नई दिल्ली: भारत की अर्थव्यवस्था पहले से डांवाडोल थी लेकिन अब कोरोनावायरस एक बड़ा संकट बनकर हम सामने उभरा है. पहले भी देखा गया कि हर क्वार्टर में ग्रोथ रेट कम हो रही थी और अब देखा जा रहा है कि लोगों की नौकरियां जा रही हैं. ये कई देशों में हो रहा है.
अमेरिकी में भी बेरोजगारी दर अपने चरम पर पहुंच गई है. उत्तर भारत के कई राज्यों में भी काफी बेरोजगारी है. भारत में लॉकडाउन लागू हुए 45 दिन से ज्यादा हो गए हैं लेकिन मजदूर अभी भी अपने राज्यों की तरफ चले जा रहे हैं.
ऐसे समय में उत्तर प्रदेश ने श्रम कानूनों में सुधार करने को लेकर अध्यादेश जारी किया है. इसमें कहा गया है कि अगले 3 सालों के लिए 35 बड़े श्रम कानूनों को लागू नहीं किया जाएगा. महिलाओं और बच्चों से जुड़े कानून अभी बने रहेंगे.
मजदूरों के हितों में इंदिरा गांधी के दौर में इनमें से कई कानून बनाए गए या संशोधित किए गए थे, लेकिन उन्होंने इसके विपरीत काम किया जिससे लाइसेंस राज को बढ़ावा ही मिला.
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विपक्षी पार्टियां हमेशा ऐसी स्थिति में नाराज होती रही हैं, जो अभी भी जारी है. 1991 में नरसिम्हा राव द्वारा लाए गए सुधारों के समय भी ऐसा देखा गया था.
भारत में उद्यमियों के लिए काफी मुश्किल कानून बने हुए हैं. लेबर कानून की सख्ती के कारण उद्यमी दूसरे देशों की तरफ रुख करते हैं. बिजनेस फेल होने के डर से लोगों ने उद्यम लगाने बंद कर दिए हैं.
कानपुर शहर में पहले काफी उद्योग थे लेकिन धीरे-धीरे इन कानूनों, उद्यमों के बीच झगड़े, लाइसेंस राज के कारण ये खत्म हो गए. पुरानी फैक्ट्रियों को अब भी इस शहर में देखा जा सकता है.
उत्तर प्रदेश सरकार के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने भी श्रम कानूनों में बदलाव करने की दिशा में काम करने जा रही है. उत्तर प्रदेश सरकार के इस फैसले को बोल्ड कहा जा सकता है लेकिन सरकार के सामने ट्रेडर माफिया की बड़ी चुनौती है.
केंद्र सरकार भी नया लेबर कोड लेकर आ रही है. उसने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है. राज्यों को इस दिशा में काम करने की काफी आजादी है. उत्तर प्रदेश ने ऐसा करने की कोशिश की है. यूपी में उद्योग लाने का एक बड़ा मौका है. अगर इस मौके को छोड़ दिया गया तो ये फिर से नहीं आएगा.