मुझे वाकई 2024 की राजनीतिक घटनाओं का सारांश देने वाला एक कॉलम लिखना चाहिए और आपको बताना चाहिए कि 2025 में क्या उम्मीद की जानी चाहिए, लेकिन, ईमानदारी से इस हफ्ते राजनीति को विराम देते हैं. मैं आपको साल के इस वक्त में पारंपरिक रूप से होने वाले थकाऊ वार्षिक राउंडअप कॉलम से बचाऊंगा. बजाये इसके, मैं किसी ऐसी चीज़ पर गौर करूंगा, जो भले ही ज़्यादा सामयिक न हो, लेकिन ज़्यादा ज़रूरी है.
मुझे लगता है कि आप में से कई लोग छुट्टी पर हैं. आप में से कुछ लोग नए साल का स्वागत करने के लिए अभी-अभी घर लौटे हैं और बाकी लोग शायद चाहते हैं कि काश वह छुट्टी पर गए होते. तो, आइए इस हफ्ते भारत में छुट्टियां मनाने पर गौर करें.
या भारत में छुट्टियां नहीं मनाने पर गौर करें. यह कॉलम तब लिखा जा रहा है जब मैं श्रीलंका में अपनी छुट्टियां खत्म कर रहा हूं, जो भारत से थोड़ी ही दूरी पर है, लेकिन बहुत कम खर्चीला है और भारत में जितना मैं कर सकता था, उससे ज़्यादा मज़ेदार है.
और अगर आप रेगुलर सोशल मीडिया यूज़र हैं तो आपको पता होगा कि हर कोई गोवा के ‘फेवरेट हॉलिडे डेस्टिनेशन’ का टैग खोने के बारे में पोस्ट कर रहा है या फिर उन शानदार छुट्टियों की तस्वीरें पोस्ट कर रहा है जो वह हमसे कुछ ही दूरी पर स्थित विदेशी देशों में बिता रहे हैं.
लेकिन सोशल मीडिया पोस्ट पर भरोसा मत करिए. आंकड़ों पर नज़र डालिए. भारत सरकार ने हमें बताया है कि उम्मीद है कि 2047 तक भारत में 100 मिलियन विदेशी पर्यटक आएंगे. यह बहुत ज़्यादा लगता है, लेकिन दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में यह कोई बड़ी बात नहीं है. 2019 में 90 मिलियन पर्यटक फ्रांस गए थे. 2023 में स्पेन में 85 मिलियन टूरिस्ट गए. इसलिए, भारत के लिए अगले 20 साल तक उस 100 मिलियन लक्ष्य तक पहुंचना पूरी तरह से संभव होना चाहिए.
सिवाय इसके कि, जब तक कुछ नाटकीय रूप से नहीं बदलता, यह नहीं होगा.
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मत आइए, हमें परवाह नहीं?
100 मिलियन के आंकड़े तक पहुंचने के लिए, विदेशी पर्यटकों के आने की संख्या में कम से कम 15 प्रतिशत की वृद्धि की ज़रूरत होगी. यह बहुत ज्यादा नहीं लगता है, लेकिन सच्चाई यह है कि पर्यटकों की संख्या बढ़ने के हमारे सबसे अच्छे चरण (2001 से 2019 तक) के दौरान रहे, हम केवल 8.5 प्रतिशत की दर से ही बढ़ पाए और अब, पर्यटकों का आना सच में घट रहा है. हम 2019 में 10.9 मिलियन के शिखर पर थे और फिर कभी उस संख्या तक नहीं पहुंचे.
यह अजीब है क्योंकि दुनिया भर में टूरिज्म फल-फूल रहा है. जैसा कि द इकोनॉमिस्ट ने हमारे पर्यटन विफलताओं के बारे में हाल ही में एक लेख में बताया, जब भारत में 10.9 मिलियन टूरिस्ट आए, तब भी दुबई, एक अकेला शहर था, जहां 16.7 मिलियन पर्यटक गए. दुबई का आंकड़ा बढ़ता रहा है. 2024 की पहली छमाही में, दुबई ने 2019 की इसी अवधि की तुलना में 11 प्रतिशत अधिक विजिटर्स को आकर्षित किया, लेकिन उसी अवधि के दौरान, भारत की संख्या में 10 प्रतिशत की गिरावट आई.
इसलिए, आप इसे जैसे भी देखें, अब कम से कम लोग भारत आना चाहते हैं. द इकोनॉमिस्ट कुछ स्पष्टीकरण देता है — लालफीताशाही, प्रचार की कमी, प्रदूषण के बारे में चिंताएं, स्वच्छता के मुद्दे, आदि — ये सभी वैध हैं, लेकिन हम इनका सामना करने से इनकार करते हैं.
बीते दस साल में हमने यह रुख अपनाना शुरू कर दिया है कि भले ही विदेशी यात्री हमारे यहां न आना चाहें, हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. भारतीय मध्यम वर्ग आगे बढ़ रहा है. उसे यात्राएं करना पसंद है. भारतीय हमारे देश की पर्यटक स्थलों में इस कमी को भर देंगे.
यह कुछ हद तक समझ में आता है. स्पेन और फ्रांस जैसे देशों का इतनी बड़ी संख्या में पर्यटकों को लुभाने का बड़ा कारण यह है कि यूरोपीय संघ के भीतर आसान पहुंच उन्हें यूरोपीय लोगों के लिए डोमेस्टिक डेस्टिनेशन की तरह बनाती है और हमारे जैसे देशों के लिए डोमेस्टिक डेस्टिनेशन बड़ा लाभ देता है: यह हालांकि, स्थिर है. विदेशियों को बम विस्फोट या स्वास्थ्य संबंधी किसी खतरे से डर लग सकता है, जैसा कि हमारे साथ पहले भी अक्सर होता रहा है, लेकिन भारतीय यात्रा करते रहेंगे.
आखिरकार, तर्क यही है, अमेरिका को ही देख लीजिए. अमेरिकी पर्यटक वीज़ा लेना आसान बनाने या अपने हवाई अड्डों पर इमिग्रेशन की कतारों को कम करने की कोशिश नहीं करते, इसका एक कारण यह है कि उन्हें विदेशी पर्यटकों की सच में परवाह नहीं है. संयुक्त राज्य अमेरिका में दो-तिहाई से अधिक पर्यटन उनके अपने देश के यात्रियों से आता है. इसलिए, उन्हें अपने होटलों को भरने या अपने पर्यटक स्थलों को भरने के लिए विदेशी पर्यटकों की ज़रूरत नहीं है.
अगर आप किसी इंडियन डेस्टिनेशन पर गए हैं (उदाहरण के लिए गोवा या जयपुर) तो आपको पता होगा कि अब भारतीय पर्यटकों की संख्या विदेशियों से कहीं अधिक है. यहां तक कि आगरा में भी, जो पहले विदेशी पर्यटकों पर निर्भर था, आप पाएंगे कि भारतीय पर्यटकों की संख्या बढ़ती जा रही है.
तो, क्या हमें अपनी पर्यटन नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए? क्या हमें विदेशियों पर ध्यान देना बंद कर देना चाहिए?
हां और नहीं, क्योंकि समस्या यह है कि भारतीय भी अपने देश के पर्यटन स्थलों से तेज़ी से दूर होते जा रहे हैं.
विदेशी जगहों के लिए गोवा को भूल जाना
ज़ाहिर है, गोवा इसका एक उदाहरण है, जबकि आप अपनी ज़िंदगी में केवल एक या दो बार ही ताजमहल देखने के लिए आगरा जा सकते हैं, आपको गोवा में बार-बार वापस जाने में सक्षम होना चाहिए और मैं ऐसे कई लोगों को जानता हूं जो ठीक यही करते थे: उदाहरण के लिए, मैं खुद. कई सालों तक, मैं हर क्रिसमस और नए साल पर गोवा जाता था. मैंने इसके बारे में शानदार लेख लिखे और इसके गुणों का बखान किया.
लेकिन पिछले दो सालों से, मैंने जानबूझकर गोवा से परहेज़ किया. एक प्रमुख कारण लागत है. लगभग हर तरह से थाईलैंड गोवा के मुकाबले बहुत सस्ता है. अधिक से अधिक भारतीय शहरों से कई सस्ती उड़ानें हैं और थाई बजट होटल गोवा की तुलना में बेहतर और सस्ते हैं.
मार्केट के टॉप पर गोवा एक मज़ाक है. दिल्ली से बैंकॉक के लिए बिजनेस क्लास का किराया दिल्ली से गोवा के किराए के मुकाबले पीक सीज़न में कम है. इसके अलावा, गोवा में बहुत कम अच्छे लक्जरी होटल भी हैं. ये आमतौर पर बैंकॉक के अधिक संख्या वाले और बेहतर लक्जरी होटलों की तुलना में अधिक महंगे हैं.
पिछले साल, मैं सर्दियों में थाईलैंड गया और इस साल, मैंने श्रीलंका को चुना, जहां मैं जिस बेहतरीन, बिलकुल नए होटल में ठहरा, रत्नदीपा, जो भारत के ITC होटल्स द्वारा संचालित है, नए साल पर भारत में ITC के ज़्यादातर लग्ज़री होटलों से सस्ता है. (और ITC रत्नदीपा कोलंबो में सबसे बड़ा होटल है, जहां कमरे के किराए सबसे ज़्यादा हैं) कोलंबो के ताज समुद्रा के बारे में भी यही सच है: एक शानदार होटल जो भारत के ताज लग्ज़री होटलों से सस्ता है.
जब विदेश में छुट्टियां मनाना इतना आसान और सस्ता है, तो कोई बार-बार गोवा क्यों जाना चाहेगा?
मैंने थाईलैंड का उदाहरण दिया, लेकिन श्रीलंका की तरह, अन्य पास की डेस्टिनेश और भी सस्ती है. इस साल सोशल मीडिया पर वियतनाम की ओर से अच्छा प्रयास किया गया और यहां तक कि मैं, जो 20 साल से वहां जा रहा हूं, यह देखकर हैरान हूं कि अब यह कितना अच्छा है.
और जबकि सुदूर पूर्व में लगभग हर डेस्टिनेशन भारतीय पर्यटक स्थलों के लिए एक गंभीर प्रतियोगी है, मिडल ईस्ट भी अचानक खुल गया है. एक समय की बात है — यहां तक कि पांच साल पहले भी — अगर आप मुझसे कहते कि भारतीय नए साल के लिए उज्बेकिस्तान या कजाकिस्तान जाएंगे तो मैं हंसता, लेकिन मेरे जानने वाले ज़्यादातर लोग मिडल ईस्ट को चुन रहे हैं क्योंकि वहां की उड़ानें सिर्फ तीन घंटे की होती हैं, होटल अच्छे और सस्ते हैं और बाकी सब चीज़ें प्रतिस्पर्धी कीमतों पर उपलब्ध हैं.
ज़्यादातर मध्यम दूरी वाली हॉलिडे डेस्टिनेशन के लिए वीज़ा अब कोई समस्या नहीं है. आप उन्हें ऑनलाइन या ऑन अराइवल पर ले सकते हैं और कुछ देशों में तो आपको उनकी ज़रूरत भी नहीं होती. थाईलैंड अब भारतीयों को बिना वीज़ा के आने की अनुमति देता है. दूसरे देश भी यही कर रहे हैं.
यह सिर्फ पैसे की बात नहीं है. यह इस बात की भी भावना है कि पर्यटकों को कितना महत्व दिया जाता है. मैं गोवा में घटती संख्या के कारणों में नहीं जाना चाहता. आपने टैक्सी माफिया, भयानक बुनियादी ढांचे, भ्रष्ट राजनेताओं और नौकरशाहों, पुलिसकर्मी-ठग गठजोड़ आदि के बारे में अनगिनत लेख पढ़े होंगे. इसलिए मैं और कुछ नहीं कहूंगा, सिवाय इसके कि गोवा के अधिकारियों की प्रतिक्रिया — यह कहना कि उनके राज्य के खिलाफ एक साजिश है — आपको वो सब कुछ बताती है जो आपको जानना चाहिए कि आने वाले वर्षों में उन्हें और भी अधिक परेशानियों का सामना क्यों करना पड़ेगा.
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पश्चिम की ओर बढ़ना, दक्षिण की ओर जाना
क्या यह सब मायने रखता है? आखिरकार, अगर भारतीय विदेश में छुट्टियां बिताना पसंद करते हैं, तो हमें इतनी परवाह क्यों है?
ठीक है, क्योंकि पर्यटन अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है. यह हर फेमस डेस्टिनेशन की समृद्धि को बढ़ाता है और वहां काम करने वालों की आय में वृद्धि करता है. जब आप श्रीलंका या वियतनाम जैसे देशों की यात्रा करते हैं, तो सबसे बड़ा रहस्योद्घाटन यह होता है कि टूरिज्म से आम लोगों को कितनी समृद्धि और लाभ हुआ है.
दूसरी ओर, भारत की जीडीपी में टूरिज्म का योगदान 2002-2003 में 5.8 प्रतिशत से घटकर 2019-20 में 5.2 प्रतिशत हो गया. अभी भी, हम कोविड के दौर से उबर नहीं पाए हैं और अभी भी महामारी से पहले के स्तर तक नहीं पहुंच पाए हैं.
क्या कोई रास्ता है? शायद, लेकिन यह आपके और मेरे ऊपर नहीं; यह राजनेताओं पर निर्भर है. कई स्थलों में राजनेता पर्यटन से आर्थिक रूप से लाभ कमाते हैं जबकि इसे प्रोत्साहित करने के लिए कुछ भी करने से बचते हैं.
यहां तक कि केंद्र सरकार भी पर्यटन को प्राथमिकता नहीं मानती. मोदी सरकार के 10 सालों में एक अच्छे पर्यटन मंत्री एजे अल्फोंस को पद पर बने रहने की अनुमति नहीं दी गई. पर्यटन मंत्रालय को किसी भी तरह से महत्वपूर्ण नहीं माना जाता.
क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि जब भी आप पश्चिम की ओर उड़ान भरेंगे, तो उसमें कोई राजनेता होगा? गर्मियों के दौरान लंदन में छुट्टियां मनाने वाले इतने सारे भारतीय राजनेता हैं कि आपको एहसास होता है कि उनकी प्राथमिकताएं क्या हैं. वे पश्चिम में मौज-मस्ती करते हैं और भारतीय पर्यटन की परवाह नहीं करते.
वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार हैं और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.
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