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Friday, 15 November, 2024
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मोदी के ब्रेनचाइल्ड, BJP के पसमांदा मुस्लिम ‘एक्सपेरिमेंट’ की असली परीक्षा दिल्ली निकाय चुनाव में होगी

दिल्ली के ओखला, मटिया महल, सीलमपुर और मुस्तफाबाद जैसे वार्डों में मुसलमानों की तादात काफी ज्यादा है. भाजपा ने अपने चारों मुस्लिम उम्मीदवार पसमांदा (ओबीसी) समुदाय से चुने हैं.

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नई दिल्ली: दिल्ली में अगले माह होने जा रहे निकाय चुनावों के नतीजे यह बताएंगे कि पसमांदा मुस्लिमों के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पैठ चुनावी राजनीति की कसौटी पर कितनी खरी उतरती है, क्योंकि पार्टी ने अपने सभी चार मुस्लिम उम्मीदवार पिछड़े समुदाय से चुने हैं.

भाजपा की तरफ से 4 दिसंबर को होने वाले दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) चुनाव के लिए मैदान में उतारे गए चार मुस्लिम उम्मीदवारों में तीन महिलाएं हैं—सबा गाजी (चौहान बांगर), शमीना रजा (कुरेश नगर) और शबनम मलिक (मुस्तफाबाद). वहीं, चांदनी महल से इरफान मलिक को प्रत्याशी बनाया गया है.

फारसी में ‘कभी पीछे रह गए’ लोगों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द ‘पसमांदा’ का मतलब है—आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों के ओबीसी मुसलमान. पसमांदा कथित तौर पर भारत की मुस्लिम आबादी का 80-85 प्रतिशत हैं, और उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी में तो एक बड़ा हिस्सा पसमांदा ही हैं.

आम आदमी पार्टी (आप) की तरफ से मिलने वाली कड़ी चुनौती और एमसीडी में लगातार तीन कार्यकाल तक काबिज रहने के कारण सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही भाजपा इस बार भी जीत सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है.

भाजपा नेता आतिफ रशीद ने बताया कि 2017 के एमसीडी चुनाव में पार्टी ने छह मुसलमानों को टिकट दिया था, जिनमें से दो पसमांदा समुदाय से थे. इसमें से केवल पांच ने चुनाव लड़ा था, क्योंकि एक का नामांकन रद्द हो गया था. इस चुनाव में पांचों प्रत्याशी हार गए थे.

भाजपा उम्मीदवार इरफान मलिक ने दिप्रिंट को बताया, ‘प्रधानमंत्री ने पसमांदा समुदाय को आगे बढ़ाने के लिए तमाम प्रयास किए हैं. वह अकेले ऐसे नेता हैं जिन्होंने इस समुदाय के बारे में सोचा. मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि भाजपा का टिकट मिलेगा लेकिन मुझसे चुनाव लड़ने को कहा गया. मुझे मुस्लिम समुदाय का समर्थन मिलने का पूरा भरोसा है.’

उन्होंने तर्क दिया कि कांग्रेस ने हमेशा पसमांदा और मुसलमानों को ‘यूज एंड थ्रो’ वाले सामान की तरह इस्तेमाल किया है. इरफान ने आगे कहा, ‘वे केवल हमारे बारे में केवल तभी सोचते हैं जब चुनाव जीतने की बात आती है. जब बात समुदाय के कल्याण के बारे में निर्णय लेने की होती है तो कहीं नजर नहीं आते. मैं एक साधारण भाजपा कार्यकर्ता हूं, फिर भी मुझे टिकट मिल गया है. यह दर्शाता है कि भाजपा कैसे काम करती है.’

गौरतलब है कि मलिक ने दो साल पहले तब्लीगी जमात विवाद के दौरान चुप रहने के लिए आप और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आलोचना की थी. मलिक ने कहा, ‘वे सिर्फ विज्ञापन देने और मुस्लिमों को वोट के लिए इस्तेमाल करने में विश्वास रखते हैं. जब मुस्लिम मुद्दों के लिए आवाज उठाने की बात आती है, तो कहीं नजर नहीं आते हैं.’

मुसलमान दिल्ली की कुल आबादी का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा हैं. ओखला, मटिया महल, सीलमपुर, मुस्तफाबाद, बल्लीमारान, बाबरपुर, सदर बाजार, चांदनी महल, अबू फजल एन्क्लेव, श्रीराम कॉलोनी और बृजपुरी जैसे कई इलाकों में इस समुदाय के वोटर की अच्छी-खासी तादात है.


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2015 के दिल्ली चुनाव में आप को बड़ी संख्या में उन मुसलिमों का समर्थन मिला, जो कांग्रेस से छिटककर केजरीवाल की पार्टी के साथ आ गए थे. इस बार, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) और भीम आर्मी ने उन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं जो मुस्लिम बहुल सीटों और अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के लिए आरक्षित हैं.

हैदराबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पार्टी सहयोगियों को सलाह दी थी कि पसमांदा जैसे वंचित तबके से आने वाले गैर-हिंदुओं के बीच पैठ बढ़ाएं, जो विभिन्न सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी भी हैं. सितंबर में, भाजपा ने पहली बार किसी गुज्जर (या जिन्हें यूपी में गुर्जर कहा जाता है) गुलाम अली खटाना को जम्मू-कश्मीर से राज्यसभा के लिए नामित किया था.

‘हमारे उम्मीदवारों को एक मौका दें’

मुस्तफाबाद वार्ड के बारे में जानकारी देते हुए शबनम मलिक ने दिप्रिंट को बताया कि वार्ड में 90 फीसदी लोग पसमांदा समुदाय से हैं. शबनम ने कहा, ‘पहले लोग कांग्रेस को वोट देते थे, लेकिन जबसे पीएम मोदी ने इस पिछड़े समुदाय के उत्थान की बात की है, लोगों ने भाजपा पर भरोसा करना शुरू कर दिया है. समुदाय का मानता है कि कोई तो है जो उनके कल्याण के बारे में सोचता है. हमें समुदाय से जबर्दस्त समर्थन मिल रहा है और हमें अपनी जीत का पूरा भरोसा है.’

उन्होंने कहा कि पसमांदा समुदाय के और भी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने का मौका मिलना यह दर्शाता है कि भाजपा ने समाज के इस तबके के उत्थान के लिए प्रयास शुरू कर दिए हैं.

भाजपा ओबीसी मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष के. लक्ष्मण का कहना है कि यह कदम बताता है कि बदलाव की शुरुआत हो चुकी है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘यह तो सिर्फ एक शुरुआत है. समाज के उत्थान के लिए और अधिक प्रयास किए जाएंगे.’

भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी सैयद यासिर जिलानी ने दिल्ली निकाय चुनाव की रणनीति के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि पार्टी मुसलमानों के लिए केंद्र की तरफ से की गई पहल के साथ पसमांदा को मुख्यधारा में लाने के प्रयासों के बारे में भी लोगों को बताएगी.

जिलानी ने कहा, ‘पार्टी का नारा ही है ‘सबका साथ, सबका विकास’ और भाजपा प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इस नारे पर अमल भी कर रही है. यही वजह है कि पार्टी ने पसमांदा मुस्लिम चेहरों को टिकट दिया है. हमें उनके जीतने का पूरा विश्वास है. हम वार्डों में जाएंगे और समुदाय से हमें एक मौका देने को कहेंगे क्योंकि वे कांग्रेस और आप को पहले ही आजमा चुके हैं, जो उनके लिए कुछ करने में नाकाम रहे हैं.’

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने बताया कि जुलाई में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान मोदी ने यूपी इकाई को पसमांदा समुदाय पर सरकारी नीतियों के असर का विश्लेषण करने और उनके लिए एक आउटरीच प्रोग्राम बनाने को कहा था.

इस समुदाय के बीच पैठ बढ़ाने के अपने प्रयासों के तहत ही भाजपा ने मार्च में पसमांदा समुदाय से आने वाले दानिश अंसारी को उत्तर प्रदेश सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री बनाया. यहां तक कि राज्य अल्पसंख्यक आयोग और मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष—अशफाक सैफी और इफ्तिखार अहमद जावेद—भी पसमांदा समुदाय से आते हैं.

(अनुवाद: रावी द्विवेदी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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