देवगौड़ा का यह भी कहना है कि समय की मांग यह है कि सभी सेक्युलर ताकतों को एक साथ आना चाहिए और ‘सांप्रदायिक और अलोकतांत्रिक’ भाजपा से देश को बचाया जाना चाहिए।
बेंगलुरु: कर्नाटक में अव्यवस्थित चुनाव परिणामों के बाद अस्तित्व में आये कांग्रेस और जेडी(एस) के गठबंधन के बाद कई लोगों ने यह माना यह देवगौड़ा ही हैं जिनका पार्टी में उनके बेटे से ज्यादा प्रभुत्व है। हालाँकि गौड़ा इससे इनकार करते हैं।
जब दिप्रिंट ने गौड़ा से गठबंधन के बारे में पूछा तो उन्होंने बलपूर्वक कहा कि “कांग्रेस के साथ जाने का यह निर्णय मेरे बेटे (एच.डी.) कुमारस्वामी का था। मेरी इसमें कोई भूमिका नहीं थी। उन्होंने व्यक्तिगत रूप से यह निर्णय लिया है। आप जानते हैं कि कुमारस्वामी ने किस प्रकार पूरे राज्य में चुनाव प्रचार किया है और वोट मांगे है कि वह भाजपा के साथ जुड़ने की गलती को दोबारा नहीं दोहराएंगे। हम सब ने अपनी गलतियों से सीखा है वो गलतियाँ हम दोबारा नहीं कर सकते।”
चुनावों से पहले, गौड़ा ने कहा था कि वह अपने बेटे से अलग हो जायेंगे अगर कुमारस्वामी भाजपा के साथ जाते हैं। देवगौड़ा ने सोमवार को कहा “जो हो गया सो हो गया, चलो आगे बढ़ें”, जैसा कि उनके बेटे कुमारस्वामी 12 वर्षों में दूसरी बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए तैयार हैं।
पार्टी कार्यकर्ताओं के बहुत सारे सवालों का जवाब देते समय देवेगौड़ा के पास आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की कॉल आई। गौड़ा ने उनसे शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने और कुमारस्वामी के दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें आशीर्वाद देने के लिए कहा।
कॉल के अंत में उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि उन्होंने उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, द्रमुक प्रमुख एम.के. स्टालिन सहित कई अन्य लोगों को आमंत्रित किया है। इससे उन्होंने यह स्पष्ट किया कि गौड़ा परिवार एक संयुक्त मोर्चे की स्थापना कर रहा है और भाजपा को दक्षिण भारत की सत्ता से बाहर रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
पूर्व प्रधान मंत्री अभी तक काफी संतुष्ट हैं कि उनका बेटा मुख्यमंत्री होगा। उन्होंने कैबिनेट संविभाग और उपमुख्यमंत्री पद के फैसले को कुमारस्वामी और कांग्रेस के नेताओं पर छोड़ दिया है।
लेकिन गठबंधन ने इनके स्थायित्व सहित कई अन्य प्रश्न खड़े कर दिए हैं। देवगौड़ा स्वयं काफी आश्वस्त हैं कि वे एक पूर्ण अवधि पूरी करेंगे।
गौड़ा ने एक साक्षात्कार में दिप्रिंट को बताया, “समय की मांग यह है कि सभी धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एक साथ आना चाहिए और देश को सांप्रदायिक और लोकतांत्रिक पार्टी से बचाया जाना चाहिए। हमारे देश में न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका सहित सब कुछ डगमगा रहा है और इसके लिए सबका साथ आना सबसे अच्छा समाधान है।”
यह बिलकुल स्पष्ट है कि जेडी (एस), एक पार्टी जिसे सभी जनमत सर्वेक्षणों ने ख़ारिज कर दिया था, अब उसने खुद को एक अलग स्थिति में पाया है। उन्होंने न केवल कर्नाटक में खुद को प्रासंगिक बना दिया है, बल्कि वे एक ऐसी पार्टी के रूप में भी आगे बढ़े हैं जो टीआरएस, टीडीपी, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी और अन्य समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय धर्मनिरपेक्ष दलों को एक साथ ला सकता है।
उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया है कि कुमारस्वामी का शपथ ग्रहण समारोह भव्य विधान सुधा के सामने संपन्न होगा, यह वही स्थान है जिसे येदियुरप्पा ने 2008 में अपने शपथ ग्रहण समारोह के लिए चुना था।
राजनीतिक वैज्ञानिक संदीप शास्त्री का मानना है कि केवल 2019 के चुनावों को ध्यान में रखते हुए जेडी (एस) और कांग्रेस एक साथ हैं। शास्त्री ने कहा कि “यह केवल उनका भाजपा-विरोधी रवैया है जो उन्हें एक साथ जोड़ के रख रहा है। यदि आप जमीनी स्तर पर देखेंगे तो दिखाई पड़ेगा कि जेडी.एस के कार्यकर्ता कांग्रेस के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, इसलिए भाजपा को बाहर रखने के लिये यह एक तत्कालीन तरकीब है। शास्त्री ने यह भी कहा कि यह गठबंधन कम से कम एक साल तक बना रहेगा जब तक कि केंद्र में होने वाले विकास कार्यों की कार्यप्रणाली बदल नहीं जाएगी।
गौड़ा स्वीकारते हैं कि वह 2019 का चुनाव लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं रखते हैं और वे युवा पीढ़ी को ये सब चीजें सौंप सकते हैं। शास्त्री का मानना है कि शायद ऐसा नहीं हो सकता है। “देवेगौड़ा चुनाव लड़ सकते हैं। कम से कम वह ऐसा जरूर करेंगे कि सहयोगी गठबंधन उन्हें चुनाव में खड़े होने के लिये मनाएं।”
गौड़ा ने यह भी कहा कि यह कुमारस्वामी ही होंगे जो उनकी जगह लेंगे। “उन्होंने कहा,”पार्टी के रूप में जेडी(एस) आज है, कल भी रहेगी और आने वाले भविष्य में भी बनी रहेगी और कुमारस्वामी इस पार्टी को आगे तक ले जाने में काफी सक्षम हैं”।
Read in English: Alliance with Congress is Kumaraswamy’s decision, says father Deve Gowda