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सोमवार, 21 अप्रैल, 2025
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फडणवीस सरकार के खिलाफ ‘हिंदी थोपने’ के शोर के बीच, राज ठाकरे का सुर सबसे ऊंचा क्यों है

महायुति सरकार द्वारा बुधवार को घोषणा किए जाने के बाद विवाद खड़ा हो गया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के तहत पहली से पांचवीं क्लास तक के छात्रों के लिए हिंदी अनिवार्य तीसरी भाषा होगी.

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मुंबई: ‘हिंदी थोपने’ को लेकर दक्षिण में भड़की आग अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित महाराष्ट्र में भी फैल गई है, एक ऐसा राज्य जहां मराठी मानुष बनाम बाहरी लोगों की कहानी अक्सर विवाद का कारण बनती है.

इसकी शुरुआत महायुति सरकार द्वारा जारी एक प्रस्ताव से हुई है, जिसके तहत राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 के तहत कक्षा 1 से ही स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाया गया है.

सभी गैर-सत्तारूढ़ दलों, खासकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) ने हिंदी थोपने और यहां तक ​​कि मराठी के महत्व को कम करने के लिए देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सरकार की आलोचना की है.

असल में मनसे पिछले दो महीनों से मराठी के अनिवार्य उपयोग पर जोर दे रही है, जैसा कि इसके कार्यकर्ताओं द्वारा पवई में एक सुरक्षा गार्ड की पिटाई या ठाणे में मराठी न बोलने पर महिलाओं की पिटाई में देखा गया है. मनसे पिछले साल के आम चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा थी.

सरकार के प्रस्ताव का बचाव करते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि यह फैसला मराठी को कमज़ोर करने के लिए नहीं लिया गया है, जो राज्य की शिक्षा प्रणाली में पहले से ही अनिवार्य है. उन्होंने कहा कि एनईपी को महाराष्ट्र में पहले ही लागू किया जा चुका है.

फडणवीस ने गुरुवार को संवाददाताओं से कहा, “यह कोई नई बात नहीं है. मराठी के साथ-साथ अन्य भाषाएं भी आनी चाहिए. केंद्र सरकार का मानना ​​है कि संचार की एक ही भाषा होनी चाहिए और इसीलिए यह फैसला लिया गया है. हमारा मानना है कि राज्य में सभी को मराठी आनी चाहिए, लेकिन हिंदी और अंग्रेज़ी भी पढ़ाई जानी चाहिए.”

यह बात राज ठाकरे को रास नहीं आई क्योंकि मनसे प्रमुख ने कड़े शब्दों में बयान दिया: “हम हिंदू हैं, हिंदी नहीं”.

राज ठाकरे का यह आक्रामक रुख ऐसे समय में सामने आया है, जब चर्चा है कि उपमुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे मनसे प्रमुख को फडणवीस पर दबाव बनाने के लिए संदेश भेज रहे हैं. मंगलवार को शिंदे ने राज से मुलाकात की, जिसे 2024 के राज्य चुनावों में मनसे प्रमुख के बेटे के खिलाफ उम्मीदवार वापस लेने से इनकार करने के बाद संबंधों को सुधारने के संकेत के रूप में देखा जा रहा है.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार के फैसले का राज के कड़े विरोध के पीछे एक बड़ी कहानी है.

राजनीतिक टिप्पणीकार प्रकाश बल ने एक बयान में कहा, “भाजपा बीएमसी (बृहन्मुंबई नगर निगम) में अकेले लड़ने और जीतने में रुचि रखती है और इसलिए उन्हें कड़ी चुनौती देने के लिए शिंदे ने संभावित गठबंधन के लिए राज ठाकरे से मुलाकात की, लेकिन हिंदी थोपे जाने और राज ठाकरे द्वारा इसका कड़ा विरोध करने से शिंदे की स्थिति मुश्किल हो गई है.”

एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई ने भी कहा कि राज के रुख का महायुति के भीतर चल रही अंदरूनी रस्साकशी से बहुत कुछ लेना-देना है.

उन्होंने कहा, “शिंदे और फडणवीस एक-दूसरे पर बढ़त बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जब शिंदे ने राज ठाकरे से मुलाकात की, तो वह बीएमसी चुनावों से पहले अपनी ताकत बढ़ाना चाहते थे और भाजपा के साथ अपनी सौदेबाजी की शक्ति बढ़ाना चाहते थे.”

उन्होंने कहा कि मराठी भाषा का मुद्दा मनसे के लिए एक लाभ के रूप में आ सकता है, जो वर्तमान में एक नैरेटिव सेट करने के लिए संघर्ष कर रही है.

देसाई ने कहा, “भाजपा के लिए, हिंदी भाषी लोग, विशेष रूप से मुंबई में बढ़ी हुई आबादी, एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है. इसके अलावा, बिहार चुनावों से पहले, भाजपा के लिए हिंदी भाषी आबादी को लुभाना महत्वपूर्ण था.”

महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव, जो राजनीतिक आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट में एक मामले के कारण विलंबित हो गए हैं, इस साल होने की उम्मीद है.

16 अप्रैल के सरकारी प्रस्ताव के अनुसार, कक्षा 1-5 के लिए, शैक्षणिक वर्ष 2025-26 से दो भाषाओं में पढ़ने की प्रचलित प्रथा के विपरीत, मराठी और अंग्रेज़ी मीडियम के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य भाषा बनाया जाएगा.

इसमें कहा गया है कि बाकी मीडियम स्कूल पहले से ही तीन भाषाएं पढ़ा रहे हैं क्योंकि मराठी और अंग्रेज़ी अनिवार्य हैं, जिसमें टीचिंग मीडियम की भाषा भी शामिल है.

स्कूल शिक्षा विभाग ने इस शैक्षणिक वर्ष से कक्षा 1 से शुरू होने वाले एनईपी के तहत नए पाठ्यक्रम के चरणबद्ध कार्यान्वयन की घोषणा की है.


यह भी पढ़ें: फडणवीस लगाना चाहते हैं सरकार पर अपनी मुहर, शिंदे अभी भी नाराज़ — महायुति 2.0 में बढ़ रही है दरार


विपक्ष ने हथियार उठाए

विपक्षी दल हिंदी थोपे जाने के खिलाफ जोरदार तरीके से सामने आए हैं. मराठी मानुष के नारे से शुरू हुई शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) ने केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए कहा है कि हिंदी केवल इसलिए थोपी जा रही है क्योंकि “मोदी और अमित शाह अंग्रेज़ी में कमज़ोर हैं.”

शिवसेना (यूबीटी) के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा, “हम हिंदी भाषा के विरोधी नहीं हैं, बल्कि इसे थोपे जाने के विरोधी हैं. हमें हिंदी मत सिखाइए. यह मुंबई है, जहां हिंदी फिल्म उद्योग फलता-फूलता है. मुंबई और महाराष्ट्र हिंदी जानते हैं. इसे हम पर थोपने की ज़रूरत नहीं है. केंद्र ऐसा इसलिए कर रहा है क्योंकि मोदी और शाह अंग्रेज़ी में कमज़ोर हैं.”

यहां तक ​​कि कांग्रेस ने भी इसका विरोध करते हुए कहा है कि महाराष्ट्र के गठन के समय राज्य की भाषा को प्राथमिकता दी गई थी, इसलिए राज्य में मराठी और अंग्रेज़ी को स्वीकार किया गया.

कांग्रेस विधायक दल के नेता विजय वडेट्टीवार ने कहा, “अब हिंदी थोपना मराठी लोगों और मराठी अस्मिता के साथ अन्याय है. अगर तीसरी भाषा की ज़रूरत है तो विकल्प दिए जाने चाहिए. तीसरी भाषा के तौर पर हिंदी को ही थोपना केंद्र सरकार की ओर से थोपा गया है. मराठी पहचान और भाषाई अधिकारों की रक्षा के लिए इस अनिवार्यता को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए.”

गुरुवार को एक्स पर एक लंबी पोस्ट में राज ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना इस अनिवार्यता को बर्दाश्त नहीं करेगी.

उन्होंने लिखा, “हिंदी राष्ट्रीय भाषा नहीं है, बल्कि अन्य भाषाओं की तरह राज्य की भाषा है. त्रिभाषी फॉर्मूला जो भी हो, उसे सरकारी कामकाज तक ही सीमित रखना चाहिए और इसे शिक्षा में नहीं लाना चाहिए…हम हिंदू हैं, हिंदी नहीं. अगर आप इसे थोपने की कोशिश करेंगे तो संघर्ष होगा. क्या यह आगामी चुनाव के लिए मराठी और गैर-मराठी के बीच दरार पैदा करने की कोशिश है? मनसे इसे बर्दाश्त नहीं करेगी…”

राज का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब मनसे पूरी तरह से खत्म हो चुकी है और पिछले साल महाराष्ट्र चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.

पिछले एक साल में राज ने सत्तारूढ़ पार्टी को लेकर अपने रुख में कई बदलाव किए हैं. मनसे ने विधानसभा चुनाव अकेले लड़ा था, जबकि लोकसभा चुनाव के लिए उसने महायुति के साथ गठबंधन किया था, जिसमें भाजपा, शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) शामिल हैं, लेकिन एक भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ा.

मार्च में अपनी वार्षिक गुड़ी पड़वा रैली के दौरान राज ने महायुति सरकार पर मुगल बादशाह औरंगज़ेब और उसकी कब्र के बारे में बात करने और महाराष्ट्र के मुद्दों पर बात न करने का आरोप लगाया था. उन्होंने सरकार की नीतियों, बीड हिंसा और बेरोज़गारी पर सवाल उठाए थे. हालांकि, अंत में राज ने कहा कि अगर फडणवीस राज्य के लिए रचनात्मक रूप से काम करने को तैयार हैं, तो वे फडणवीस का समर्थन करेंगे.

लेकिन, अब उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मंगलवार को राज से शिवाजी पार्क स्थित उनके आवास पर रात्रिभोज पर मिलने गए. दोनों नेताओं में से किसी ने भी बंद दरवाजों के पीछे क्या हुआ, इस बारे में बात नहीं की, ऐसी चर्चा है कि शिंदे ने राज से आगामी नगर निकाय चुनावों के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संभावित गठबंधन के बारे में बात की.

राजनीतिक टिप्पणीकार प्रकाश बल ने कहा, “देखते हैं कि आने वाले दिनों में राज ठाकरे क्या करते हैं और भाजपा उनका मन बदलने की कोशिश कैसे करती है, क्योंकि वे अक्सर अपना रुख बदलने के लिए जाने जाते हैं. इस बार भी ऐसा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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