करीब 4,000 साल पहले, बेबीलोन के राजा हम्मुराबी ने लॉ 229 स्थापित किया था, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई बिल्डर घर बनाता है और वह गिर जाता है, जिससे निवासी की मृत्यु हो जाती है, तो बनाने वाले को भी मौत के घाट उतार दिया जाएगा. हम्मुराबी ने अपने कानूनों को हर साक्षर व्यक्ति को पढ़ने के लिए एक सार्वजनिक चौराहे पर पोस्ट किया, और माना कि यह कानून उसके साम्राज्य में उच्च गुणवत्ता वाले निर्माण को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक था. लेखक नसीम निकोलस तालेब ने समान प्रोत्साहनों के एक नैतिक सिद्धांत ‘स्किन इन द गेम’ की अपनी फिलॉसफी की व्याख्या करने के लिए इतिहास की उदाहरण का हवाला दिया. यह साधारण तो दिखता है लेकिन कार्य-व्यवहार के स्तर पर स्वीकार करना काफी मुश्किल है कि सभी हितधारकों के लिए जोखिमों और रिवार्ड्स को बराबर रखा जाए.
चल रहे हिंडनबर्ग-अडानी मामले को इस चश्मे से देखा जा सकता है ताकि हिंडनबर्ग के उद्देश्यों के लिए जिम्मेदार कुछ भ्रम और संदेह को स्पष्ट किया जा सके. हिंडनबर्ग रिसर्च, अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलर, ने एक विस्तृत रिसर्च रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसने अडाणी समूह के काम करने के तरीके पर गंभीर आक्षेप लगाए और तीखे तरीके से दावा किया कि अडाणी कॉर्पोरेट इतिहास में ‘सबसे बड़ा फ्रॉड’ था. लेकिन वे वहां नहीं रुके; उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उन्होंने अडाणी समूह के शेयरों के खिलाफ एक ‘बड़ा दांव’ लगाया था, और अगर शेयरों के मूल्य में गिरावट आती है तो उन्हें लाभ होगा. और इसका यह भी मतलब है कि अगर वे गलत साबित हुए और शेयरों में गिरावट नहीं आई तो वे अपना सारा पैसा खो देंगे. संक्षेप में, हिंडनबर्ग ने अपना पैसा वहीं लगाया जहां उन्हें पता था कि लाभ होगा.
आइवी लीग विश्वविद्यालयों में वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं, सार्वजनिक टिप्पणीकारों और यहां तक कि अर्थशास्त्र के प्रोफेसरों ने हिंडनबर्ग के इरादों पर सवाल उठाया है और तर्क दिया है कि हिंडनबर्ग द्वारा यह सारी कवायद कीमतों को कम करने और मुनाफा हासिल करने के लिए का गई है. उनका तर्क है कि हिंडनबर्ग ने एक भ्रामक और बढ़ा चढ़ाकर रिपोर्ट प्रकाशित की क्योंकि शॉर्ट सेलर ने अडाणी के शेयरों पर दांव खेला और इन्वेस्टर प्रोटेक्शन के किसी कार्य में शामिल नहीं है. तो, क्या हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से लाभ कमाने की क्षमता की बात ‘स्किन इन द गेम’ या अप्रत्यक्ष तरीके से लाभ कमाने के उद्देश्य का मामला था?
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हिंडनबर्ग ने अडाणी को कैसे हिलाया?
मान लीजिए कि एक शुद्ध रिसर्च संस्था या एक मीडिया पब्लिकेशन ने बिल्कुल ऐसा ही निष्कर्ष जारी किया होता तो उनकी सत्यता पर अभी भी सवाल उठाया गया होता और शायद इस तरह के एक स्वार्थपूर्ण ऑपरेशन की तुलना में अधिक तेज़ी से खारिज कर दिया जाता, क्योंकि इन एजेंसियों के पास खोने के लिए कुछ नहीं था बल्कि कुछ हासिल करना था. वास्तव में, अतीत में रिसर्च शॉप या मीडिया की कहानियों द्वारा कई रिपोर्टें आई हैं, जिनमें हिंडनबर्ग द्वारा अडाणी समूह के बारे में उठाए गए मुद्दों में से कुछ को उजागर किया गया है. या तो मुकदमे की धमकी देकर या उन्हें ‘मोटिवेटेड ऑपरेशन’ के रूप में लेबल करके, उन्हें बेपरवाही से हटा दिया गया.
हिंडनबर्ग का साफतौर पर कहना कि अगर इसकी रिपोर्ट को गंभीरता से लिया गया तो उसे आर्थिक रूप से लाभ प्राप्त होगा और यदि गंभीरता से नहीं लिया गया तो उसे नुकसान उठाना पड़ेगा, रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है. यह बाजार के लिए एक संकेत था कि वे अपने शोध की गुणवत्ता में इतना दृढ़ विश्वास रखते हैं कि अडाणी के अन्य शेयरधारक अपनी शेयर बेचने के लिए राजी हो जाएंगे, और इसलिए, शेयर की कीमत गिर जाएगी. तालेबियन के शब्दों में, इस लेन-देन में हिंडनबर्ग का निहित स्वार्थ है.
इस मामले में हिंडनबर्ग कई विकल्पों में से एक को चुन सकता था:
1: शेयर की कीमत पर दांव लगाए बिना एक रिपोर्ट प्रकाशित करें
2: रिपोर्ट प्रकाशित किए बिना शेयर की कीमत पर दांव लगाएं
3: एक रिपोर्ट प्रकाशित करें, दांव लगाएं लेकिन अडाणी के शेयरों के खिलाफ अपनी अपने इस लाभ के बारे में जिक्र न करें.
4: रिपोर्ट प्रकाशित करें, शेयरों पर दांव लगाएं और पारदर्शी बनें.
विकल्प तीन और चार ‘स्किन इन द गेम’ यानि व्यक्तिगत लाभ की स्थिति को पूरा करते हैं, लेकिन विकल्प चार हिंडनबर्ग की ‘व्यक्तिगत लाभ’ के बारे में बाकी बाजार को भी बताता है, और हिंडनबर्ग ने इसी विकल्प को चुना.
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ‘संदिग्ध’ नहीं
यह सुनिश्चित करने के लिए, मैं एक पल के लिए यह तर्क नहीं दे रहा हूं कि बाजार परफेक्ट है और उल्टी-सीधी रिपोर्टों से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती. मेरा मानना है कि बाजार अक्सर परफेक्ट नहीं हुआ करते हैं. लेकिन यह तर्क देने के लिए कि हिंडनबर्ग का मकसद संदिग्ध है क्योंकि यह लाभ कमाने के लिए कर रहा है, समान इन्सेंटिव की पूरी धारणा को नुकसान पहुंचता है क्योंकि अगर बाजार को इसकी रिपोर्ट पर विश्वास नहीं हुआ तो इसका पूरा पैसा डूब जाएगा. अडाणी समूह के पास रिपोर्ट को खारिज करने और बदनाम करने का अवसर था और हिंडनबर्ग को बहुत सारी वित्तीय बर्बादी का कारण बना. तथ्य यह है कि वे केवल हिंडनबर्ग के निष्कर्षों की सत्यता की पुष्टि करने में विफल रहे, कम से कम बाजार से पहले.
वित्त की दुनिया में निवेशकों के लिए एक निश्चित कंपनी के शेयर खरीदना और बाद में उस कंपनी से सार्वजनिक रूप से बात करना दुनिया को बताने के लिए आम बात है, ताकि वे इसके शेयर की कीमत में वृद्धि से लाभ उठा सकें. यह एक स्वीकृत मानदंड है, और यह बाजार पर छोड़ दिया जाता है कि वह उस कंपनी की महानता पर विश्वास करे या उस पर अविश्वास करे. कोई भी इस स्थापित परंपरा के पीछे की मंशा पर सवाल नहीं उठाता. लेकिन यहां तक कि विद्वान लोगों को भी एक ही परंपरा के दूसरे पक्ष को स्वीकार करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है – किसी कंपनी के बारे में सार्वजनिक रूप से कमतर करके बात करना और उसके शेयरों पर दांव लगाना.
यह विचार कि शेयर की कीमत में गिरावट से लाभ हो सकता है, शेयर की कीमत में वृद्धि से मुनाफा कमाने के विचार की तुलना में अधिकांश लोगों के लिए इसे समझना और स्वीकार करना कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण लगता है. मानव मन की इस विषमता पर नोबेल पुरस्कार विजेता डेनियल काह्नमैन और इज़राइली गणितीय मनोवैज्ञानिक अमोस टावर्सकी द्वारा बड़े विस्तार से शोध और दस्तावेजीकरण किया गया है, जिन्होंने इसे “नुकसान से बचना” कहा. नैतिकता की वकालत करने वाले उचित रूप से यह तर्क दे सकते हैं कि किसी और के नुकसान से लाभ उठाना उनके फायदे से लाभ उठाने की तुलना में अधिक बुरा है; इसलिए, दोनों की बराबरी नहीं की जा सकती. लेकिन वह इस चर्चा के दायरे से बाहर है.
किसी शेयर या ‘शॉर्ट सेल’ पर दांव लगाना सिमिट्री इन्सेंटिव को स्थापित करता है जो अधिक विश्वसनीय होते हैं. यह तर्क देना भोला और भ्रामक है कि एक ‘शॉर्ट सेल’ गलत तरीके के इन्सेंटिव्स को प्रेरित करता है, लेकिन एक ‘लॉन्ग सेल’ ऐसा नहीं करता. यह तथ्य कि अगर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट गलत निकलती है या आसानी से इसका खंडन किया जा सकता है तो वह पैसे का भारी नुकसान उठा सकता है, वास्तव में इसकी विश्वसनीयता का सबसे बड़ा संकेत था. यकीनन, आधुनिक दुनिया में ‘फेक न्यूज’ की विकराल समस्या, इसके मूल में, एसिमिट्रिक इन्सेंटिव की समस्या है, जहां फ्री स्पीच की आड़ में झूठी रिपोर्टिंग के लिए कोई सजा नहीं बल्कि पर्याप्त इनाम और प्रोत्साहन है. हिंडनबर्ग उदाहरण की तरह सिमिट्रिक इन्सेंटिव की को स्थापित करना समाज में फेक न्यूज की बीमारी को दूर करने का एक समाधान हो सकता है. लेकिन इस विशिष्ट मामले में, हिंडनबर्ग के ‘स्किन इन द गेम’ नियम ने गौतम अडाणी को काफी नुकसान पहुंचाया है.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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