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Friday, 22 November, 2024
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BSP के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल बोले- UP में बसपा ही BJP का विकल्प, मुस्लिम और OBCs भी हमारे साथ

पाल, जिन्हें पिछले साल दिसंबर में ही BSP का UP प्रमुख नियुक्त किया गया था, ने साल 2022 के UP विधानसभा चुनावों से पहले की ‘BJP-SP साजिश' के बारे में बातें की, और कहा कि साल 2024 के लोकसभा चुनावों में BSP एक बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी.

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लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के राज्य प्रमुख विश्वनाथ पाल का कहना है कि बसपा ही उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का ‘एकमात्र विकल्प’ है. रविवार को दिप्रिंट को दिए गये एक साक्षात्कार में, पाल ने भाजपा पर साल 2022 के यूपी चुनाव को ‘भाजपा और समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच की एक प्रतियोगिता के रूप में पेश करने’ का आरोप लगाया, ताकि मतदाताओं का ध्रुवीकरण किया जा सके.

पिछले साल हुए राज्य विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद, योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा फिलहाल अपने लगातार दूसरे कार्यकाल के साथ यूपी की सत्ता में है. इस चुनाव में जहां सपा और उसके सह्योगी दल सबसे अधिक सीटें जीतने के मामले में दूसरे नंबर पर रहें, वहीं बसपा सिर्फ एक सीट पर सिमट गई थी.

अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) – जिनके बारे में माना जाता है कि यूपी में यह लगभग 40 प्रतिशत वोट शेयर रखता है – से आने वाले पाल, अयोध्या क्षेत्र से बसपा के एक पुराने जुझारू कार्यकर्ता हैं. ओबीसी समुदाय को लुभाने के एक प्रयास के रूप में पार्टी प्रमुख मायावती ने उन्हें पिछले साल ही बसपा का राज्य अध्यक्ष नियुक्त किया था.

पाल ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि बसपा – जो समग्र रूप से बहुजनों का प्रतिनिधित्व करने के उद्देश्य से गठित की गई थी, लेकिन फिलहाल दलित समुदाय ही इसका मुख्य आधार है – साल 2007 के अपने प्रदर्शन को दोहराना चाहती है. उस साल, पार्टी ने 30 प्रतिशत वोट शेयर (मत प्रतिशत9 के साथ यूपी विधानसभा चुनावों में जोरदार जीत हासिल की थी, और ओबीसी, दलितों एवं मुसलमानों को अपने पीछे लामबंद करके अपने दम पर सरकार बनाई थी.

पाल ने कहा, ‘इस देश में मतदान 1951-1952 (पहले आम चुनाव के साथ) में शुरू हुआ था, और बसपा का गठन साल 1984 में जाकर हुआ. उन 32 वर्षों तक, उत्तर प्रदेश में पिछड़े समुदायों की उच्चतम जनसंख्या होने के बावजूद, इस समुदाय की राजनीतिक भागीदारी केवल 1.5-2 प्रतिशत थी. अगर इस देश में बसपा का उदय नहीं हुआ होता तो पिछड़े समुदायों के बारे में बात करने वाला कोई नहीं होता.’

उन्होंने कहा, ‘कांशीरामजी (पार्टी के संस्थापक) और बहनजी (जिस नाम से मायावती लोकप्रिय हैं) कि वजह से ही बसपा का नारा रहा है – ‘जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी भागीदारी’. इस नारे के साथ ही पिछले कुछ वर्षों में पिछड़े समुदायों से कई नेता उभरे हैं, और तमाम ऐसे समुदायों को प्रतिनिधित्व मिला है.’

सत्तारूढ़ दल का जिक्र करते हुए पाल ने कहा, ‘यूपी में सत्ता में आने से पहले, भाजपा ने दावा किया था कि वे महंगाई कम करेंगे, युवाओं को रोजगार देंगे और किसानों को (उनकी उपज के बदले) अच्छा मुनाफ़ा देंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.’

पाल ने कहा, ‘आज पूरा देश और प्रदेश महंगाई से त्रस्त है, नौजवानों को अपने रोजगार की चिंता है, और इसी तरह से छात्रों और व्यापारियों को भी चिंता है. किसानों को उनका सही-सही बकाया नहीं मिल पा रहा है, और लोग विकल्प की तलाश में हैं. बसपा और बहनजी ही एकमात्र विकल्प हो सकते हैं.‘


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‘सपा और भाजपा के पिछड़े नेताओं को बसपा ने ही आगे बढ़ाया’

पाल के अनुसार सपा और भाजपा में वर्तमान में मौजूद कई सारे ओबीसी नेताओं को सबसे पहले बसपा में ही पाला-पोसा गया. उन्होंने कहा, ‘अन्यथा, कोई भी उनके बारे में परवाह नहीं करता था.’

यह पूछे जाने पर कि ओबीसी, और यहां तक कि दलित भी, बसपा का साथ क्यों छोड़ रहे हैं, पाल ने कहा, ‘उनके पाला बदलने का कोई मतलब नहीं है. यह केवल स्वार्थवश हो रहा है.‘

कई प्रभावशाली ओबीसी नेता – जैसे कि स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धरम सिंह सैनी – अन्य दलों के प्रति अपनी निष्ठा बदलने से पहले बसपा में ही थे.

बसपा द्वारा साल 2022 के यूपी चुनावों में महज 12.88 फीसदी वोट शेयर हासिल करने के साथ ही, इस पार्टी द्वारा साल 1991 के बाद से अब तक के अपने सबसे खराब प्रदर्शन किए जाने के बारे में पूछे जाने पर, पाल ने इसके लिए भाजपा के ‘ध्रुवीकरण के प्रयास’ को दोषी ठहराया.

उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने राज्य के चुनाव को भाजपा और सपा के बीच की सीधी लड़ाई के रूप में चित्रित किया, ताकि मुस्लिम समुदाय भाजपा को हराने के लिए सपा का पक्ष ले – और बाद में यह (भाजपा) वोटों के ध्रुवीकरण के कारण चुनाव जीत गई.’

पाल ने कहा, ‘भाजपा के इसी प्रचार अभियान से भ्रमित होकर कुछ लोगों को लग रहा था कि सपा सत्ता में आ रही है. इसी वजह से उन लोगों ने यह सोचकर बसपा छोड़ दी कि उन्हें वहां (सपा को मिली सत्ता के कुछ हिस्से के रूप में) थोड़ी मलाई खाने को मिलेगी.’

उन्होंने कहा, ‘लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.’

पाल के अनुसार, साल 2022 के चुनावों से पहले सपा और भाजपा के इस ‘षड्यंत्र’ ने ‘बसपा कार्यकर्ताओं का मनोबल कम कर दिया था.’

उन्होंने आगे कहा, ‘वैसे तो बहनजी उपचुनावों में उम्मीदवार नहीं उतारती हैं, लेकिन विधानसभा चुनावों के तुरंत बाद (जून 2022 में) हुए आजमगढ़ उपचुनाव में उन्होंने तुरंत यह संदेश पहुंचाने के लिए चुनाव लड़ा कि बसपा कभी खत्म नहीं हो सकती है.’

पाल ने कहा कि ‘यूपी के लोग अब समझ गए हैं कि उनकी पीठ में छुरा घोंपा गया है, और भाजपा की प्रचार मशीनरी ने झूठे अभियान का सहारा लिया है.’

उन्होंने कहा, ‘साल 2022 के चुनावों से पहले, बसपा, जो एक राष्ट्रीय पार्टी है, को एक डमी पार्टी के रूप में दर्शाया गया था; जबकि एक क्षेत्रीय पार्टी, सपा, को मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में दिखाया गया था. मुस्लिम भी इसे समझ चुके हैं.’

‘बसपा के पास बड़ा वोट बेस है’

राजनीतिक विज्ञान के कुछ पंडितों द्वारा बसपा के भविष्य और साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले की इसकी योजनाओं को लेकर खतरे की घंटी बजाए जाने के बारे में पूछे जाने पर, पाल ने कहा कि बसपा के पास 26 प्रतिशत (जिनमें से ज्यादातर दलित है) का एक बड़ा मतदाता-आधार (वोट बेस) है, और मुस्लिम समुदाय तथा ओबीसी जातियों ने भी पार्टी के पक्ष में अपना मन बना लिया है.

उन्होंने इसे विस्तार से समझाते हुए कहा कि जिस तरह साल 2007 में पार्टी ने बिना किसी गठबंधन के मुसलमानों, पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों तथा न्यायप्रिय ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य समुदायों के समर्थन के बल पर अपनी सरकार बनाई थी, उसी तरह आगामी लोकसभा चुनाव में भी बसपा एक बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी.

प्रभावशाली नेता इमरान मसूद को पिछले साल ही अपना पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त करके. और इस साल जनवरी में गैंगस्टर से नेता बने (फिलहाल जेल में बंद) अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन को पार्टी में शामिल करके बसपा मुस्लिम समुदाय को लुभाने की लगातार कोशिश कर रही है.

यह सब इस साल के लिए निर्धारित यूपी नगरपालिका चुनावों से पहले, और सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा पसमांदा समुदाय – जो भारत में मुस्लिम आबादी का लगभग 80-85 प्रतिशत हिस्सा है- तक पहुंच बनाने के प्रयासों के बीच, किया जा रहा है.

भाजपा के ‘पसमांदा संपर्क अभियान’ के बारे में पूछे जाने पर पाल ने दिप्रिंट को बताया, ‘सपा या भाजपा को कुछ भी दावा करने दीजिए, लेकिन आज के दिन में मुसलमानों और बहुजनों का झुकाव पूरी तरह से बसपा की तरफ है. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति पहले से ही हमारे साथ खड़े हैं.’

प्रतिद्वंद्वी दल सपा द्वारा जातिगत जनगणना की मांग को फिर से उठाए जाने के बारे में पाल ने कहा, ‘बहनजी का विचार यही रहा है कि जातिगत जनगणना पूरे देश में होनी चाहिए.’

पाल ने ज़ोर देकर कहा, ‘क्या सपा कभी सरकार में थी ही नहीं? फिर (उस समय) जाति सर्वेक्षण की बात क्यों नहीं की गई? हमारी नेता बहनजी ने साफ कहा है कि जाति आधारित जनगणना सिर्फ राज्य स्तर पर नहीं बल्कि देश स्तर पर होनी चाहिए.‘

‘गठबंधन पर फैसला बहनजी ही करेंगी’

पाल ने बहन मायावती के इस रुख का समर्थन किया कि बसपा किसी गठबंधन में शामिल हुए बिना ही साल 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेगी.

बसपा प्रमुख ने इस साल जनवरी में अपने 67वें जन्मदिन के अवसर पर यह घोषणा की थी कि आगामी विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए बसपा किसी अन्य राजनीतिक दल के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी.

पाल ने दिप्रिंट को बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर किसी गठबंधन में शामिल होने का कोई भी फैसला पार्टी प्रमुख द्वारा ही लिया जाएगा.

पिछले महीने पश्चिम बंगाल में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आयोजित करने वाली सपा पर हमला बोलते हुए, पाल ने जोर देकर कहा कि उस पार्टी का ‘यूपी के अलावा अन्य राज्यों में कोई जनाधार नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘यह बसपा ही है जिसका अन्य राज्यों में भी मतदाता-आधार है. उत्तराखंड में हमारे कुछ विधायक हैं, और पंजाब में भी हमारे पास अच्छा खासा वोट शेयर है. इसी तरह छत्तीसगढ़, दिल्ली, केरल और राजस्थान में भी बसपा का अच्छा खासा जनाधार है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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