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Thursday, 2 May, 2024
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धान की खरीद के बाद अब दलितों के लिए स्कॉलरशिप योजना को लेकर आमने-सामने हैं मोदी और KCR सरकार

तेलंगाना ने अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप वाली योजना के केंद्र द्वारा संशोधित संस्करण को लागू नहीं किया है. नई योजना के तहत कि राज्यों के माध्यम से शिक्षण संस्थानों को पैसे दिए जाने के बजाए छात्रों को धनराशि सीधे तौर पर हस्तांतरित की जाती है.

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नई दिल्ली: धान खरीद पर मचे हालिया विवाद के बाद के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) के नेतृत्व वाली तेलंगाना सरकार एक अन्य प्रमुख योजना, भारत में अध्ययन के लिए अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप (पीएमएस-एससी) को लेकर केंद्र सरकार के साथ आमने-सामने की लड़ाई की मुद्रा में है.

तेलंगाना ने इस योजना के केंद्र द्वारा संशोधित संस्करण को लागू नहीं किया है जिसके तहत डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर मोड के तहत सीधे छात्रों को रकम भेजी जाती है.

सूत्रों के अनुसार, तेलंगाना सरकार नई संशोधित योजना को लेकर नाखुश है और यह छात्रों के बजाय शिक्षण संस्थानों को पैसे ट्रांसफर करना चाहती है.

पिछली योजना के तहत, केंद्रीय सरकार से पहले राज्यों को पैसा ट्रांसफर किया जाता था, जो फिर उन्हें विभिन्न संस्थानों के हवाले कर देते थे.

मगर, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों से इस योजना के बारे में अनियमितताओं की सूचना प्राप्त होने के मद्देनजर केंद्र ने दिसंबर 2020 में इस योजना में संशोधन किया था.

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केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, नई संशोधित योजना के तहत, देश भर में अब तक 32 लाख छात्रों को साल 2022 में सीधे कुल 2,200 करोड़ रुपये मिले हैं. इसमें तेलंगाना शामिल नहीं है.

केंद्र सरकार इस योजना के लिए 60 प्रतिशत धन मुहैया कराता है और शेष राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जाता है. इस योजना के दो घटक हैं – ट्यूशन फीस (शिक्षण शुल्क) का भुगतान करने के लिए दिया गया पैसा और छात्रों के लिए भत्ता.

अधिकारी ने कहा, ‘इस राशि का काफी बड़ा हिस्सा ट्यूशन फीस का है. संशोधित योजना के तहत, एक बार छात्रों द्वारा धनराशि प्राप्त हो जाने के बाद, उन्हें सीधे उन संस्थानों को भुगतान करना होगा जहां वे पढ़ रहे हैं.’

इस अधिकारी ने आगे बताया कि अगर तेलंगाना सहमत नहीं होता है तो उसे केंद्रीय सहायता के हिस्से के रूप में हर साल लगभग 270 करोड़ रुपए का नुकसान होगा.

हालांकि राज्य की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस ) सरकार के अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने इस योजना को लागू करने से इनकार नहीं किया था, लेकिन उन्हें नए संशोधनों के बारे में ‘काफी देर से’ सूचित किया गया था, और इसलिए वे इसे लागू नहीं कर पा रहे हैं.


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छात्रों द्वारा पैसा का उपयोग अन्य उद्देश्यों के लिए किये जाने के बारे में चिंताअधिक ड्रॉपआउट दर

दिप्रिंट से बात करते हुए तेलंगाना के मुख्यमंत्री कार्यालय के सचिव राहुल बोज्जा ने कहा, ‘हमने संशोधित योजना को लागू करने से इंकार नहीं किया था. हमें संशोधनों के बारे में काफी देर से सूचित किया गया था और इसकी अंतिम समय सीमा 31 मार्च थी. भारत सरकार चाहती थी कि यह 31 मार्च तक लागू हो जाए. हमने सेंट्रल डेटाबेस में डेटा डाल दिया था.’

उन्होंने कहा, ‘इसे अभी तक लागू नहीं किए जाने की वजह यह है कि हमने (राज्य सरकार ने) संशोधित योजना के गुण और दोषों तथा छात्रों के खातों में सीधे पैसे डालने के क्या प्रभाव होंगे, इन सब पर चर्चा नहीं की है.’

बोज्जा ने ऐसे कई सारे संभावित प्रभावों की चिन्हित किया जैसे कि छात्रों द्वारा किसी अन्य उद्देश्य के लिए पैसे का उपयोग, ड्रॉपआउट की दर का बढ़ना और संस्थानों का छात्रों द्वारा पूरी फीस का भुगतान करने तक उन्हें कोर्स में भाग लेने की अनुमति नहीं देने का फैसला आदि शामिल हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार केंद्रीय धनराशि वाले कोष के बिना ही पुरानी योजना को अपने दम पर जारी रखने के लिए राज्य के बजट से 450 करोड़ रुपए खर्च कर रही है.

तेलंगाना सरकार को इस योजना के लिए राजी करने समेत सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस साल फरवरी में राज्य के मुख्य सचिव के साथ एक चर्चा की थी.

दिप्रिंट से बात करते हुए, केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘मुख्यमंत्री छात्रों को सीधे धनराशि उपलब्ध नहीं कराने की बात पर अड़े हुए लग रहे थे. उन्होंने बताया कि उन्हें डर है कि छात्र संस्थानों को फंड (फीस) नहीं देंगे.’

अधिकारी ने आगे कहा, ‘इस मसले के समाधान और मंत्रालय ने राज्य सरकार को आश्वासन दिया था कि छात्रों के खातों में पैसे ट्रांसफर होने के बाद तुरंत ही संस्थानों को भी एक सूचना मिलेगी ताकि वो भी उनसे (छात्रों से) संपर्क कर सकें.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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