जिस प्रकार से ‘अतिआत्मविश्वासी’ सुखबीर बादल और ‘हठी’ बिक्रम सिंह मजीठिया पार्टी को चला रहे हैं उससे उनकी पार्टी के नेता परेशान हैं.
चंडीगढ़: पंजाब की 98 वर्ष पुरानी सिख पार्टी इस समय आतंरिक कलह के दौर से गुजर रही है. कम से कम शिरोमणि अकाली दल के चार वरिष्ठ नेता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से नाराज हैं.
10 वर्षों तक राज्य में शासन करने के बाद, 2017 के विधानसभा चुनावों में अकालियों ने सत्ता गवां दी. अभी डेढ़ साल ही हुए हैं सत्ता से बाहर हुए, लेकिन पार्टी में दरार आने लगी है.
शनिवार को, राज्यसभा सांसद एव वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींडसा ने “स्वास्थ्य कारणों” का हवाला देते हुए पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया.
एक दिन बाद ही पार्टी के लोकसभा सांसद रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा समेत पार्टी के तीन दिग्गजों ने पार्टी को चलाने के तौर तरीके पर सार्वजनिक तौर पर निराशा प्रकट की.
रविवार को ब्रह्मपुरा ने अमृतसर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जहां पर उनके साथ पूर्व सांसद रतन सिंह अजनाल भी थे. पार्टी के नेतृत्व से नाराज एक अन्य वरिष्ठ नेता पूर्व कैबिनेट मंत्री सेवा सिंह सेखवां भी थे.
जबकि छह बार मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल पार्टी के संरक्षक हैं. फिर भी आलोचना के मुख्य कारण उनके बेटे और पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल (जो पूर्व उपमुख्यमंत्री भी थे) हैं. पिता-पुत्र की जोड़ी ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए 7 अक्टूबर को पटियाला में एक रैली का आयोजन किया है. इस दौरान वे पार्टी को “एकजुट” दिखाने का प्रयास करेंगे.
शिरोमणि अकाली दल ने भी असंतोष को व्यक्त किया है.
पार्टी के महासचिव डॉ दलजीत सिंह चीमा ने कहा, “इस तरह के विरोधाभास राजनीतिक दलों में नये नहीं हैं. जो नेता आवाज उठा रहे हैं, उनके पास ऐसा करने का निजी कारण हो सकता है. पार्टी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने जा रही है. बादल साहब (प्रकाश सिंह बादल) एक महान नेता हैं और हर किसी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते हैं.”
हाई कमान ने दिग्गज नेताओं तक पहुंचने का प्रयत्न किया है लेकिन उन्हें मनाना आसान काम नहीं होगा.
सेखवां ने दिप्रिंट को बताया, “मैंने जो निर्णय लिया है, उस पर वापस सोचने का कोई सवाल ही नहीं है. मैं पटियाला रैली में भाग नहीं लूंगा.
वरिष्ठ नेता बनाम नये नेता
सूत्रों ने कहा कि सुखबीर के हाथों में पूरी तरह से कमान आ जाने के बाद सच्चे टकसाली अकाली पार्टी के काम से नाखुश हैं. जबकि वे प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व को स्वीकार करते हैं. वे असेंबली चुनावों के बाद प्रकाश सिंह बादल के “सेवानिवृत्ति मोड” में जाने और पार्टी की बाग-डोर “अतिआत्मविश्वासी” सुखबीर और उनके “हठी” साले बिक्रम सिंह मजीठिया के हाथ में आने से नाराज हो गए.
वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि वे ही दोनों निर्णय लेते हैं, सही हो या गलत और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से चाहते हैं कि वे कोई सवाल न करें.
सेखवां ने कहा, “बरसों से हम पार्टी और सिख संस्थानों के क्षरण के विचारों को उठा रहे हैं. लेकिन हमने पार्टी की चारदीवारी और अनुशासन में रहकर किया हैं.
“अगर नये नेतृत्व ने हमारी बातों के महत्व को समझा होता तो हम खुलकर सामने आने और सिख संगत के सामने अपना मामला उठाने का कदम नहीं उठाते.”
बादल परिवार जब सत्ता में था तब अकाली दल के कुछ ही नेता उनके खिलाफ बात करने की हिम्मत करते थे. अब बहुत से नेता बादल परिवार में सत्ता के केंद्रीकरण से नाराज हैं. ढींडसा जो कि दशकों तक बादल परिवार के वफादार रहे हैं, उन्हें नरेंद्र मोदी कैबिनेट में जगह नहीं मिली, इससे वे नाराज हो गए. उनके बजाए, सुखबीर की पत्नी हरसिमरत कौर को कैबिनेट में जगह दे दी गयी.
ब्रह्मपुरा, सेखवां और अजनाला का माजा क्षेत्र में जनाधार है, जिसे मजीठिया ने हथिया लिया. मजीठिया द्वारा दरकिनार कर दिए जाने से तीनों नेता नाराज हैं. सूत्रों के अनुसार, उन्हें यह अनुचित लगता है कि निचले स्तर पर काम किये बिना, सुखबीर का रिश्तेदार और शीर्ष नेतृत्व से निकटता के कारण वे राजनितिक रूप से शक्तिशाली हैं.
घटती पंथी अपील
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का विद्रोह उस समय आया है जब शिरोमणि अकाली दल को अपने मुख्य निर्वाचन क्षेत्र में सिख वोट बैंक खोने की संभावना का सामना करना पड़ रहा है.
जब पार्टी 2015 में सत्ता में थी तब राज्य को हिलाकर रख देने वाली अपमानजनक घटनाएं सामने आई थीं. पिछले तीन महीनों से पार्टी को गंभीर राजनीतिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है.
गुरु ग्रंथ साहिब (जिसे सिख गुरु मानते हैं) के बेअदबी का मुद्दा विधानसभा चुनावों में अकालियों की बर्बादी के लिए काफी हद तक जिम्मेदार माना जाता है.
जून में यह मुद्दा फिर से उठाया गया था, जब एक सदस्यीय न्यायमूर्ति रंजीत सिंह (सेवानिवृत्त) आयोग ने बेअदबी की घटनाओं की जांच की और अपनी रिपोर्ट कांग्रेस के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को सौंपी थी.
रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया कि डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह के अनुयायियों ने बेअदबी की योजना बनाई और उसे अंजाम दिया लेकिन बादल की अगुआई वाली तत्कालीन अकाली सरकार ने डेरा को खुश करने के लिए, “राजनीतिक दबाव” में आकर कार्रवाई नहीं की. अकाली शासन के दौरान शीर्ष सिख निकाय अकाल तख़्त ने डेरा प्रमुख को भी माफ़ कर दिया था, ताकि सिख निकायों के असंतोष को कम किया जा सके.
रिपोर्ट में कोटकपूरा शहर के पास पुलिस गोलीबारी के लिए भी बादल को दोषी ठहराया गया था, जिसमें दो सिख प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई थी. दोनों प्रदर्शनकारी एक बड़े समूह का हिस्सा थे जो बेअदबी के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे.
विधानसभा में गलत रणनीति
सभी पक्षों से आलोचना की बावजूद, अगस्त में मानसून सत्र के दौरान अकाली खुद को बचाने में असफल रहे, जहां उन्होंने कमीशन की रिपोर्ट के निष्कर्षों पर विशेष चर्चा का बहिष्कार किया.
आम आदमी पार्टी (एएपी) के विधायकों के साथ सक्रिय सहयोग से ट्रेज़र बेंच ने सात घंटे की बहस के दौरान बादल की निंदा की, जिसका लाइव प्रसारण किया गया था.
स्थिति का आकलन करने के लिए 30 अगस्त (सत्र समाप्त होने के दो दिन बाद) को शिरोमणि अकाली दल की कोर कमेटी की बैठक में, वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी विधायकों के बहस का बहिष्कार करने के फैसले के पर सवाल उठाया.
सेखवां के अलावा, पूर्व कैबिनेट मंत्री तोता सिंह और लोकसभा सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने सुखबीर सिंह की विधानसभा के पटल की रणनीति को अस्वीकार कर दिया. उन्होंने महसूस किया कि पार्टी के विधायकों को बहस में हिस्सा लेना चाहिए था और कांग्रेस का सामना करना चाहिए था.
उन्हें शांत करने के लिए, मूल समिति ने धार्मिक मुद्दों पर पार्टी के नए नेतृत्व का “मार्गदर्शन” करने के लिए पुराने टकसाली नेताओं के सात सदस्यीय पैनल का गठन किया. लेकिन यह कदम बहुत छोटा कदम था और बहुत देर हो चुकी थी.
सुखबीर ने खोई जमीन को वापस पाने के लिए राज्य में ‘जबर विद्रोह’ नामक रैलियों की एक श्रृंखला की योजना भी बनाई. पहली 9 सितंबर को अबोहर में और अगली 15 सितंबर को फरीदकोट में आयोजित की गई थी. हालांकि, ढींडसा फरीदकोट रैली में शामिल नहीं हुए.
एसजीपीसी और अकाल तख़्त पर नियंत्रण
वरिष्ठ अकाली नेता अवतार सिंह मकर सत्र के बाद सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ सार्वजनिक रूप से बोलने वाले पहले व्यक्ति थे.
मकर, जो एसजीपीसी के अध्यक्ष थे, जब डेरा प्रमुख को माफ़ी दी गई तो उन्होंने ने मीडिया को बताया कि वह माफ़ी देने और विभिन्न सिख निकायों से परामर्श किए बिना सुखबीर सिंह बादल के द्वारा लिए फैसले के “खिलाफ” थे.
पार्टी के राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए दो सिख निकायों का स्पष्ट दुरुपयोग अब खुले तौर पर सामने आ गया है. सिख बुद्धिजीवियों ने शिरोमणि अकाली दल के नियंत्रण से एसजीपीसी और अकल तख़्त को “मुक्त” करने की मांग की है.
एसजीपीसी के सदस्य किरणजोत कौर ने कहा, “एसजीपीसी सिखों के हित में काम करने के लिए बनाई गई थी, न कि राजनीतिक दल के हित में.”
“पिछले दशक में इसपर सिखों के नियंत्रण को कमजोर किया गया है. सिख प्रतिनिधि के रूप में संस्था की शक्ति और सम्मान कम हो गया है.”
सेखवां ने कहा कि वे पार्टी के नेतृत्व के खिलाफ तभी आए, जब चीजें हाथ से निकल गयीं.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि “एसएडी, एसजीपीसी और अकाल तख़्त लगभग अस्तित्व के संकट का सामना कर रहे हैं और हम मूक दर्शक नहीं बने रह सकते हैं.
अगर हमारी बातों को पार्टी के भीतर सुना गया होता, तो हम बाहर नहीं आते और सिख संगत के सामने अपने विचार नहीं रखते. लेकिन हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं था.
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