नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ में दो खनन परियोजनाएं कांग्रेस में मौजूदा असंतोष का कारण बन गई हैं. एक तरफ जहां अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की सहमति है तो वहीं दूसरी तरफ पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इसे खारिज कर रहे हैं. एक मुख्यमंत्री परियोजनाओं का बचाव करता है और उनका ही स्वास्थ्य मंत्री परियोजना का विरोध करने वालों का पक्ष लेता है.
वहीं कांग्रेस के दूसरे मुख्यमंत्री अपने राज्य में उर्जा संकट पर काबू पाने के लिए इसकी पैरवी कर रहे हैं तो वहीं पहले मुख्यमंत्री सत्ता संघर्ष को लेकर चल रही गहमागहमी को टालने के लिहाज से इसे ठंडे बस्ते में डालना ही बेहतर समझ रहे हैं.
इस प्रक्रिया में ऐसा लगता है कि पार्टी के सबसे बड़े क्षत्रपों में से एक- अभी इसके केवल दो मुख्यमंत्रियों में से एक- को पार्टी ने खारिज कर दिया है.
अगर थोड़े शब्दों में अपनी बात कहें तो, छत्तीसगढ़ के हसदेव अरंड जंगलों में दो खनन परियोजनाओं- परसा पूर्व एंव कांते बसन कोयला खदान (पीईकेबी) और परसा ओपन कास्ट परियोजनाओं पर विवाद का जिक्र कर रहे हैं, जिसने राज्य में कांग्रेसी नेताओं के बीच खलबली मचा दी है.
केवल दो दिनों में सीएम भूपेश बघेल का रुख बदला-बदला नजर आ रहा है. जहां अभी कुछ दिनों पहले तक वह परियोजनाओं का विरोध करने वाले जिन लोगों को फटकार लगा रहे थे, अब कह रहे हैं कि जब तक छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री और सरगुजा के विधायक टीएस सिंह देव अपनी सहमति नहीं देते हैं, तब तक उनके लिए ‘एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा’.
छत्तीसगढ़ सरकार ने इस साल की शुरुआत में दो कोयला ब्लॉकों- पीईकेबी के चरण 2 और परसा ओपन कास्ट कोयला खदान में खनन के लिए अंतिम मंजूरी दी थी.
कार्यकर्ताओं के अनुसार, परसा परियोजनाओं के लिए 841 हेक्टेयर वन भूमि में फैले दो लाख पेड़ों को काटने की जरूरत होगी. स्थानीय निवासी मार्च से ही परियोजनाओं का विरोध कर रहे हैं. सिंह देव ने इस सप्ताह की शुरुआत में प्रदर्शनकारियों से मुलाकात की और उन्हें अपना समर्थन दिया.
सिंह देव ने कहा, ‘चाहे गोली चलाई जाए या लाठी (प्रदर्शनकारियों के खिलाफ) उठाई जाए, मैं गोली और डंडा खाने के लिए सबसे आगे रहूंगा.’
तो इसके एक दिन बाद ही सीएम बघेल ने कह दिया कि सिंह देव की सहमति के बिना कोई पेड़ नहीं काटा जाएगा.
गुरुवार को सरगुजा के जिला कलेक्टर संजीव झा के हवाले से कहा गया था कि ‘सभी विभागीय या आधिकारिक उद्देश्यों’ के लिए खनन परियोजनाओं को फिलहाल के लिए रोक दिया गया है.
खनन परियोजनाओं पर सीएम के पीछे हटने की उनकी ये घोषणा, उनके और सिंह देव के बीच कथित सत्ता संघर्ष के बीच आई है. कहा जा रहा है कि वह सीएम पद के लिए कांग्रेस नेतृत्व के साथ पैरवी कर रहे हैं. मगर लगता है कि पार्टी आलाकमान बघेल को 2023 में अगले चुनाव तक बनाए रखने के लिए सहमत हो गई है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले महीने यूके में एक कार्यक्रम में कहा था कि हसदेव अरंड में प्रदर्शन कर रहे लोगों का विरोध ‘कुछ मायनों में उचित भी है.’ वह यह कहकर इस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे लोगों के समर्थन में आते हुए नजर आए.
दिप्रिंट ने फोन और टेक्स्ट मैसेज के जरिए सिंह देव और छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रमुख मोहन मरकाम से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. टिप्पणी मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
छत्तीसगढ़ की इन दो परियोजनाओं में राजस्थान का हित भी छिपा हुआ है. दरअसल अपने बिजली संयंत्रों को कोयले की आपूर्ति के लिए राजस्थान इन परियोजनाओं की तरफ देख रही है. खनन परियोजनाओं को राजस्थान सरकार की एक सहायक, राजस्थान राज्य विद्युत उद्योग निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को आवंटित किया गया है.
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर छत्तीसगढ़ सरकार से खनन परियोजनाओं के लिए परमिट देने की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए हस्तक्षेप करने की मांग की थी. गहलोत ने कहा कि परमिट देने में देरी से राजस्थान में लगभग 4,340 मेगावाट बिजली का उत्पादन ठप हो सकता है.
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राजस्थान के नजरिए से
मीडिया में सरगुजा जिले के अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि जबकि मुख्यमंत्री कार्यालय से खनन परियोजनाओं पर रोक लगाने का कोई आधिकारिक आदेश नहीं आया है, जिला अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों के समर्थन में सिंह देव के बयान पर उनकी प्रतिक्रिया से एक संकेत लिया है.
इस बीच, छत्तीसगढ़ सीएमओ के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि एक पर्यावरणीय मुद्दे से अधिक, खनन परियोजनाओं पर विवाद बघेल और सिंह देव के बीच राजनीतिक रुख का मुद्दा बन गया है.
छत्तीसगढ़ सरकार के एक शीर्ष पदाधिकारी ने कहा, ‘चूंकि राहुल (गांधी) ने यूके में कहा कि विरोध जायज है, टीएस सिंह देव इसे राजनीतिक हिसाब चुकता करने के साधन के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. वह प्रदर्शनकारियों से कह रहे हैं कि राहुल (गांधी) उनके पक्ष में हैं और वह उनके संपर्क में बने हुए हैं. जबकि मुख्यमंत्री का रुख बिल्कुल साफ है. उनके हिसाब से परियोजनाओं को जारी रखने की जरूरत है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘यह समझना जरूरी है कि हमारा (छत्तीसगढ़ सरकार) परियोजनाओं से बहुत कुछ लेना-देना नहीं है. यह राजस्थान में कोयला संकट में मदद करने के लिए है, जहां कांग्रेस की सरकार है.’
पदाधिकारी ने यह भी बताया कि कोयला ब्लॉकों का आवंटन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है और केवल मंजूरी देने का काम राज्य सरकार का होता है.
2015 में केंद्र सरकार ने सरगुजा में आरआरवीयूएनएल को तीन कोयला ब्लॉक आवंटित किए थे लेकिन प्रक्रियात्मक देरी के कारण उनमें से केवल एक ही पर खनन कार्य शुरू किया जा सका है.
लेकिन ऑपरेशनल खदान में कोयला अब खत्म हो चुका है. अगर अन्य दो खदानें चालू नहीं की गईं तो आरआरवीयूएनएल बिजली संयंत्रों के बंद होने पर खतरा मंडराने लगेगा. दिसंबर 2021 और फरवरी 2022 के बीच, गहलोत ने पीईकेबी खदान और परसा ओपन कास्ट खदान में खनन शुरू करने के लिए राज्य सरकार की मंजूरी प्रक्रिया में तेजी लाने में हस्तक्षेप करने के लिए सोनिया गांधी को दो बार पत्र लिखा था.
अपने दूसरे पत्र में गहलोत ने सोनिया को लिखा कि आप इस मामले में हस्तक्षेप करें और बघेल को सलाह दें कि वह कोयला ब्लॉक के लिए सभी जरूरी लंबित मंजूरियां सुनिश्चित करें.
दोनों मुख्यमंत्रियों की मार्च में रायपुर में मुलाकात हुई थी, जिसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने दोनों परियोजनाओं को अंतिम मंजूरी दी थी.
हालांकि इसके तुरंत बाद परियोजनाओं के खिलाफ क्षेत्र के आदिवासी निवासियों ने अपना विरोध तेज कर दिया. प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि क्षेत्र में ग्राम सभाओं से परियोजनाओं के लिए झूठी सहमति ली गई थी.
हालांकि छत्तीसगढ़ के सीएम भविष्य में परियोजनाओं को जारी रखने की आवश्यकता पर जोर दे रहे हैं. लेकिन सिंह देव और राहुल गांधी के बयानों ने उन्हें अपने रुख पर फिर से विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है.
ऊपर उद्धृत अधिकारी ने कहा, ‘सीएम ने भाजपा को (भी) जवाब दिया है जो इसे मुद्दा बना रही है. उन्होंने कहा है कि अगर इतना ही जरूरी है तो केंद्र सरकार आवंटन रद्द क्यों नहीं कर देती?’
विवादास्पद खनन परियोजना को लेकर भाजपा छत्तीसगढ़ सरकार पर हमला करती रही है.
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‘सिंह देव पर जिम्मेदारियों का बोझ डाल रहे हैं बघेल’
दिप्रिंट से बात करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार के एक दूसरे वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि सीएम बघेल सिंह देव पर इसका भार डाल रहे हैं.
वह बताते हैं, ‘खानें राजस्थान सरकार की हैं और आवंटन प्रक्रिया कांग्रेस आलाकमान के सहमति और हस्तक्षेप के बाद ही की गई थी. तो अब हम इसे कैसे रद्द कर सकते हैं? अगर यह पार्टी के साथ विचार-विमर्श के बाद लिया गया निर्णय था, तो इसके बाद भी कोई निर्णय पार्टी के परामर्श से ही लिया जाएगा.’
अधिकारी ने कहा, ‘बघेल सिर्फ सिंह देव पर आरोप लगा रहे हैं. जबकि यह कांग्रेस का मामला है. और अगर कोई समस्या है तो उन्हें आलाकमान से चर्चा करनी चाहिए. बघेल उस बातचीत में हस्तक्षेप नहीं करेंगे.’
उन्होंने कहा कि खनन लाइसेंस रद्द करने की ‘कोई बात नहीं’ हुई है.
दोनों पदाधिकारियों ने दावा किया कि सिंह देव इस मुद्दे को अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करने के लिए एक राजनीतिक चाल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. अभी कुछ समय पहले यह फैसला किया गया था कि वह बघेल से सीएम के रूप में पदभार नहीं संभालेंगे, जैसा कि 2018 में तैयार किए गए 50-50 फॉर्मूले के तहत तय किया गया था.
सूत्रों ने कहा कि बघेल उस समय उस फॉर्मूले से सहमत थे, लेकिन अब वह अपना पद छोड़ने को तैयार नहीं हैं. अगले राज्य के चुनाव से पहले केवल डेढ़ साल का वक्त बचा है.
पार्टी के सूत्रों ने यह भी कहा कि नेतृत्व जहां एक तरफ बघेल को मुख्यमंत्री पद पर बनाए रखने के लिए सहमत हो गया है, वहीं दूसरी तरफ एक और राज्य में गुटीय प्रदर्शन से बचने के लिए वे सिंह देव को शांत करने की कोशिश कर रहा है.
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