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Thursday, 25 April, 2024
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सुष्मिता देव से लगे तेज झटके के बाद जागी कांग्रेस, बग़ावत रोकने के लिए पायलट और देवड़ा को मानने में जुटी

कांग्रेस का पार्टी नेतृत्व लगातार मिलिंद देवड़ा और सचिन पायलट के साथ बातचीत कर रहा है, दोनों को और अधिक केंद्रीय भूमिका देने पर विचार किया जा रहा है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि किसी और का इस्तीफा न हो.

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नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार पिछले महीने महिला कांग्रेस प्रमुख सुष्मिता देव द्वारा अपने पद से हटने के चौंकाने भरे फ़ैसले को देखते हुए विद्रोह की किसी भी अन्य संभावना को दूर करने के लिए कांग्रेस पार्टी अपने युवा नेताओं तक पहुंचने की कोशिश कर रही है.

सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेतृत्व राजस्थान में सचिन पायलट और महाराष्ट्र में मिलिंद देवड़ा के साथ लगातार बातचीत कर रहा है और इन दोनों नेताओं को किसी बड़ी केंद्रीय भूमिका में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है.

ज्ञात हो कि इसी 16 अगस्त को, सुष्मिता देव ने अचानक सार्वजनिक रूप से कांग्रेस छोड़ने की घोषणा की और इसके कुछ ही घंटे बाद, वह तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में शामिल हो गईं. उनका इस तरह पार्टी से जाना कई लोगों के लिए एक आश्चर्य की बात थी क्योंकि उन्हें हमेशा राहुल गांधी के वफादार के रूप में देखा जाता था. वे सिलचर से कांग्रेस सांसद रहीं थी और वर्तमान में अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष थीं.

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने उनके इस्तीफे की खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्हें ‘बहुमुखी’, ‘प्रतिभाशाली’ और ‘मेरी प्रिय मित्र’ जिनका ‘कांग्रेस की विचारधारा के साथ पीढ़ीगत संबंध’ था – के रूप मे संबोधित किया. सुष्मिता देव असम कांग्रेस के वरिष्ठ नेता स्वर्गीय संतोष मोहन देव की बेटी हैं.

मार्च 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया और इसी साल जून में जितिन प्रसाद के जाने के बाद सुष्मिता कांग्रेस पार्टी छोड़ने वाला नवीनतम प्रमुख युवा चेहरा बन गयी हैं. सिंधिया और प्रसाद दोनों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में चले गए हैं और सिंधिया तो अब केंद्रीय मंत्री के रूप में अपनी सेवा दे रहे हैं.

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कांग्रेस के साथ पीढ़ियों के संबंधों के बावजूद, ये तीनों नेता प्रतिद्वंद्वी दलों में शामिल हो गए हैं. इससे,पार्टी के शीर्ष नेताओं के अंदर अन्य नेताओं द्वारा इस चलन के अनुसरण करने की संभावना को लेकर चिंता पैदा हो गई है.


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मिलिंद देवड़ा का महत्व

इस बीच दिप्रिंट को पता चला है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में मिलिंद देवड़ा से मुलाकात की थी, जहां देवड़ा ने उन्हें इस बात का आश्वासन दिया कि वह पार्टी के एक वफादार सिपाही बने रहेंगे, .

कांग्रेस के एक सूत्र का कहना है कि, ‘उन्होंने पार्टी नेतृत्व को यह आश्वासन दिया कि वह कांग्रेस के प्रति वफादार हैं और पार्टी से बाहर नहीं जाएंगे’

पार्टी आलाकमान अब देवड़ा को पार्टी में निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) में जगह देने पर विचार कर रहा है.

सिंधिया, प्रसाद और देव के पार्टी छोड़ने और राजीव सातव की मई में कोरोनोवायरस से मृत्यु के बाद बाद सीडब्ल्यूसी में चार स्थान खाली पड़े हैं.

अगर देवड़ा को सीडब्ल्यूसी में कोई पद दिया जाता है, तो यह इस नेता के लिए एक प्रतिष्ठित नियुक्ति होगी जिसे हाल ही में महाराष्ट्र कांग्रेस में लगभग दरकिनार कर दिया गया है.

देवड़ा 2004 और 2014 के बीच दो बार सांसद रहे हैं और मनमोहन सिंह सरकार के दूसरे कार्यकाल में संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी और नौवहन जैसे मंत्रालयों में राज्य मंत्री रहे है

2019 के लोकसभा चुनावों से पहले उन्हें मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन अंततः चुनावों में कांग्रेस की बुरी पराजय के बाद उन्होने यह पद छोड़ दिया.

2019 के आम चुनाव में देवड़ा ने मुंबई दक्षिण से शिवसेना के अरविंद सावंत के खिलाफ चुनाव लड़ा था, और उन्हें 3.21 लाख वोट मिले थे जो उन्हें 2014 में मिले वोटों से लगभग 75,000 वोट अधिक था. हालांकि देवड़ा को पिछले दो चुनाव मे हार का मुँह देखना पड़ा है , लेकिन इन दोनों चुनावों में ज़मीन पर कांग्रेस के संगठन की अनुपस्थिति और मोदी लहर को देखते हुए उनका प्रदर्शन विश्वसनीय था.

देवड़ा कई मुद्दों पर मुखर रहे हैं और अक्सर अपने मन की बात कहते रहते हैं जो पार्टी लाइन के विपरीत भी हो सकती है – विशेष रूप से अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण का समर्थन करने जैसी बात.

वह उन 23 पार्टी नेताओं के गुट में भी शामिल थे, जिन्होंने अगस्त 2020 में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को एक ‘पूर्णकालिक और प्रभावी नेतृत्व’ की मांग करते हुए पत्र लिखा था.

तब से, देवड़ा के कांग्रेस से संभावित रूप से बाहर होने के बारे में बार-बार अफवाहे उड़ती रहती है, इसके बावजूद वह अब तक पार्टी के प्रति वफादार रहे हैं. इसलिए सीडब्ल्यूसी में उनका शामिल होना ऐसी किसी भी संभावना को खत्म करने का एक पूर्व प्रयास होगा.


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पायलट को मिल सकती है एआईसीसी में भूमिका

कांग्रेस नेतृत्व राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट की पार्टी में भूमिका को लेकर भी चिंतित है, ख़ासकर उनके और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच जारी संघर्ष को लेकर राज्य इकाई में लंबे समय से चल रही उथल-पुथल को देखते हुए.

जैसा कि दिप्रिंट ने पहले ही बताया था, राजस्थान सरकार में जल्द एक कैबिनेट फेरबदल होने वाला है जिसमे पायलट के चार वफादारों को कैबिनेट में शामिल किए जाने की संभावना है. इसके अलावा एक ‘अस्थायी समाधान’ के रूप में, कांग्रेस नेतृत्व पायलट को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, पार्टी की केंद्रीय निर्णय लेने वाली सभा, में एक केंद्रीय भूमिका भी दे सकता है.

हालांकि, पायलट ने अभी तक इस बारे में अपना मन नहीं बनाया है क्योंकि इस नेता ने पिछले सात वर्षों – जब से उन्हें 2014 में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमिटी का प्रमुख बनाया गया था – से राजस्थान में अपना आधार तैयार किया है,

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने अपना नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘ यह उनके द्वारा अपने लिए यहां बनाए गये किले जैसा है, जिसे वे इतनी आसानी से नहीं छोड़ेंगे.’

ज्ञात हो कि राजस्थान विधानसभा का सत्र 9 सितंबर से शुरू होने वाला है, और अगर पार्टी राज्य कैबिनेट में कोई फेरबदल करने का फैसला करती है या फिर पायलट को एआईसीसी में किसी भूमिका की पेशकश करती है, तो यह सब कुछ या तो विधानसभा सत्र से पहले या बाद में होगा.

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