शिया वक्फ़ बोर्ड प्रमुख रिज़वी का कहना है कि नया राजनीतिक मोर्चा ‘इंडियन शिया आवामी लीग’ संभावित रूप से 2019 का चुनाव लड़ सकता है।
लखनऊ: विवादास्पद शिया नेता वसीम रिज़वी ने सोमवार को दिल्ली में देश के प्रथम शिया राजनीतिक दल को लांच किया। यह 2019 के आम चुनावों से पहले अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लिए एक अलग राजनीतिक पहचान बनाने का प्रयास है।
उत्तर प्रदेश शिया वक्फ़ बोर्ड के प्रमुख रिज़वी ने कहा कि यह विचार शिया पहचान पर जोर देने और सुन्नियों से अंतर करने के लिए है।
उन्होंने ‘इंडियन शिया आवामी लीग’ के लांच से पहले दिप्रिंट को बताया कि, “परंपरागत रूप से, वोट बैंक की राजनीति ने भारत में सिर्फ सुन्नियों को तवज्जो दिया है, क्योंकि हम अल्पसंख्यक हैं। लेकिन जब सुन्नी चरमपंथ के कारण देश में दंगे होते हैं तब हमारी मुस्लिम पहचान के कारण हम पर भी निशाना साधा जाता है।
शिया मुसलमान भारत में मुस्लिम आबादी का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा हैं और इन्हें इनके सुन्नी समकक्षों से अलग वोट करने के लिए जाना जाता है। उदाहरण के लिए, ये ज्ञात है कि 2014 लोकसभा चुनावों के दौरान शियाओं द्वारा अपना पूरा समर्थन भाजपा को दिया गया था।
रिज़वी ने कहा कि “शिया-सुन्नी संघर्ष का हल नहीं निकल सकता… वे (सुन्नी) तो हमें मुसलमान भी नहीं मानते, लेकिन उनके कारण हमारी पहचान खतरे में हैं।” आगे उन्होंने यह भी कहा कि 16-17 राज्यों में पार्टी कैडर पहले से ही मौजूद है।
फिर उन्होंने कहा, “यदि सब कुछ सही रहता है तो हम 2019 में चुनाव लड़ेंगे…हमने पूरे देश के शिया नेताओं से बात कर ली है।”
बीजेपी एक संभावित सहयोगी पार्टी?
यह पूछे जाने पर कि रिज़वी अपनी नई पार्टी के स्वाभाविक सहयोगी के रूप में किसे देखते हैं, रिज़वी ने कहा, “जो भी पार्टी शिया समुदाय के हितों का ध्यान रखेगी।”
शिया समुदाय ने हमेशा बीजेपी के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध निभाए हैं, वहीं हाल ही के दिनों में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुसलमानों में शिया अल्पसंख्यक समूह को विकसित करने में गहरी रुचि दिखाई है।
रिज़वी ने कहा, “शियाओं से हाथ मिलाना भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे को नुकसान नहीं पहुंचाता है … यदि कोई मुस्लिम समूह उनका समर्थन करता है, तो यह उनके लिए केवल एक अतिरिक्त लाभ है।”
एक विवादास्पद नेता
हालांकि, वसीम रिज़वी शिया समुदाय के निर्विवादित नेता होने का दावा नहीं कर सकते । समुदाय के कुछ सबसे प्रभावशाली नेताओं के साथ उनके संबंध द्वेषपूर्ण रहे हैं।
उदाहरण के लिए, शिया मुसलमानों के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक मौलाना सैयद कल्बे जवाद नकवी ने इस साल की शुरुआत में ही रिज़वी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी। वरिष्ठ मौलाना ने कहा कि रिज़वी जानबूझकर “दोनों संप्रदायों के बीच मनमुटाव पैदा करने का प्रयास कर रहे थे जो इस पूरे समुदाय को हाशिए पे लाने के लिए सरकार को सक्षम बनायेगा।”
हालांकि, रिज़वी,जो समुदाय के भीतर धार्मिक नेताओं द्वारा लगातार की जाने वाली आलोचना से बेफिक्र रहतें है, कहते हैं कि वैसे भी हमारा धार्मिक समूहों के साथ गठबंधन करने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि “हमारा संगठन पूरी तरह से राजनीतिक है।”
रिज़वी, जो पहले समाजवादी पार्टी के नेता आज़म खान के करीबी होने के लिए जाने जाते थे, ने हाल ही के महीनों में अक्सर विवादित बयान देकर वाद-विवाद को उकसाया है जिन्हें कुछ लोग मुस्लिम विरोधी बयानों के रूप में देखते हैं।
उदाहरण के लिये, वे अपनी बात पर कायम हैं कि अयोध्या में विवादित भूमि पर राम मंदिर का निर्माण अवश्य होना चाहिए, और मस्जिद को, “हिंदुओं के धार्मिक स्थल से दूर” शहर में कहीं और बनाया जाना चाहिए।
Read in English: Controversial UP Muslim leader to launch India’s first Shia political party today