लखनऊ : उत्तर प्रदेश के एक बीजेपी विधायक ने राज्य सरकार द्वारा संचालित एक विश्वविद्यालय में, नौकरियों पर नियुक्तियों के मामले में अनियमितताओं का आरोप लगाया है.
बांदा ज़िले के टिंडवाड़ी से बीजेपी विधायक, ब्रजेश कुमार प्रजापति के अनुसार बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में, नौकरियों के लिए केवल ‘एक जाति’ को तरजीह दी गई है.
6 जून को लिखे गए एक पत्र में, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और यूपी राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को संबोधित किया गया है, विधायक ने आरोप लगाया है कि 40 रिक्त पदों के लिए आरक्षण की अनदेखी की गई है, क्योंकि कम से कम 11 नियुक्तियां, ऐसे लोगों की हुईं हैं, जिनके नाम के साथ ‘सिंह’ लगा है.
इसे एक ऐसी छिपी हुई कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है, जिससे आभास होता है कि ठाकुरों की हिमायत की जा रही है, वो संप्रदाय जो परंपरागत रूप से, इस उपनाम का इस्तेमाल करता है और जिससे मुख्यमंत्री का ताल्लुक़ है.
दिप्रिंट अभी तक चुने गए 24 उम्मीदवारों की सूची देखने में कामयाब हो गया है और उसने विधायक के दावे को सही पाया, चूंकि लिस्ट में वास्तव में 11 ‘सिंह’ थे. लेकिन ये स्पष्ट नहीं है कि क्या वो सभी ठाकुर हैं, क्योंकि यूपी में कुछ दूसरी जातियां भी ये उपनाम रखती हैं.
लेकिन, विधायक के पत्र ने एक हलचल मचा दी है, क्योंकि सूबे में ‘ठाकुर राज’ का आरोप लगाने वाला, ये सबसे ताज़ा मामला है. बीजेपी के अंदर और विपक्ष के बहुत से नेता मुख्यमंत्री पर अपने समुदाय के लोगों की तरफदारी का आरोप लगाते रहे हैं.
ये पत्र ऐसे समय सामने आया है, जब आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव मौर्य के बीच मनमुटाव की अटकलें बढ़ रही हैं.
अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के युवा नेता प्रजापति को, मौर्य का क़रीबी माना जाता है.
बीजेपी विधायक ने अब इस मामले की जांच कराए जाने की मांग की है. उन्होंने ये भी मांग है कि वो विज्ञापन, जिनके तहत नियुक्तियां की गईं, रद्द करके फिर से जारी किए जाने चाहिए.
लेकिन यूनिवर्सिटी अधिकारियों ने इन आरोपों से इनकार किया है.
रजिस्ट्रार डॉ. एसके सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘सभी भर्तियां नियमों के अनुसार की गईं. रिक्त पद शीघ्र ही भर लिए जाएंगे’. उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ लोग अनियमितताओं के मुद्दे उठा रहे हैं, लेकिन ये सही नहीं है; सब कुछ एक निष्पक्ष चयन प्रक्रिया के हिसाब से हुआ है’.
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‘आरक्षण की अनदेखी’
अपने पत्र में प्रजापति ने दावा किया है कि यूनिवर्सिटी ने प्रोफेसर्स, असोसिएट प्रोफेसर्स और असिस्टेंट प्रोफेसर के 40 पद भरने के लिए, ‘दो अलग-अलग विज्ञापन’ जारी किए, जो उनके अनुसार आरक्षण को हल्का करने का प्रयास था.
उनके पत्र में कहा गया, ‘नियमों के अनुसार 50 प्रतिशत आरक्षण होना चाहिए, लेकिन उनका पालन नहीं किया गया. इसे संभव बनाने के लिए, सभी 40 रिक्त पद भरने की ख़ातिर, उन्होंने ‘दो अलग अलग विज्ञापन’ जारी किए- 29 एक बार और 11 अगली बार’. उन्होंने आगे कहा, ‘अगर सरकार यूनिवर्सिटी को एक ही बार में, 40 पद भरने की अनुमति दे देती, तो उस पर आरक्षण प्रणाली लागू होती, लेकिन उन्होंने इस सिस्टम का पालन नहीं किया और पदों को भर लिया’.
अभी तक 24 पद भरे लिए गए हैं, 17 सामान्य श्रेणी में, और 7 आरक्षित श्रेणी में. दिप्रिंट के हाथ लगी उम्मीदवारों की सूची के अनुसार 17 में कम से कम 11 उम्मीदवारों के उपनाम ‘सिंह’ थे.
ये पद इस साल 1 जून को भरे गए.
अपने पत्र में प्रजापति ने मांग की है कि नियुक्तियों को रद्द किया जाए और विज्ञापन फिर से जारी किए जाएं.
‘चयन प्रक्रिया की जांच होगी’
सरकार अब चयन प्रक्रिया की समीक्षा करने पर राज़ी हो गई है.
अतिरिक्त मुख्य सचिव (कृषि) देवेश चतुर्वेदी ने कहा, ‘हमें कोई आधिकारिक शिकायत प्राप्त नहीं हुई है और न ही हमें जांच के कोई लिखित आदेश मिले हैं’. उन्होंने कहा, ‘फिलहाल, स्थानीय मीडिया की ख़बरों और एक विधायक के वायरल हो रहे पत्र के आधार पर, हम जांच करेंगे कि क्या भर्ती में, आरक्षण नियमों का पालन नहीं हुआ है या कोई अन्य अनियमितताएं हैं. यदि ज़रूरत पड़ी तो छानबीन के लिए एक जांच पैनल गठित किया जाएगा’.
लेकिन, यूनिवर्सिटी के एक अधिकारी ने जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, कहा कि ज़्यादा बड़ा मुद्दा आरणक्ष की अनदेखी का है.
अधिकारी ने कहा, ‘ज़्यादा संभावना यही है कि 11 उम्मीदवार, जिनके उपनाम सिंह हैं, ठाकुर समुदाय से हैं. लेकिन इतने अधिक ठाकुरों का चयन महज़ इत्तेफाक़ भी हो सकता है. ऐसी हर चीज़ अनियमितता नहीं होती’. उन्होंने आगे कहा, ‘ज़्यादा बड़ा मुद्दा 40 सीटों पर आरक्षण नीति को दो हिस्सों में बांटने का है’.
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