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Saturday, 21 December, 2024
होममत-विमतहड़बड़ाई मोदी सरकार का लड़खड़ाता बैलेंस: कैसे आखिरी साल में फूंक-फूंक कर ले रही कदम

हड़बड़ाई मोदी सरकार का लड़खड़ाता बैलेंस: कैसे आखिरी साल में फूंक-फूंक कर ले रही कदम

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उप चुनाव में मिलने वाली हारों ने मोदी सरकार को घबराहट की मुद्रा में पहुँचा दिया है। अप्रत्याशित रूप से इसकी कार्य प्रणाली घटनाओं द्वारा निर्देशित हो रही है।

नकी पिछली क्षतिपूर्ति की उम्मीद में अधिक पैसे बर्बाद करना एक पुरानी मान्यता है। लेकिन राजनीतिक भरपाई के लिए अधिक पैसे बर्बाद करने का क्या लाभ? प्रत्येक सरकार अपने अंतिम वर्ष में ऐसा करती है। क्या नरेंद्र मोदी भी “किसी अन्य” सरकार की तरह व्यवहार कर रहे हैं?  वो भी घबराहट में?

निर्णय न करें, केवल तथ्यों को देखें। इस सप्ताह की शुरुआत में, सरकार ने चीनी / गन्ना उद्योग के लिए 7,000 करोड़ रुपये का पैकेज घोषित किया था। क्या यह समस्या को हल करेगा, या इसे टाल पाएगा? बिलकुल नहीं।

चीनी के साथ समस्या यह है कि भारत की तरह पूरी दुनिया में इसके कई विकल्प हैं। यदि “किसान समर्थक” सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य का भुगतान चीनी मिलों द्वारा किया जाता है तो इससे किसानों की लागत भी वसूल नहीं हो सकती। अगर सरकार “अधिक लाभकारी” कीमतों को बनाए रखना चाहती है तो इसे चीनी के आयात पर प्रतिबंध लगाना पड़ेगा, जो यह करती है। फिर भी, यदि कीमतें अलाभकारी रहती हैं (मिलों के लिए), तो आप एक अधिकतम खुदरा मूल्य (एमआरपी) तय करते हैं। यह उन लाइसेंस-नियंत्रण राज की विसंगतियों में से एक है: आप इससे कम मूल्य पर चीनी नहीं बेच पाएंगे। खुदरा मूल्य अब “नियंत्रित” होगा। 2019 में लगभग 80 प्रतिशत मतदाताओं को इस सुस्त, साठ साल पुरानी अर्थशास्त्र के बारे में कोई जानकारी नहीं होगी और साथ ही उससे भी घृणित राजनीति।

हुत सारे भारतीय किसान बहुत ज्यादा चीनी का उत्पादन कर रहे हैं। लोग तब तक इसका इतना उपभोग नहीं कर सकते जब तक कि आप जलेबी और गुलाब जामुन को प्रत्येक भोजन के साथ अनिवार्य नहीं घोषित करते। आज की वैश्विक कीमतों पर, आप इसे निर्यात नहीं कर सकते हैं। यह पैसा भी शीरे की तरह पानी में बह जाएगे। हालांकि, आप हजारों किसानों को गन्ना की फसल न उगाने के लिए प्रोत्साहित कर सकते थे, खासतौर पर पानी की कम उपलब्धता वाले महाराष्ट्र में, जिनकी गन्ना उगाने की लत एक पर्यावरणीय आपदा है। वही किसान फलों का उत्पादन करके काफी बेहतर कर सकता है। उस परिवर्तन पर 20,000 करोड़ रुपये खर्च करने से अच्छी अर्थव्यवस्था और बेहतर राजनीति होगी, यह पैसे का अच्छा निवेश होगा। लेकिन इसका लाभ आप मई 2019 से पहले नहीं देख सकते हैं। अब,गारंटी के साथ आप सभी को दुखी कर देंगे और अधिक मांगने पर मजबूर कर देंगे। तो आगे बढ़िए और भरी हुई बाल्टी में और पानी डालते रहिये।

आइए दोषपूर्ण कृषि अर्थशास्त्र से विचलित न हों और राजनीति के साथ बने रहें। गन्ने से सम्बंधित यह संधिपत्र कैराना, जिसका उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादन में मुख्य स्थान है,  के उपचुनाव में मिली हार के एक हप्ते के भीतर आ गया। आपने अनुमान लगा लिया कि नाराज किसान, जिन्होंने 2014 में आपको वोट दिया था उन्होंने इस बार आपको पूर्णतः खारिज कर दिया और मुस्लिमों के साथ मिल कर एक सामान्य कारण पर दंगा किया।

किसान हुए ध्रुवीकरण को लेकर बहुत गुस्से में हैं। वास्तव में, योगी आदित्यनाथ अपने चुनावी अभियान को मजबूत बनाने के लिये वे पाकिस्तान के गुजर चुके संस्थापक का जिक्र करते हैं, उन्हें अपनी राजनीति के लिये मात्र ध्रुवीकरण का दावं आता है और अब वह उसका हर्जाना भर रहे हैं। इत्तफाक से जिन्ना शब्द की तुकबंदी गन्ने शब्द से मिलती हैं और उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों को एक विनाशकारी नारा दे दिया है।

राजनीतिक पक्ष को ध्यान में रखते हुए कुछ अन्य तथ्यों की जाँच करें। जैसे कि सहयोगियों के साथ दूरी ख़त्म  करने में दिखाई गयी तेजी। कैराना की हार के एक दिन पश्चात उन्होंने शिरोमणि अकाली दल की उस मांग को स्वीकार किया जिसे काफी समय से इनकार किया जा रहा था, ये मांग गुरुद्वारों में होने वाले लंगर के लिए खरीदी गई सामग्रियों पर जीएसटी हटाने को लेकर थी।

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बीच तल्ख़ संबंधो से सभी वाकिफ हैं। जिस  सप्ताह चीनी और लंगर का उपहार दिया  गया था उसी हफ्ते अमित शाह अपने चुने हुए मंत्रियों के साथ उद्धव के घर पर मिलने पहुँचे। बाला साहेब के पुत्र होने के नाते उद्धव ने राजनीतिक स्थिति मजबूत बनाने का मौका नहीं छोड़ा। शिवसेना जो कि सरकार में सहयोगी पार्टी है उसी सरकार के मुखिया को उन्होंने बाहर इन्तजार करवाया ,इस तरह का अपमान क्यों सहन करेंगे।

चार साल पहले, भाजपा पूरे बहुमत के साथ सत्ता में आई, उसे किसी भी साझेदार की जरूरत नहीं थी। लेकिन यह तब भी गठबंधन धर्म का दावा करती थी लकिन प्रधानमंत्री की शक्ति और लोकप्रियता जो कि आज कल की पीढ़ी में किसी के पास नहीं है, के सामने सर झुकाते हैं।

यही कारण है कि नितीश ने धर्मनिरपेक्ष मंच को छोड़ दिया और भ्रष्टाचार विरोधी मंच पर आ गये और एनडीए से जुड़ गए।

ब वह बिहार में एनडीए के भीतर के एक स्थानीय से बात करने का साहस  करते  हैं। उपेंद्र कुशवाह, जो एक बिहार की एक छोटी पार्टी आरएलएसपी की अगुवाई करते हैं अपने तीन सांसदों के साथ, पटना में आयोजित हुए औपचारिक एनडीए के रात्रिभोज में अपनी अनुपस्थिति को लेकर चेतावनी दे रहे है। संदेश: आप बहुमत के बावजूद कमजोर दिख रहे है। इसलिए हमें सीटों के मोलभाव करने की उम्मीद है।

कैराना हाल ही का झटका है लेकिन उत्तर प्रदेश में मोदी सरकार की राजनीतिक गति पहले ही टूट गई थी। उपचुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके डिप्टी केशव प्रसाद के गढ़ क्रमशः गोरखपुर और फूलपुर की हार बीजेपी पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव का पहला संकेत है। जिसके बाद हड़बड़ी में पार्टी से और भी गलतियाँ हुई हैं। 2014 में बीजेपी की मुख्य योजनाओं में से एक योजना भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई थी। कर्नाटक में बेल्लारी भाइयों और उनके  सहियोगियों  को साथ जोड़ने से भ्रष्टाचार के खिलाफ की लड़ाई का भी अंत हो गया है।

थ्य यह है कि मोदी अभी भी कर्नाटक में काफी लोकप्रिय थे और अपने ही बल पर बहुमत हासिल भी कर सकते हैं लेकिन बल्लेरी भाइयों ने बीजेपी के प्रति मतदाताओं के दिमाग में संदेह डाला है। साक्ष्य: जहाँ वे सभी नौ सीटों पर अपनी विजय की उम्मीद कर रहे थे वहां उन्होंने केवल तीन शीटो में जीत मिली और बीजेपी का 2019 के चुनाव के लिए बीजेपी का भ्रष्टाचार विरोधी चुनावी मुद्द खो गया। आप सीबीआई से अचानक कर्नाटक चुनाव से पहले यह नहीं कहलवा सकते की अवैध खनन / लौह अयस्क निर्यात मामलों में बल्लारी के रेड्डी बन्धु के खिलाफ कोई सबूत नहीं है।

बीजेपी ने एक कृषि मंत्री को केवल उनकी समझ या उनकी देशी प्रवत्ति को ले कर उन्हें  मंत्रिपद पर नियुक्त नहीं किया। यूपीए के 10 वर्षों की तुलना में कृषि क्षेत्र की दर चार वर्षों में लगभग आधी बढ़ी है, याद रखें तब 3.7 प्रतिशत औसत वार्षिक वृद्धि के बाद भी किसान संकट में था। इसी बीच आपका एक व्यक्ति कहता है कि, अच्छे बैक्टीरिया से प्राप्त एक नई  कार्बनिक खाद केवल देशी गाय के गोबर में पायी जाती है जो कि हमारी सबसे पूजनीय सामूहिक “माता” है। यह एक मजाक नहीं है। कृषि मंत्रालय टोकन मूल्य पर इसकी बिक्री कर रहा है। आप एक छोटी बोतल खरीदते हैं और कार्बनिक कचरे में इसे डाल देते हैं। मुझे यकीन है कि यह अद्भुत खाद बनाता है, लेकिन संदेह यह है कि क्या यह 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना कर देगा। चीनी एक नया संकट नहीं है। यह पिछले चार वर्षों से बना रहा है, लेकिन समय किसके पास था?

इनके द्वारा चुने गए नौसिखिये मुख्यमंत्रियों की सूची है, जो इनके लिए अब एक भार स्वरुप हैं। जिन तीनों ने आपको अपने राज्यों में लगभग सभी सीटें के साथ जीत दिलाई है, वे अपने को अनदेखा, मूर्ख और तिरस्कृत महसूस कर रहे हैं। तीसरा जिसकी वजह से इन्हें नुकसान पहुँच रहा है वह यह कि जिस तरह से यह अपने सहयोगियों को भी घमंड और अकड़ दिखाते हैं। हम जानते हैं कि राजनेताओं की इस पीढ़ी को पूर्ण बहुमत के साथ शासन करने का अनुभव नहीं है। भाजपा को गहरी, विनम्र सांस लेने और उस बुनियादी तथ्य को स्वीकार करने की जरूरत है, जिसके लिए लोग राजनीति में शामिल होते हैं: सत्ता की लूट में एक हिस्सा। सहयोगियों को कोई भी मंत्रालय नहीं दिए गए थे। अकाली भाजपा के सबसे वफादार सहयोगी हैं, और इसके सत्तारूढ़ परिवार की बहू कैबिनेट में खाद्य प्रसंस्करण के प्रभारी के रूप में उनकी एकमात्र सदस्य है। अपने गृह राज्य में, वह “चटनी-आचर-जाम-मुरब्बा” मंत्री के रूप में उपहासित हैं। क्या आपको शिव सैनिक अनंत गीत का पोर्टफोलियो याद है? कोई सहयोगी अपने वफादार के लिए राज्यपाल का पद उपहार स्वरूप देने में सक्षम नहीं है। भाजपा ने गठबंधन सरकार चलायी है लेकिन नियम कानून अपने ही रखे हैं। कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि यह घटनाओं को अपने कार्यों को निर्देशित करने की इजाजत दे रहा है, किसी अन्य घबराए हुए शासक की तरह,अपनी सामान्य स्थिति में रहने की बजाय, सर्व-विजय वाले घुड़सवार होने और बड़ी विजय के लिए तैयार।

Read in English : Lousy economics & lousier politics: Modi govt acting like any other panicky last-year govt

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