लखनऊ: भोजपुरी गायक पवन सिंह के पश्चिम बंगाल में चुनाव से बाहर होने के बाद सोशल मीडिया पर विवादास्पद वीडियो सामने आने के बाद अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद उपेन्द्र सिंह रावत ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव से भी किनारा कर लिया है.
बाराबंकी से मौजूदा सांसद रावत आगामी आम चुनाव के लिए शुरुआत में भाजपा उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में शामिल थे.
लेकिन 3 मार्च को कथित तौर पर उनके साथ अश्लील वीडियो ऑनलाइन सामने आने के बाद वे जल्द ही बैकफुट पर आ गए. हालांकि, दिप्रिंट स्वतंत्र रूप से वीडियो की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं कर सका है.
कथित वीडियो वायरल होने के कुछ ही घंटों के भीतर रावत ने रविवार रात को बाराबंकी के कोतवाली थाने में एफआईआर दर्ज कराई.
एफआईआर में जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास है, रावत के निजी सचिव दिनेश चंद्र रावत ने कहा, “सांसद के खिलाफ एक आपत्तिजनक वीडियो प्रचारित किया जा रहा है जो एक संपादित वीडियो है जिसके माध्यम से उनकी छवि खराब की जा सकती है.”
अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 419 (धोखाधड़ी), 501 (मानहानिकारक मानी जाने वाली सामग्री को छापना या उकेरना) और आईटी अधिनियम की धारा 66 डी, 67 और 43 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी.
बाद में रावत ने सोमवार को एक वीडियो बयान जारी कर दावा किया कि “वायरल वीडियो डीपफेक द्वारा तैयार किए गए थे” और “उन्हें संपादित किया गया था”. उन्होंने इस कृत्य के पीछे एक राजनीतिक साजिश का आरोप लगाया.
मेरा एक एडिटेड वीडियो वायरल किया जा रहा है जो DeepFake AI तकनीक द्वारा जेनरेटेड है, जिसकी FIR मैंने दर्ज करा दी है,इसके संदर्भ में मैंने मा॰ राष्ट्रीय अध्यक्ष जी से निवेदन किया है कि इसकी जाँच करवायी जाये। जबतक मैं निर्दोष साबित नहीं होता सार्वजनिक जीवन में कोई चुनाव नहीं लड़ूँगा
— Upendra Singh Rawat (@upendrasinghMP) March 4, 2024
उन्होंने एक्स पर पोस्ट कर कहा कि वे निर्दोष साबित होने तक सार्वजनिक जीवन में कोई भी चुनाव नहीं लड़ेंगे.
दिप्रिंट उत्तर प्रदेश से पहली बार के सांसद के उत्थान और पिछले विवादों पर नज़र डाल रहा है.
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एससी नेता जिन्होंने विधायकी से शुरुआत की
जेएन पीजी कॉलेज बाराबंकी (2001) से एमए की डिग्री धारक और डीएवी विश्वविद्यालय, लखनऊ (1999) से एलएलबी, रावत अनुसूचित जाति से आते हैं, जो 2017 में बाराबंकी के जैदपुर से विधायक बने थे.
इस प्रक्रिया में उन्होंने वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी.एल. पुनिया के बेटे तनुज पुनिया को हराया था जो, क्रमश: दूसरे और बसपा की मीरा गौतम तीसरे स्थान पर रही थीं.
दो साल बाद रावत ने 2019 में अनुसूचित जाति के सदस्यों के लिए आरक्षित सीट, बाराबंकी में भाजपा के उम्मीदवार के रूप में प्रियंका सिंह रावत की जगह ली. जबकि प्रियंका रावत ने 2019 में जैदपुर विधानसभा क्षेत्र से उनके लिए विधायक का टिकट सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन भाजपा आलाकमान ने इनकार कर दिया. उन्हें बाराबंकी लोकसभा सीट से टिकट दिया गया और उनकी जगह उपेन्द्र रावत को मैदान में उतारा गया. मार्च 2019 में टिकट से इनकार किए जाने के तुरंत बाद प्रियंका रावत रोने लगीं थीं और उनके समर्थकों ने लखनऊ-अयोध्या रोड पर विरोध प्रदर्शन किया था.
हालांकि, रावत ने समाजवादी पार्टी के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी राम सागर रावत को 1,10,000 से अधिक मतों के अंतर से हरा दिया.
अपने 2019 के चुनावी हलफनामे में उन्होंने घोषणा की कि उनके पास बाराबंकी के बड़ेल गांव में दो भूखंड और क्रमशः 1,12 करोड़ रुपये और 1.48 लाख रुपये की अन्य अचल और चल संपत्ति है.
2017 के विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान उनके खिलाफ बाराबंकी के असंद्रा थाने में आईपीसी की धारा 171 (एच) (चुनाव के संबंध में अवैध भुगतान) और 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा) और लंच पैकेट बांटकर कथित तौर पर मतदाताओं को लुभाने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 127 (ए) (पैम्फलेट, पोस्टर आदि की छपाई पर प्रतिबंध का उल्लंघन) में एफआईआर दर्ज की गई थी.
अक्टूबर 2022 में रावत उस समय विवादों में घिर गए थे, जब उनके और एक सहायक इंजीनियर के बीच बातचीत का एक कथित ऑडियो वायरल हो गया था, जिसमें उनका दावा था कि वे लोगों को डांट और पीट सकते हैं, जबकि इंजीनियर को कथित तौर पर गालियां दे सकते हैं.
बाद में, रावत ने कहा था कि वे विभाग को पांच-छह बार लिखने के बावजूद बाराबंकी के त्रिवेदीगंज ब्लॉक के कान्हूपुर गांव में क्षतिग्रस्त पुल की मरम्मत के लिए एक अनुमान तैयार करने में विफल रहने के कारण सहायक इंजीनियर से नाराज़ थे.
ऑडियो में रावत को कथित तौर पर यह कहते हुए भी सुना गया कि “वह अधिकारी के कार्यालय को बंद कर देंगे और उसके बाहर बैठेंगे” क्योंकि उनके कृत्य के कारण, “एक विधायक को टिकट से वंचित कर दिया गया था”.
उन्हें यह कहते हुए भी सुना जा सकता है कि उन्होंने पीएम ग्रामीण सड़क योजना के तहत 20.5 किमी लंबी सड़क स्वीकृत कराई थी, लेकिन अधिकारी “धोखाधड़ी” कर रहा था.
संबंधित सहायक इंजीनियर संजय गुप्ता ने अपने विभाग में छुट्टी के लिए एक आवेदन प्रस्तुत किया था और सुरक्षा में मदद के लिए पुलिस को एक पत्र लिखा था.
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