प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के साथ जो तामझाम और शोरशराबा हो रहा है उस सबके ऊपर यह सवाल मौजूं लगता है कि पिछले कुछ दिनों में जो कई घटनाएं घटी हैं उनमें से सबसे महत्वपूर्ण कौन-सी घटना है? मोदी ने योग दिवस पर संयुक्त राष्ट्र में योगासन करने वालों का नेतृत्व किया, वह? या हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स ने जनरल इलेक्ट्रिक्स के साथ लड़ाकू विमानों के इंजन बनने का करार किया, वह? या कुछ प्रमुख पश्चिमी प्रकाशनों ने भारत पर नया राग अलापना शुरू किया, वह? या मारक ड्रोन तथा व्यावसायिक विमानों के बड़ी संख्या में खरीद के ऑर्डर दिए गए, वह?
व्यापक तौर पर ये ‘सॉफ्ट’ या ‘हार्ड’ पावर का प्रदर्शन करते हैं. ‘सॉफ्ट’ पावर का एक उदाहरण यह है कि प्रभावशाली पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’ ने पिछले सप्ताह के अपने अंक में भारत संबंधी ‘पैकेज’ में करीब आधा दर्जन रिपोर्टें छापी, जिनमें वो कवल स्टोरी भी शामिल है जिसमें ‘अपरिहार्य’ भारत को अमेरिका का ‘नया बेस्ट फ्रेंड’, मोदी को दुनिया का सबसे लोकप्रिय नेता भारतीय प्रवासियों को इतिहास में सबसे बड़ा और सबसे प्रभावशाली समुदाय बताया गया है और प्रतिरक्षा तथा सुरक्षा संबंधों अहमियत को बढ़ता हुआ दिखाया गया है. यही नहीं, विदेश मंत्री एस. जयशंकर को उतनी अहमियत दी गई है जितनी कभी हेन्री किसिंगर को दी जाती थी. जो पत्रिका भारत की हवा बनाए जाने पर लंबे समय से संदेह ज़ाहिर करता रही है, वह खुद अपनी हवा बनाने में लग जाए तो यही कहा जाएगा कि धारणाएं बदल गई हैं.
फिर भी सवाल तो उठाए जा सकते हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय प्रवासी समुदाय भारत के ‘सॉफ्ट पावर’ का प्रमाण है या अमेरिका के ‘सॉफ्ट पावर’ का? इसमें शक नहीं कि अमेरिका में बसे भारतीयों ने 15 साल पहले परमाणु संधि के लिए पैरवी की थी और आज वे इतने ज्यादा और इतने धनी हो गए हैं कि अमेरिकी नेताओं के लिए महत्वपूर्ण हो गए हैं, लेकिन तर्क किया जा सकता है कि भारत के ‘सॉफ्ट पावर’ का दावा तो तब मजबूत माना जाता जब अमेरिका के तेजतर्रार और मेधावी छात्र भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ाई करने आते और भारतीय पासपोर्ट पाने के लिए लाइन लगाते.
जब स्थिति इससे उलटी है, सबसे अधिक संपन्न भारतीय छात्र अमेरिकी विश्वविद्यालयों, अमेरिकी टेक कंपनियों, उसकी वित्त व्यवस्था की ताकत के आगे बिक रहे हैं; सबको समाहित कर लेने की उस देश की विशेषता, सुविधापूर्ण जीवन और पॉपुलर अमेरिकी संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं, तब वास्तव में यह अमेरिकी सॉफ्ट पावर का ही जलवा जाहिर करता है. परोक्ष रूप से यह भारतीय व्यवस्था की कमजोरियों को ही उजागर करता है, जिसके चलते डॉलर वाले करोड़पति भारतीय दुबई के रेगिस्तान के आकर्षण में देश छोड़ रहे हैं.
इसलिए, द्विपक्षीय संबंधों में असली काम ‘हार्ड पावर’ कर रहा है — भारत की बढ़ती सैन्य और आर्थिक ताकत और उसके बाज़ार से उभरने वाली संभावनाएं. इंडिगो और एअर इंडिया ने जिस हैरतअंगेज़ तादाद में विमानों की खरीद के ऑर्डर दिए हैं वह इसकी केवल एक मिसाल है. जैसा कि सबको पता है, भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और जल्दी ही तीसरी बन जाएगी. भारतीय अर्थव्यवस्था अमेरिकी अर्थव्यवस्था के आकार के केवल 15 प्रतिशत के बराबर है लेकिन दुनिया की आर्थिक वृद्धि वह अमेरिकी योगदान के 60 प्रतिशत के बराबर का योगदान कर कर रही है, क्योंकि इस साल वह चार गुना तेजी से वृद्धि कर रही है.
यह भी पढ़ें: रेवड़ी संस्कृति चुनावी जीत तो दिलाएगी, लेकिन भारत के लिए सार्वजनिक ऋण से उबरना हो सकता है मुश्किल
भारतीय सेना भी अहमियत रखती है, खासकर हिंद महासागर क्षेत्र में, जहां वह चीन की विस्तार करती नौसेना का मुक़ाबला कर सकती है. इसमें उसे एक दर्जन अमेरिकी पोसेडोन विमानों की निगरानी तथा मारक क्षमता से मदद मिल रही है. 31 सीगार्जियन ड्रोनों के ऑर्डर दिए गए हैं. भारत का रक्षा बजट दुनिया में चौथा सबसे बड़ा रक्षा बजट है. वह दुनिया में रक्षा सामाग्री का सबसे बड़ा आयातक भी है. जनरल इलेक्ट्रिक जैसी पश्चिम की कई कंपनियों का मानना है कि अगर उन्हें भारत में प्रवेश मिल गया तो उनका भविष्य चमक जाएगा. जनरल इलेक्ट्रिक एचएएल के साथ मिलकर तेजस, मार्क-2 और फ्रांस की दसाल्ट के लिए इंजन बनाएगी. दसाल्ट को उम्मीद है कि उसके 50 से ज्यादा राफेल विमानों की खरीद के ऑर्डर मिलेंगे, जिनमें से आधे विमान नये विक्रांत विमानवाही पोत पर तैनात किए जाएंगे.
इसलिए भारत अपनी विदेश नीति पर ज्यादा अडिग रह सकता है और रूस से तेल खरीदते हुए पश्चिमी देशों को ठेंगा दिखा सकता है; अपने ऊपर तानाशाही, अल्पसंख्यक विरोधी तेवर को लेकर पश्चिम के मूक आरोपों की अनदेखी कर सकता है और उन प्रमुख अंतरराष्ट्रीय क्लबों में दाखिल होने की ओर कदम बढ़ा सकता है जिनसे उसे अब तक अलग रखा गया है.
समीकरण के दूसरी ओर देखें तो पिछले करीब एक दशक में अमेरिकी अर्थव्यवस्था ने यूरोपीय संघ (ब्रिटेन समेत) को बड़े आराम से पीछे छोड़ दिया है और अब 25 फीसदी ज्यादा बड़ा हो गया है. बड़ी टेक कंपनियों के घर के रूप में अनूठी स्थिति में होने के कारण वह अहम टेक्नोलॉजी और पूंजी का स्रोत भी बना है. और जब व्यापार और जलवायु परिवर्तन जैसे विभिन्न मुद्दों पर वार्ता करने की बात आती है तब उसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. इसलिए, जब योग, प्रवासी भारतीयों के समुदाय और सॉफ्ट पावर के दूसरे उदाहरणों के बारे में बात करना सुखद लगता है, संबंधों को ‘हार्ड पावर’ ही वास्तव में मजबूती प्रदान कर रहा है. सॉफ्ट पावर केवल उसे थोड़ी चमक-दमक भर ही प्रदान करता है.
(व्यक्त विचार निजी हैं. बिजनेस स्टैंडर्ड से स्पेशल अरेंजमेंट द्वारा)
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: उपभोक्ताओं का आत्मविश्वास यदि राजनीतिक दिशा सूचक है, तो इसका चालू स्तर 2024 में BJP का बेड़ा पार लगाएगा?