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Friday, 20 December, 2024
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देश के 300 प्रमुख विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों ने मोदी को फिर से जिताने की तैयारी में

इस पहल का लक्ष्य है मोदी सरकार के शिक्षा जगत, जिसे कि आमतौर पर वामपंथ का गढ़ माना जाता है, से असहज संबंधों को सहज बनाना.

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नई दिल्ली: जेएनयू और आईआईटी समेत भारत के 15 शहरों के 30 विश्वविद्यालियों के करीब 300 शिक्षाविद इस सप्ताह एक साझा उद्देश्य-नरेंद्र मोदी को दूसरे कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री बनवाने – के लिए एकजुट हुए हैं.

इस समूह का नाम ‘एकेडमिक्स4नमो’ (Academics4NaMo) रखा गया है, और यह मोदी के बारे में ‘नकारात्मक धारणाओं’ को खत्म करने के लिए बैठकों और बहसों का आयोजन करेगा और शिक्षाजगत के अपने सहकर्मियों को मोदी के साथ खड़े होने के लिए प्रेरित करेगा.

इस पहल का लक्ष्य है मोदी सरकार के शिक्षा जगत, जिसे कि आमतौर पर वामपंथ का गढ़ माना जाता है, से असहज संबंधों को सहज बनाना. असहिष्णुता पर बहस और जेएनयू देशद्रोह विवाद जैसे मुद्दों को लेकर अक्सर दोनों ही पक्ष आमने-सामने होते हैं.

अन्य मुद्दों के अलावा, नवगठित समूह इस बात को भी प्रचारित करेगा कि कैसे गुरुवार को एक अध्यादेश लाकर सरकार ने उस विवादास्पद आरक्षण फार्मूले को निरस्त कर दिया जो कि, आलोचकों के अनुसार, विश्वविद्यालयों में एससी/एसटी और पिछड़े वर्गों के लिए शैक्षणिकों पदों की संख्या को काफी कम कर देता.

‘उन्होंने महिलाओं और गरीबों के लिए काफी कुछ किया है’

एकेडमिक्स4नमो के सदस्यों में भारत के अग्रणी उच्च शिक्षा संस्थानों के शिक्षाविद शामिल हैं. इन संस्थानों में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) सम्मिलित हैं.

समूह की सदस्य, जेएनयू के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान की प्रोफेसर वंदना मिश्रा ने दिप्रिंट को बताया कि वह मोदी का समर्थन इसलिए करती हैं कि मोदी ने महिला सशक्तिकरण के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं.

प्रोफेसर मिश्रा ने कहा, ‘हम नरेंद्र मोदी के लिए बुद्धिजीवी वर्ग का समर्थन जुटाना चाहते हैं क्योंकि उन्होंने विभिन्न वर्ग की महिलाओं के लिए उज्ज्वला योजना (गरीब महिलाओं के लिए एलपीजी कनेक्शन), छह महीने का सवेतन मातृत्व अवकाश और रक्षा सेवाओं में महिलाओं को अधिकारी वर्ग में शामिल करने जैसी कई पहल किए हैं.’

जेएनयू के ही स्कूल ऑफ लैंग्वेजेज़ के प्रोफेसर सुधीर प्रताप ने कहा कि ‘मोदी ने समाज के हर वर्ग का सशक्तिकरण किया और हमारी सीमाओं को भी सुरक्षित बनाया.’

प्रताप ने कहा, ‘मोदी ने आरक्षण, प्रतिनिधित्व और स्वीकार्यता के ज़रिए सशक्तिकरण, शिक्षा, रोज़गार और उद्यमिता सुनिश्चित की.’

दो विश्वविद्यालयों – नरेंद्र देव कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, फैज़ाबाद (अब अयोध्या) और डॉ. बी. आर. आंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, इंदौर – के पूर्व कुलपति और केंद्रीय कृषि मंत्रालय में निदेशक रह चुके आर. एस कुरील कहते हैं कि मोदी की लोकप्रियता उनकी सरकार की गरीब समर्थक नीतियों के कारण है.

कुरील ने दिप्रिंट से कहा, ‘उन्होंने अपनी नीतियों और योजनाओं के ज़रिए महिलाओं और गरीबों को बंधनमुक्त करने के लिए बहुत कुछ किया है. वह राष्ट्रीय एकीकरण के लिए बढ़िया हैं. ये पहली बार है कि भारत ने अपने एकीकरण को मज़बूत रखने के लिए आवश्यक उपाय किए हैं.’

बीएचयू में इंडोलॉजी के प्रोफेसर राकेश उपाध्याय का मानना है कि शिक्षाजगत में वामपंथी विचारधारा ‘एक लंबे समय तक’ हावी रही है.

उन्होंने कहा कि बुद्धिजीवियों का एक वर्ग मोदी के खिलाफ़ खड़ा है, जिसका विरोध किए जाने की ज़रूरत है.

प्रोफेसर उपाध्याय ने कहा, ‘पुरस्कार वापसी गैंग और उस तरह के लोग लंबे समय तक बुद्धिजीवियों के बीच हावी रहे हैं. अब मोदी के समर्थन में खड़े होने और हमारी पीढ़ियों को अपनी सांस्कृतिक विरासत के खोए गौरव का स्मरण कराने का वक्त आ गया है.’

‘पुरस्कार वापसी गैंग’ से उपाध्याय का मतलब उन प्रमुख शिक्षाविदों से है, जिन्होंने कि गोरक्षकों द्वारा दलितों और मुसलमानों के खिलाफ हिंसा, और दक्षिणपंथी मोदी सरकार के कार्यकाल में कथित रूप से बढ़ते सांप्रदायिक विभाजन को लेकर सरकारी सम्मानों को लौटा दिया था.

विवाद के अन्य मुद्दों में हैदराबाद विश्वविद्यालय के पीएचडी छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या का विषय शामिल रहा है. दलित छात्र वेमुला ने विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कथित रूप से जाति के आधार पर भेदभाव के विरोध में जनवरी 2016 में अपनी जान दे दी थी.

वेमुला और चार अन्य छात्रों को आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों के साथ झड़प के बाद हॉस्टल से निकाल दिया गया था. उस विवाद में केंद्र सरकार ने कथित रूप से एबीवीपी का पक्ष लिया था.

सैंकड़ो शिक्षाविदों ने जेएनयू देशद्रोह विवाद के खिलाफ भी विरोध दर्ज कराया था, जब जेएनयू के कुछ छात्रों पर देशद्रोह के आरोप में मामले दर्ज किए गए थे. ये छात्र संसद पर हमला मामले में दोषी अफज़ल गुरू के समर्थन में विश्वविद्यालय में आयोजित एक सभा में शामिल हुए थे, जहां कथित रूप से कुछ लोगों ने ‘भारत विरोधी’ नारे लगाए थे.

किसी एक की परिकल्पना नहीं

एकेडमिक्स4नमो मंगलवार को दिल्ली के आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में अनेक शिक्षाविदों की उपस्थिति में लॉन्च किया गया. इसके सदस्य अपने उद्देश्यों को हासिल करने के लिए अपने सहकर्मियों से भाजपा और उससे जुड़े संगठनों के रुख को स्पष्ट करेंगे. समूह से जुड़े शिक्षाविदों का कहना है कि उनका प्रयास अन्य शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, विद्वानों, पत्रकारों, विशेषज्ञों, स्तंभकारों और चिंतकों तक अपनी बात पहुंचाने का रहेगा.

फेसबुक पर इस नए समूह के परिचय में लिखा है कि ‘इस चुनाव का परिणाम एक उभरते और महत्वाकांक्षी नए भारत या भ्रष्टाचार और निराशा में डूबे अतीत के भारत का कारण बन सकता है.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘इस संघर्ष में मदद के लिए हम विभिन्न समुदायों – देश के अग्रणी विचारकों और पथप्रदर्शकों – से संपर्क कर रहे हैं.’

डीयू के सहायक प्रोफेसर स्वदेश सिंह ने कहा कि नया समूह उनके और उनके जैसे कतिपय अन्य सदस्यों की परिकल्पना है और इसका नेतृत्व किसी एक व्यक्ति के हाथों में नहीं है. बहसों और बैठकों के अलावा समूह लेखों और विचारों को प्रकाशित करने और अपनी बातों के प्रसार के लिए ऑनलाइन गतिविधियों का भी सहारा लेगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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