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Thursday, 19 December, 2024
होमराजनीति'पार्टी इस तरह नहीं चल सकती'- चुनावों से पहले ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में तेज हुए मतभेद के सुर

‘पार्टी इस तरह नहीं चल सकती’- चुनावों से पहले ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस में तेज हुए मतभेद के सुर

अभी तक कम से कम आठ तृणमूल नेताओं ने जिनमें सांसद, विधायक और एक मंत्री शामिल हैं, आरोप लगाया है कि पार्टी के भीतर उनकी आवाज़ सुनी नहीं जा रही है.

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कोलकाता: पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में विरोध बढ़ता जा रहा है जिसकी शुरुआत बुनियादी रूप से अनुभवी नेता सुवेंदु अधिकारी के राज्य मंत्रिमंडल छोड़ने से हुई और इस बगावत ने पार्टी के लिए परेशानी खड़ी कर दी है जबकि विधानसभा के अहम चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं.

पूर्व परिवहन मंत्री अधिकारी, अभी टीएमसी में ही बने हैं लेकिन सोमवार को वो वेस्ट मिदनापुर के अपने गृह क्षेत्र में ममता की रैली में शरीक नहीं हुए जिसके बाद मुख्यमंत्री ने बीजेपी पर आरोप लगाया कि वो उनकी पार्टी को तोड़ने का प्रयास कर रही है.

लेकिन अधिकारी अकेले सीनियर नेता नहीं हैं जो खुले तौर पर टीएमसी के शीर्ष नेतृत्व के सामने खड़े हो रहे हैं. टीएमसी में ऐसे अनुभवी नेताओं की संख्या बढ़ रही है जो खुद को ‘दरकिनार’ किए जाने या बाहरी लोगों तथा प्रोफेशनल मैनेजमेंट एजेंसियों की तयशुदा लाइन पर चलने के निर्देशों पर खुलकर नाराज़गी जता रहे हैं’.

टीएमसी ने चुनाव रणनीतिज्ञ प्रशांत किशोर और उनकी इंडियन पोलिटिकल एक्शन कमेटी (आई-पैक) को अपनी चुनावी रणनीति बनाने के लिए हायर किया है.

कूच बिहार विधायक मिहिर गोस्वामी जैसे कुछ नेता, हाल ही में पाला बदलकर बीजेपी में चले गए हैं जबकि कुछ अन्य नेता ‘दूसरे विकल्पों’ पर विचार कर रहे हैं या ‘अपना अगला कदम उठाने के लिए, सही समय के इंतज़ार में हैं’.

अभी तक कम से कम आठ तृणमूल नेताओं ने जिनमें सांसद, विधायक और एक मंत्री शामिल हैं, आरोप लगाया है कि पार्टी के भीतर उनकी आवाज़ सुनी नहीं जा रही है.


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झगड़े सार्वजनिक हुए

गुटों के आपसी झगड़े तृणमूल कांग्रेस के लिए कोई नई बात नहीं है लेकिन पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक अभी तक वो काफी हद तक स्थानीय स्तर पर सीमित रहे हैं. कभी कोई झगड़ा सार्वजनिक नहीं हुआ.

वो सब, अब बदल गया है.

पिछले पांच महीनों में, अधिकारी के अलावा जिन्होंने नेतृत्व के मुद्दे पर बात की है, कई अन्य नेताओं ने भी पार्टी से अपनी शिकायतों का खुलकर इज़हार किया है.

रविवार को एक जनसभा को संबोधित करते हुए वन मंत्री राजिब बनर्जी ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर आरोप लगाया कि वो कुछ वरिष्ठ नेताओं के गुस्से या बेचैनी के पीछे के कारणों को समझने की कोशिश नहीं कर रहा है.

उनका कहना था कि सुवेंदु के जाने से एक खालीपन पैदा हो जाएगा. उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक योग्यता वाले सभी वरिष्ठ नेताओं को किनारे किया जा रहा है. जो लोग हर समय तारीफ करते रहते हैं, वही फायदे में रहते हैं. मेरी स्थिति अच्छी नहीं है क्योंकि मैं वो नहीं कर सकता’.

एक और वरिष्ठ नेता अतिन घोष, जो कोलकाता नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर हैं, ने कहा था कि बहुत से वरिष्ठ नेताओं को दर्शन से ‘वंचित’ किया जा रहा था. लेकिन, घोष ने बाद में स्पष्टीकरण दिया कि वो अभी भी तृणमूल कांग्रेस के साथ हैं और उनका ममता बनर्जी में भरोसा है.

उत्तरी 24 परगना ज़िले के बैरकपुर से एक और अनुभवी टीएमसी विधायक सिलभद्र दत्ता ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाला था, जिसे प्रशांत किशोर पर एक अप्रत्यक्ष हमले के रूप में देखा गया.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हम कभी पार्टी के खिलाफ नहीं बोलना चाहते थे. हम सिर्फ अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘हमने पार्टी के अंदरूनी मंच पर भी, ये बातें कहने की कोशिश की लेकिन किसी ने हमें नहीं सुना. मैंने पार्टी नेतृत्व की आलोचना नहीं की है, मैंने सिर्फ ये कहा है कि हम किसी बाहरी संस्था के नीचे काम नहीं कर पाएंगे. वो अपने फैसले हम पर थोप रहे हैं. एक सियासी पार्टी इस तरह नहीं चल सकती’.

लेकिन दत्ता ने इस बात को दोहराया कि उन्होंने पार्टी छोड़ने की बात नहीं सोची थी.

पिछले हफ्ते तृणमूल छोड़कर बीजेपी में शामिल होने वाले विधायक मिहिर बोस के भी ऐसे ही विचार थे. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘हम तीन दशकों से अधिक समय तक दीदी के साथ रहे थे, जब तृणमूल वजूद में भी नहीं आई थी. हमने उनपर कभी शक नहीं किया’. उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन सत्ता कोलकाता में केंद्रित हो गई है. साउथ कोलकाता के कुछ मंत्री बने वरिष्ठ नेता ही अपनी चलाते हैं. हम दीदी से नहीं मिल सकते. सुवेंदु अधिकारी जैसे नेताओं का अपनी जगह को छोड़ना, एक खराब संकेत है’.

एक पुराने सांसद ने नाम छिपाने की शर्त पर कहा, ‘ये सही है कि धैर्य के साथ सुनने की जगह कम हो गई है. ममता बनर्जी हमारी नेता हैं लेकिन हमें भी सुना जाना चाहिए. ये वो मुद्दे हैं जिन्हें हम सामने रखना चाहते हैं. लेकिन ईमानदार नेताओं की अनदेखी हो रही है’.


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‘अनुचित आलोचना’

लेकिन तृणमूल कांग्रेस नेता ऐसी आलोचनाओं को ‘अनुचित और अकारण’ करार देते हैं.

तृणमूल सांसद सौगता रॉय ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैंने सुना है कि कुछ वरिष्ठ नेता सार्वजनिक रूप से क्या कह रहे हैं. उनकी आलोचना उचित नहीं है. उनमें से कई आई-पैक के रोल की आलोचना कर रहे हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘वो लोग (आई-पैक सदस्य) नेता नहीं हैं. वो चुनाव रणनीतिज्ञ हैं. वो कुछ राजनीतिक जानकारियों को व्यवसायिक करने यहां आए हैं. उन्हें हायर किया गया है’.

रॉय का कहना था कि आई-पैक ने बहुत सी पार्टियों की सहायता की जिनमें बीजेपी, कांग्रेस, आप और अब डीएमके शामिल हैं. उन्होंने कहा, ‘कोई फैसले नहीं लेते, कमेटियां नहीं बनाते और न ही उम्मीदवार तय करते हैं. वो कुछ बहुत अच्छे विचार सामने रख रहे हैं जिनसे सरकार और पार्टी को फायदा हो रहा है’.

उन्होंने इस विरोध के समय को लेकर भी सवाल उठाया. ‘असंतोष ज़ाहिर करने का ये सही समय नहीं है. हम एक अहम चुनाव में जा रहे हैं. चुनाव से पांच महीने पहले, कुछ वरिष्ठ नेता ऐसे मुद्दों के बारे में बात कर रहे हैं जो पार्टी के अंदर रहने चाहिए थे’.

लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों को लगता है कि कुछ असंतुष्ट तृणमूल नेता पार्टी की चुनावी संभावनाओं को आंकने के बाद, अब खुलकर बोल रहे हैं.

एक राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर पार्था प्रतिम बिस्वास ने कहा, ‘राजनीतिज्ञ अपने पार्टी के खिलाफ टिप्पणी तभी करते हैं, जब उन्हें लगता है कि उनकी पार्टी की चुनावी संभावना अच्छी नहीं है. इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस के भीतर आंतरिक लोकतंत्र भी नीचे पहुंच गया है’.

‘बहुत से पुराने नेताओं के लिए अब पार्टी में जगह नहीं है. इसका मतलब ये नहीं है कि वो सब बीजेपी से मिले हुए हैं. उनमें से कुछ वाकई ईमानदार हैं लेकिन उन्हें दरकिनार कर दिया गया है’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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