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Monday, 6 May, 2024
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आप अस्थमा और सांस की परेशानी से जूझ रहे हैं, खराब खान-पान हो सकता है जिम्मेदार

अपने फेफड़ों को आदर्श हालत में रखने के लिए जीवन के हर स्टेज में स्वस्थ वजन बनाए रखना आवश्यक होता है.

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श्वसन संबंधी स्वास्थ्य और पोषण के बीच संबंध पर शायद ही कभी चर्चा की जाती है. जहां तक फेफड़ों के स्वास्थ्य का संबंध है, धूम्रपान, प्रदूषण, सूक्ष्म जीवाणु संक्रमण, सामान्य रूप से होने वाली सर्दी और पेशेवर रूप से काम करते हुए धूल के कणों के संपर्क में आना चिंता के प्रमुख कारण हैं. एक स्वस्थ श्वसन प्रणाली के लिए, हमें शक्तिशाली पोषक तत्वों से भरपूर आहार की आवश्यकता होती है.

वास्तव में, हाल में सामने आये साक्ष्यों से पता चलता है कि क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, या सीओपीडी और अस्थमा (दमा) जैसी गंभीर फेफड़ों की बीमारियों की शुरुआत और इसके प्रकोप में वृद्धि से जुड़े जोखिम वाले कारकों को कम करने में एक पौष्टिक आहार की प्रमुख भूमिका होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि 2019 में सीओपीडी के कारण दुनिया भर में 3.23 मिलियन लोगों की मौत हुई, जिससे यह वैश्विक स्तर पर मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण बन गया.

अल्पपोषण, मोटापा, पोषक तत्व, पौधों से उत्पन्न होने वाले सक्रिय यौगिक और विशिष्ट खाद्य समूह श्वसन संबंधी बीमारियों की शुरुआत और इसके बढ़ने को प्रभावित करते हैं. यहां हम क्रॉस-सेक्शनल, महामारी विज्ञान संबंधी और पशुओं पर आधारित अध्ययनों का हवाला देते हुए और उनका विश्लेषण करके फेफड़ों के स्वास्थ्य में पोषण की भूमिका पर चर्चा करेंगे.

पोषण में कमी और फेफड़ों के रोग

अल्पपोषण या पोषण में कमी की शुरुआत माता के गर्भ से हो जाती है. भ्रूण में खराब श्वसन प्रणाली अक्सर माता के कुपोषण का परिणाम होती है. सीओपीडी के रोगी अक्सर कुपोषित होते हैं, और उनके मामले में रोग प्रबंधन का एक प्रमुख घटक क्लीनिकल पोषण प्रबंधन होता है. बढ़ी हुई अवस्था वाली सीओपीडी वजन घटने, मांसपेशियों के नुकसान पहुंचाने वाला और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से जुड़ा है, जो मिलकर मृत्यु दर को बढ़ाते हैं.

साल 2013 की समीक्षा में, पोषक खुराक और ज्यादा कैलोरी का सेवन कुपोषित सीओपीडी रोगियों में बेहतर मांसपेशीय गतिविधियों (मस्कुलर फंक्शन) से जुड़ा था. अस्थमा और अल्पपोषण के आपस संबध बताने वाले ज्यादा साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं. मगर, एक जापानी अध्ययन में पाया गया कि सामान्य प्रतिभागियों की तुलना में अल्पपोषित व्यक्तियों का अस्थमा पर नियंत्रण ज्यादा खराब था. ब्रांकेड-चेन अमीनो एसिड के संपूरक आहार के साथ सीओपीडी में प्रोटीन के कुपोषण की समस्या हल किये जाने ने सकारात्मक परिणाम – जैसे कि वसा रहित मांसपेशियों की वृद्धि- पैदा किए.

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मोटापा का संबंध अस्थमा से

संयुक्त राज्य अमेरिका में हर साल मोटापे की वजह से 250,000 नए अस्थमा के मामले सामने आते हैं. स्वस्थ वजन वाले वयस्कों में अस्थमा का प्रसार 7.1 प्रतिशत है, जबकि मोटापे वाले वयस्कों में यह 11.1 प्रतिशत है. इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात है मोटापे से ग्रस्त महिलाओं और अस्थमा के बीच का संबंध– 14.6 प्रतिशत मोटापे से ग्रस्त महिलाओं में अस्थमा का पता चला था, जबकि केवल 7.9 प्रतिशत दुबली महिलाएं ही इससे पीड़ित थीं.

मोटापे और अस्थमा सहित कई दीर्घकालिक बीमारियों के बीच एक मजबूत आतंरिक संबंध है. हालांकि, इस संबंघ की व्याख्या करने वाले तंत्र की पड़ताल की जानी अभी बाकी है. 2013 के एक अध्ययन के अनुसार, मोटापा श्वसन प्रणाली की यांत्रिक प्रणाली को बदल देता है, जिसे अस्थमा से जोड़ा जा सकता है. हालांकि, शरीर के अतिरिक्त वजन और इससे संबंधित जटिलताएं जैसे गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स, नींद के दौरान सांस लेने में कठिनाई और लो लंग वॉल्यूम (फेफड़ों की कम घनत्व) दमा की स्थिति को और खराब कर सकती है.

1,113 सक्रिय अस्थमा रोगियों से जुड़े प्रश्नावली-आधारित क्रॉस-सेक्शनल अध्ययन में पाया गया कि उच्च बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) वाले व्यक्तियों ने अस्थमा से जुड़ी जीवन की गुणवत्ता और अस्थमा प्रबंधन के साथ-साथ सामान्य बीएमआई (25 किग्रा/एम2). वाले रोगियों की तुलना में अस्थमा की वजह से अस्पताल में भर्ती होने की अधिक सूचना दी. एक और अध्ययन यह बताता है कि किस तरह से मोटापे से जुड़ी दीर्घकालिक सूजन प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करती है और डिमेंशिया, एथेरोस्क्लेरोसिस, स्लीप एपनिया, टाइप 2 मधुमेह, अस्थमा, गठिया, फैटी लीवर और सेप्टीसीमिया जैसी बीमारियों का कारण बनती है.

मोटापे से ग्रस्त माताओं की संतानों में अस्थमा होने की संभावना अधिक होती है. 1 लाख गर्भवती महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया कि मां का वजन बढ़ने से शिशुओं में अस्थमा का खतरा 15-30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. शिशुकाल और बचपन के मोटापे को भी सांस की घरघराहट और अस्थमा से जोड़ा गया है, जिसका अर्थ है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोटापा और अस्थमा एक दूसरे से संबंधित हैं. इस प्रकार, अपने फेफड़ों को सबसे बढ़िया स्थिति में बनाए रखने के लिए जीवन के सभी चरणों में स्वस्थ वजन कायम रखना आवश्यक है.

खाने-पीने की आदतें और श्वसन स्वास्थ्य

खाने-पीने के तरीके का श्वसन स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. साल 2013 की एक समीक्षा के अनुसार, गर्भावस्था और बचपन के दौरान एंटीऑक्सिडेंट और ओमेगा -3 फैटी एसिड से भरपूर आहार दिया जाना सुनिश्चित करने से एलर्जी संबंधी बीमारियों से बचाव हो सकता है. दुनिया के सबसे पौष्टिक आहार के रूप में जाना जाने वाला भूमध्यसागरीय आहार (मेडिटरेनीयन डाइट) एलर्जी संबंधी श्वसन रोगों से बचाने में मददगार पाया गया है.

मेडिटरेनीयन कुसिने (भूमध्यसागरीय व्यंजनों) में फल, कई रंगों वाली सब्जियां, जड़ें, कंद, नट, बीन्स, बीज, जटिल कार्ब्स और साबुत अनाज जैसे पौधों से प्राप्त खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं.

मेडिटरेनीयन डाइट में जैतून का तेल (ऑलिव ऑयल) ही खाना पकाने और सजाने के प्राथमिक माध्यम के रूप में प्रयुक्त होता है, जो स्वस्थ अनसैचुरेटेड वसा – विशेष रूप से ओमेगा 3 – से भरपूर होता है. काफी कम मात्रा में दही, कम वसा वाले दुग्ध उत्पाद, मछली और मुर्गी के मांस का सेवन किया जाता है. भूमध्यसागरीय संस्कृति में शराब और लाल मांस का उपयोग विरले ही होता है. पोषण के मामले में, यह आहार बहुत शक्तिशाली है क्योंकि यह फाइटोन्यूट्रिएंट्स, एंटीऑक्सिडेंट्स, ओमेगा -3, फाइबर, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों के साथ काफी समृद्ध होता है.

स्कूल जाने वाले आयु वर्ग के 700 बच्चों के बीच साल 2011 में किये गए एक अध्ययन ने मेडिटरेनीयन डाइट के दिनों और बचपन के अस्थमा के बीच संबंधों की जांच की. दिलचस्प बात यह है कि इन आहार दिनों का अस्थमा के साथ विपरीत संबंध पाया गया. साल 2008 और 2009 के दो और अध्ययनों ने भी इसी तरह के परिणाम दिए. गर्भावस्था के दौरान मेडिटरेनीयन डाइट का सेवन साढ़े 6 साल तक की उम्र के बच्चों में सांस की घरघराहट और एलर्जी से बचाने के लिए जाना जाता है.

इसके विपरीत, ‘पश्चिमी आहार’, जो आमतौर पर परिष्कृत सफेद चीनी, वनस्पति तेल, नमक, प्रसंस्कृत मांस, ट्रांस-फैट और कृत्रिम परिरक्षकों (आर्टिफीसियल प्रेसेर्वटिवेस) से भरा होता है, बच्चों में सांस की घरघराहट और अस्थमा के जोखिम को बढ़ाता है. लगभग 54,000 महिलाओं से जुड़े एक विश्लेषण में पाया गया कि जो लोग फल और सब्जियां खाने वालों की तुलना में शर्करा, वसा युक्त पश्चिमी आहार का सेवन अधिक करते हैं, उन्हें अस्थमा के दौरे भी अधिक होते हैं. खान-पान के इस तरीके को सीओपीडी के बढे़ हुए जोखिम से भी जोड़ा गया है.

फेफड़े की रक्षा करने वाले खाद्य और पोषक तत्व

फलों और सब्जियों को हमेशा से सबसे अच्छा सुरक्षात्मक खाद्य समूह माना जाता रहा है. इनमें फाइटोन्यूट्रिएंट्स, विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सिडेंट होते हैं जो श्वसन स्वास्थ्य की रक्षा करते हैं. साक्ष्य बताते हैं कि फल और पकी हुई हरी सब्जियां खाने से 8-12 साल के बच्चों में सांस घरघराहट की घटनाओं में कमी आ सकती है. यूनाइटेड किंगडम में 2000 के दशक की एक कोहार्ट अध्ययन में पाया गया कि जिन वयस्कों ने 3 महीने तक अधिक फलों और सब्जियों का सेवन किया, उनमें अस्थमा के प्रकोप का जोखिम कम था.

विटामिन सी, विटामिन ई, फ्लेवोनोइड्स और कैरोटेनॉइड जैसे एंटीऑक्सिडेंट का सेवन बढ़ते हुए भ्रूण और सीओपीडी वाले वयस्कों के लिए फायदेमंद होता है. राहेल ई फूंग और ग्रीम आर. ज़ोस्की का साल 2013 का अध्ययन बताता है कि कैसी विटामिन डी की कमी श्वसन रोगों से संबंधित है, हालांकि इसकी क्रिया प्रणाली स्पष्ट नहीं है. सर्वोत्तम प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए विटामिन डी का होना बहुत जरूरी है.

फेफड़ों के स्वास्थ्य की रक्षा और उसे बढ़ावा देने में पोषण की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता. मगर, खान-पान के तौर तरीकों, खाद्य समूहों, चयापचय (मेटाबॉलिज्म) की स्थिति और श्वसन स्वास्थ्य के बीच के संबंध की जांच करने वाले बेतरतीब (रैंडमाइज्ड) नियंत्रण वाले परीक्षण शायद ही उपलब्ध हैं. अधिकांश संदर्भ या तो महामारी विज्ञान से या क्रॉस- सेक्शनल अध्ययन से जुड़े हैं. इसके लिए, यहां यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि संतुलित आहार श्वसन स्वास्थ्य समेत समग्र शारीरिक कुशलता में अपना योगदान देता है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(सुभाश्री रे डॉक्टरल स्कॉलर (केटोजेनिक डाइट), सर्टिफाइड डायबटीज शिक्षक, और एक क्लीनिकल ​​और सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण विशेषज्ञ हैं. वह @DrSubhasree हैंडल से ट्वीट करती हैं. विचार निजी हैं.)


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