scorecardresearch
Thursday, 19 December, 2024
होमराजनीतिअरुण कुमार- 'टेक-प्रेमी' J&K मामलों के एक्सपर्ट जो अब BJP और RSS के बीच सामंजस्य बिठाएंगे

अरुण कुमार- ‘टेक-प्रेमी’ J&K मामलों के एक्सपर्ट जो अब BJP और RSS के बीच सामंजस्य बिठाएंगे

कुमार की नियुक्ति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले हुई है.

Text Size:

नई दिल्ली: साल 2008 में, वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व वाली जम्मू और कश्मीर की तत्कालीन सरकार ने बाबा अमरनाथ श्राइन बोर्ड को अपने नियंत्रण में लेने का प्रयास करते हुए इसे भंग कर दिया था. हालांकि बाद में उसे मजबूरन इस फैसले से पीछे हटना पड़ा.

जम्मू कश्मीर सरकार के इस पीछे हटने वाले कदम का एक बड़ा कारण जम्मू-कश्मीर की भाजपा और आरएसएस की इकाइयों के द्वारा निरंतर डाला गया दबाव भी था. सूत्रों का कहना है कि आरएसएस के संयुक्त महासचिव 57 वर्षीय अरुण कुमार इस सारे विरोधों के केंद्र में थे. इन्हीं अरुण कुमार को रविवार को भाजपा के साथ संघ के समन्वयक के रूप में पदोन्नत किया गया है. कुमार तब जम्मू-कश्मीर के लिए आरएसएस के प्रांत प्रचारक (राज्य प्रभारी) थे.

संघ के एक पदाधिकारी के अनुसार, उन्होंने उस विरोध को जनआंदोलन का रूप देने में एक ‘प्रभावी एवं निर्णायक भूमिका’ निभाई. वह (उनके लिए) एक शुरुआती बिंदु था. उस आंदोलन की सफलता ने संघ के नेतृत्व को कुमार की संगठनात्मक क्षमता का एहसास कराया.

इसके बाद से कुमार का उदय काफी निर्णायक रहा है. वह आरएसएस के मीडिया और प्रचार प्रकोष्ठ (अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख) के प्रमुख थे, और इसी साल मार्च में उन्हें सुरेश सोनी की जगह संघ के संयुक्त महासचिव के रूप में नियुक्त किया गया था. अब भाजपा के साथ समन्वयक के रूप में उन्होने आरएसएस में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक भूमिका हासिल की है.

कुमार ने संघ के एक अन्य संयुक्त महासचिव, कृष्ण गोपाल, से भी चार्ज लिया, जो कि 2015 से यह कार्यभार संभाल रहे थे. आरएसएस ने यह निर्णय मध्य प्रदेश के चित्रकूट में आयोजित अपनी अखिल भारतीय प्रांत प्रचार बैठक में लिया था.

सूत्रों के अनुसार, कुमार की नियुक्ति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से ठीक पहले हुई है.

संघ के हीं एक अन्य पदाधिकारी ने कहा, ‘समन्वयक का मुख्य कार्य देश और समाज से संबंधित मुद्दों और उन पर संघ के दृष्टिकोण को भाजपा तक पहुंचाना है. वह संघ के शीर्ष नेतृत्व को भाजपा की योजना और कार्यप्रणाली से अवगत कराने के लिए भी जिम्मेदार होता है. चुनावी कार्यों में भी समन्वयक की अहम भूमिका होती है.’

उदाहरण के तौर पर, कृष्ण गोपाल के पूर्ववर्ती समन्वयक सुरेश सोनी थे, जिन्हें 2014 के आम चुनावों में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी के नामांकन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है.


यह भी पढ़ेंः RSS स्वयंसेवक और ABVP कार्यकर्ता से लेकर उत्तराखंड के CM तक- पुष्कर धामी ने ऐसे तय किया सफर


कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ

कुमार को जम्मू-कश्मीर और आंतरिक सुरक्षा से जुड़े मुद्दों का विशेषज्ञ माना जाता है. उनकी विशेषज्ञता से इस क्षेत्र में भाजपा की रणनीति में और अधिक मजबूती आने की आशा है, खासकर इन अटकलों के बीच कि मोदी सरकार जल्द ही जम्मू -कश्मीर में चुनाव कराने की सोच रही है.

संघ के एक और पदाधिकारी ने कहा, ‘जम्मू-कश्मीर में राज्य प्रभारी के रूप में भेजे जाने से पहले उन्होंने शुरू में हरियाणा में काम किया था. वह अनुच्छेद 370 और 35A को खत्म करने पर कई वर्षों से जोर दे रहे थे और कई लोग जम्मू-कश्मीर में उनके सघन/व्यापक क्रियाकलापों को सरकार को उन्हें निरस्त करने के लिए प्रेरित करने का श्रेय देते हैं.‘
संघ के एक तीसरे पदाधिकारी ने कहा, ‘जम्मू और कश्मीर में उनके अनुभव को देखते हुए, खासकर जिस तरह से उन्होंने उस जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसने उन तर्कों का मुकाबला करने में सहायता की कि अनुच्छेद 370 को समाप्त नहीं किया जा सकता है, उनसे आशा है कि वह जम्मू-कश्मीर पर विशेष जोर देते हुए राष्ट्रीय मुद्दों पर संघ के विचारों को भाजपा के समक्ष उजागर करेंगे.’

एक चौथे पदाधिकारी ने बताया कि यह अध्ययन केंद्र जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था. उन्होंने कहा ‘आम जनता के बीच इस विशेष प्रावधान (अनुच्छेद 370) से जुड़े संवैधानिक और कानूनी पहलुओं की अत्यंत सीमित समझ थी. अध्ययन केंद्र ने इस अंतर को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.’

यह अध्ययन केंद्र, जिसे अक्सर अरुण कुमार और पत्रकार से शोधकर्ता बने आशुतोष भटनागर के दिमाग की उपज कहा जाता है, 2012 में शुरू किया गया था. इसका मुख्यालय दिल्ली में है, लेकिन जम्मू-कश्मीर में भी इसकी कई शाखाएं हैं. अब इस संगठन का नाम बदलकर जम्मू-कश्मीर-लद्दाख अध्ययन केंद्र कर दिया गया है.

दिल्ली के हैं अरुण कुमार

दिल्ली के झिलमिल इलाके के रहने वाले अरुण कुमार ने संघ में अपना कार्य राष्ट्रीय राजधानी के लिए जिला प्रचारक के रूप में शुरु किया था. बाद में वह हरियाणा के विभाग प्रचारक की भूमिका में चले गए. इसके बाद उन्हें जम्मू-कश्मीर भेज दिया गया.

कुमार, जिनके पास दिल्ली के जी.बी. पंत इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा (पॉलीटेक्निक) की उपाधि है, ने 2013 और 2018 के बीच संघ के सह संपर्क प्रमुख (संयुक्त मीडिया प्रमुख) के रूप में भी काम किया. 2018 के बाद से, और इस साल मार्च में संयुक्त महासचिव के रूप में कार्यभार संभालने से पहले तक, उन्होने अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख (राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख) के रूप में भी कार्य किया.

एक पांचवें संघ कार्यकर्ता ने कहा ‘मीडिया प्रमुख के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान, स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के साथ संपर्क काफी बढ़ा. साथ ही, एक पुस्तक प्रकाशन विभाग भी है. सीएए विरोधी आंदोलन और दिल्ली दंगों के दौरान लोगों को वास्तविक स्थिति के बारे में जानकारी देने के लिए कई सारी किताबें भी प्रकाशित की गईं. इस दौरान आरएसएस के कई वरिष्ठ पदाधिकारियों की सोशल मीडिया उपस्थिति भी बढ़ गई,’

चौथे पदाधिकारी ने बताया, ‘वह काफी हद तक तकनीक-प्रेमी हैं और उन कुछ लोगों में से एक हैं जिन्होंने खुद को प्रौद्योगिकी के अनुकूल बनाया है. उनकी अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओँ पर अच्छी पकड़ है और उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों के बारे में गहरी जानकारी भी है.‘

उन्होंने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में आरएसएस के प्रचार विभाग का जिस तरह का विस्तार किया गया है, उसका श्रेय उनके नेतृत्व को दिया जा सकता है. जिस तरह से संघ ने सोशल मीडिया पर अपनी उपस्थिति का विस्तार किया है, मीडिया के साथ बातचीत में जिस प्रकार की वृद्धि हुई है, उन सभी मामलों में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.’
जिन लोगों ने कुमार के साथ काम किया है उनका कहना है कि वह एक खूब पढ़ने वाला आदमी भी बताते हैं.
संघ के एक सूत्र ने बताया ‘पढ़ना उनके लिए अति महत्वपूर्ण कार्य है और वह किताबों को ऑनलाइन पढ़ने के लिए अपने टैब को हमेशा अपने साथ रखते है. उनकी उम्र में कई लोगों को अपने आप को तकनीक के अनुरूप ढालना मुश्किल लगता है लेकिन वह हमेशा नई चीजें सीखने के प्रति उत्साहित रहते हैं, हालांकि वह बहुत व्यावहारिक व्यक्ति है फिर भी वह कभी उस मूल विचारधारा से समझौता नहीं करेंगे जिसमें संघ और वे स्वयं विश्वास करते हैं.’

(इस लेख को अग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः ‘पदयात्रा, साइकिल मैन, उत्साही मगर शांत वर्कर’- मोदी सरकार में बने नए स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया


 

share & View comments