scorecardresearch
Monday, 9 December, 2024
होमराजनीतिएक साल बाद भी बिना नेता प्रतिपक्ष के झारखंड विधानसभा, क्या चाहती है हेमंत सोरेन सरकार

एक साल बाद भी बिना नेता प्रतिपक्ष के झारखंड विधानसभा, क्या चाहती है हेमंत सोरेन सरकार

इस पूरे मसले पर बीजेपी ने राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी विधायक दल के नेता के तौर पर अधिकृत किया है लेकिन मामला दल-बदल कानून के तहत फंसा हुआ है.

Text Size:

रांची: झारखंड सरकार के एक साल पूरे होने को है. अगले महीने हेमंत सोरेन अपना रिपोर्ट कार्ड भी पेश करने जा रहे हैं. इस दौरान विधानसभा के कुल चार सत्र आयोजित किए गए हैं. विधानसभा की कुल 19 दिन कार्यवाहियां चली हैं, जिसमें बजट सत्र के अलावा, सरना आदिवासी धर्मकोड जैसे महत्वपूर्ण बिल भी पास किए गए हैं. वह भी एक दिन का विशेष सत्र बुलाकर और यह सब हो गया बिना नेता प्रतिपक्ष के. क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष ने बीजेपी की ओर से चुने गए बाबूलाल मरांडी को आधिकारिक रूप से स्वीकृति नहीं दी है. बीजेपी ने इसके लिए विधानसभा के बजट सत्र में कई दिनों तक हंगामा भी किया, सदन की कार्यवाही नहीं चलने दी.

मामले को समझने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव के बाद 81 विधानसभा सीटों में बीजेपी 37, जेएमएम 19, जेवीएम 8, कांग्रेस 6, आजसू 5, बीएसपी 1, माले 1, झारखंड पार्टी 1, जय भारत समानता पार्टी 1, नवजवान संघर्ष मोर्चा 1, मार्क्सिस्ट को-ऑर्डिनेशन को 1 सीट मिली थी.

बहुमत के लिए 41 सीटों की जरूरत थी. बाबूलाल मरांडी के झारखंड विकास मोर्चा के छह विधायकों ने एक साथ बीजेपी का दामन थाम लिया. यहां से चला दल– बदल कानून के तहत मामला. तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव को लेकर कोर्ट में मामला चलता रहा. चार साल के बाद दल-बदल को मंजूरी दी गई.

बीते विधानसभा चुनाव के बाद बदली राजनीतिक परिस्थिति में बाबूलाल मरांडी ने पहले अपने दो विधायकों को पार्टी से निकाला फिर झारखंड विकास मोर्चा को भंग किया. खुद बीजेपी में शामिल हो गए. कहा, बीजेपी अगर पार्टी कार्यालय में झाड़ू लगाने को भी कहेगी, तो वह करेंगे. इसके बाद उनके दो विधायक प्रदीप यादव और बंधू तिर्की ने कांग्रेस को अपना समर्थन दे दिया. ऐसे में मामला एक बार फिर दल-बदल कानून के तहत आ गया और फिर से विधानसभा अध्यक्ष को तय करना है कि इस कानून के तहत बाबूलाल की विधायकी जाएगी या फिर उनके दो विधायकों की. या फिर दोनों को ही मंजूरी मिल जाएगी. पिछली बार जहां अंपायर बीजेपी के थे, तो अबकी जेएमएम के हैं.

सितंबर महीने में स्पीकर रवींद्र नाथ महतो ने मामले का स्वत: संज्ञान लेकर विधायक बाबूलाल मरांडी, प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को नोटिस भेजकर यह जवाब मांगा कि उनका मामला 10वीं अनुसूची यानी दल-बदल कानून के तहत आता है. जवाब मांगने के बाद 23 नवंबर को पहली सुनवाई की तारीख तय की गई. पहली तारीख में बाबूलाल मरांडी के वकील ने उनका प्रतिनिधित्व किया. वहीं प्रदीप यादव के वकील और बंधु तिर्की स्वयं अपना पक्ष रखने स्पीकर के न्यायाधिकरण में हाजिर हुए.

बाबूलाल मरांडी की ओर से उनके वकील ने यह दलील देकर सुनवाई को स्थगित रखने का आग्रह किया है कि उनके मुवक्किल ने स्पीकर के नोटिस के खिलाफ हाईकोर्ट में मामला दायर किया है. हाईकोर्ट का फैसला क्या आता है, उसके बाद ही सुनवाई शुरू हो लेकिन स्पीकर ने बाबूलाल मरांडी के वकील की इस दलील को नकारते हुए सुनवाई की अगली तारीख मुकर्रर कर दी है.

नेता प्रतिपक्ष के न होने के लिए विधानसभा अध्यक्ष जिम्मेदार नहीं

वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष और जेएमएम विधायक रविंद्रनाथ महतो ने दीप्रिंट से कहा, ‘बिना नेता प्रतिपक्ष झारखंड विधानसभा हमें खुद खराब लग रहा है. लेकिन ऐसा क्यों है, इसका जवाब सामने वाले से पूछना चाहिए. अगर कोई पार्टी टूटती है, उनके मेंबर कहां जाते हैं, ये देखने का काम तो विधानसभा अध्यक्ष का है. वही मैं देख रहा हूं. अगर जल्दबाजी में कोई निर्णय ले लिया और जिसके पक्ष में फैसला नहीं आएगा, वही कहेगा कि स्पीकर ने मनमर्जी चलाई. इसलिए जब मामला मेरे न्यायाधिकरण में है, तो सुनवाई होने दीजिए. फिलहाल अगर नेता प्रतिपक्ष नहीं हैं, तो उसके लिए हम लोग जिम्मेवार नहीं हैं.’

वहीं पिछली सरकार में दल-बदल कानून के तहत समय पर फैसला न देने वाले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और बीजेपी नेता प्रो दिनेश उरांव ने कहा कि, ‘फिलहाल मामला न्यायाधिकरण के पास है. ऐसे में उनका इस मसले पर कुछ भी कहना उचित्त नहीं होगा. हालांकि उन्होंने माना कि उनके समय में मामले को चार साल लटकाए रखना, ठीक नहीं था.’


यह भी पढ़ें: RSS-VHP की मुहिम के बीच झारखंड सरकार ने पारित किया सरना धर्म कोड, क्या 705 जनजातियां इसे स्वीकारेंगी


बाबूलाल ने कहा, मान्यता न देना थेथरई है, हम छोड़ेंगे नहीं

इस पूरे मसले पर बीजेपी की ओर से अधिकृत विधायक दल के नेता और राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने दीप्रिंट से कहा, ‘जान-बूझकर बदमाशी की जा रही है. हम तो कोई भी काम विधि सम्मत करते हैं. हमारी पूर्व की पार्टी ने विलय के प्रस्ताव को पारित किया और उसे बीजेपी ने स्वीकार किया. फिर चुनाव आयोग ने उस पर मुहर लगा दी. गठन या विलय को मान्यता देने का अधिकार चुनाव आयोग को है. ऐसे में इसे रोकने का कोई हक नहीं बनता है. जहां तक उन दो विधायकों की बात है तो जेवीएम ने उन्हें पहले निकाला. उन्होंने भी इसे चैलेंज नहीं किया. फिर भी विधानसभा अध्यक्ष ने स्वतः संज्ञान लेकर नोटिस जारी कर दिया. साफ है वह मुर्दा को भी जिंदा रखे हुए हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘मामले को न्यायाधिकरण में जबर्दस्ती खींचा गया है. इस थेथरई का कोई जवाब नहीं है. हम इनको छोडे़ंगे नहीं. वो मुझे नेता प्रतिपक्ष न माने उससे क्या फर्क पड़ता है. पार्टी मानती है, बस.’

वरिष्ठ पत्रकार और दि ट्रिब्यून के लीगल एडिटर सत्यप्रकाश कहते हैं, दल-बदल कानून और उसके अनुपालन से चुनाव आयोग का कोई लेना-देना नहीं है. यह पूरी तरह विधानसभा अध्यक्ष का मामला है. लेकिन उनके फैसले को भी कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.

जानकारी के मुताबिक दल-बदल के मामले में स्पीकर के फैसले को न्यायिक समीक्षा से बाहर रखने के प्रावधान को 1993 में सुप्रीम कोर्ट में अवैध घोषित कर दिया गया.

झारखंड में दल-बदल कानून के अब तक 28 मामले आ चुके हैं सामने

झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार चंदन मिश्र कहते हैं, ‘दल-बदल कानून के तहत अब तक 28 मामले विधानसभा अध्यक्ष के न्यायाधिकरण के संज्ञान में लाए गए हैं. फिलहाल जेवीएम के तीन में से दो तिहाई विधायकों प्रदीप यादव और बंधु तिर्की के कांग्रेस में शामिल होने के बाद शेष बचे एक विधायक बाबूलाल मरांडी का बीजेपी में शामिल होने का मामला कहीं से 10वीं अ्नुसूची का उल्लंघन नहीं है. दूसरी ओर चुनाव आयोग ने भी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) नामक दल का चुनाव चिन्ह जब्त करते हुए इसके एक सदस्य का बीजेपी में शामिल होने की जानकारी दी है.’

इधर बीजेपी में एक गुट अब इस बात पर जोर दे रहा है कि ‘अगर जेएमएम बाबूलाल को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनने देगी तो बीजेपी की तरफ से किसी और को नामित किया जाना चाहिए. जिसकी संभावना कम ही दिखती है.

इस मसले पर बाबूलाल कहते हैं, ‘ये तो पार्टी को निर्णय लेना है. फिलहाल उसने मुझे इस पद के लायक समझा है.’

लेकिन इस बीच सवाल ये है कि आखिर कब तक बेजीपी सदन में बिना नेता प्रतिपक्ष के हिस्सा लेगी. इसके लिए अगर हंगामा होता है तो जिम्मेवार कौन होगा. जाहिर है, हंगामे का नुकसान झारखंड की जनता को ही झेलना होगा.

(आनंद झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार हैं)

share & View comments