नई दिल्ली: पांच साल पहले तेलंगाना सरकार, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल) और मेघा इंजीनियरिंग इंफ्रा लिमिटेड (एमईआईएल) को पल्लमूरु-रंगारेड्डी लिफ्ट सिंचाई योजना (PRRLIS) में 35,000 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोपों पर जवाब देने के लिए नोटिस भेजा गया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार और BHEL को इस परियोजना से जुड़ी मूल फाइलें पेश करने का आदेश दिया है.
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने 18 दिसंबर को यह आदेश जारी किया. आदेश में कहा गया, “तेलंगाना राज्य से परियोजना के अनुमान तैयार करने से संबंधित मूल फाइल पेश करने को कहा गया है. भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड को उत्तरदाता नंबर 13 – मेघा इंजीनियरिंग इंफ्रा लिमिटेड (MEIL) के साथ संयुक्त उद्यम समझौते से संबंधित मूल फाइल पेश करने को कहा गया है.”
इसके अलावा, पीठ ने बीएचईएल को यह भी आदेश दिया कि वह एक हलफनामा दायर कर बताए कि उसने परियोजना के लिए कौन-कौन से उपकरण बनाए और सप्लाई किए और इस पर उसे कितने भुगतान प्राप्त हुए.
यह मामला पूर्व विधायक नागम जनार्दन रेड्डी द्वारा दायर एक अपील से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने राज्य हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उनकी जनहित याचिका को खारिज कर दिया गया था. रेड्डी ने कथित PRRLIS घोटाले की सीबीआई जांच की मांग की थी.
यह परियोजना कृष्णा नदी पर श्रीशैलम परियोजना जलाशय के जलभराव से 60 दिनों तक 90 हजार मिलियन क्यूबिक फीट (टीएमसी) बाढ़ का पानी उठाने के लिए बनाई गई है. इसका उद्देश्य 12.3 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाना है. इस परियोजना का उद्घाटन 16 सितंबर, 2023 को किया गया था और इसमें 18 पैकेजों के तहत चार चरणों के पंपिंग स्टेशन शामिल हैं.
2017 में, जब रेड्डी भारतीय जनता पार्टी में थे, उन्होंने हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें बीएचईएल और MEIL के संयुक्त उद्यम को दिए गए अनुबंध को चुनौती दी थी. उन्होंने आरोप लगाया था कि इससे सार्वजनिक धन का 2,000 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ है. उनका दावा था कि राज्य सरकार ने परियोजना में इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरणों का मूल्य 5,960 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 8,386 करोड़ रुपये “धोखाधड़ी से” संशोधित किया था.
रेड्डी पिछले साल कांग्रेस छोड़कर भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) में शामिल हो गए थे.
गौरतलब है कि MEIL हाल ही में चुनावी बॉन्ड के दूसरे सबसे बड़े दानदाता के रूप में चर्चा में आया था, जब राजनीतिक दलों को धन देने के इस साधन के आंकड़े सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद सार्वजनिक किए गए थे.
सुप्रीम कोर्ट में रेड्डी की अपील पर अंतिम प्रभावी सुनवाई 25 अगस्त 2022 को हुई थी, जब प्रतिवादियों ने इस याचिका की स्वीकार्यता पर दो प्रारंभिक आपत्तियां उठाई थीं.
प्रतिवादियों ने दावा किया कि रेड्डी इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में आगे बढ़ा रहे हैं, जबकि इसी परियोजना पर उनकी अन्य याचिकाएं तेलंगाना हाईकोर्ट में लंबित हैं. राज्य सरकार ने इस आधार पर उनकी याचिका को “संविधानिक पुनर्निर्णय” (constructive res judicata) के सिद्धांतों का उल्लंघन बताया और हाईकोर्ट में लंबित उनकी अन्य याचिकाओं की जानकारी छिपाने का आरोप लगाया.
रेड्डी की वकील नेहा राठी ने दिप्रिंट को बताया कि कोर्ट ने 18 दिसंबर को दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और राज्य सरकार के दावों के जवाब में दिए गए तर्कों पर विचार करने के बाद फाइलें प्रस्तुत करने का आदेश दिया.
रेड्डी के वकील ने कहा कि हाईकोर्ट में लंबित याचिकाएं, भले ही PRRLIS परियोजना से संबंधित हों, लेकिन उनमें वे भ्रष्टाचार के आरोप शामिल नहीं हैं जो सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील में उठाए गए हैं. वकील ने यह भी तर्क दिया कि “पुनः न्याय” (res judicata) का सिद्धांत सार्वजनिक हित के मामलों पर तब तक लागू नहीं होता जब तक उन मुद्दों पर पूरी तरह से न्यायिक फैसला नहीं लिया गया हो.
रेड्डी ने यह भी कहा कि उन्होंने अपनी अन्य याचिकाओं को छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया है और सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील में उन याचिकाओं का उल्लेख किया गया है.
रेड्डी के अनुसार, तेलंगाना सरकार ने 2014 में PRRLIS परियोजना के लिए एक सरकारी आदेश जारी किया था और इंजीनियरिंग स्टाफ कॉलेज ऑफ इंडिया (ईएससीआई) को विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा था. दिसंबर 2015 में ईएससीआई ने परियोजना के चार चरणों के लिए इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल उपकरणों की लागत 5,960.79 करोड़ रुपये आंकी थी.
हालांकि, रेड्डी ने आरोप लगाया कि इस राशि को बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए 8,386.86 करोड़ रुपये तक बढ़ा दिया गया, जिससे 2,426.07 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ. यह वृद्धि ईएससीआई के अनुमान प्राप्त होने के कुछ ही दिनों के भीतर की गई और इसके तुरंत बाद तकनीकी स्वीकृति भी दे दी गई.
रेड्डी की अपील में कहा गया है, “अनावश्यक जल्दबाजी और आरटीआई के जरिए प्राप्त जानकारी से यह स्पष्ट होता है कि 2,426 करोड़ रुपये की यह वृद्धि बिना किसी गहन जांच के की गई थी.”
रेड्डी ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार और संबंधित विभाग को ईएंडएम उपकरणों की जरूरतों के लिए देश और विदेश से कोटेशन (मूल्य प्रस्ताव) मंगवाने चाहिए थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.
रेड्डी की याचिका में MEIL और बीएचईएल के बीच हुए संयुक्त उद्यम समझौते में कथित खामियों को भी उजागर किया गया है. उनका कहना है कि यह समझौता निजी कंपनी (MEIL) को लाभ पहुंचाने के लिए तैयार किया गया था, क्योंकि इसे आवंटित कार्य की तुलना में अतिरिक्त भुगतान किया गया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)
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