने कहा कि प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ मुख्यमंत्री पद की दौड़ सबसे आगे थे, लेकिन कुछ अन्य नेताओं ने इसका विरोध किया.

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘हालांकि सुखजिंदर रंधावा, प्रताप सिंह बाजवा और चरणजीत चन्नी भी दौड़ में शामिल थे, फिर भी पूर्व पीपीसीसी प्रमुख सुनील जाखड़ का नाम सबसे ऊपर था. एक हिंदू मुख्यमंत्री के रूप में जाखड़ के नाम का समर्थन नवजोत सिंह सिद्धू खेमे के द्वारा भी किया जा रहा था क्योंकि यह खेमा हिंदू मतदाताओं को डराने के लिए अमरिंदर की लगातार कोशिश का मुकाबला करने का प्रयास कर रहा था.’

एक अन्य नेता ने दावा किया कि अमरिंदर को हटाने की तैयारी पिछले महीने से ही चल रही थी, लेकिन यह महसूस किया गया कि अगर अगले मुख्यमंत्री के रूप में जाखड़ के नाम की घोषणा की जाती है, तो उन्हें अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ही उप-चुनाव लड़ना होगा क्योंकि वह वर्तमान में विधायक नहीं हैं.

इसलिए, इस नेता के अनुसार, सारी योजना को एक महीने के लिए टाल दिया गया.

अन्य कांग्रेसी नेता ने बताया कि, ‘कैबिनेट मंत्री ब्रह्म मोहिंद्रा, जो अमरिंदर के खेमे से ताल्लुक रखते हैं, का कहना था कि वह भी एक दावेदार थे क्योंकि वह सबसे वरिष्ठ नेताओं में से थे. विधानसभा अध्यक्ष के.पी. राणा  ने भी अपनी दावेदारी पेश की थी. फिर देर रात (शनिवार की) यह तय किया गया कि जाखड़ की जगह कांग्रेस की वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी का नाम तय किया जाए और ऐसा लग रहा था कि उनके नाम पर आम सहमति बन गई है.’

परंतु, सोनी ने राहुल गांधी से मुलाकात की और पार्टी के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. उन्होंने कहा कि उनका अपना मानना है कि पंजाब के मुख्यमंत्री का चेहरा किसी सिख नेता का होना चाहिए.

सोनी के इनकार किए जाने के बाद जोरदार पैरवी का एक नया दौर शुरू हो गया और रविवार की सुबह तक सिद्धू और रंधावा, दोनों जाट सिख, के बीच मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए पूरी तरह से संघर्ष शुरू हो गया.

जब सिद्धू को पता चला कि पार्टी के विधायक जाखड़ के पंचकुला स्थित घर पर गुलदस्तों के साथ पहुंचने लगे हैं, तो उन्होंने इस पर आपत्ति जताई

एक विधायक, जो इस दिन के घटनाक्रम पर बारीकी से नजर रख रहा था,  ने कहा, ‘सिद्धू ने जाखड़ के नाम पर आपत्ति जताई और कहा कि उन्हें (सिद्धू को) नया मुख्यमंत्री बनाया जाए. रंधावा, जो अमरिंदर के खिलाफ लगभग 40 विधायकों को इकट्ठा करने में कामयाब होने के बाद से ही मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाल रहे थे, ने भी अपना जवाबी दावा पेश किया. सिद्धू ने रंधावा के नाम पर भी आपत्ति जताई. हालांकि, वह किसी जाट सिख चेहरे के बजाय एक दलित सिख चेहरे के लिए सहमत हो गये. सिद्धू को लगा कि अगर किसी और मजबूत जाट सिख को मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो वह चुनाव के बाद भी मुख्यमंत्री पद पर दावा करेगा और उनके लिए कुछ नहीं बचेगा.

कई घंटे की मशक्कत के बाद आखिरकार यह तय हुआ कि चूंकि रंधावा को सिद्धू से ज्यादा विधायकों का समर्थन हासिल है, इसलिए उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया जाए. इस विधायक ने आगे बताया, ‘सिद्धू के बारे में कहा जाता है कि वह इस बात पर नाराज़ होकर बैठक से बाहर चले गये.’


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चौंकाने वाला था चन्नी का नाम

रंधावा का नाम फाइनल होने के साथ ही ऐसा लग रहा था कि दिन भर चले इस नाटक का पटाक्षेप हो गया है. पहले जाखड़ घर पर गुलदस्ते लेकर पहुंचे गए विधायक और मंत्री अब रंधावा के आवास पर कतार लगाने लगे. लेकिन जब इस बात की आधिकारिक घोषणा का इंतजरा किया जा रहा था तभी कैबिनेट मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और फतेहगढ़ साहिब से सांसद डॉ अमर सिंह – (दोनों दलित नेता) के रूप में दो और नाम सामने आए.

सूत्रों ने कहा कि आखिरी मिनट में हुए इस बदलाव के पीछे राज्य के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल की भी कुछ-न-कुछ भूमिका थी.  कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘मनप्रीत अकाली राजनीति को अच्छी तरह से समझते हैं और संभव है कि उन्हें पता लगा हो कि अकाली बसपा के समर्थन से खोई हुई जमीन हासिल कर रहे हैं और एक अंतरिम व्यवस्था के रूप में किसी दलित मुख्यमंत्री को लाना एक अच्छा दांव होगा. ऐसी संभावना है कि उन्होंने पार्टी आलाकमान को मुख्यमंत्री पद के लिए किसी दलित के चेहरे पर विचार करने के लिए प्रेरित किया होगा.’

जब हरीश रावत ने नये मुख्यमंत्री के रूप में चन्नी के नाम  की घोषणा की तो स्वयं चन्नी, जिन्होने अपनी सारी उम्मीद छोड़ दी थी और रंधावा के घर पर उन्हें बधाई देने के लिए गुलदस्ता लेकर इंतजार कर रहे थे, भी हैरान रह गए.

विधायक ने कहा, ‘इसके बाद चन्नी सबसे पहले रावत के साथ मुख्यमंत्री के रूप में अपना दावा पेश करने के लिए राज्यपाल के घर गए और इसके उपरांत वह जिस पहले व्यक्ति से मिले, वह थे मनप्रीत बादल, जो उनके पड़ोसी भी हैं. बाकी तो, जैसा कि सब कहते हैं, इतिहास ही है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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