नई दिल्ली: 2018 के तेलंगाना विधानसभा चुनावों में जीतने वाली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) – तत्कालीन तेलंगाना राष्ट्र समिति – के 88 विधायकों में से आधे से अधिक ने 2014 की तुलना में 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ अपनी जीत हासिल की.
2014 में इतने अधिक वोट शेयर के साथ जीतने वाले 19 बीआरएस विधायकों में से, एक को छोड़कर सभी सीटें 2018 में बीआरएस के खाते में वापस आ गईं और 13 ने निर्वाचन क्षेत्र के आधे से अधिक वोटों के साथ अपनी सीटें जीतने की उपलब्धि दोहराई.
ये आंकड़े बताते हैं कि विपक्षी दलों के लिए, खासकर त्रिकोणीय मुकाबले में मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव (केसीआर) को सत्ता से हटाना कितना मुश्किल है. हालांकि, एक जनमत सर्वेक्षण ने आगामी चुनाव में बीआरएस के प्रदर्शन में भारी गिरावट का अनुमान लगाया है.
9 अक्टूबर को जारी एबीपी-सी वोटर ओपिनियन पोल में 119 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के लिए 48-60 सीटों का अनुमान लगाया गया था, जिसमें उसके पक्ष में 10 प्रतिशत सकारात्मक रुझान था.
पिछले चुनाव में, कांग्रेस 19 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थी, जिनमें से चार सीटें 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ जीती थी. वहीं ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने सात सीटें जीती थी, तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) ने दो सीटें जीती थी और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने एक सीट पर अपना परचम लहराया था.
जनमत सर्वे में बीआरएस की संख्या 43 से 55 सीटों पर आंकी गई, जिसमें उसके वोट शेयर में लगभग 9 प्रतिशत का उतार-चढ़ाव बताया गया है. हालांकि, बीआरएस अपने आप को इस बात से सांत्वना दे सकता है कि जनमत सर्वे अक्सर गलत साबित हुए हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए, तेलंगाना के NALSAR यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. हरथी वागीशान ने कहा, “निश्चित रूप से स्थिति बहुत ख़राब है. यह किसी भी वैज्ञानिक सर्वेक्षक के लिए भी एक कठिन चुनौती है. लेकिन कांग्रेस खेमे में एक तरह का उत्साह है. हालांकि, हमें कांग्रेस की पूरी लिस्ट देखनी होगी जो आना अभी बाकी है.”
उन्होंने का कि “हालांकि बीआरएस के लिए यह लंबी लड़ाई के बाद की थकान है”.
वागीशान ने कहा, “बीआरएस घोषणापत्र में कुछ भी बहुत नया या अलग नहीं कर रहा है. एक तरह से लग रहा है कि लड़ाई के बाद उनमें थोड़ी-सी थकान दिख रही है क्योंकि उनके पास कहने के लिए कुछ नया नहीं है. वे शासन से जुड़े सवालों को लेकर बहुत गंभीर नहीं हैं. मुझे लगता है कि नए मतदाता कुछ नया चाहेंगे. इस बार युवा मतदाताओं की संख्या भी अच्छी-खासी है.”
हैदराबाद स्थित राजनीतिक विश्लेषक गली नागराजा ने कहा कि कर्नाटक में अपनी जीत के कारण बनी स्थिति के चलते कांग्रेस अच्छी स्थिति में दिख रही है. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “उस सर्वे के बाद से ही बीआरएस में सुधार होता दिख रहा है. यह एक दिलचस्प मुकाबला होगा.”
2018 में चुनाव जीतने वाले बीआरएस के 88 उम्मीदवारों में से 76 उन्हीं निर्वाचन क्षेत्रों से पार्टी के टिकट पर फिर से लड़ने के लिए तैयार हैं. इससे यह पता लगता है कि पार्टी का अपने विधायकों पर काफी विश्वास है.
बाकी के 12, जो बीआरएस की उम्मीदवार की लिस्ट में शामिल नहीं थे, उनमें से दो का उनके कार्यकाल के दौरान निधन हो गया और 2018 में पार्टी ने जिन दो सीटों पर जीत हासिल की उनमें बीआरएस ने अभी तक अपने उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है.
हुजूराबाद विधायक एटाला राजेंदर 2021 में बीजेपी में शामिल हो गए थे. कोराटला विधायक कल्वाकुंटला विद्यासागर राव के बेटे उनकी जगह लेने के लिए तैयार हैं. कामारेड्डी विधायक गम्पा गोवर्धन की जगह केसीआर को दी गई है जो दो सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं.
बीआरएस के प्रवक्ता और तेलंगाना राज्य खनिज विकास निगम (टीएसएमडीसी) के अध्यक्ष कृष्णक मन्ने ने दिप्रिंट को बताया, “कांग्रेस और बीजेपी वाले कह रहे हैं कि राज्य में सत्ता विरोधी लहर है और पूछा कि क्या बीआरएस में उन्हीं उम्मीदवारों को दोहराने का साहस है. वे कह रहे थे कि केसीआर डरे हुए हैं और वह कई उम्मीदवारों को बदलने जा रहे हैं. लेकिन उन्हें पता नहीं है कि केसीआर को चुनौती लेना पसंद है.”
लेकिन राजनीतिक वैज्ञानिक हरथी का कहना है कि कम से कम 20-25 विधानसभा सीटों पर दोबारा उम्मीदवारों के आने से “असहमति” देखने को मिलेगी. उन्होंने कहा, “यह पार्टी के भीतर बहुत प्रभावी असंतोष हो सकता है. इस असंतोष से वे कमज़ोर होंगे.”
50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर वाले उन 50 बीआरएस विधायकों में से सात का वोट शेयर 60-70 प्रतिशत के बीच था. केसीआर के बेटे और मंत्री के.टी. रामा राव ने 71 प्रतिशत वोट शेयर के साथ अपनी सीट सिरसिला जीती थी. केसीआर के भतीजे हरीश राव ने 78.6 प्रतिशत वोट शेयर के साथ अपनी सीट सिद्दीपेट जीती.
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गली नागराजा के अनुसार, 2023 के चुनावों में 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर के साथ जीतने वाले बीआरएस विधायकों को एक फायदा होगा: “बीआरएस उम्मीदवारों के लिए यह फायदा है कि विपक्ष उतना मजबूत नहीं है. केसीआर के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर हो सकती है लेकिन विपक्षी दल अपनी आंतरिक समस्याओं के कारण मौके का फायदा उठाने में असफल हो रहे हैं.”
मैदान में अन्य दल
राज्य की एक अन्य क्षेत्रीय पार्टी असदुद्दीन औवेसी की एआईएमआईएम को भी 2018 में कुछ बड़ी जीत मिली. औवेसी के भाई अकबरुद्दीन औवेसी ने 68 प्रतिशत वोट शेयर के साथ चंद्रयानगुट्टा की सीट जीती. बहादुरपुरा से पार्टी के उम्मीदवार मोहम्मद मोअज़म खान ने 74.2 प्रतिशत वोट शेयर के साथ जीत हासिल की.
2018 में, बीआरएस ने उत्तरी तेलंगाना में हाई मार्जिन के साथ कई सीटें जीतीं. मेडक, रंगा रेड्डी और करीमनगर के पूर्ववर्ती जिले विधानसभा में 37 सदस्य भेजते हैं. इनमें से बीआरएस ने 31 सीटें जीतीं, जिनमें 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर वाली 24 सीटें शामिल थीं. गली नागराजा ने कहा, “उत्तरी कर्नाटक तेलंगाना आंदोलन का केंद्र था और रहेगा. केसीआर का प्रभाव निश्चित रूप से है. इसके अलावा, हालांकि बीजेपी को 2019 में उत्तरी तेलंगाना में फायदा हुआ, लेकिन राज्य चुनावों में बीजेपी एक ताकत नहीं बन सकती.”
उन्होंने कहा, “2018 में, (टीडीपी नेता) चंद्रबाबू नायडू के विधानसभा चुनाव में प्रवेश ने केसीआर को फायदा पहुंचाया. उस समय तेलंगाना की भावना ख़त्म हो रही थी और लोग केसीआर के काम के बारे में बात कर रहे थे. जब नायडू ने कांग्रेस पार्टी से हाथ मिलाया तो तेलंगाना के लोगों की भावना फिर से जीवंत हो उठी और अन्य सभी मुद्दे पीछे छूट गए.”
हालांकि, तत्कालीन खम्मम जिले में – जो अब वर्तमान खम्मम और भद्राद्री कोठागुडेम जिले हैं – बीआरएस लगभग न के बराबर अपनी मौजदूगी दिखा पाई. यहां की 10 सीटों में से बीआरएस सिर्फ एक सीट जीतने में कामयाब रही.
आंध्रप्रदेश की सीमा से लगा खम्मम बीआरएस के लिए हमेशा एक कठिन क्षेत्र रहा है. गली कहते हैं, “तेलंगाना आंदोलन के चरम पर भी, खम्मन कभी इसका हिस्सा नहीं बना था. खम्मम में कांग्रेस की संभावनाएं अधिक दिख रही हैं.”
इस साल जुलाई में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने खम्मम से पार्टी का अभियान शुरू किया था.
बीआरएस नेता कृष्णक कहते हैं, “केसीआर अपने नेताओं पर अक्सर नज़र रखते हैं. कांग्रेस के कई उम्मीदवार निष्क्रिय हो गये हैं. जब केसीआर की बात आती है, तो उनके कार्यक्रम कैडरों और नेताओं को सक्रिय रखते हैं. हमारा चुनाव अभियान एक साल पहले आत्मीय सम्मेलन के साथ शुरू हुआ था, जिसके तहत हमने प्रत्येक गांव में 1,000-2,000 लोगों की बैठकें कीं. संगठन सदैव सक्रिय रहा है. यही कारण है कि ये मार्जिन इतना अच्छा रहा है.”
राज्य में कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि 2018 में राज्य नेतृत्व के भीतर की लड़ाई की पार्टी को भारी कीमत चुकानी पड़ी है. एक कांग्रेस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “पिछली बार हमारा नेतृत्व मुख्यमंत्री पद को लेकर आपस में ही लड़ रहा था. लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा क्योंकि हाईकमान इसमें पूरी तरह शामिल है. वे सर्वे के आधार पर टिकट दे रहे हैं. वे इसे बहुत सख्ती से संभाल रहे हैं.”
कांग्रेस के राज्य प्रवक्ता सैयद निज़ामुद्दीन का मानना है कि पार्टी को अपनी “गारंटियों” और केसीआर के 10 साल के कार्यकाल के कारण पैदा हुई सत्ता विरोधी लहर से फायदा होगा.
उन्होंने कहा, “उन्होंने (केसीआर) बहुत सारे वादे किए, लेकिन कुछ भी पूरा नहीं किया. हमने छह गारंटी दी है. लोगों ने देखा है कि हमने इसे कर्नाटक में लागू किया है और उन्होंने 2014 से पहले (तत्कालीन एकीकृत आंध्र प्रदेश में) हमारा कार्यकाल भी देखा है. लोग सोनिया गांधी पर भरोसा करेंगे, जिन्होंने उन्हें तेलंगाना राज्य दिया. उन्होंने तेलंगाना का वादा किया था और उसे पूरा किया. उन्होंने छह गारंटी देने का वादा किया है और पूरा करेंगी.”
बीजेपी प्रवक्ता संगप्पा जेनावाडे ने केसीआर की सफलता के लिए दो योजनाओं को श्रेय दिया. उन्होंने कहा, “उस समय उनके दो मुख्य वादे थे, रायथु बंधु और कृषि ऋण माफी. इसीलिए उन्हें इतनी सीटें मिलीं और वोट शेयर भी.”
जेनावाडे ने कहा, “लेकिन अब हर बीआरएस विधायक का नाम बहुत खराब हो गया है. प्रत्येक विधायक का एक भ्रष्ट नाम है. हर निर्वाचन क्षेत्र में लोग अपने संबंधित विधायकों के खिलाफ हैं.”
संगप्पा का कहना है कि कर्नाटक और महाराष्ट्र के पास की सीमावर्ती सीटों पर बीजेपी इस बार काफी मजबूत है.
(संपादन : ऋषभ राज)
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