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Tuesday, 8 July, 2025
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गठबंधन की मुश्किलें: कांग्रेस ने ठाकरे मिलन से बनाई दूरी, बिहार और BMC चुनाव बने वजह

पार्टी बिहार चुनाव से पहले सावधानी से कदम बढ़ा रही है, क्योंकि उसे राज ठाकरे की प्रवासी विरोधी छवि और इसके हिंदी बेल्ट के वोट बैंक पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंता है.

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मुंबई: जब ठाकरे परिवार के बिछड़े हुए चचेरे भाइयों ने रविवार को मुंबई में एक रैली में करीब दो दशक बाद साथ मंच साझा किया, तो एक अहम सहयोगी नज़र नहीं आया — कांग्रेस.

फिर सबसे बड़ा सवाल ये उठा कि कांग्रेस को न्योता देने के बावजूद उसने इस कार्यक्रम में हिस्सा क्यों नहीं लिया?

महाराष्ट्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के मुताबिक, पार्टी फिलहाल बहुत सतर्क तरीके से आगे बढ़ रही है. बिहार चुनाव नज़दीक हैं और राज ठाकरे के प्रवासी विरोधी रुख को देखते हुए कांग्रेस हिंदी बेल्ट के वोटर्स को नाराज़ नहीं करना चाहती.

राज्य के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने दिप्रिंट से कहा, “हम एक राष्ट्रीय पार्टी हैं. बिहार विधानसभा चुनाव आने ही वाले हैं, ऐसे में हमारी पार्टी हाईकमान कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थी.”

कुछ नेता इसलिए नहीं गए क्योंकि उन्हें यह लगा कि उन्हें औपचारिक न्योता नहीं दिया गया. हालांकि, शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने दिप्रिंट से कहा कि कांग्रेस को आमंत्रित किया गया था.

राउत ने कहा, “हमने कांग्रेस को न्योता दिया था। मैंने खुद उनके नेताओं से बात की थी. लेकिन कुछ नेता दिल्ली में थे, इसलिए नहीं आ सके. वैसे भी कांग्रेस के कई ऐसे कार्यक्रम होते हैं जिनमें हम नहीं जाते. तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं है.”

“हमारा गठबंधन बरकरार है. महा विकास अघाड़ी (एमवीए) को कोई खतरा नहीं है. हम लोकसभा और विधानसभा दोनों में साथ हैं. स्थानीय चुनावों की अपनी गणित होती है. एमवीए को लेकर चिंता करने की ज़रूरत नहीं है.”

कांग्रेस पार्टी फिलहाल वेट एंड वॉच मोड में है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हर्षवर्धन सपकाल ने दिप्रिंट से कहा, “हमने स्थानीय निकायों के फैसले स्थानीय यूनिट्स पर छोड़े हैं. साथ ही हम देखना चाहते हैं कि क्या ठाकरे वास्तव में राजनीतिक रूप से साथ आ रहे हैं या फिर सिर्फ एक मुद्दे पर ही एक हुए हैं.”

“वैसे भी बीएमसी चुनाव की तारीख अभी घोषित नहीं हुई है. जब समय आएगा, तब हम गठबंधन पर फैसला करेंगे.”

एमवीए की तरफ से एनसीपी (एसपी) सांसद और शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जितेंद्र आव्हाड इस कार्यक्रम में शामिल हुए.

एनसीपी (एसपी) के एक नेता ने दिप्रिंट से कहा, “पवार साहब पहले से तय कार्यक्रमों में व्यस्त थे, इसलिए वे शामिल नहीं हो पाए. लेकिन उन्होंने अपने प्रतिनिधि के तौर पर सुप्रिया ताई और जितेंद्र आव्हाड को भेजा. वैसे भी हिंदी थोपने के मुद्दे पर पवार साहब पहले ही अपना स्टैंड साफ कर चुके हैं. तो रैली का समर्थन न करने का सवाल ही नहीं उठता.”

कांग्रेस की दुविधा

एक राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते, कांग्रेस एक दुविधा में फंस गई थी. जहां उसे लगता था कि ‘मराठी मानूस’ मुद्दा मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन (एमएमआर) में काम कर सकता है, वहीं वह जानती थी कि यह मुद्दा बाकी इलाकों के वोटरों को प्रभावित नहीं करेगा.

इसके अलावा, कांग्रेस उद्धव ठाकरे को नाराज़ नहीं करना चाहती थी, लेकिन राज ठाकरे के प्रवासी और मुस्लिम विरोधी रुख ने कांग्रेस को सतर्क कर दिया.

राज ठाकरे मस्जिदों के बाहर लाउडस्पीकरों के खिलाफ लगातार बोलते रहे हैं और उनके हटाने की मांग की है. एमएनएस के कार्यकर्ता कई बार प्रवासी मज़दूरों और गरीबों को मराठी न आने पर पीट चुके हैं.

कांग्रेस के एक और नेता ने कहा, “हम एक अखिल भारतीय पार्टी हैं. जहां उद्धव ठाकरे इस समय मुंबई और बीएमसी चुनावों पर ध्यान दे रहे हैं, हमें उससे आगे भी सोचना है—हिंदी बेल्ट को भी ध्यान में रखना है. हम राज ठाकरे के साथ खड़े हुए नहीं दिख सकते, जो हिंदी विरोधी और मुस्लिम विरोधी रुख के लिए जाने जाते हैं.”

कई कांग्रेस नेताओं को लगता है कि अगर उद्धव, नगर निगम चुनावों के लिए राज के साथ मिलते हैं, तो कांग्रेस को अलग से चुनाव लड़ना चाहिए. इसके अलावा, इस नेता ने विधानसभा चुनावों के दौरान शिवसेना (यूबीटी) के साथ सीट बंटवारे को लेकर हुए पुराने मतभेदों की भी याद दिलाई, जब कांग्रेस को बहुत से क्षेत्र छोड़ने पड़े थे.

नेता ने कहा, “मुंबई में हमारा खुद का जनाधार है. अगर हम सेना (यूबीटी) के साथ गठबंधन करते हैं, तो हमारा वोट बैंक (अल्पसंख्यक) यूबीटी की तरफ चला जाता है, लेकिन उनका हिंदुत्व वोट बैंक हमारे पास नहीं आता.”

पिछले कुछ वर्षों में बीएमसी चुनावों में कांग्रेस की स्थिति लगातार कमजोर हुई है. 2007 में जहां कांग्रेस को 227 में से 76 सीटें मिली थीं, वहीं 2012 में यह घटकर 52 और 2017 में सिर्फ 31 सीटें रह गईं.

एक कांग्रेस पदाधिकारी ने, जो कार्यक्रम में शामिल हुए थे, कहा, “हालांकि, ऊपर से संवाद बहुत स्पष्ट नहीं था. हमारी मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष वर्षा ताई ने ट्वीट के जरिए दोनों ठाकरे को बधाई दी, लेकिन हमारे कोई नेता कार्यक्रम में नहीं पहुंचे. यह काफी भ्रमित करने वाला था.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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