नई दिल्ली: मई 2023 में राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मणिपुर का दौरा नहीं करने के मुद्दे पर मंगलवार को लोकसभा में राजनीतिक विवाद छिड़ गया, जिसमें विपक्ष ने सत्र से उनकी अनुपस्थिति पर सवाल उठाए और सत्ता पक्ष ने विपक्षी नेताओं पर प्रधानमंत्री पर निशाना साधने का आरोप लगाया.
मणिपुर के 2025-26 के बजट पर चर्चा की शुरुआत करते हुए, जिसे केंद्र सरकार की 2024-25 के लिए अनुदानों की अनुपूरक मांगों के दूसरे बैच और 2021-22 के लिए अतिरिक्त अनुदान मांगों के साथ उठाया गया था, कांग्रेस के गौरव गोगोई ने सवाल किया कि एक महत्वपूर्ण चर्चा चल रही थी, लेकिन प्रधानमंत्री सदन से गायब क्यों थे.
इस पर स्पीकर ओम बिरला ने हस्तक्षेप किया और कहा कि मोदी ने उन्हें मॉरीशस यात्रा के कारण अपनी अनुपस्थिति के बारे में सूचित किया था. गोगोई और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बीच पूर्व की टिप्पणी को लेकर वाकयुद्ध हुआ.
सीतारमण ने कांग्रेस सांसद पर प्रधानमंत्री पर हमला करने का आरोप लगाया. जवाब में गोगोई ने कहा कि वे प्रधानमंत्री का सम्मान करते हैं, लेकिन मोदी ने भी संसद में अपने भाषणों के दौरान पूर्व प्रधानमंत्रियों पर हमला किया था.
मणिपुर बजट पर चर्चा लोकसभा में इसलिए की गई क्योंकि राज्य में अब राष्ट्रपति शासन है और विधानसभा को निलंबित रखा गया है.
सीतारमण ने सोमवार को लोकसभा में मणिपुर का बजट पेश किया था. बजट में 2025-26 में 35,103.90 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान है, जो चालू वित्त वर्ष में 32,656.81 करोड़ रुपये से अधिक है. हिंसा में विस्थापित हुए लोगों को अस्थायी आश्रय प्रदान करने के लिए 15 करोड़ रुपये, विस्थापित लोगों के लिए आवास के लिए 35 करोड़ रुपये, राहत अभियान के लिए 100 करोड़ रुपये और मुआवजे के लिए 7 करोड़ रुपये की घोषणा की गई है.
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और द्रविड़ मुनेत्र कषगम के विपक्षी सांसदों ने कहा कि मणिपुर का बजट ज़मीनी हकीकत को नहीं दर्शाता है — हिंसा भड़कने के बाद से 250 लोगों की जान जा चुकी है और 60,000 लोग पलायन कर चुके हैं.
मणिपुर की स्थिति के लिए केंद्र को जिम्मेदार ठहराते हुए कांग्रेस सांसद गोगोई ने कहा कि बंदूक की नोंक पर पूर्वोत्तर राज्य में शांति बहाल नहीं की जा सकती और इसका समाधान केवल राजनीतिक समाधान ही है.
राज्य की स्थिति को “संवेदनशील” बताते हुए गोगोई ने मांग की कि प्रधानमंत्री को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के औचित्य के बारे में सदन को अवगत कराना चाहिए. गोगोई ने जानना चाहा, “राज्य में विधानसभा की स्थिति क्या है? क्या यह भंग है या निलंबित अवस्था में है?”
असम के सांसद ने कहा कि अगर मणिपुर में शांति बहाल करनी है तो केंद्र को राज्य के लोगों से बात करनी चाहिए. गोगोई ने कहा, “…अगर आप मणिपुर में शांति चाहते हैं तो मणिपुर के लोगों की बात सुनने के लिए धैर्य रखें. उनकी राजनीतिक आकांक्षाएं क्या हैं, उनकी आशंकाएं, डर क्या हैं? आपके पास इसे सुनने की ताकत होनी चाहिए.”
यह भी पढ़ें: इस्तीफे के बाद पहले इंटरव्यू में कार्यवाहक सीएम बीरेन सिंह ने कहा, ‘मणिपुर BJP में कोई खेमा नहीं’
‘पिछले कुशासन को याद कीजिए’
हालांकि, विपक्ष पर निशाना साधते हुए सीतारमण ने कहा कि मणिपुर कैसे जल रहा है और प्रधानमंत्री ने वहां का दौरा क्यों नहीं किया, इस पर बात करने के बजाय गोगोई और कांग्रेस को राज्य में सत्ता में रहने के दौरान अपनी पार्टी के रिकॉर्ड को देखना चाहिए.
उन्होंने उन्हें याद दिलाया कि 1993 में, जब राजकुमार दोरेंद्र सिंह मणिपुर के मुख्यमंत्री थे, जातीय नागा और कुकी समुदायों के सदस्यों के बीच एक बड़ा झगड़ा हुआ था. सीतारमण ने पूछा, “इसमें 750 लोगों की मौत हुई और 350 गांव नष्ट हो गए. उस समय पी.वी. नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे और शंकरराव चव्हाण गृह मंत्री थे. उन्होंने संसदीय बहस में भी हिस्सा नहीं लिया…उस समय गोगोई कहां थे, कांग्रेस कहां थी?”
सीतारमण ने आगे कहा कि जब फरवरी 1994 में राज्यसभा में राष्ट्रपति शासन के लिए प्रस्ताव रखा गया था, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री या गृह मंत्री ने नहीं, बल्कि तत्कालीन राज्य मंत्री पी.एम. सईद ने जवाब दिया था.
वित्त मंत्री ने कहा, “…और 1993 में जब हिंसा चरम पर थी, तब भी गृह राज्य मंत्री राजेश पायलट ने संसद को संबोधित किया था. राज्यसभा के लिखित रिकॉर्ड से पता चलता है कि हिंसाग्रस्त राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग करते हुए भाजपा सदस्य सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री के जवाब या मौजूदगी के लिए दबाव नहीं डाला.”
उन्होंने कहा, “इस तरह हम विपक्ष में संवेदनशील मामलों में सत्तारूढ़ पार्टी का सम्मान करते हैं. पिछले 50-60 वर्षों के कुशासन की खामियों को ध्यान में रखना चाहिए. राज्य में सबसे खराब नाकाबंदी कांग्रेस के समय हुई थी.”
सीतारमण ने कहा कि इस तरह के ट्रैक रिकॉर्ड के साथ, कांग्रेस को मणिपुर की बात नहीं करनी चाहिए.
उन्होंने आगे कहा कि जब मणिपुर में आंतरिक रूप से विस्थापित लोग राहत शिविरों में थे, तो गृह मंत्री अमित शाह तीन दिनों के लिए वहां गए थे. “गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय 24 दिनों तक मणिपुर में थे और विभिन्न शिविरों का दौरा किया.”
‘मणिपुर के साथ अपमानजनक व्यवहार’
सिर्फ गोगोई ही नहीं, मणिपुर की स्थिति और करीब दो साल तक सामान्य स्थिति बहाल करने में केंद्र की अक्षमता की आलोचना विपक्षी सांसदों ने पार्टी लाइन से हटकर की. उनमें से कई ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मणिपुर के बजट पर राज्य विधानसभा में नहीं, बल्कि संसद में चर्चा हो रही है. कई लोगों ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने के औचित्य पर सवाल उठाए.
केंद्र ने 13 फरवरी को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की अधिसूचना जारी की थी, एन. बीरेन सिंह के मुख्यमंत्री पद से हटने के चार दिन बाद.
कांग्रेस के इनर मणिपुर सांसद बिमोल अकोईजाम ने कहा कि राज्य का बजट राज्य के साथ केंद्र के “अवमाननापूर्ण व्यवहार” को दर्शाता है. उन्होंने कहा कि राज्य का बजट मणिपुर की अर्थव्यवस्था की भयावह स्थिति को भी दर्शाता है. सांसद ने टिप्पणी की, “…मणिपुर की राजकोषीय देनदारी सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 37.07 प्रतिशत है. राज्य दो साल से संकट में है. क्या बजट में यह मौजूद है?”
उन्होंने कहा कि पिछले साल मणिपुर में भारी बाढ़ आने के बावजूद राज्य को केंद्र से कोई वित्तीय मदद नहीं मिली, लेकिन बिहार को बाढ़ के बाद 11,000 करोड़ रुपये दिए गए. उन्होंने पूछा, “क्यों? क्या बिहार मणिपुर से ज़्यादा भारतीय है?”
अकोईजाम ने आगे कहा कि कई सांसदों ने प्रधानमंत्री के मणिपुर न आने की बात कही है, लेकिन अब इससे उन पर कोई असर नहीं पड़ता. उन्होंने कहा, “आज मैं इस बात से लगभग बेपरवाह हूं कि वे आते हैं या नहीं. अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन देश के बाकी लोगों को पता होना चाहिए कि प्रधानमंत्री के मणिपुर आने के लिए वीज़ा की कोई समस्या नहीं है. वे यूक्रेन जाकर शांति की बात कर सकते हैं, लेकिन उनके अपने नागरिकों का कत्लेआम हो रहा है. 60,000 से अधिक लोग बेघर हो गए हैं.”
समाजवादी पार्टी के सांसद नीरज मौर्य ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मणिपुर के बजट पर संसद में चर्चा हो रही है, न कि राज्य विधानसभा में. उन्होंने कहा कि राज्य में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई जानी चाहिए और सभी की राय ली जानी चाहिए.
बाहरी मणिपुर के सांसद और कांग्रेस नेता अल्फ्रेड कन्नगम एस आर्थर ने केंद्र पर मणिपुर की घाटियों में परियोजनाओं को अनुपातहीन रूप से मंजूरी देने का आरोप लगाया, जबकि पहाड़ियों की अनदेखी की, जहां 95 प्रतिशत आदिवासी आबादी रहती है.
उन्होंने कहा, “2024-25 में मनरेगा कार्यों के लिए कोई धनराशि जारी नहीं की गई है और काम करने के केवल 25 दिन हैं. मुझे केंद्रीय योजनाओं में मणिपुर के लिए कोई आवंटन नहीं दिखता. हम अब सबसे कम आय वाले देश हैं. मणिपुर की पहाड़ियां बेकार हो रही हैं क्योंकि वहां कोई निवेश या नौकरियां नहीं हैं.”
तृणमूल कांग्रेस की सायनी घोष ने पुलिस शस्त्रागारों से गोला-बारूद लूटे जाने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार की चुप्पी पर सवाल उठाया.
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस बात पर प्रकाश डाला कि मणिपुर के लोगों को चल रही हिंसा के कारण किस तरह से नुकसान उठाना पड़ रहा है, इसके अलावा इंटरनेट बंद होने और शिविरों में विस्थापित लोगों के संघर्ष के मुद्दे पर भी बात की.
यह स्वीकार करते हुए कि मणिपुर में एकता की कमी है, भाजपा के उत्तर-पूर्व प्रभारी संबित पात्रा ने राज्य में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू किए गए विभिन्न उपायों का विवरण दिया. “प्रभावित व्यक्तियों को तीन अलग-अलग मौकों पर 1,000 रुपये प्रति व्यक्ति की वित्तीय सहायता वितरित की गई है, जो कुल 30 करोड़ रुपये है…सरकारी स्कूलों ने मुफ्त शिक्षा प्रदान की है.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: मणिपुर में राष्ट्रपति शासन से मैतेई और कुकी दोनों परेशान, नागरिक समाज संगठनों ने अपनाया कड़ा रुख