आपकी 99 समस्याएं हो सकती हैं, मगर मेरी तो सिर्फ एक या दो हैं. एक, सदा-सदा के लिए इंकलाब इस्लामाबाद में खारिज हो गया और दो, भारत ने कश्मीरी अलगाववादी यासिन मलिक को उम्रकैद की सजा दी. जिसको लेकर पाकिस्तानी काफी फिक्रमंद हैं. यासिन मलिक को लेकर छुटपुट भावनाएं और हमदर्दी यह है कि काश! यह 1857 नहीं है.
इस हफ्ते इमरान खान के समर्थकों ने इंकलाब के ख्वाब में राजधानी को बंधक बना लिया. ग्रीनबेल्ट पार्क में आग लगा दी, पुलिसवालों को पीटा, कई एटीएम तोड़ डाले, पत्रकारों से बदतमीजी की और श्हर में टेलिविजन के दफ्तरों में तोडफ़ोड़ की. रोम जल रहा था तो नीरो सीमा पार इंसाफ की आवाज लगा रहा था. उम्रकैद पर प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और फौज के प्रवक्ता ने ट्वीट करके निंदा की और इंसाफ की मांग की. इसमें कश्मीरियों के साथ खड़ा रहने का वादा भी शामिल था.
एक शख्स का हीरो
पाखंड की तो कोई हद ही नहीं है. अगर यासिन मलिक की सजा निंदा की मांग करती है तो हुक्मरान हाफिज सईद के साथ हमदर्दी क्यों नहीं दिखा रहे हैं, जिसे पिछले कुछ साल से पाकिस्तान में दहशतगर्दों को वित्तीय मदद मुहैया करने के लिए कई सजा सुनाई गई है? उसे सजा दिलाने से फाइनांसियल एक्शन टॉस्क फोर्स (एफएटीएफ) खुश होता है इसलिए उस पर ज्यादा बात मत करो. मगर क्या हाफिज सईद भी ‘कश्मीर मुद्दे’ का वैसा ही हीरो नहीं है? हैरानी होती है.
खैर! जिस दिन यासिन मलिक को सजा हुई, उसी 25 मई को हकीकी आजादी मार्च या ‘पूरी आजादी मार्च’ की भी शुरुआत हुई, सो, आलोचकों का मानना है कि इमरान खान ने सुर्खियों में ज्यादा छाने के लिए भारत के साथ मैच फिक्सिंग की थी. कुछ ने तो प्रधानमंत्री मोदी से पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री की इन कोशिशों के लिए भारत रत्न देने की मांग कर डाली. खुद को स्वयंभू ‘कश्मीर के एंबेसेडर’ कहने वाले इमरान खान ने भी बाकियों की तरह अपनी निंदा ट्वीट किया. आख्रिर और वे क्या करते? शायद अपने साथ के पूर्व-सिपाहियों के साथ श्रीनगर तक आजादी मार्च करते. इससे भी बेहतर तो यह होता कि वे अपने ट्विटर पर लगी तस्वीर बदल देते थे, जैसा कि कई मंत्रियों ने किया. पूरे दिन ‘आजाद जम्मू-कश्मीर’ के प्रधानमंत्री पाकिस्तान में इमरान खान के साथ ‘हकीकी आजादी’ हासिल करने में मशगूल थे.
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404-इंकलाब नहीं मिला
Learn how to use religion to defend your decisions: ?
When crowd was not agreeing with @ImranKhanPTI to call off the #LongMarch, former deputy speaker National Assembly @QasimKhanSuri whispered in his ears “give it some Islamic touch” and #ImranKhan followed the advice! pic.twitter.com/tBOXNpS7bX— Asad Ali Toor (@AsadAToor) May 26, 2022
तकरीबन छह हफ्ते पहले अपनी विदाई के बाद से इमरान खान की ओर से स्टारप्लस-ड्रामानुमा मैसेज आ रहे हैं. उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने वाले कोलाहल की शुरुआत मार्च में साजिशी चि_ी से हुई, फिर धोखा, झूठ और बेवफाई का रोना, उनके ब्लॉक किए फोन नंबर, दिल का दौरा पड़वाने के लिए खाने में जहर, और हमारे सितारों पर एटम बम का राग अलापा गया. हम लगातार सुनते रहे कि कैसे अमेरिका ने पश्चिमी देशों के साथ मिलकर साजिश की और इमरान खान को बाहर निकलवाया. इस कदर कि अब वे चाहते हैं कि ब्यूरो ऑफ साउथ ऐंड सेंट्रल एशियन अफेयर्स के अमेरिकी एसिस्टेंट सेक्रेटरी डोनाल्ड लू को ‘बुरे बर्ताव’ के लिए बर्खास्त कर दिया जाए. खबरदार, राष्ट्रपति जो बाइडन, अगर आपने लू को नहीं हटाया, तो अगला धरना ह्वाइट हाउस के लॉन में हो सकता है.
हमने यह भी सुना कि कैसे पाकिस्तानियों ने ‘आयातीत हुकुमत’ को खारिज कर दिया है और इस हुकुमत को उखाड़ फेंकने के लिए कैसे लोगों की सूनामी आने वाली है. 20 लाख लोगों ने इसी वादे के साथ राजधानी पर धावा बोल दिया. इससे क्या कि वे महज 2 फीसदी ही हैं. अगर ट्विटर ट्रोल वाले नंबर भी धरना पर उतर आते तो नतीजे शायद तडक़े लौट जाने से कुछ बेहतर होते. सरकार को अल्टीमेटम था कि ‘छह दिनों में चुनाव का ऐलान करो.’ वरना बाजा दोबारा इस्लामाबाद लौट आएगा. प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ इस ड्रामे से ज्यादा प्रभावित नहीं हुए और कहा कि सरकार इमरान खान का फरमान नहीं सुनेगी, वह अपना फैसला लेगी.
Ret General Ali Quli khan. And Other Retired Generals at Azaadi march.
So Armed forces retired peoples are with @ImranKhanPTI#حقیقی_آزادی_کی_جنگ#حقیقی_آزادی_مارچ pic.twitter.com/UmxmZEvXB6— Veronika Sofia (@VeronikaSofiaRS) May 24, 2022
अफसोस, यह 2014 नहीं है, जब ताकतवर जनरल आपके एवज में लोगों को जुटा देते, कार्यकर्ता बिरयानी की देग का मजा लुटते और अदालत की इमारत लांड्री रेक बन जाती-ठीक-ठीक कहें तो सलवार कमीज की सुप्रीम कोर्ट. तब भी न नवाज शरीफ ने इस्तीफा दिया, न इमरान खान ‘दूसरों’ की शह पर सरकार गिराने की जिद पर अड़े बच्चे की तरह देखे गए.
पाकिस्तान एक ‘प्रयोगशाला’
जबसे बाहर निकाले गए हैं, इमरान खान की सियासत एक या दूसरे हैंडलर के गिर्द घूम रही है. अब, हटाए गए प्रधानमंत्री के नाते वे नवंबर से पहले वापसी चाहते हैं. नवंबर ही क्यों? वजह यह कि उसी वक्त नए फौज प्रमुख की नियुक्ति होनी है. कितना बेतुका लगता है, बतौर लीडर आपकी इकलौती प्राथमिकता अपना पसंदीदा फौज प्रमुख चुनना है, जबकि आपका कामकाज न प्राथमिकता में रहा, न कोई संभावना जगा पाया. गलती न करो, आप फिर भी फेंक दिए जाओगे. हकीकत तो यह है कि आप इमरान खान को चुनो तो चाहे व्यवस्था बदलकर सरकार राष्ट्रपति प्रणाली वाली कर दो या उन्हें सुल्तान बना दो, वे फिर भी गिर पड़ेंगे. पिछले साढ़े तीन साल पक्की गवाही दे रहे हैं.
यह विडंबना है कि मुहम्मद अली जिन्ना अमूमन कहा करते थे कि पाकिस्तान ‘प्रयोगशाला’ बनेगा. इस ‘प्रयोगशाला’ में दशकों के सियासी प्रयोग ने तबाही के कगार पर ला खड़ा किया है. फिर भी यह थमता नहीं. 2018 के वायरस ने अपने जन्मदाता को काट खाया है, और इसकी कोई वैक्सीन भी नहीं है. अलबत्ता, इंकलाब जिंदाबाद.
(नायला इनायत पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nalainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.)
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