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Saturday, 21 December, 2024
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बेहतरीन वक्ता, 17 साल की उम्र में संन्यास; बंगाल में BJP-TMC की राजनीति का केंद्र बन गए हैं कार्तिक महाराज

एक रैली को संबोधित करते हुए, सीएम ममता बनर्जी ने कार्तिक महाराज के भारत सेवाश्रम संघ सहित हिंदू संगठनों के खिलाफ टिप्पणी की थी, जिससे पश्चिम बंगाल में राजनीतिक विवाद छिड़ गया था.

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कोलकाता: हिंदू संतों के एक वर्ग के खिलाफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा की गई टिप्पणियों के विरोध में 24 मई को, हजारों संतों ने कोलकाता की सड़कों पर मार्च किया. विश्व हिंदू परिषद (VHP) द्वारा आयोजित इस रैली का महत्व इसलिए था, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने ममता बनर्जी को “तुष्टीकरण की राजनीति” के लिए घेरा था.

नंगे पांव, संगीत वाद्ययंत्रों और शंख की ध्वनि के साथ भगवा रंगों से रंगा संतों का जुलूस अद्भुत प्रदर्शन था, जिसने कोलकाता के राजनीतिक रैलियों से परिचित होने के बावजूद शहर के दृश्य को बदल दिया.

19 मई को हुगली जिले में एक रैली को संबोधित करते हुए, ममता बनर्जी ने कहा था: “मैंने कई दिनों से सुना है, बहरामपुर में कार्तिक महाराज नाम के एक साधु (संत) हैं. मैं भारत सेवाश्रम संघ का सम्मान करती थी, वे लंबे समय से मेरे सम्मानित संगठनों की सूची में हैं. लेकिन जो आदमी कहता है कि ‘मैं टीएमसी एजेंटों को (मतदान केंद्रों में) नहीं बैठने दूंगा’, मैं उस व्यक्ति को साधु नहीं मानती क्योंकि वह राजनीतिक व्यक्ति हैं और देश को नुकसान पहुंचा रहे हैं. मैंने पहचान लिया है कि कौन लोग ऐसी चीजें कर रहे हैं.”

इस बीच, दिप्रिंट से बात करते हुए, कार्तिक महाराज ने कहा, “उन्होंने (ममता) मेरा नाम लेकर एक अहसान किया है. मैं कोई आम आदमी नहीं हूं, मैं कार्तिक महाराज हूं, मैं सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करता हूं. मैं एक साधु हूं, कोई डॉन नहीं कि मैं जाकर मतदान एजेंटों को रोकूंगा.”

उन्होंने दावा किया कि पुलिस उनके पास थी और अगर मैंने ऐसा किया है तो वह अधिकारियों से इसकी जांच करवा सकती हैं. उन्होंने कहा, “यह झूठ है. मुख्यमंत्री ने हिंदू संगठनों के खिलाफ जो कहा है, उसकी दुनिया भर में निंदा की गई है और प्रधानमंत्री उन शब्दों से आहत हैं.” यह विरोध मेरे लिए नहीं है, बल्कि बंगाल में हिंदुओं की सुरक्षा के लिए है,”

बंगाल के अविभाजित दिनाजपुर जिले में जन्मे कार्तिक महाराज ने 17 साल की उम्र में साधु बनने का फैसला किया. उन्होंने कहा, “मेरे माता-पिता हैरान थे, वे चाहते थे कि मैं अपनी शिक्षा जारी रखूं. लेकिन मुझे एक साधु से प्रेरणा मिली थी जो अक्सर मेरे घर के पास काली मंदिर में आते थे.”

1980 के दशक की शुरुआत में वे भारत सेवाश्रम संघ में शामिल हुए और बाद में मुर्शिदाबाद में इसकी बेलडांगा शाखा की स्थापना की. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “1970 में एक भयंकर चक्रवात, भोला आया था, जिसने बंगाल को तबाह कर दिया था. मैंने उन गरीबों के पुनर्वास में मदद की जिन्होंने अपना सब कुछ खो दिया था. एक साधु के रूप में, मैं मानवता की सेवा के लिए समर्पित था.”

स्वामी प्रदीप्तानंद के नाम से भी जाने जाने वाले कार्तिक महाराज ने पिछले साल कोलकाता में ‘1 लाख गीता पाठ’ का आयोजन किया था, जिसे भाजपा ने एक बड़ी सफलता बताया था. वे बंगाल भाजपा प्रमुख सुकांत मजूमदार के नेतृत्व में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नई दिल्ली आमंत्रित करने वाले प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे.

उन्होंने याद करते हुए कहा, “केवल नरेंद्र मोदी के पास देश को लेकर एक स्पष्ट दृष्टिकोण है. मैं उनसे काफी जुड़ाव महसूस करता हूं. दरअसल, जब मोदीजी एक साधु का जीवन जी रहे थे, तब वे राजकोट और सूरत में भारत सेवाश्रम जाते थे. मैंने उनके बारे में कई कहानियां सुनी थीं. नवंबर 2023 में, मैं उनसे पहली बार मिला और मैं आश्चर्यचकित रह गया,”

दरअसल, कार्तिक महाराज ने पिछले साल बंगाल के त्रिबेनी (हुगली जिले) में एक कुंभ मेले का आयोजन भी किया था, जिसे मोदी ने अपने मन की बात रेडियो शो में “सात शताब्दियों के बाद हिंदू परंपरा के पुनरुद्धार” के रूप में सराहा था. हालांकि कार्तिक महाराज का विवादों से नाता कोई नया नहीं है.

2016 में, बंगाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखपत्र स्वास्तिक के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा, “मैं केवल उन हिंदुओं की मदद करूंगा जो खुद की रक्षा करेंगे, न कि उन लोगों की जो हमला होने के बाद मेरे पास आते हैं.”

अगले वर्ष, कोलकाता में हिंदू संहति के वार्षिक कार्यक्रम में, उन्होंने दावा किया कि चैतन्य महाप्रभु – बंगालियों द्वारा पूजे जाने वाले 16वीं शताब्दी के आध्यात्मिक संत – ने भी मुसलमानों के खिलाफ हिंसा का प्रचार किया था, लेकिन बंगाली इसे भूल गए हैं.

हिंदू संहति की स्थापना पूर्व आरएसएस प्रचारक तपन घोष ने 2008 में की थी. घोष 1970 के दशक से आरएसएस से जुड़े हुए थे.

कार्तिक महाराज बंगाल और देश भर में आयोजित हिंदू संहति के कार्यक्रमों में एक प्रमुख वक्ता बन गए – जिससे बंगाल में भारत सेवाश्रम संघ की प्रमुखता बढ़ गई.

भारत सेवाश्रम संघ के बारे में

बांग्लादेश के बाजितपुर गांव (तत्कालीन फरीदपुर जिला) में आचार्य स्वामी प्रणवानंदजी महाराज द्वारा 1917 में स्थापित, भारत सेवाश्रम संघ एक धर्मार्थ ट्रस्ट है जो अब कोलकाता में स्थित है और 1935 से भारत सरकार द्वारा एक गैर-लाभकारी संगठन के रूप में मान्यता प्राप्त है.

भारत सेवाश्रम संघ की वेबसाइट पर कहा गया है, “स्वामी प्रणवानंद की गतिशीलता ने हिंदू धर्म के भीतर एक नई चेतना पैदा करने में मदद की है, जिससे हिंदू मूल्यों की पुनर्स्थापना हो सकती है और उपमहाद्वीप में वास्तविक धर्म का उत्कर्ष हो सकता है.”

बचपन में बिनोद के नाम से जाने जाने वाले, एक आज्ञाकारी छात्र ‘ध्यान’ करना पसंद करते थे, जिसकी वजह से स्वामी प्रणवानंद अन्य छात्रों के लिए एक आदर्श बन गए. उन्हें 1913 में अमावस्या के दिन गोरखपुर में एक संत द्वारा विशेष दीक्षा दी गई थी. 1924 में, उन्होंने संन्यास धारण किया.


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“हमारे आश्रम में सभी का स्वागत है, युवा स्वयंसेवक हैं, जो जमीनी स्तर पर काम करते हैं. हमारे पास 500 से अधिक संत हैं जो झारखंड, गुजरात, पश्चिम बंगाल, असम, नागालैंड, त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में केंद्र सरकार के सहयोग से अस्पताल, मोबाइल मेडिकल यूनिट, आदिवासी कल्याण और शैक्षिक केंद्र चला रहे हैं.

कार्तिक महाराज ने बताया कि हम प्राकृतिक आपदाओं के दौरान राहत कार्यों में भी मदद करते हैं. उनके अनुसार स्वामी प्रणवानंद ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी मुलाकात की थी.

कार्तिक महाराज ने भारत सेवाश्रम संघ के इतिहास के बारे में बात करते हुए दिप्रिंट से कहा, “हमारे संस्थापक ने सभी नामशूद्रों को एक संगठन के तहत एकजुट किया था. जब भी हिंदुओं पर संकट आया, उन्होंने उन्हें लाठी और तलवारों से बचाया. उन्होंने कहा था – ‘जो अपना सिर दे सकते हैं और ले भी सकते हैं, वे मेरे साथ आएं.'”

पूर्वी बंगाल की सबसे बड़ी हिंदू जाति होने से नामशूद्र अब पश्चिम बंगाल का दूसरा सबसे बड़ा अनुसूचित जाति समुदाय है, जो 2001 की जनगणना के अनुसार राज्य की आबादी का 4 प्रतिशत है. भारत सेवाश्रम संघ की अब पूरे देश में शाखाएं हैं और 50 से अधिक शाखाओं के साथ वैश्विक स्तर पर भी इसका विस्तार हुआ है.

कार्तिक महाराज ने कहा, “अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जापान, इंडोनेशिया और कई अन्य देशों में हमारी शाखाएं हैं.” 2020 में स्वामी प्रणवानंद की 125वीं जयंती के दौरान, ममता ने कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया.

West Bengal Chief Minister Mamta Banerjee attending the 125th birth anniversary of swami Pranavananda Maharaj in Kolkata | ANI
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कोलकाता में स्वामी प्रणवानंद महाराज की 125वीं जयंती में भाग लेती हुई | ANI

दिसंबर 2021 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान, सीएम ममता बनर्जी को कोलकाता में भारत सेवाश्रम संघ में स्वामी प्रणवानंद को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए देखा गया था. दो महीने बाद, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आश्रम का दौरा किया और महामारी के बीच प्रार्थना अनुष्ठानों में भाग लिया.

दिल्ली में, 2021 में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला भारत सेवाश्रम संघ की दिल्ली शाखा में एक पुस्तक के अनावरण में मुख्य अतिथि थे.

उसी वर्ष पश्चिम बंगाल में, पूर्व विदेश सचिव डॉ. हर्षवर्धन श्रृंगला को शाम की कीर्तन प्रार्थना में शामिल होने से पहले भारत सेवाश्रम की सिलीगुड़ी शाखा में सम्मानित किया गया. आश्रम में बोलते हुए, श्रृंगला ने पड़ोसी बांग्लादेश में अपने कार्यकाल को याद किया और बताया कि कैसे भारत सेवाश्रम संघ ने हिंदुओं की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और इसके परोपकारी कार्यों की सराहना की.

एक पूर्व भाजपा नेता के अनुसार, भक्त लगभग हर दिन भारत सेवाश्रम शाखाओं में आते हैं. नेता ने कहा, “हमारे परिसर के अंदर सभी मंदिर हैं – मां दुर्गा, हनुमान, शिव, नारायण. इसलिए सभी हिंदू प्रार्थना करने आते हैं. अनुष्ठान पूरा होने और भोग लगाने के बाद यह मिलने-जुलने का स्थान बन जाता है.”

उन्होंने आगे कहा कि, हालांकि आश्रम का कोई राजनीतिक संबंध नहीं है, लेकिन राजनेता इससे जुड़े होने से कभी नहीं चूकते हैं “क्योंकि यह यहाँ हिंदुओं के लिए एक लोकप्रिय संगठन है.”

चुनावों के बीच राजनीतिक लड़ाई

चुनावी मौसम के बीच, ममता बनर्जी की तीन प्रमुख संस्थाओं – रामकृष्ण मिशन, इस्कॉन और भारत सेवाश्रम संघ – को लेकर की गई टिप्पणी से राजनीतिक झड़प शुरू हो गई है.

इन संस्थाओं का बंगालियों के बीच खासा प्रभाव है और अनजाने में ही भाजपा को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के खिलाफ अपने अभियान की कहानी को मोड़ने का मौका मिल गया है.

हुगली जिले में ममता ने कहा, “आसनसोल में रामकृष्ण मिशन है. मैंने रामकृष्ण मिशन (आरकेएम) के लिए क्या नहीं किया है? जब सीपीआई (एम) ने मिशन को खाद्य सामग्री देने से मना कर दिया था, तब मैंने आरकेएम और उसके अस्तित्व और अधिकारों का समर्थन किया था.

माताएं और बहनें आकर सब्ज़ियां बनाने में मदद करती थीं, जबकि सीपीआई (एम) आपको (आरकेएम) काम नहीं करने देती थी. लेकिन मैं कुछ लोगों को जानती हूं, सभी ऐसे नहीं हैं.”

इस्कॉन के बारे में पश्चिम बंगाल की सीएम ने कहा था: “मैंने नादिया जिले में इस्कॉन को निर्माण के लिए 700 एकड़ ज़मीन दी है. इस्कॉन मिशन भी उस सूची में है. एक-दो लोग हमेशा ऐसे ही रहेंगे जिन्हें दिल्ली से निर्देश मिलते हैं कि वे अपने अनुयायियों से कहें कि भाजपा को वोट दें.”

मुख्यमंत्री को जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले सप्ताह एक रैली में कहा, “मुख्यमंत्री ने सारी सीमाएं पार कर दी हैं, उन्होंने रामकृष्ण मिशन, इस्कॉन और भारत सेवाश्रम के खिलाफ हास्यास्पद आरोप लगाए और साधु समुदाय का अपमान किया.”

उन्होंने कहा कि सीएम अपने टीएमसी विधायक (हुमायूं कबीर) से कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं, जो हिंदू समुदाय को मिटाने की धमकी दे रहे हैं, लेकिन संदेशखाली के अपराधी शाहजहां शेख को बचाने के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “ये लोग राम का नाम लेने वालों को गाली देते हैं, ये लोग रामनवमी नहीं होने देंगे और मोदी के खिलाफ वोट जिहाद की अपील करेंगे. यह टीएमसी और इंडी-एलायंस की सच्चाई है.”

ये घटनाक्रम ऐसे समय में हुआ है, जब दक्षिण बंगाल 1 जून को होने वाले अंतिम चरण के मतदान की तैयारी कर रहा है, जिसमें डायमंड हार्बर, बशीरहाट और जॉयनगर को छोड़कर, जहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या काफी है, अधिकांश निर्वाचन क्षेत्र हिंदू बहुल हैं. हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक जयंत घोषाल के अनुसार, ममता की टिप्पणी कोई सोची-समझी बात नहीं थी, बल्कि पार्टी इकाइयों और प्रशासन से मिली कुछ सूचनाओं, खासकर कार्तिक महाराज के बारे में मिली सूचनाओं पर एक आवेगपूर्ण प्रतिक्रिया थी.

घोषाल ने दिप्रिंट से कहा, “ममता अपनी भावनाओं को नहीं छिपाती हैं, इसलिए उन्होंने ऐसा कहा. लेकिन बाद में उन्हें समझ में आया कि प्रधानमंत्री की तीखी प्रतिक्रिया के बाद ऐसा करने की ज़रूरत नहीं थी. भाजपा को लगा कि हिंदू वोट बैंक को मजबूत करने से उन्हें फ़ायदा हो सकता है. और ममता का मुस्लिम तुष्टीकरण भी देखने को मिल सकता है.”

राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि बेलूर मठ (रामकृष्ण मठ का मुख्यालय) ने इससे दूरी बनाए रखी और कहा कि वह एक गैर-राजनीतिक संगठन है, “लेकिन कोई भी मोदी के इससे गहरे लगाव से इनकार नहीं कर सकता. उन्होंने कहा, “वह (मोदी) राजकोट रामकृष्ण मिशन में रहते थे और साधु बनना चाहते थे.”

इस बीच, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को डर है कि ममता के बयान से केवल भाजपा को ही लाभ होगा और राज्य में टीएमसी की चुनावी संभावनाओं को और नुकसान पहुंचेगा.

पोलित ब्यूरो के सदस्य मोहम्मद सलीम ने दिप्रिंट को बताया, “ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी द्वारा किए गए भ्रष्टाचार से ध्यान हटाने के लिए धर्म को बीच में ला दिया है. उनसे सांप्रदायिक राजनीति के अलावा और कुछ भी उम्मीद नहीं की जा सकती. भाजपा और टीएमसी दोनों पश्चिम बंगाल में लोगों को धर्म के आधार पर बांट रहे हैं. उनकी टिप्पणियों से केवल भाजपा को ही लाभ होगा,”

राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर उदयन बंदोपाध्याय ने इस भावना को दोहराते हुए कहा, “क्या इन हिंदू संगठनों का कोई साझा मंच है? जहां तक ​​मेरी जानकारी है, वे स्वतंत्र क्षमता में अपने दम पर काम करते हैं.”

उन्हें एक ही रंग में रंगना गलत है. प्रोफेसर ने कहा कि सीएम इन संस्थाओं के नाम का उल्लेख करने से बच सकती थीं क्योंकि वे मुश्किल समय में कड़ी मेहनत करते हैं. “लेकिन हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि वे स्वतंत्र लक्ष्य और मिशन वाले नॉन-स्टेट ऐक्टर्स हैं. उनकी सेवा के लिए उनकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा है.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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