चंडीगढ़: शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के उम्मीदवार हरजिंदर सिंह धामी लगातार पांचवीं बार शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के अध्यक्ष चुने गए हैं. यह जीत अगले हफ्ते होने वाले तरणतारण उपचुनाव से पहले सुखबीर सिंह बादल के लिए एक बड़ी राजनीतिक राहत मानी जा रही है.
सोमवार को हुए चुनाव में कुल 136 वोट पड़े, जिनमें से धामी को 117 वोट मिले. उन्होंने अलग हुए अकाली गुट के उम्मीदवार मीतू सिंह काहनेके को हराया, जिन्हें 18 वोट मिले. एक वोट रद्द घोषित हुआ.
पिछले साल धामी ने अकाली दल की बागी नेता बीबी जगीर कौर को हराया था. तब उन्हें 142 में से 107 वोट मिले थे, जबकि कौर को 33 वोट मिले थे. इस बार बागी उम्मीदवार के वोट और घटे, जिससे यह संकेत मिलता है कि विद्रोही गुट का समर्थन आधार कमज़ोर हुआ है.
काहनेके, जो बरनाला से एसजीपीसी सदस्य हैं, शिरोमणि अकाली दल (पुनर सुरजीत) के उम्मीदवार थे — यह गुट पूर्व अकाल तख्त जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के नेतृत्व में हाल ही में बना है. काहनेके ने दो साल पहले एसजीपीसी फंड में गड़बड़ी के आरोप लगाकर बगावत की थी.
यह चुनाव अकालियों के लिए बेहद अहम था क्योंकि 11 नवंबर को होने वाले तरणतारण उपचुनाव में कई पंथक गुटों के बीच कड़ी टक्कर है. आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक डॉ. कश्मीर सिंह सोहल के 27 जून को निधन के बाद यह सीट खाली हुई थी.
एसजीपीसी, जिसे सिखों की लघु संसद भी कहा जाता है, पंजाब, हिमाचल और चंडीगढ़ के सभी गुरुद्वारों का प्रबंधन करती है. यह पंजाब की राजनीति में एक अहम शक्ति केंद्र है और हर साल अपने सदस्यों में से अध्यक्ष का चुनाव करती है. चूंकि ज्यादातर सदस्य अकाली दल से जुड़े होते हैं, इसलिए आमतौर पर यह चुनाव उनके लिए औपचारिकता भर होते हैं.
हालांकि, पिछले साल कुछ वरिष्ठ अकाली नेता सुखबीर बादल के नेतृत्व से असंतुष्ट होकर अलग हो गए और अगस्त में शिरोमणि अकाली दल (पुनर सुरजीत) नाम का नया गुट बना लिया.
इस गुट में बीबी जागीर कौर, गुरप्रताप सिंह वडाला, आदेश प्रताप सिंह कैरों और मौजूदा विधायक मनप्रीत सिंह आयली शामिल हैं.
धामी की जीत पर खुशी जताते हुए सुखबीर बादल ने मंगलवार को कहा कि यह “सच्ची पंथक ताकतों की जीत है उन लोगों पर जो केंद्र और खुफिया एजेंसियों द्वारा पंजाब में शांति भंग करने के लिए खड़े किए गए थे.”
उन्होंने कहा, “एसजीपीसी के सदस्यों ने इन ताकतों के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लड़ी है.”
बादल का इशारा ज्ञानि हरप्रीत सिंह की ओर था, जिन पर अक्सर भाजपा से नज़दीकी के आरोप लगते रहे हैं.
धामी ने जीत के बाद अकाल पुरख (ईश्वर), बादल, पार्टी नेतृत्व और सभी एसजीपीसी सदस्यों का आभार व्यक्त किया जिन्होंने उन्हें दोबारा अध्यक्ष पद के लिए चुना.
तरनतारन उपचुनाव
अकाली दल ने आगामी उपचुनाव के लिए ‘प्रिंसिपल’ सुखविंदर कौर रंधावा को उम्मीदवार बनाया है. वहीं, बागी गुट ने वारिस पंजाब दे द्वारा घोषित उम्मीदवार मंदीप सिंह को समर्थन देने का ऐलान किया है.
मंदीप सिंह, जेल में बंद संदीप सिंह उर्फ सनी के बड़े भाई हैं. सनी 2022 में शिवसेना (तकसाली) नेता सुधीर सूरी की अमृतसर में हत्या के मामले में आरोपी हैं. वह पटियाला जेल में रिटायर्ड इंस्पेक्टर सुबा सिंह पर हुए घातक हमले के मामले में भी आरोपी हैं.
सनी के भाई मंदीप को शिअद, (वारिस पंजाब दे), शिअद (पुनर सुरजीत) और अन्य कट्टरपंथी सिख संगठनों — जैसे सिख यूथ फेडरेशन (भिंडरांवाले), सिमरनजीत सिंह मान की शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) और ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISSF) — का समर्थन मिला है.
हालांकि, पंथक वोटों के बिखरने की संभावना है, लेकिन धामी की जीत से यह संदेश गया है कि सिख नेतृत्व अब भी सुखबीर बादल के साथ खड़ा है.
एसजीपीस अध्यक्ष चुनाव के नतीजों ने न सिर्फ एसजीपीसी पर बल्कि पार्टी पर भी बादल की पकड़ मज़बूत कर दी है. 2017 में सत्ता से बाहर होने के बाद से वह अकाली बागियों के निशाने पर रहे हैं, जो पार्टी की तमाम गलतियों का ठीकरा उन्हीं पर फोड़ते रहे हैं.
पिछले साल लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद बागी नेताओं ने बादल पर खुलकर हमला बोला और अकाल तख्त में उनके खिलाफ शिकायत भी दर्ज करवाई.
अगस्त 2024 में अकाल तख्त ने बादल को “धार्मिक अनुशासनहीनता” का दोषी पाया और उन्हें “तन्खैया” (धार्मिक अपराधी) घोषित कर दिया.
इसके बाद दिसंबर में अकाल तख्त जत्थेदार और डमडमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने बादल को सिख समुदाय के खिलाफ “पाप” करने का दोषी ठहराते हुए पार्टी प्रमुख पद से हटाने का आदेश दिया. हालांकि, फरवरी में एसजीपीसी ने ज्ञानी हरप्रीत सिंह को ही उनके पद से हटा दिया.
बादल ने अकाल तख्त के फैसले के बाद जनवरी में इस्तीफा दे दिया, लेकिन अप्रैल में पार्टी डेलीगेट्स ने उन्हें दोबारा प्रमुख चुन लिया — बावजूद इसके कि बागी गुट ने इसे अकाल तख्त के आदेश का उल्लंघन बताया.
‘सिखों की मिनी संसद’
एसजीपीसी एक वैधानिक संस्था है, जो सिख गुरुद्वारा अधिनियम, 1925 के तहत बनाई गई थी. यह अधिनियम 1920 के दशक की शुरुआत में अकालियों द्वारा चलाए गए गुरुद्वारा सुधार आंदोलन का नतीजा था, जिसका मकसद भ्रष्ट महंतों (गुरुद्वारों के वंशानुगत प्रबंधकों) से गुरुद्वारों को आज़ाद कराना था.
इस अधिनियम के तहत, एसजीपीसी को एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई संस्था बनाया गया है, जिसका काम ऐतिहासिक और अन्य गुरुद्वारों का प्रशासन और प्रबंधन करना है. एसजीपीसी में कुल 170 सदस्य होते हैं, जिन्हें सिखों द्वारा तयशुदा भौगोलिक क्षेत्रों से चुना जाता है.
हालांकि, एसजीपीसी सदस्यों के चुनाव हर पांच साल में होने चाहिए, लेकिन ये चुनाव अनियमित रूप से कराए गए हैं. आखिरी एसजीपीसी चुनाव 2011 में हुए थे. चुनाव में देरी को लेकर पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस और पंजाब की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी जैसी राजनीतिक पार्टियां लगातार आलोचना कर रही हैं.
इन पार्टियों का कहना है कि चुनाव न कराना अकाली दल (शिअद) के हित में है, क्योंकि इससे वह सिख संस्थाओं पर नियंत्रण बनाए रखता है और सत्ता से बाहर होने के बावजूद इन संस्थाओं के ज़रिए पंजाब की राजनीति में प्रभाव बनाए रखता है.
कोई भी अमृतधारी सिख एसजीपीसी का सदस्य बनने के लिए चुनाव लड़ सकता है. पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ के हर केशधारी (बाल न कटवाने वाले) वयस्क सिख को वोट देने का अधिकार है.
हालांकि, सहजधारियों (जो बाल कटवाते हैं और सिख धर्म की मूल आचार संहिता का पालन नहीं करते) द्वारा मतदान अधिकार की मांग को लेकर दायर मुकदमों के चलते, चुने गए सदस्यों ने 2016 में ही कामकाज शुरू किया था. उनका कार्यकाल 2021 में समाप्त हो गया.
एसजीपीसी के चुनाव केंद्र सरकार के गुरुद्वारा चुनाव आयोग द्वारा कराए जाते हैं. 2020 में सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज एस. एस. सारन को गुरुद्वारा चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया था.
मतदाता सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया इस साल अप्रैल में पूरी हुई थी, लेकिन इस प्रक्रिया को एसजीपीसी समेत अन्य पक्षों ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी, जिसके बाद इस पर रोक लगा दी गई. जब तक नए सदस्य नहीं चुन लिए जाते, 2011 में चुने गए सदस्य ही काम करते रहेंगे.
हर साल ये सदस्य एक अध्यक्ष का चुनाव करते हैं, जो आगे चलकर एक कार्यकारिणी समिति चुनता है. आमतौर पर ये चुनाव नवंबर में होते हैं. एसजीपीसी अध्यक्ष, 11 सदस्यीय कार्यकारिणी और अन्य पदाधिकारी समिति के रोज़मर्रा के कामकाज के ज़िम्मेदार होते हैं.
गुरुद्वारों के प्रबंधन के अलावा, एसजीपीसी देश और विदेश में सिखों से जुड़े उन मुद्दों को भी उठाती है, जिनसे सिखों की “मर्यादा” (धार्मिक आचार-संहिता) को नुकसान पहुंचने का खतरा होता है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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