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Friday, 26 April, 2024
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बाल ठाकरे ने शिवसेना के लिए तय किया था 80% सोशल वर्क, 20% राजनीति, पर बीते 6 साल कुछ और दिखाते हैं

शिवसेना की ओर से पिछले 6 साल की चुनाव आयोग को दी गई ऑडिट रिपोर्ट से सामने आया है कि पार्टी खर्च का ज्यादातर फोकस चुनावों पर रहा है.   

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मुम्बई: 19 जून 1966 को जब बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की, तो उन्होंने पार्टी को एक नारा दिया था ‘80 टके समाजकरन, 20 टके राजकरन’ (80 प्रतिशत सामाजिक कार्य, 20 प्रतिशत राजनीति). शनिवार को जब पार्टी 55 वर्ष पूरे कर रही है, तो वो अभी भी कह रही है कि वो इसी सिद्धांत पर चल रही है.

लेकिन, पिछले छह वर्षों में पार्टी के अधिकारिक ख़र्च, कुछ अलग ही कहानी कह रहे हैं.

दिप्रिंट ने शिवसेना की पिछले छह वर्षों की ऑडिट रिपोर्ट्स का विश्लेषण किया, जो चुनाव आयोग में दाख़िल की गईं थीं, और पाया कि पार्टी का ख़र्च, मुख्य रूप से चुनावों पर ही केंद्रित रहा है. इनमें से पांच सालों में, शिवसेना का चुनावों पर किया गया ख़र्च, सामाजिक कार्यों पर किए गए ख़र्च से अधिक था, और चार सालों में ये पार्टी के कुल ख़र्च का, 60-80 प्रतिशत तक था.

छह में से सिर्फ एक वर्ष में शिवसेना का समाज कल्याण पर किया गया ख़र्च, उसके चुनावी ख़र्चों से अधिक था और वो ग़ैर-चुनावी साल था. तब भी, शिवसेना ने अपने कुल केंद्रीय फंड का, केवल 32 प्रतिशत के क़रीब सामाजिक कार्यों पर ख़र्च किया था, जो कि ठाकरे के 80 प्रतिशत सामाजिक कार्य से बहुत दूर था.

उद्धव ठाकरे, जो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी हैं, के नेतृत्व में शिवसेना का शुमार देश की कुछ सबसे अमीर स्थानीय राजनीतिक पार्टियों में होता है.

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पार्टी नेताओं का कहना है कि जिस तरह सेना अपना पैसा ख़र्च करती है, उसे उसके सामाजिक कार्यों का मानदंड नहीं माना जाना चाहिए और पार्टी की शाखाएं, उसकी प्रशासनिक इकाइयां, ज़मीनी स्तर पर लोगों के लिए बहुत काम करती है.

एक वरिष्ठ शिवसेना सांसद विनायक राउत ने दिप्रिंट को बताया, ‘पार्टी का केंद्रीय फंड सिर्फ एक पहलू है. हमारी शाखाओं की ज़िम्मेदारी ही सामाजिक कार्य पर केंद्रित है. शिवसेना कार्यकर्ता इसके लिए, अक्सर अपनी जेब से ख़र्च करते हैं. कोविड महामारी के दौरान भी, हमारी शाखाओं ने बहुत काम किया. उदाहरण के तौर पर, पहली लहर के दौरान मुम्बई में ही, शिव सैनिकों ने ख़ून की 56,500 बोतलें जमा कीं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘तो, राजनीति भले ही बदल रही हो, लेकिन शिवसेना के मामले में 80 प्रतिशत समाजकरन और 20 प्रतिशत राजकरन अभी भी सही बैठता है’.


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शिवसेना का अधिकतर पैसा चुनावों पर ख़र्च

शिवसेना का अधिकतर पैसा चुनाव लड़ने में इस्तेमाल किया जाता है. उदाहरण के तौर पर 2019-20 में, जिस साल दो बड़े चुनाव हुए-2019 लोकसभा चुनाव और उसी साल बाद में राज्य विधान सभा चुनाव- सेना ने 77.58 करोड़ रुपए चुनावी ख़र्चों पर लगाए, जो साल के उसके कुल ख़र्च 98.37 करोड़ का, क़रीब 79 प्रतिशत था.

Graphic: Ramandeep Kaur/ThePrint
मनदीप कौर का ग्राफिक | दिप्रिंट

निरपेक्ष संख्या के तौर पर देखें, तो ये सबसे बड़ी रक़म है, जो पार्टी ने पिछले छह वर्षों में चुनाव लड़ने पर ख़र्च की है.

2018-19 में, लोकसभा चुनावों से पहले, पार्टी ने 9.39 करोड़ रुपए या अपने कुल ख़र्च 14.56 करोड़ का 64 प्रतिशत चुनावों पर ख़र्च किया था.

इसी तरह, 2016-17 में, जिस साल महाराष्ट्र के 10 बड़े शहरों में, नगर निकाय चुनाव हुए थे, जिनमें शिवसेना का गढ़ मुम्बई शहर भी शामिल है, पार्टी ने 14.28 करोड़ या अपने कुल ख़र्च 18.89 करोड़ का 75 प्रतिशत चुनावों पर ख़र्च किए थे. 2014-15 में, जिस साल लोकसभा और राज्य विधान सभा चनाव हुए, शिवसेना ने 24.92 करोड़ रुपए या अपने कुल ख़र्च 28.10 करोड़ का क़रीब 88 प्रतिशत चुनावों पर ख़र्च किया.

सिर्फ दो साल- जब चुनावों पर ख़र्च काफी कम था, ग़ैर-चुनावी साल थे- 2017-18, जब शिवसेना मुम्बई और ठाणे जैसे महानगरों में, फिर से सत्ता में आई थी और संसदीय तथा असेम्बली चुनाव दूर थे; और 2015-16, जब शिवसेना ने महाराष्ट्र में, देवेंद्र फडणवीस की बीजेपी सरकार के साथ, ताज़ा-ताज़ा हाथ मिलाया था.

2015-16 में, पार्टी ने 6.19 करोड़ के कुल ख़र्च में से, 1.25 करोड़ रुपए चुनावों पर ख़र्च किए, जबकि 2017-18 में चुनावी ख़र्चे 2.27 करोड़ थे, जो कुल ख़र्च 7.42 करोड़ का क़रीब 30 प्रतिशत थे.

6 में से 3 सालों में राहत पर ख़र्च 1% से कम

2015-16 और 2017-18 दोनों वर्षों में, सहायता और राहत कार्यों पर ख़र्च दूसरे वर्षों की अपेक्षा अधिक था. 2015 की अपनी 16वीं ऑडिट रिपोर्ट में, शिवसेना ने 2 करोड़ के ख़र्च को ‘मदत’ के तौर पर दिखाया है. ये उस साल के कुल ख़र्च का, क़रीब 32 प्रतिशत बैठता है.

2017-18 की रिपोर्ट में, पार्टी ने कहा कि उसने 2 करोड़ रुपए मुख्यमंत्री राहत कोष में दान किए, 10,000 रुपए की एक और प्रविष्टि ‘मदत’ के तौर पर है. कुल मिलाकर, ये उस साल के लिए शिवसेना के कुल ख़र्च का, क़रीब 27 प्रतिशत बैठता है.

अन्य वर्षों के लिए, सामाजिक कार्यों पर शिवसेना का ख़र्च, तीन प्रतिशत से कम था- 2019-20 में 2.4 प्रतिशत, जब पार्टी ने किसानों और बाढ़ से प्रभावित लोगों की सहायता पर 2041 करोड़ रुपए ख़र्च किए और बाक़ी वर्षों 2018-19, 2016-17 तथा 2014-15 में एक प्रतिशत से कम.

शिवसेना की बैलेंस शीट में एक ‘मदत निधि’ के नाम से, अगल से एक फंड शामिल है, जो पिछले छह साल में 1,30,43,995 रुपए है, जिसमें कोई कमी या ज़्यादती नहीं हुई है.

छह वर्षों की ऑडिट रिपोर्ट में ये भी नज़र आता है कि पार्टी ने त्यौहार मनाने और सभाएं करने पर भी अच्छी ख़ासी रक़म ख़र्च की है. छह में से चार सालों में, शिवसेना ने त्यौहारों और सभाओं पर कुल मिलाकर जितना ख़र्च किया, वो उसके सामाजिक कार्यों पर किए गए ख़र्च से ज़्यादा था.

पिछले छह सालों में, पार्टी ने त्यौहार मनाने पर 3.9 करोड़ रुपए और सभाएं करने पर 3.62 करोड़ रुपए ख़र्च किए.

महाराष्ट्र बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता केशव उपाध्ये ने कहा, ‘शिवसेना किसी समय 80 प्रतिशत सामाजिक कार्य के लिए जानी जाती थी. अब वो कहां चला गया? अब तो ये कागज़ पर भी दिखाई नहीं पड़ता’.

‘पार्टी की जेबें अब गहरी हैं, लेकिन सामाजिक कार्य विकसित नहीं हुआ’

राउत की तरह, पार्टी एमएलसी मनीषा कायंडे ने भी, ये कहते हुए शिवसेना का बचाव किया कि केंद्रीय कोष से इसका ख़र्च और शाखाओं का काम दो अलग चीज़ें हैं, और जहां केंद्रीय कोष मुख्य रूप से चुनावी कार्यों और अन्य चीज़ों पर ख़र्च होता है, वहीं शाखाएं पार्टी के समाज कल्याण के एजेण्डा को आगे बढ़ाती हैं.

कायंडे ने कहा, ‘सरकार, नगर निकाय, पुलिस, राशन आदि से से जुड़े कामों के लिए, लोग हमारी शाखाओं के पास आते हैं, और हमारे शाखा कार्यकर्ता हमेशा उनकी सहायता करते हैं. अपने स्थापना दिवस पर भी हमने रक्तदान शिविर, अस्पतालों में भर्ती लोगों के लिए भोजन, सैनिटाइज़र्स का बड़े पैमाने पर वितरण और टीकाकरण कैंपों के साथ, सहायता आदि का आयोजन किया है’.

लेकिन, राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई का कहना था कि हालांकि पार्टी के पास अब ज़्यादा पैसा है, लेकिन सामाजिक कार्य के प्रति उसका नज़रिया विकसित नहीं हुआ है.

देसाई ने कहा कि जब बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की थी, तो पहले दो दशकों में पार्टी ने मुश्किल से ही कोई चुनाव लड़े थे, इसलिए उसकी तमाम ग़ैर-चुनावी गतिविधियों को सामाजिक कार्य क़रार दिया जाता था.

उन्होंने कहा, ‘इन कार्यों में मुफ्त एंबुलेंस सेवा मुहैया कराना, मराठी लोगों को नौकरियों में सहायता, चाहे वो डराने-धमकाने से हो, रक्तदान शिविर आयोजित करना, मज़दूर संघों में शामिल होना, अलग-अलग उद्देश्यों के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित करना आदि शामिल थे’.

देसाई ने कहा, ‘आज भी, शिवसेना के सामाजिक कार्य, काफी हद तक उसी तरह के हैं. अपने फंड्स के साथ शिवसेना निवेश-आधारित समाज कल्याण योजनाएं शुरू कर सकती है. आदित्य ठाकरे अपने पसंदीदा एजेंडा के तौर पर, पर्यावरण की बात करते हैं, इसलिए पार्टी अपने फंड्स से बायोगैस संयंत्र या छोटे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स स्थापित कर सकती है. या, कोविड के दौरान पार्टी राहत के लिए एक हेल्पलाइन सिस्टम स्थापित कर सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया’.

उन्होंने आगे कहा, ‘नए नेतृत्व ने सामाजिक कार्यों के प्रति पार्टी के नज़रिए में, कोई बदलाव नहीं किया है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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