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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतयुवा नेताओं को क्यों करनी पड़ रही है पदयात्रा- राहुल, प्रशांत, सचिन पायलट की यात्रा के सियासी मायने समझिए

युवा नेताओं को क्यों करनी पड़ रही है पदयात्रा- राहुल, प्रशांत, सचिन पायलट की यात्रा के सियासी मायने समझिए

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 7 सितंबर 2022 से 30 जनवरी 2023 के बीच 'भारत जोड़ो यात्रा' के माध्यम से 4800 किमी लंबी पदयात्रा की. उनकी पदयात्रा कन्याकुमारी से शुरू हुई और श्रीनगर के ऐतिहासिक लाल चौक पर खत्म हुई थी.

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भारत में लोकसभा चुनाव में 1 साल से भी कम समय बाकी है. ऐसे में देश का राजनीतिक पारा हर दिन थोड़ा चढ़ता हुआ नजर आ रहा है. कर्नाटक में कांग्रेस को मिली बड़ी जीत के बाद विपक्षी एकता और पीएम मोदी को चुनौती देने वाले गठबंधन बनाए जाने की कवायद फिर से तेज हो गई है. इस बार इसकी पहल और केंद्रीय भूमिका में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नजर आ रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी लगातार सक्रिय हैं और तमाम नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं.

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कांग्रेस इस बार कदम पीछे खींचने के लिए तैयार है, और सहयोगी दलों के साथ चुनाव लड़ने और प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव बाद चर्चा करने के लिए भी मन बना चुकी है. इन सबके बीच पिछले एक साल में देश के तीन युवा नेताओं की पदयात्रा भी चर्चा के केंद्र में रही है. आने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में इन पदयात्राओं का क्या असर होगा, इसे समझने का प्रयास करते हैं. 

राहुल का असली टेस्ट मध्य प्रदेश और राजस्थान में

पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 7 सितंबर 2022 से 30 जनवरी 2023 के बीच ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के माध्यम से 4800 किमी लंबी पदयात्रा की. उनकी पदयात्रा तमिलनाडु के कन्याकुमारी से शुरू हुई और 12 राज्यों से गुजरते हुए जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर के ऐतिहासिक लाल चौक पर खत्म हुई. मीडिया में उनकी यात्रा की खूब चर्चा हुई. कहा गया कि राहुल गांधी इस यात्रा के माध्यम से अपनी छवि बदलने का प्रयास कर रहे हैं. वे खुद को एक गंभीर राजनेता के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं.

कांग्रेस पार्टी ने भी भारत जोड़ो यात्रा में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. अमूमन हर दिन राहुल गांधी के साथ हजारों कांग्रेस कार्यकर्ता पैदल चल रहे थे. बीच-बीच में पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन, पूर्व रॉ चीफ ए एस दौलत जैसे नामचीन लोगों ने भी भारत जोड़ो यात्रा में हिस्सा लिया और राहुल के साथ चलें. राहुल गांधी ने इस यात्रा को नफरत के खिलाफ बताया और कहा कि वे मोहब्बत का पैगाम लेकर आए हैं. श्रीनगर में बर्फबारी के बीच उनका भाषण सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था. 

लेकिन इन सबके बीच जो सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को इस यात्रा का राजनीतिक लाभ मिलेगा. यात्रा खत्म होने के बाद राहुल अपनी लोकसभा की सदस्यता गंवा चुके हैं और हो सकता है कि वो अगले साल होने वाला लोकसभा चुनाव भी लड़ नहीं पाएं. कर्नाटक में मिली जीत को कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा की सफलता बता रही है. लेकिन कर्नाटक की जीत के कई अन्य कारण भी रहे, जैसे कि स्थानीय मुद्दों पर चुनाव का होना, BJP सरकार के खिलाफ एंटी एंकमबेंसी और सशक्त मुख्यमंत्री का नहीं होना.

भारत जोड़ो यात्रा की असली परीक्षा इस साल के अंत में होने वाले मध्य प्रदेश और राजस्थान के चुनावों में होगी. मध्य प्रदेश में 2018 के चुनाव में सत्ता हाथ में आने के बाद पार्टी ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में जाने के कारण सत्ता गंवा चुकी है. वहीं राजस्थान में कांग्रेस सत्ता में है और अपनी ही पार्टी के महत्वपूर्ण नेता सचिन पायलट के बगावती तेवर से जूझ रही है. पायलट ने भी राजस्थान में हाल ही में एक पदयात्रा की है, जिसका जिक्र आगे इस लेख में किया गया है.


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क्या BJP और महागठबंधन का खेल बिगाड़ पाएंगे PK

राहुल गांधी की पदयात्रा शुरू होने के लगभग 1 महीने बाद 2 अक्तूबर 2022 को बिहार के चंपारण से एक और पदयात्रा की शुरुआत होती है, जिसका नाम है ‘जन सुराज पदयात्रा’. देश के चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने बिहार के पश्चिम चंपारण जिले स्थित भितिहरवा गांधी आश्रम से राज्य भर की पदयात्रा पर निकले हुए हैं. उन्होंने पिछले साल साल 5 मई को पटना में जन सुराज पदयात्रा की घोषणा करते हुए बताया था कि वे पूरे बिहार की लगभग 3500 किमी लंबी पदयात्रा करेंगे.

पदयात्रा के पीछे उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को लेकर जब भी सवाल पूछा जाता है तो वे बताते हैं कि ये एक समाज के बीच से सही लोगों को ढूंढकर उन्हें एक मंच पर लाकर एक नई राजनीतिक व्यवस्था बनाने का प्रयास है. प्रशांत किशोर अपने भाषणों में बताते हैं कि पार्टी बनेगी लेकिन वो प्रशांत किशोर की पार्टी नहीं होगी, प्रशांत किशोर उसके नेता नहीं होंगे. अगर सबकी सहमति से पार्टी बनती है तो वो बिहार के सभी सही लोगों की पार्टी होगी जो उसे मिलकर बनाएंगे और वही उस पार्टी के संस्थापक सदस्य होंगे. वे कहते हैं कि ये पूरा प्रयास आजादी से पहले वाली कांग्रेस को पुनर्जीवित करने का अभियान है.

जन सुराज पदयात्रा के माध्यम से प्रशांत किशोर अबतक 7 जिलों की लगभग 2500 किमी लंबी पदयात्रा कर चुके हैं. फिलहाल उनकी पदयात्रा पैर चोटिल होने के कारण स्थगित है, उन्होंने बताया कि 11 जून से वे फिर से पदयात्रा शुरू करेंगे और पूरे बिहार की यात्रा करेंगे. 

प्रशांत किशोर की पदयात्रा बिहार की राजनीतिक गलियारों में चर्चा में बनी हुई है. हाल ही में जन सुराज समर्थित एक निर्दलीय MLC उम्मीदवार ने बीजेपी और महागठबंधन दोनों के प्रत्याशी को हरा कर राज्य की राजनीति में ठीकठाक हलचल पैदा कर दी है. कहा जा रहा है कि प्रशांत किशोर आने वाले लोकसभा चुनाव में भी चिन्हित सीटों पर इसी प्रकार अपने द्वारा समर्थित उम्मीदवारों को उतार सकते हैं. खासकर उन सीटों पर जहां उनकी पदयात्रा पूरी हो चुकी है. अगर पीके ऐसा करते हैं तो निश्चित तौर पर बीजेपी और महागठबंधन को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी.

हालांकि, बीजेपी और महागठबंधन के नेता प्रशांत किशोर पर अभी ज्यादा बोलने से बच रहे हैं और उनकी गतिविधियों पर बारीकी से नजर बनाए हुए हैं. लेकिन हाल के दिनों में पीके बिहार की राजनीति में चर्चा में बने हुए हैं और अपने भाषणों में वे कांग्रेस, मोदी, लालू और नीतीश सबको बिहार की इस बदहाली के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं. हालांकि क्या उनके प्रयास से बिहार में कोई नई राजनीतिक व्यवस्था बनेगी और सत्ता परिवर्तन में उनकी भूमिका होगी, ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा. 

बगावत की ‘पदयात्रा’ पर निकल पड़े हैं सचिन पायलट 

राजस्थान के पूर्व उप-मुख्यमंत्री व कांग्रेस नेता सचिन पायलट ने 11 मई से 15 मई के बीच 125 किमी लंबी ‘जन संघर्ष यात्रा’ की. उनकी पदयात्रा अजमेर से शुरू हुई और 15 मई को जयपुर में एक बड़ी रैली में तब्दील होकर खत्म हुई. जयपुर में भीषण गर्मी के बावजूद जुटी खचाखच भीड़ से उत्साहित सचिन पायलट ने अपनी ही सरकार को 15 दिन का अल्टीमेटम दे डाला और कहा कि अगर उनकी तीन मांगे नहीं मानी गई तो 30 मई के बाद वे पूरे प्रदेश में आंदोलन करेंगे. पायलट ने कहा कि राजस्थान सिविल सेवा आयोग का पारदर्शी तरीके से पुनर्गठन किया जाए और उसमें महत्वपूर्ण पदों पर विश्वसनीय अधिकारियों को बैठाया जाए, पेपर लीक से आर्थिक नुकसान झेलने वाले बच्चों को उचित मुआवजा मिले और वसुंधरा राजे के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की उच्चस्तरीय जांच हो. 

जयपुर में पायलट के भाषण को सुनने पर लगता है कि कोई तेजतर्रार युवा नेता विपक्षी पार्टी के खिलाफ हल्ला बोल रहा है, जबकि राजस्थान में उनकी ही पार्टी की सरकार है. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की राजनीतिक लड़ाई अब हेडलाइन से बाहर हो चुकी है. अब असली संकट कांग्रेस पार्टी के सामने है, राजस्थान में इसी साल अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. पीछे का ट्रैक रिकॉर्ड ये रहा है कि हर 5 साल पर सत्ता बदलती रही है. कांग्रेस के भीतर इस अंदरूनी लड़ाई का निश्चित तौर पर पार्टी को नुकसान होगा.

खबर ये भी है कि सचिन पायलट अपनी नई पार्टी बना कर चुनाव लड़ने की पूरी रणनीति बना चुके हैं और ये हाल ही में हुआ एक दिन का अनशन, 5 दिनों की पदयात्रा और उसके बाद प्रदेश भर में आंदोलन उसी स्क्रिप्ट का हिस्सा है.

देश के अलग-अलग हिस्सों में तीन युवा नेताओं ने पिछले एक साल के दौरान पदयात्रा के माध्यम से अपने लिए राजनीतिक नब्ज टटोलने का काम किया है. इसमें से पदयात्रा का किसको कितना फायदा होगा, ये तो आने वाले समय में चुनावी नतीजों से ही पता चलेगा. लेकिन अच्छी बात ये है कि ये नेता सड़कों पर उतर कर आए और सीधा लोगों के बीच जाकर उनके साथ संवाद स्थापित किया.

इससे बाकी नेताओं पर लोगों के बीच जाने का दवाब भी बढ़ेगा और चुने हुए नेताओं की जवाबदेही भी तय होगी. ऐसे प्रयासों से नेताओं को चुनावी फायदा मिलेगा या नहीं ये तो जनता तय करेगी, लेकिन लोकतंत्र के लिए नेताओं का इतना लंबा समय जनता के बीच बिताना निश्चित तौर पर सकारात्मक प्रयास के नजरिए से देखा जाना चाहिए.

(ओमप्रकाश पॉलिटिकल और सोशल ऑब्जर्वर हैं. इन्होंने IIMC से पत्रकारिता की पढ़ाई की है. वह @omprakash_iimc पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.)

(संपादन: ऋषभ राज)


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