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Thursday, 2 May, 2024
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छत्तीसगढ़ में हार के बाद भाजपा में बढ़ी गुटबाजी, पार्टी का हाल है भगवान भरोसे

2018 के अंतिम महीने में सत्ता से बेदखल होने के बाद लोकसभा चुनाव 2019 को छोड़कर, शायद ही ऐसा कोई समय आया हो जब नेताओं ने कार्यकर्ताओं को संदेश दिया गया हो कि भाजपा कांग्रेस का मुकाबला करने में सक्षम है.

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में भाजपा को एक ओर जहां चुनावों में लगातार हार का सामना कर पड़ रहा है वहीं दूसरी तरफ प्रदेश संगठन नेताओं में आपसी सामंजस्य की कमी और उनके अंतर्विरोध से भी पार्टी काफी कमजोर हो रही है.

यह इस बात से साफ हो जाता है कि 2018 में सत्ता से बेदखल होने के बाद पार्टी के दिग्गज नेताओं के बीच कभी एक साथ मिलकर सत्तारूढ़ दल कांग्रेस का सामना करने की सोच नहीं बन पायी है. पार्टी के जानकार मानते हैं कि भाजपा का वर्तमान प्रदेश नेतृत्व भी इस दिशा में ऐसी कोई मजबूत पहल नहीं कर पाई है जिससे यह कहा जा सके कि 2018 के विधानसभा चुनाव में पिट जाने के बाद पार्टी ने कोई सबक लिया हो. संगठन के कुछ नेताओं का कहना है कि प्रदेश में पार्टी नेतृत्व को सभी गुटों को साथ लेकर चलने का जल्द ही कोई फार्मूला बनाना पड़ेगा वरना संगठन में व्यप्त गुटबाजी के चलते राज्य मेंं होने वाले चुनावों में पार्टी को हमेशा मुंह की खानी पड़ेगी.

गुटबाजी नहीं स्वाभाविक मतभेद

हालांकि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी संगठन के अंदर गुटबाजी को स्वाभाविक मतभेद की संज्ञा देते हैं लेकिन पार्टी के कुछ बड़े नेता यह साफ तौर पर कह रहे हैं कि कई धड़ों में बंटी छत्तीसगढ़ भाजपा के लिए आनेवाले दिनों में यह बहुत घातक हो सकता है क्योंकि पार्टी इस दौर से पहली बार गुजर रही है. एक वरिष्ठ भाजपा नेता जो पूर्व मुख्यंत्री डॉक्टर रमन सिंह के काफी करीबी माने जाते थे, नाम न जाहिर न किए जाने की शर्त पर उन्होंने बताया कि राज्य के गठन को बीस साल बीत चुके हैं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब पार्टी संगठन सत्ता की मदद के बिना चल रहा है. इस नेता के अनुसार भाजपा के लिए संगठन में गुटबाजी एक बड़ी चुनौती साबित हो रही है.


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प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल में गुटबाजी का आलम यह है कि पार्टी के नेता अब कहने लगे हैं कि संगठन के क्षत्रपों को एक साथ लाने में राज्य का नेतृत्व असहाय है. अब इस दिशा में केंद्रीय नेतृत्व को ही कोई बड़ी पहल करनी होगी. भाजपा के एक आदिवासी विधायक कहते हैं ‘बाहर से तो कुछ ज्यादा नहीं दिख रहा है लेकिन अंदरूनी तौर पर स्थिति ‘अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग’ वाली है. प्रदेश के बड़े नेता एक दूसरे के साथ दिखना भी नही चाहते. यहां तक कि संगठन के राजनैतिक कार्यक्रम भी बड़े नेता अपने धड़ों की आवश्यकता अनुसार तैयार कराकर उसमें भाग लेते हैं.’

वही दूसरी तरफ दिप्रिंट से बात करते हुए प्रदेश भाजपा अध्यक्ष कहते हैं ‘पार्टी के अंदर किसी प्रकार की गुटबाजी नही है. हां, नेताओं में कभी-कभी मुद्दों के आधार पर वैचारिक मतभेद स्वाभाविक तौर पर होता है लेकिन यह कोई बड़ी बात नहीं है, सभी बड़े नेता जब भी अवसर आता है एकजुट होकर सत्तारूढ़ दल का सामना करते हैं.’

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उसेंडी आगे कहते हैं, ‘नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा के हार का मुख्य कारण है राज्य सरकार द्वारा सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर चुनाव में की गयी गड़बड़ी. यह सर्व विदित है कि भूपेश बघेल सरकार ने नगर निगम मेयर, नगर पालिका अध्यक्ष और नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जनता द्वारा सीधे क्यों नही कराया. ईवीएम के बजाय मतपत्रों के माध्यम से चुनाव करवाना भी सरकार को शक के दायरे में लाता है.’

भाजपा अध्यक्ष के अनुसार नगरीय निकाय चुनाव के जीत का एजेंडा का बघेल सरकार ने पहले से ही तय कर लिया था और सरकारी मशीनरी का दुरपयोग पार्षदों की खरीद फरोख्त के लिए किया.

धड़ों में चल रही है पार्टी

प्रदेश भाजपा नेताओं का कहना है कि गुटबाजी के चलते पार्टी आज करीब तीन से चार धड़ों में बटी हुई है. हालांकि संगठन में मुख्यतः दो ही बड़े धड़े हैं जिनमें एक का नेतृत्व पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह करते हैं और दूसरे का उनके ही सरकार में 15 साल तक कैबिनेट मंत्री रहे बृजमोहन अग्रवाल.

इनके अलावा भाजपा की राष्ट्रीय महासचिव सरोज पांडेय, प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी, पूर्व प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और वर्तमान केंद्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंद कुमार साय के साथ साथ पूर्व सांसद और त्रिपुरा गवर्नर रमेश बैस के भी अपने ही धड़े हैं. हालांकि बैस के गवर्नर बनने के बाद उनके समर्थकों ने अब दूसरे गुटों का सहारा लेना शुरू कर दिया है.

बड़े नेता कतराते हैं एक दूसरे से, नहीं चूकते विरोधी को हराने में

कई बार तो ऐसा लगता है कि भाजपा के अंदर बड़े नेता एक दूसरे को देखना भी पसंद नही कर रहें हैं एक साथ आना तो दूर की बात है. पार्टी के एक प्रवक्ता का कहना है कि 2018 के अंतिम महीने में सत्ता से बेदखल होने के बाद लोकसभा चुनाव 2019 को छोड़कर, वह भी संभवतः पार्टी हाईकमान के डर से, ऐसा कोई समय नहीं आया जब कार्यकर्ताओं के अंदर एक संदेश दिया जा सके की भाजपा कांग्रेस का मुकाबला करने में सक्षम है. पिछले एक साल में पार्टी नेतृत्व द्वारा ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं चलाया गया जिसके तहत पार्टी के बड़े नेता भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ मिलकर जनता के बीच जाएं.

यहां तक कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा सीएए और एनआरसी के पक्ष में जन जागरुकता अभियान में आनेवाले केंद्रीय मंत्रियों और पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं के रायपुर प्रवास में भी ये नेता एक साथ नही दिखाई दे रहे हैं. यदि एक गुट का नेता इन केंद्रीय नेताओं के साथ दिखाई देता है तो दूसरे गुट का नेता वहां दिखना भी पसंद नही करता.

गुटबाजी यहीं नही थमती, समय आने पर एक क्षत्रप का नेता अपने विरोधी को हराने के लिए कांग्रेस के नेताओं से भी हांथ मिलाने में भी कोई कसर नही छोड़ता. इसी माह सम्पन्न हुए नगरीय निकाय चुनावों में कई वार्डों में देखा गया कि एक बड़े गुट के नेता ने, रायपुर और बिलासपुर नगर निगमों में अपने विधान सभा क्षेत्र में पहले तो मजबूत विरोधियों को टिकट नहीं लेने दिया और यदि किसी ने टिकट ले भी लिया तो उसे हराने में कोई कसर नही छोड़ी.

प्रदेश नेतृत्व असहाय, केंद्रीय नेतृत्व बना मूक दर्शक

पार्टी के अंदर व्याप्त गुटबाजी और एकजुटता की कमी का एक प्रमुख कारण प्रदेश इकाई के प्रति केंद्रीय संगठन का बेपरवाह रवैया भी है. प्रदेश संगठन में कुछ बड़े नेता मानते हैं कि रमन सिंह सरकार के जाने के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य की सुध लेना ही छोड़ दिया है. ये नेता कहते हैं कि केंद्रीय नेताओं को इस बात से कुछ लेना-देना नहीं है कि छत्तीसगढ़ भाजपा के अंदर क्या चल रहा है.

नेता नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की प्राथमिकता वे राज्य हैं जहां चुनावी प्रक्रिया या तो चल रही है या फिर आने वाले एक साल के अंदर चुनाव होना है. संगठन के एक पदाधिकारी कहते हैं, ‘यही कारण है कि पार्टी की प्रदेश इकाई का केंद्र में कोई माई बाप नहीं रह गया है और राज्य का नेतृत्व पिछले एक साल में इतना सक्षम नहीं हो पाया की गुटबाजी को कम कर पाये.

नड्डा के नेतृत्व से बढ़ी सुधार की उम्मीद

प्रदेश भाजपा प्रवक्ता सचिदानंद उपासने जो स्वयं को किसी गुट का हिस्सा नहीं मानते कहते हैं कि जेपी नड्डा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के बाद प्रदेश भाजपा के कायाकल्प की पूरी उम्मीद है. उपासने बताते हैं की नड्डा प्रदेश के नेताओं की जानकरी रखते हैं क्योंकि उन्होंने चार साल छत्तीसगढ़ प्रभारी का कार्यभार संभाला है.

उपासने के अनुसार प्रदेश भाजपा को एक सशख़्त नेतृत्व की आवश्यकता है और नड्डा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने परिवर्तन की पूरी उम्मीद है.


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वहीं दूसरी ओर एक अन्य नेता नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि छत्तीसगढ़ भाजपा पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का देश के गृह मंत्री के रूप में व्यस्तता के कारण प्राथमिकताओं में पीछे रह गयी. परन्तु नड्डा प्रदेश भाजपा की नब्ज समझते हैं जिससे आनेवाले दिनों में यहां की गतिविधियों पर सुधार आएगा. इन नेताओं का कहना है कि नड्डा प्रदेश संगठन के गुटीय संघर्ष के बारे में पूरी तरह से परिचित हैं और सभी क्षत्रपों के नेताओं को निजी तौर पर समझते हैं.

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