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Thursday, 31 October, 2024
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अमरिंदर के 5 बनाम सिद्धू के पांच साथी- पंजाब कांग्रेस में जारी वर्चस्व की लड़ाई में ये हैं अहम खिलाड़ी

राज्य में पार्टी का शीर्ष नेतृत्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच स्पष्ट तौर पर दो खेमों में बंटा नजर आ रहा है.

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चंडीगढ़ : पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच छिड़ी वर्चस्व की जंग के बीच पार्टी का शीर्ष नेतृत्व स्पष्ट तौर पर दो खेमों में बंटा नजर आ रहा है.

दोनों पक्षों के बीच खिंचे पालों में पार्टी के कट्टर समर्थकों और पुराने लोगों के शामिल होने से पार्टी आलाकमान के लिए इस जंग को रोकना और भी मुश्किल काम हो गया है.

हम यहां पर दोनों खेमों को पांच-पांच ऐसे शीर्ष नेताओं की सूची दे रहे हैं—इसमें निष्ठाएं बरकरार रखने वाले नेता अमरिंदर का साथ दे रहे हैं और बगावती तेवर वाले नेता मुख्यमंत्री को हटाने की कोशिश में पूरी मजबूती के साथ सिद्धू के पीछे खड़े हैं.

बगावती तेवर वाले नेता

सुखजिंदर रंधावा

कभी अमरिंदर के करीबी रहे 62 वर्षीय कैबिनेट मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत की अगुआई कर रहे हैं.
अमरिंदर जब 2007 और 2017 के बीच सत्ता से बाहर थे, तो रंधावा मजबूती से उनके साथ खड़े थे और मुख्यमंत्री और पार्टी आलाकमान के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी बने हुए थे.

2017 में अमरिंदर जब मुख्यमंत्री बने तो ऐसा माना जा रहा था कि उनके नजदीकी रिश्ते को देखते हुए रंधावा को तुरंत ही कैबिनेट में शामिल कर लिया जाएगा.

इसके बजाये, रंधावा को हतप्रभ करते हुए अमरिंदर ने 2018 तक उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया, फिर कहीं जाकर उन्हें जेल और कोऑपरेशन विभाग का प्रभार दिया गया. यह रंधावा को कुछ खास पसंद नहीं आया, जो गृह विभाग का प्रभार मिलने की अपेक्षा कर रहे थे.

हाल में, अमरिंदर के खिलाफ मुखर हमलों में रंधावा सबसे आगे रहे हैं, खासकर राज्य में नशीले पदार्थों की बढ़ती लत और शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) नेता बिक्रम सिंह मजीठिया के खिलाफ कार्रवाई नहीं किया जाने को लेकर, जिन पर मादक द्रव्यों के कारोबार में शामिल होने का आरोप लगा है.

रंधावा 2015 में सिख प्रदर्शनकारियों पर पुलिस फायरिंग, जिसमें दो लोगों की मौत हो गई थी, के मामले में बादल की तरफ से ‘भरपाई’ करने को लेकर अमरिंदर के कथित उदासीन रवैये की भी आलोचना करते रहे हैं. यह विरोध प्रदर्शन 2015 में गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं के मद्देनजर हुआ था.

माझा (पाकिस्तान की सीमा से लगे जिलों) के सबसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं में से एक रंधावा कांग्रेस के एक बुजुर्ग नेता संतोख सिंह रंधावा के बेटे हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री दरबारा सिंह के करीबी रहे थे.

संतोख सिंह 1985 में पार्टी की राज्य इकाई के प्रमुख थे, जब उन्हें सिख उग्रवादियों के साथ घनिष्ठ संबंध रखने के आरोपों के बाद हटा दिया गया था. हालांकि, सीनियर रंधावा ने सभी आरोपों से इनकार किया था.

सुखजिंदर रंधावा खुद भी तमाम विवादों का हिस्सा रहे हैं. पिछले वर्ष जनवरी में एक सिख गुरु के खिलाफ कथित तौर अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वाला उनका एक वीडियो वायरल हुआ था. रंधावा ने तब दावा किया था कि क्लिप से छेड़छाड़ की गई थी.
पिछले साल मार्च में अकालियों ने आरोप लगाया था कि रंधावा का संबंध माझा के एक खूंखार गैंगस्टर से है. फिर इस साल मई में अकालियों ने उस मामले में जांच की मांग की जब रंधावा के निजी सहायक पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया.

चरणजीत चन्नी

चमकौर साहिब से दलित विधायक चन्नी (58 वर्ष) पिछले कुछ समय से अमरिंदर के आलोचक बन गए हैं. तकनीकी शिक्षा मंत्री अपने विभाग में मुख्यमंत्री कार्यालय के लगातार दखल का विरोध करते रहे हैं.

उदाहरण के तौर पर वह राज्य में प्राइवेट यूनिवर्सिटी आने का विरोध करते रहे हैं, लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया गया.
युवा कैबिनेट मंत्रियों में से एक चन्नी तीसरी बार विधायक बने हैं और काफी पढ़े-लिखे होने के लिए भी जाने जाते हैं. कानून में स्नातक और एमबीए कर चुके चन्नी ने 2015 से 2016 तक विपक्ष के नेता रहने के दौरान राजनीति विज्ञान में परास्नातक किया था.

वह 2007 में पहली बार विधायक बने जब पार्टी से टिकट न मिलने के बाद उन्होंने निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ा.

तृप्त राजिंदर बाजवा

कभी अमरिंदर के दोस्त रहे 78 वर्षीय बाजवा अब उनके खिलाफ खड़े हैं. चन्नी और रंधावा के साथ बाजवा को भी उम्मीद है कि अगर वे हमले जारी रखते हैं तो उनमें से एक को अगले साल होने वाले चुनाव से पहले अमरिंदर की जगह मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है.

बाजवा गुरबचन सिंह बाजवा के बेटे हैं, जो प्रताप सिंह कैरों सहित कई मुख्यमंत्रियों की कैबिनेट में मंत्री रहे थे. तृप्त ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक नगर पार्षद के रूप में की और पार्टी के महासचिव के तौर पर भी काम किया. मौजूदा समय में ग्रामीण विकास मंत्री बाजवा 2017 में फतेहगढ़ चूरियां सीट से बहुत कम अंतर से जीते थे.

चार बार के विधायक की नजर अगले चुनावों के लिए बटाला सीट पर है, लेकिन अमरिंदर यहां कांग्रेस के एक और नेता अश्विनी सेखरी को आगे करने में जुटे हैं. पूर्व कैबिनेट मंत्री सेखरी और बाजवा कट्टर प्रतिद्वंद्वी हैं और एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहे हैं.

सुखबिंदर सरकारिया

63 वर्षीय सुखभिंडर सरकारिया राजा सांसी क्षेत्र से तीन बार के विधायक हैं और इस समय खनन और राजस्व मंत्री हैं. अमरिंदर के करीबी माने जाते रहे सरकारिया ने खुद को हमेशा लो प्रोफाइल बनाए रखा. अमरिंदर के खिलाफ असंतुष्टों को उनका समर्थन कई लोगों के लिए हैरत में डाल देने वाला है. उनके पुत्र अजय एक उभरते पंजाबी फिल्म स्टार हैं.

परगट सिंह

कभी अकाली नेता रहे 55 वर्षीय परगट सिंह दशकों से नवजोत सिद्धू के करीबी माने जाते रहे हैं, क्योंकि दोनों का करियर एक जैसा ही रहा है—दोनों ही खिलाड़ी से राजनेता बने हैं.

भारतीय हॉकी टीम के 55 वर्षीय पूर्व कप्तान को कभी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ डिफेंडर में एक माना जाता था. उन्होंने 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक और 1996 में अटलांटा ओलंपिक में हॉकी टीम का नेतृत्व किया.
परगट सिंह पंजाब पुलिस में अपनी सेवाएं दे रहे थे जब अकालियों ने उन्हें 2012 के विधानसभा चुनावों में जालंधर से टिकट की पेशकश की थी.

हालांकि, 2016 में उन्हें पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण निलंबित कर दिया गया, जिसके बाद वह सिद्धू के साथ आ गए और इन दोनों ने लुधियाना के बैंस भाइयों के साथ आवाज-ए-पंजाब संगठन बनाया.

उसी साल बाद में वह सिद्धू के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए और 2017 में जालंधर से जीते. परगट सिंह इस साल कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ खुलकर सामने आने वाले पहले विधायकों में से एक थे, जब उन्होंने मुख्यमंत्री के साथ बैठक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. सिद्धू ने हाल ही में उन्हें राज्य में पार्टी का महासचिव बनाया है.

इनकी निष्ठाएं बरकरार

ब्रह्म मोहिंद्रा

राज्य के सबसे वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं में से एक 75 वर्षीय ब्रह्म मोहिंद्रा लोकल गवर्नमेंट और संसदीय मामलों के मंत्री हैं.

2019 में लोकसभा चुनाव के बाद जब अमरिंदर ने सिद्धू का विभाग बदला, तो सबसे ज्यादा फायदा उन्हें ही हुआ था. बेहद अहम माना जाने वाला लोकल गवर्नमेंट विभाग सिद्धू के पास था, जिसे अमरिंदर ने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्र ब्रह्म मोहिंद्रा को सौंप दिया था.

मोहिंद्रा पटियाला जिले के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों से छह बार विधायक रहे हैं. एक वकील के बेटे मोहिंद्रा युवा कांग्रेस में भी सक्रिय रहे थे और 1987 से एआईसीसी के सदस्य हैं. उन्होंने पंजाब कांग्रेस के उपाध्यक्ष और महासचिव के तौर पर भी काम किया है.
राज्य के शीर्ष नेताओं में शुमार होने के बावजूद ब्रह्म मोहिंद्रा पर हमेशा अमरिंदर का काफी प्रभाव रहा है, जिनका गृह क्षेत्र भी पटियाला ही है.


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हालांकि, मौजूदा संकट में वह अमरिंदर का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन उनका परस्पर टकराव दशकों से चलता रहा है. जनवरी 2015 में मोहिंद्रा ने लोकसभा में उपनेता के रूप में पार्टी आलाकमान की अवहेलना करने के लिए अमरिंदर पर जमकर हमला बोला था.

राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी

फिरोजपुर में गुरु हर सहाय क्षेत्र से विधायक 67 वर्षीय राणा गुरुमीत सिंह सोढ़ी पंजाब के खेल और एनआरआई मंत्री हैं. दो बार के विधायक सोढ़ी 2002 में मुख्यमंत्री के रूप में अमरिंदर सिंह के पहले कार्यकाल के दौरान से मुख्य संसदीय सचिव और मुख्यमंत्री के राजनीतिक सचिव थे.

सोढ़ी 1976 में युवा कांग्रेस में शामिल हुए और पहली बार 1985 में राजीव गांधी के कहने पर उन्होंने चुनाव लड़ा था.
2017 के चुनावों के बाद जब अमरिंदर ने सीएम के रूप में पदभार संभाला था तो सोढ़ी को मंत्री नहीं बनाया गया था, लेकिन बाद में 2018 में पहले बड़े फेरबदल में उन्हें इसमें शामिल किया गया.

पिछले साल अक्टूबर में सोढ़ी के बेटे अनुमित उर्फ हीरा, जो हत्या के प्रयास के एक मामले में जांच का सामना कर रहे थे, को सूचना आयुक्त नियुक्त किया गया था. सोढ़ी खुद पीडब्ल्यूडी की तरफ से उनके और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ दायर किए रिकवरी के एक मामले का सामना कर रहे हैं जो उनके स्वामित्व वाली भूमि के अधिग्रहण के लिए कथित तौर पर दोगुना मुआवजा हासिल करने से जुड़ा है. सोढ़ी ने शुरू में अमरिंदर और सिद्धू के बीच रिश्ते सुधारने की कोशिश की थी, लेकिन असफल रहे और तबसे ही मुख्यमंत्री के पाले में खड़े नजर आ रहे हैं.

साधु सिंह धरमसोत

61 वर्षीय वन एवं सामाजिक न्याय मंत्री धरमसोत नाभा से विधायक हैं. पार्टी के कुछ वरिष्ठ दलित नेताओं में से एक धरमसोत पर पिछले साल एक बड़े अनुसूचित जाति पोस्ट-मैट्रिक स्कॉलरशिप घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा था.

उनके विभाग के ही प्रधान सचिव कृपा शंकर सरोज ने उन पर और उनके अधिकारियों पर पेशेवर कॉलेजों में अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए आवंटित 63 करोड़ रुपये के धन का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था.

पार्टी के भीतर और विपक्ष की तरफ से भारी दबाव के बावजूद अमरिंदर ने धरमसोत के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. मुख्य सचिव विनी महाजन की रिपोर्ट ने एक तरह से धरमसोत को क्लीन चिट देते हुए प्रधान सचिव के निष्कर्षों को उलट दिया था.
हालांकि, विपक्ष और दलित संगठनों ने इस मुद्दे पर सरकार पर अब भी दबाव बना रखा है. फिलहाल इस मामले की अलग से सीबीआई जांच चल रही है.

पांच बार के विधायक धरमसोत शुरू से ही सिद्धू के खिलाफ अमरिंदर का समर्थन करते रहे हैं.

श्याम सुंदर अरोड़ा

63 वर्षीय उद्योग मंत्री श्याम सुंदर अरोड़ा होशियारपुर से विधायक हैं और अमरिंदर के कट्टर समर्थकों में गिने जाते हैं.

दो बार से विधायक अरोड़ा पर इस साल जुलाई में एक गैरकानूनी भूमि सौदे में शामिल होने का आरोप लगा. एक निजी रियल एस्टेट कारोबारी को सरकार की तरफ से 30 एकड़ जमीन बेचे जाने के मामले में राज्य सरकार को कथित तौर पर 400 करोड़ रुपये से अधिक के नुकसान के लिए अकाली दल और आप की तरफ से अरोड़ा पर निशाना साधा जा रहा है. आप ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में पंजाब विजिलेंस ब्यूरो की गिरफ्तर में आए एक पूर्व नायब तहसीलदार के साथ उनके संबंधों पर भी सवाल उठाया है. हालांकि, मंत्री ने सभी आरोपों से इनकार किया है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता अंबिका सोनी के करीबी माने जाने वाले अरोड़ा ने 2002 में चुनाव जीता था. हालांकि, 2007 में उन्हें टिकट नहीं मिला तो उन्होंने एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए थे. उद्योग मंत्री के रूप में अरोड़ा के पास पिछले चार वर्षों में राज्य में निवेश आकर्षित किए जाने के लिहाज से उपलब्धि दर्शाने के नाम पर कुछ भी नहीं है.

भारत भूषण आशु

2012 से लुधियाना पश्चिम सीट से विधायक 50 वर्षीय आशु खाद्य और नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता मामलों के मंत्री हैं.
वह 1997 से 2012 तक लुधियाना में नगरपालिका पार्षद रहे थे. उन्होंने 2012 में विधानसभा चुनाव जीता जब अकाली-भाजपा गठबंधन ने सरकार बनाई थी.

आशु विधानसभा में कांग्रेस पार्टी के उपनेता बने. 2017 में जब अमरिंदर सिंह सत्ता में लौटे तो उन्होंने उन्हें अपनी सरकार में बतौर मंत्री शामिल किया.

बहरहाल, आशु को सिद्धू के खिलाफ एक बेहद व्यक्तिगत शिकायत भी है. 2019 की शुरुआत में स्थानीय निकाय मंत्री के तौर पर सिद्धू ने एक डीएसपी बलविंदर सिंह सेखों को यह पता लगाने का जिम्मा सौंपा था कि क्या एक रियल एस्टेट कारोबारी को आशु के दखल के बाद अवैध रूप से भूमि उपयोग में बदलाव की अनुमति दी गई थी.

सिद्धू ने उस समय परोक्ष रूप से आशु के संदर्भ में यह भी कहा था कि अगर कोई मंत्री इसमें शामिल पाया जाता है तो उसे बख्शा नहीं जाएगा. जुलाई 2019 में कैबिनेट से सिद्धू के इस्तीफे के बाद जांच बाधित हो गई और आशु की शिकायत पर डीएसपी को निलंबित कर दिया गया.

फरवरी 2020 में, निलंबित डीएसपी ने आरोप लगाया कि 28 साल पुराने एक मामले में आशु ने दो खालिस्तानी आतंकियों को पनाह देने की बात कबूल की थी और अपने ही चाचा की हत्या की साजिश रची थी. उन्होंने आशु का ‘इकबालिया बयान’ भी पेश किया लेकिन मामला चुपचाप दबा दिया गया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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