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Saturday, 21 December, 2024
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चीनी अर्थव्यवस्था नीम बेहोशी में है, इसलिए अमेरिका नंबर वन बना रहेगा

चीन की कहानी समय से पहले खत्म होने की बात कई बार दोहराई जा चुकी है लेकिन वह फिर वापसी की सामान्य उछाल ले सकता है लेकिन पश्चिम के रणनीतिक वर्चस्व को चुनौती देने में उसे समय लगेगा.

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चीनी अर्थव्यवस्था आश्चर्यजनक रूप से थकी-मांदी नज़र आ रही है. बाकी दुनिया जबकि मुद्रास्फीति से जूझ रही है, चीन में उलटा हो रहा है. वहां उत्पादकों को उत्पादों की जो कीमत मिलनी चाहिए उसमें गिरावट आ रही है और उपभोक्ताओं के लिए भी कीमतों में गिरावट आ रही है. दूसरे देशों में केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं लेकिन चीन में केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति को नरम बना रहा है.

भारत जैसे देशों में शेयर बाजार उफान मार रहे हैं लेकिन शांघाई कम्पोजिट इंडेक्स 2009 के अपने स्तर से नीचे चला गया है. इस मैनुफैक्चरिंग पावरहाउस में औद्योगिक उत्पादन कोविड से पहले के चार साल के  पुराने स्तर से नीचे चला गया है. उधार में वृद्धि की दर भी गिर रही रही है, जबकि डॉलर के मुक़ाबले युआन की कीमत भी गिर रही है. इन सबने 2022 में आई सुस्ती के बाद उसके आर्थिक सुधार पर भरोसे को कमजोर किया है.

पिछले कैलेंडर वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 5.5 फीसदी रहने की उम्मीद थी लेकिन 3 फीसदी पर अटक गई, जो हाल के दौर में सबसे नीची है, कोविडग्रस्त 2020 को छोड़ दें तो. इस साल के लिए 5 फीसदी की वृद्धि दर का लक्ष्य रखा गया है लेकिन हर बीतते महीने के साथ अनिश्चितता बढ़ती दिख रही है, हालांकि ‘बेस’ नीचा रखा गया है. टीकाकार लोग घरेलू मांग और निजी निवेश में गिरावट की ओर इशारा कर रहे हैं.  निजी निवेश में एक दशक में पहली बार गिरावट आई है (सिवा कोविड के पहले की तिमाही के).

जनवरी-अप्रैल की तिमाही में नयी हाउसिंग का स्तर ठीक एक साल पहले के स्तर से 20 फीसदी नीचा रहा. व्यापार के मोर्चे पर निर्यातों में पिछले आठ में से छह महीने गिरावट ही आती रही. आयात का स्तर भी नीचा है. प्रॉपर्टी मार्केट और निर्यातों के बूते काफी हद तक आगे बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था के ये दोनों इंजिन ठप हो गए हैं. गति में गिरावट का अर्थ है कि मुद्रास्फीति को 3 फीसदी पर रखने का लक्ष्य भी हासिल करना मुश्किल होगा.

अधिकतर प्रेक्षकों ने उम्मीद की थी कि साल के शुरू में कोविड संबंधी पाबंदियां हटाने से वृद्धि दर में उछाल आएगी, वास्तव में इस कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही में यह 4.5 फीसदी पर पहुंची भी, लेकिन पिछले साल की इसी अवधि में कोविड के कारण लॉकडाउन तथा अड़चनों के चलते आई गिरावट का हिसाब लेने के बाद अनुमान है कि यह 2.6 फीसदी से ऊपर नहीं जाएगी.

इस बीच, 16-24 के आयुवर्ग में बेरोजगारी करीब 20 फीसदी तक जा पहुंची. फिर भी, चीन के कर्ता-धर्ता मांग को बढ़ाने के कोई वित्तीय राहत देने से कतरा रहे हैं.

इनमें से कुछ मसले चक्रीय हो सकते हैं. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि दीर्घकालिक, ढांचागत बाधाएं  नहीं हैं. कामकाजी आयुवर्ग वाली आबादी में गिरावट, सरकारी और अर्द्ध-सरकारी कर्ज में भारी वृद्धि और हाउसिंग क्षेत्र में जरूरत से ज्यादा निर्माण आदि के कारण कुछ समय से आशंका की जा रही है कि अर्थव्यवस्था पर ब्रेक लग सकता है.

इन सबके साथ पूंजी पर कम लाभ देने वाली परियोजनाओं के गलत चुनाव और प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर सख्ती ने ढांचागत जरूरी बदलावों को जरूरी बना दिया है. इस बीच, आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिए पूंजीगत निवेश से निजी उपभोग की ओर बढ़ने की बातों पर अमल नहीं हो सका है. उपभोक्ताओं की ओर से मांग में तत्काल गिरावट इस विफलता को रेखांकित करती है.


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इस बात से भी मुश्किल बढ़ सकती है कि पश्चिमी जगत चीनी मैनुफैक्चरिंग पर अपनी निर्भरता घटाकर अपना जोखिम कम करने की कोशिश कर सकता है. चीन चूंकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, सबसे बड़ी मैनुफैक्चरिंग शक्ति है, और सबसे बड़ा निर्यातक है इसलिए कोई सार्थक संबंध विच्छेद तो संभव नहीं है लेकिन अलगाव के कारण विदेशी निवेश दूसरे देशों की ओर जा सकता है. पश्चिमी टेक्नोलॉजी के लिए दरवाजे रणनीतिक लिहाज से बंद करने से इस कहानी में अनिश्चितता का एक और तत्व जुड़ता है.

सावधान रहने के लिए कहा जा सकता है कि चीन की कहानी समय से पहले खत्म होने की बात दो दशकों में कई बार दोहराई जा चुकी है. इस संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता कि इस बार भी चीन वापसी की सामान्य उछाल ले सकता है. कई विदेशी प्रेक्षक अभी भी मानते हैं कि वह 2023 के लिए 5 फीसदी की वृद्धि दर का लक्ष्य अंततः हासिल कर सकता है. इसका अर्थ होगा कि इस साल वह वैश्विक वृद्धि दर के दोगुने के लगभग बराबर की दर हासिल कर सकता है, जबकि प्रति व्यक्ति आय के मामले में चीन की बराबरी करने वाली कोई दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था उससे बेहतर प्रदर्शन नहीं कर रही है.

फिर भी, इस धारणा में संशोधन करने जरूरत पड़ सकती है कि अर्थव्यवस्था के रूप में चीन अमेरिका से बड़ा हो जाएगा और अंततः पश्चिम के रणनीतिक वर्चस्व को चुनौती देगा. आज वैश्विक शक्ति संतुलन में किसी बड़े फेरबदल की जगह वैश्विक सत्ता समीकरण में संतुलन की ही संभावना ज्यादा दिखती है.

(व्यक्त विचार निजी हैं. बिजनेस स्टैंडर्ड से स्पेशल अरेंजमेंट द्वारा)

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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